शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

हे ईश्वर,दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान नहीं करना

sai baba
मित्रों,गोस्वामी तुलसीदास ने अपने विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरितमानस में वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि जहँ-तहँ जामि तृण भूमि समुझि पड़हिं नहिं पंथ;जिमि पाखंडवाद ते लुप्त होहिं सद्पंथ.यानि वर्षा ऋतु में पगडंडियों पर इतनी घनी घास उग आती है कि राही को पता ही नहीं चलता कि वास्तव में रास्ता है किधर से.कुछ इसी तरह जब राष्ट्र और समाज में पाखंडवाद का बोलबाला हो जाता है तब लोग सन्मार्ग को भूलने लगते हैं.दुर्भाग्यवश वर्तमान भारत के राजनैतिक,सामाजिक और धार्मिक जीवन में भी बहुत-कुछ ऐसा ही हो रहा है.

              मित्रों,आध्यात्मिक दृष्टि से दुनिया में हमेशा से तीन तरह के लोग रहे हैं.एक वे जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं,दूसरे वे जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखते और तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो अन्धविश्वासी हैं.इसी तीसरी श्रेणी की मौजूदगी का लाभ उठाते हैं बगुला भगत की तरह पाखंडपूर्ण जीवन जीनेवाले लोग.भारतीय इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटें तो पहली बार अथर्ववेद में मंत्र-तंत्र,जादू-टोने और चमत्कार का जिक्र आता है.हालाँकि सिन्धु-घाटी सभ्यता के शहर मोहनजोदड़ो से एक पुजारीनुमा व्यक्ति की मूर्ति प्राप्त हुई है लेकिन वह जनसमुदाय को प्रभावित करने के लिए जादू-टोने और चमत्कार का प्रयोग करता था या नहीं;का कोई साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है और जब तक सिन्धु-घाटी सभ्यता की लिपि पढ़ नहीं ली जाती तब तक ऐसा हो पाने की कोई सम्भावना भी नहीं है.उत्तरवैदिक काल में चार पुरुषार्थों का सिद्धांत आया.अर्थ,काम,धर्म और मोक्ष में मोक्ष की महत्ता सबसे ज्यादा मानी गयी.इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को स्वयं प्रयत्न करना पड़ता था.लेकिन बाद में जब बौद्ध धर्मं में पाखंड का प्रभुत्व बढ़ा और तंत्रयान और वज्रयान का प्रभाव बढ़ा तब बोधिसत्व (बौद्ध मुनि) धन लेकर दूसरे लोगों के दुखों-पापों को अपने ऊपर लेने और अपने तपोबल से मोक्ष दिलवाने का दावा करने लगे.बुद्ध की जातक कथा से प्रेरित होकर ब्राह्मणों ने विभिन्न हिन्दू देवी-देवताओं का अवतार करवाना शुरू कर दिया.पहले राम,फिर कृष्ण जैसे महामानवों को विष्णु का अवतार बना दिया गया.ऐसा भारत में हमेशा से होता आया है कि किसी असाधारण मनुष्य के मरने के बाद लोग उसे अवतार मानकर उसकी पूजा करने लगते हैं.बुद्ध और कबीर जैसे अनीश्वरवादी और निर्गुण भी कुछ चतुर लोगों के इस प्रकार के षड्यंत्रों के शिकार हो चुके हैं.कुछ ऐसे भी लोग हुए जो अपने जीवनकाल में ही खुद के अवतारी होने का दावा करने लगे.श्रीमदभागवतपुराण जो कथित रूप से विष्णु के कृष्णावतार की कथा है;में भी एक ऐसे हीमिथ्याचारी राजा का उल्लेख है जिसने काठ की दो अतिरिक्त भुजाएँ लगवा ली थीं और खुद के विष्णु का वास्तविक अवतार होने का दावा करता था.

          मित्रों,१९वीं-२०वीं सदी में महाराष्ट्र में एक महान संत ने जन्म लिया जिसका नाम लोगों ने रखा साईं बाबा.साईं ने कभी यह नहीं कहा कि वे अवतारी हैं,बल्कि उनका चित्त,स्वभाव और जीवन-शैली तो एक छोटे-से बच्चे की तरह सरल थे.अब किसने उनमें शिव को देखा और किसने राम को;यह देखनेवाला जाने.वे तो खुद को सिर्फ एक भक्त मानते थे.हालांकि उन्होंने कुछ चमत्कार भी दिखाए जो किसी त्यागी-तपोनिष्ठ संत के लिए किसी भी तरह से असंभव नहीं है.साईं ने कोई संपत्ति भी जमा नहीं की.मरे तब पांव में जूता-चप्पल तक नहीं था.मेरे एक मामा जिन पर किसी आत्मा-वात्मा का साया था;किसी भी चीज की बरसात करा देने में सक्षम थे.तो क्या वे शिर्डी के साई बाबा के अवतार हो गए.शिर्डी के साई के देहत्याग के कुछ ही साल बाद २३ नवम्बर,१९२६ को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गाँव में एक बच्चे ने जन्म लिया.माता-पिता ने नाम रखा सत्यनारायण राजू.चौदह साल की उम्र में अति उर्वर मस्तिष्क के स्वामी सत्यनारायण ने स्वयं को शिर्डी के साई बाबा का अवतार घोषित कर दिया.उनकी जीवन शैली भव्य थी और जीवन यौन-स्वच्छंदता के आरोपों के कारण विवादस्पद.वह जनसामान्य को प्रभावित करने के लिए कभी भभूत को मिठाई बना देता तो कभी मिश्री.वह ऐसे चमत्कार थोक में दिखाता जो कोई भी साधारण-सा जादूगर भी दिखा सकता था.मानों उसके रूप में साई ने सिर्फ इसी मकसद से अवतार लिया था.इस बात की पुष्टि के लिए स्वयं इंटरनेट पर उसकी हाथ की सफाई की पोल खोलनेवाले कई वीडियो मौजूद हैं.हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या!
          मित्रों,त्यागमूर्ति शिर्डी के साई बाबा का यह कथित अवतारी अपने पीछे १.५ लाख करोड़ रूपये की अकूत संपत्ति छोड़ गया है.क्या ऐसा व्यक्ति शिर्डी के साई बाबा का अवतार हो सकता है?आप यह भी सोंच सकते हैं कि अगर वह संन्यासी था भी तो किस तरह का संन्यासी था?संन्यास का तात्पर्य ही पूर्ण विरक्ति होता है लेकिन यह व्यक्ति तो माया के प्रति एक सामान्य गृहस्थ से भी ज्यादा अनुरक्त था.लोगों पर अपना विश्वास ज़माने के लिए इसने अपनी मृत्यु के वर्ष की भविष्यवाणी कर रखी थी;20२२ ईस्वी.साथ ही उसने यह भी घोषणा कर रखी थी कि उसकी मृत्यु के ८ साल बाद यानि २०३० ईस्वी में वह फिर से धरती पर आएगा;प्रेम साई के रूप में.लेकिन उसकी ये दोनों भविष्यवाणियाँ उसकी मौत के साथ ही झूठी साबित हो चुकी हैं.
     मित्रों,हालाँकि उसने गरीबों की भलाई के लिए अस्पताल और स्कूल भी खोले और इन कार्यों के लिए उसकी प्रशंसा भी की जानी चाहिए.लेकिन भारत में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है और उनमें से किसी ने आज तक स्वयं के अवतार होने का दावा भी नहीं किया है.कुछ लोग भारतीय परंपरा का हवाला देकर कह सकते हैं कि हमारे यहाँ मरे हुए व्यक्तियों की निंदा करना उचित नहीं माना जाता.अगर ऐसा मानना सही है तो फिर रावण और कंस जैसे पापियों के प्रसंगों को शास्त्रों से पूरी तरह हटा क्यों नहीं दिया जाता?किसी पापी का जो कर्म उसके जीवित रहते निंदनीय रहता है वह उसकी मृत्यु होते ही स्तुत्य कैसे हो जा सकता है?तो आईये मित्रों हम सब मिलकर ईश्वर से यह प्रार्थना करें कि वह सत्य साई और उसके जैसे सभी पाखंडियों की आत्माओं को शांति प्रदान नहीं करे और रौरव नरक में अनंत काल तक निवास दे.      

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

बिहार जहाँ आईने भी झूठ बोलते हैं

nitish
मित्रों,हिंदी में एक कहावत बहुत ही मशहूर है कि जब आप आईने के सामने खड़े हों और आपको अपने चेहरे पर दाग नजर आए तो आपको आईने को बुरा-भला कहने के बजाए अपना चेहरा साफ करना चाहिए.दोस्तों,लोकतंत्र में मीडिया आईने का काम करता है;समाज के लिए भी और सरकार के लिए भी.उसकी ही जिम्मेदारी होती है जनता को सच्चाई से रू-ब-रू करवाना.लेकिन बिहार में इनदिनों यह लोकतंत्र का आईना सचबयानी नहीं कर रहा.शासन और प्रशासन के चेहरे कई तरह के दागों से अटे-पटे पड़े हैं लेकिन मीडियारुपी आईना उन्हें जबरन साफ़-सुथरा दिखाने में लगा है.
      मित्रों,कभी कल्याण सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी को भाषणवीर का ख़िताब दिया था.आज बिहार में एक घोषणावीर शासन कर रहा है;जो रोज-रोज नई-नई घोषणाएं करता रहता है;परन्तु उन पर अमल नहीं करता.हालाँकि उसे यह भी अच्छी तरह से पता है कि सिर्फ बातें बनाने से बात नहीं बननेवाली;काम करके दिखाना भी जरुरी है.वह करता भी है तो करता कम है लेकिन दिखावा बहुत ज्यादा का करता है.
          मित्रों,बिहार में सर्वव्याप्त और रात दूनी दिन चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ते भ्रष्टाचार की चर्चा कहाँ से शुरू करूं और कहाँ पर ख़त्म करूं समझ में नहीं आता?जहाँ भी निगाह जाती है घूसखोरी व कमीशनखोरी ही नजर आती है.राज्य का मुखिया पटना में बैठा-बैठा भ्रष्टाचार को जड़ सहित उखाड़ फेंकने का राग जुबानी खर्च अलापने में लगा है और भ्रष्टाचार उसी तरह बढ़ता जा रहा है जैसे कौए के टरटराते रहने पर भी धान सूखता रहता है.वह घोषणा करता है कि अब बिहार में भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं.सारे भ्रष्टाचारियों के घरों को जब्त कर उनमें स्कूल खोले जायेंगे.लेकिन ईधर वह घोषणा करता रहता है और उधर भ्रष्टाचारी अपनी अवैध कमाई से हजारों नए घर बनवाने में लग जाते हैं.शुरुआत में दो-चार घर दिखावे के तौर पर जब्त भी किए जाते हैं और फिर सरकार कान में तेल डालकर सो जाती है.आज इस उद्देश्य से गठित विजिलेंस की विशेष यूनिट अधिकारीविहीन होकर अपने हाल पर रो रही है.
           मित्रों,घोषणावीर जी जनता से आह्वान करते हैं कि निगरानी विभाग को सूचना देकर घूसखोरों को पकड़वाईए.लोग उनके बहकावे में आ भी जाते हैं.परिणामस्वरूप कुछ लोग पकडे जाते हैं लेकिन एक हाथ से घूस लेते पकडे जाते हैं और दूसरे हाथ से घूस देकर छूट भी जाते हैं.फिर जो भी नुकसान उठाना पड़ता है वह उठाता है शिकायतकर्ता.बिजली के बारे में इनकी घोषणाओं को अगर लिपिबद्ध कर दें तो ब्रिटेनिका इनसाईक्लोपीडिया से भी मोटी पुस्तक तैयार हो जाएगी.श्रीमान वर्षों नहीं महीनों में बिजली की हालत सुधारने का दावा कर रहे थे लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीता इस बेहया की बेवफाई बढती ही गयी.कब आए और कब चली जाए की भविष्यवाणी करने में निस्संदेह आज बेजान दारूवाला के गणेशजी भी सक्षम नहीं हैं.अब घोषणावीर जी इस दिशा में कुछ करने के बजाए सारा ठीकरा केंद्र के माथे फोड़कर बिजली संकट झेलिए और कौन उपाय है;का स्यापा गाने लगे हैं.करूं क्या आस निराश भई?
           मित्रों,गरीब बिहार भी इन दिनों महंगाई के ताप से तप रहा है और वो भी भारत के अधिकतर राज्यों से कहीं ज्यादा.घोषणावीर बाबू बारहा फरमा रहे हैं कि मुद्रास्फीति पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता है;यह तो केंद्र सरकार के इशारों पर नाचनेवाली मदारी है;वही जाने.लेकिन क्या सुशासन बाबू बताएँगे कि जबसे वे सत्ता में आए हैं तब से बिहार मुद्रास्फीति के मामले में पूरे भारत में अग्रणी क्यों बना हुआ है?क्या इसके लिए उनकी सरकार की अकर्मण्यता भी जिम्मेदार नहीं है?उन्हें जनवितरण प्रणाली को दुरुस्त करने से किसने रोक रखा है?यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में राज्यों की कोई भूमिका नहीं होती हैं तो फिर क्यों अलग-अलग राज्यों में इसकी दरें अलग-अलग हैं?
        मित्रों,घोषणावीर बाबू बड़े जोशोखरोश के साथ घोषणा करते हैं कि उनकी सरकार ने सभी मंत्रियों और अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए संपत्ति की वार्षिक घोषणा करना अनिवार्य कर दिया है.सही है गुरु,स्वागत है आपकी सरकार के इस कदम का;लेकिन इन बाघरबिल्लों से यह कौन पूछेगा कि इतना माल आपने बनाया कैसे?अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो फिर संपत्ति की वार्षिक घोषणा करवाने का कुछ मतलब भी रह जाता है क्या?मित्रों,अपने घोषणावीर जी नियम से साप्ताहिक जनता-दरबार लगते हैं.यहाँ वे कथित रूप से जनता की शिकायतें सुनते हैं और उन्हें दूर करने के लिए तत्काल अधिकारियों को आवश्यक निर्देश देते हैं.उसके बाद जनता सम्बद्ध कार्यालयों के चक्कर लगाते-लगाते थक-हार कर घर बैठ जाती है;होईहें वोही जो राम रची राखा.मैं खुद ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो जनता-दरबार गए लेकिन कई साल बीत जाने पर भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ.
        मित्रों,अपने घोषणावीर जी नालन्दा में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय खोलने पर पूरी ताकत झोंके हुए हैं लेकिन उन्होंने पूरी स्कूली शिक्षा का किस तरह सत्यानाश कर दिया है;नहीं देख रहे और न ही मीडिया दिखा रही है.माना कि बिहार के स्कूलों की बिल्डिंगें अच्छी हो गयी हैं.बच्चों की चमचमाती साईकिलों से स्कूल-परिसरों की शोभा में चार नहीं दस-बीस चाँद लग गए हैं लेकिन शिक्षकों की बहाली में तो सिर्फ और सिर्फ धांधली ही हुई है न.अब कोई घोषणावीर जी से पूछे कि श्रीमान स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएगा कौन;ये सोलह दूनी आठ वाले शिक्षक?बच्चे स्कूलों में क्या करने जाते हैं?सरकारी साईकिलें खड़ी करने,बिल्डिंग देखने या पढाई करने?कुछ अच्छे शिक्षक जो एकाध प्रतिशत हैं अपने को फंसा हुआ पा रहे हैं और लंका में विभीषण की तरह दिन गुजार रहे हैं.वैसे भी ५-७ हजार रूपये में सिर्फ दिन को काटा जा सकता है,मक्खन-मलाई को नहीं.
              मित्रों,बिहार में पिछले दो सालों से बरसात नहीं हुई है.पूरा बिहार दीर्घकालीन सूखे की चपेट में हैं लेकिन घोषणावीर बाबू की सैंकड़ों घोषणाओं के बावजूद राज्य के ९९% सरकारी नलकूप किसी-न-किसी वजह से बंद पड़े हैं.छह साल में थोक में की गयी सैंकड़ों घोषणाएं भी इन्हें चालू नहीं करवा पाईं.सरकार ने बड़ी कृपा करके सूखापीड़ित किसानों को डीजल अनुदान देने की घोषणा की लेकिन सारा डीजल मुखिया और उसके समर्थक पी गए,जरूरतमंद किसान कल भी आसमान के भरोसे था;आज भी उसे सिर्फ और सिर्फ उसी का भरोसा है.अब तो स्थिति इतनी बिगड़ गयी है कि बिहार के कई जिलों में बड़े-बड़े पेड़ भी सूखने लगे हैं.इसी तरह बिहार में परीक्षाओं में कदाचार रोकने की अनगिनत घोषणाएं पिछले ६ सालों में की गईं लेकिन घोषणाओं का क्या वे तो की ही जाती हैं कभी पूरा नहीं होने के लिए.
               मित्रों,बिहार में जनवितरण प्रणाली या भ्रष्टाचार वितरण प्रणाली वैसे कुत्ते की दुम है जिसने कभी सीधे रास्ते पर चलना ही नहीं सीखा.सारे प्रयोग-अनुप्रयोग इसे सीधा करने में जंग खा जाते हैं.जाहिर है अपनी आदतानुसार घोषणावीर जी ने इसे सीधा करने की भी घोषणा कई-कई बार की है देखिए वे कहाँ तक इसका बाल बांका कर पाते हैं.दोस्तों,बिहार में बिजली कनेक्शन और मीटर लगवाना पैदल कटिहार जाने से भी ज्यादा मुश्किल है.अगरचे आज अगर आप आवेदन देते हैं और साथ में घूस नहीं देते तो अगर आप भाग्यशाली हुए तो शायद आपके बेटे के जीते-जी कनेक्शन और मीटर लग जाए.हाँ एक और छोटी-सी मगर मोटी बात,जब भी आप कनेक्शन लेने जाएँ तो अच्छी तरह से देख-परख लें कि कनेक्शन उसी उपयोग श्रेणी में मिला भी है या नहीं जिसके लिए आपने आवेदन दिया था.अन्यथा घरेलू कनेक्शन की जगह कहीं व्यावसायिक कनेक्शन दे दिया गया तो नुक्ता के फेर से खुदा का जुदा हो जाना तय है.फिर या तो हजारों रूपये का बिल बिन बात का भरिये या फिर श्रेणी बदलवाने के लिए अधिकारियों की जेबें.
           मित्रों,अपना बिहार घोषणावीर बाबू के शासन में इतना ईमानदार हो गया है कि कोई भी नौकरीशुदा व्यक्ति यहाँ रिटायर होने में भी डरता है.इसलिए लोग बराबर सेवानिवृत्ति की उम्र-सीमा बढ़ाने की मांग करते रहते हैं.अगर फिर भी रिटायर होना ही पड़े तो पहले तो पेंशन चालू करवाने,फिर उसे सही करवाने और बाद में बकाया भुगतान के लिए आपको इतनी बार कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ेंगे कि आप सोंचेंगे कि बेकार में बिहार में रिटायर हो गया.इसलिए कुछ लोग रिटायर होने के बाद सीधे पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पहुँच जाते हैं.
              मित्रों,जनवरी महीने में हुए एक हत्याकांड ने पूरे बिहार के माननीयों को दहला दिया था.रूपम पाठक नाम की एक स्कूल अध्यापिका ने पूर्णिया के भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी की सरेआम हत्या कर दी.इसके कई महीने पहले उसने विधायक पर बलात्कार का आरोप भी लगाया था,मुकदमा भी दर्ज कराया था;लेकिन उसकी फरियाद अनसुनी रही.सुनता भी कौन?सुननेवाले तो घोषणाएं करने में लगे हुए थे.इसलिए उसने सुनाने के बजाए दिखाने की ठान ली और फिर जो कुछ भी हुआ उसे पूरे भारत ने देखा.उसे गिरफ्तार किया गया और लगातार उस पर दबाव बनाया गया कि किसी तरह वह घरेलू महिला बलात्कार का आरोप वापस ले ले और कह दे कि मैं एक सुपारी किलर हूँ और मैंने यह हत्या सिर्फ पैसों के लिए की.बाद में सी.बी.आई. भी जाँच करने आई लेकिन उसे भी इस सुशासन-पीडिता पर दया नहीं आई.मानसिक प्रताड़ना का सिलसिला जारी है.साथ ही जाँच का नाटक भी मंचित हो रहा है.न्याय बलात्कार होने से खुद को बचा पाता है या नहीं वक़्त बताएगा लेकिन हालात जनता की अदालत में जो कुछ भी बयान कर रहे हैं;अच्छे नहीं हैं.अब आते हैं सरकारी अस्पतालों पर.इनके स्वास्थ्य के बारे में तो पूछिए ही नहीं.सरकार ने उन्हें उपकरण दे दिए,दवाएं भी दे दीं लेकिन चिकित्सकों को मानव-सेवा का जज्बा नहीं दे पाई.वो कहते हैं न कि रास्ता बताओ तो आगे चलो.इसलिए स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आ सका.आज भी वे मरघट के समान है जहाँ मरीज ईलाज करवाने नहीं कफ़न ओढने जाते हैं.यही स्थिति प्राईवेट नर्सिंग होमों और डॉक्टरों की भी है.वे मरीजों को ए.टी.एम. मशीन से अधिक कुछ नहीं समझते.आदम जात तो बिलकुल भी नहीं.
          मित्रों,पटना उच्च न्यायालय ने सरकारी व्यय के हजारों करोड़ रूपयों के उपयोगिता प्रमाण पत्रों को झूठा बता दिया है लेकिन घोषणावीर बाबू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.ईधर पैसों की उत्तरोत्तर आक्रामक होती लूट जारी है हर दफ्तर में और उधर उनकी जिह्वा पर विराजमान होकर सरस्वती नित-नई घोषणाएं करने में जुटी है.न तो लूटनेवाले थकने की जहमत उठा रहे हैं और न ही घोषणावीर बाबू की जिह्वा ही रूकने का नाम ले रही लेकिन मीडिया में यह सब नहीं दिख रहा.उसके अनुसार तो बिहार में हरियाली ही हरियाली है.दुर्भाग्यवश मीडिया नामक शिकारी यहाँ खुद ही सरकारी विज्ञापन के लालच के चक्कर में शिकार हो गयी है.बिहार में इन दिनों इन आईनों के मायने बदल गए हैं.झूठे हो गए हैं वे.ऐसे में सुशासन के चेहरे का सच जनता को कौन बताएगा?हम ब्लौगरों की पहुँच ही कितनी है?

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

लागा आन्दोलन में दाग

shanti
मित्रों,कुछ ही दिनों पहले वर्तमान में विवादास्पद और पूर्व में कारपोरेट ईमानदारी का प्रतीक माने जानेवाले प्रसिद्द उद्योगपति रतन टाटा ने कहा था कि वर्तमान भारत में वक़्त जिस तरह करवटें ले रहा है उन्हें इस बात का अफ़सोस है कि वे बूढ़े हो जाने के कारण शायद उसकी परिणति के प्रत्यक्ष गवाह नहीं बन पाएँगे.क्या सचमुच यह कालखंड भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और युगप्रवर्तक कालखंड है?हो भी क्यों नहीं,पहली बार भारतीय भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट जो हुए.एक अन्ना हजारे नाम के दरम्याने कद के वृद्ध ने पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागृति की सुनामी पैदा कर दी.ऐसी सुनामी जिसकी उम्मीद न तो स्वयं हजारे को थी और न ही केंद्र में सत्तारूढ़ भ्रष्ट राजनीतिक दलों को ही.सरकार अप्रत्याशित रूप से बहुत जल्दी झुक गयी और दे गयी अन्ना और उनके मित्रों को जीत की खुशफहमी.अन्ना और सरकार के बीच एक तरफ बातचीत चल रही थी तो दूसरी ओर सियासी शतरंज की बिसातें भी बिछाई जा रही थीं.चूंकि दूसरा पक्ष सियासतदान थे इसलिए सियासत तो होनी ही थी.हम सभी जानते हैं कि शतरंज के खेल में आरंभिक बढ़त का मतलब ही जीत नहीं हो जाती वरन अंत तक अपने राजा को बचाते हुए शत्रु पक्ष के राजा को घेरना और मारना पड़ता हैं.
         मित्रों,इस घोषित रूप से गैर सियासी लेकिन अनिवार्य रूप से सियासी बन चुके शह-मात के इस खेल में अन्ना और उनके मित्रों पर आरंभिक जीत की खुमारी कुछ इस तरह छाई कि वे चाल चलने में शुरुआत में ही भारी गफलत कर बैठे.उन्होंने अपनी तरफ से जिन लोगों को जनलोकपाल निर्मात्री समिति में शामिल किया उनमें से दो एक ही परिवार के थे;बल्कि बाप-बेटे ही थे और दागी भी थे.इस ज़माने में जबकि ईमानदारी से दो जून रोटी का जुगाड़ करना भी आसान नहीं है उनके पास अरबों की स्व-अर्जित संपत्ति थी.जाहिर है कांग्रेस और अन्य भ्रष्ट दलों के भ्रष्ट नेताओं के हाथों भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई लड़नेवालों की नेकनीयती पर प्रश्नचिन्ह लगाने का स्वर्णिम अवसर घर बैठे ही हाथ लग गया.रोज-रोज प्रख्यात वकील शांतिभूषण और प्रशांत भूषण के दामन पर कालिख उछाली जा रही है और असर पड़ रहा है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही लडाई पर.भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई दिन-ब-दिन कमजोर पड़ती जा रही है.
              मित्रों,अन्ना ने अभी तक इन दोनों बाप-बेटों पर लग रहे आरोपों की सत्यता के या उनके संदिग्ध चरित्र के बारे में कुछ भी नहीं कहा है.बल्कि वे आश्चर्यजनक रूप से यह कुतर्क दे रहे हैं कि जिन लोगों ने जनलोकपाल बिल को तैयार किया है उन्हें तो समिति में रखना ही पड़ेगा,चाहे वे भ्रष्ट ही क्यों न हों.अन्ना जी मानें या नहीं मानें उनसे गलती तो हो ही चुकी है जो उन्होंने भ्रष्टाचार के शीश महलों पर उछालने के लिए पत्थर ऐसे हाथों में पकड़ा दिया जिनके खुद के ही घर शीशे के बने हुए थे.मैं समझता हूँ कि अन्ना जी ने ऐसा जानबूझकर नहीं किया होगा.वे सीधे-सादे व्यक्ति हैं और शायद उनकी राजनीतिक समझ कमजोर है.राजनीति जंतर मंतर पर बैठकर नहीं सीखी जा सकती बल्कि यह तो ऐसा खेल है जो दिमाग में और दिमाग से खेली जाती है.साथ ही यह वह शह है जिसके प्रभाव में आने से चाहे-अनचाहे कोई भी व्यक्ति नहीं बच सकता.
         मित्रों,इस लडाई को जो क्षति पहुंचनी थी;पहुँच चुकी है.अब आगे क्षति नहीं हो इसके लिए क्षतिपूर्ति में लग जाने का समय आ गया है.अन्ना जी को अविलम्ब शांतिभूषण और प्रशांत भूषण से इस्तीफा दिलवाना चाहिए और उनकी जगह एक तो किरण बेदी को और दूसरे किसी ईमानदार व विद्वान न्यायविद को लेना चाहिए.मित्रों,कोई भी आन्दोलन जनता का विश्वास खोकर न तो खड़ा ही किया जा सकता है और न तो आगे चलाया ही जा सकता है.हालाँकि भारत सरकार तो सुप्रीम कोर्ट में सार्वजानिक तौर पर मान चुकी है कि भारत में ईमानदार व्यक्ति नहीं बचे लेकिन मुझे उम्मीद है कि अगर अन्ना तलाशेंगे तो ऐसे कानूनविद मिल ही जाएँगे.मेरी दृष्टि में सुप्रीम कोर्ट में एक वरिष्ठ महिला वकील हैं जो अविवाहित हैं और ताउम्र गरीबों और कमजोरों के पक्ष में लडती रही हैं.साथ ही सारे वादों-विवादों से परे भी हैं.अगर अन्ना जी को आवश्यकता महसूस हो तो संपर्क करने पर मैं उनका नाम,पता और मोबाईल नंबर सहर्ष देने को तैयार हूँ.             

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

अन्ना तुम गद्दार तो नहीं हो

anna hajare
मित्रों,अपने बिंदास अंदाजे बयां के लिए मशहूर ओसेदुल्ला खान ग़ालिब ने क्या खूब कहा है-दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है,आखिर इस मर्ज की दवा क्या है;हमें उनसे वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है.मैं समझता हूँ कि अगर आज ग़ालिब होते तो यहाँ मर्ज की जगह भ्रष्टाचार होता.चाहे मुद्दा विकास का हो या भ्रष्टाचारमुक्त समाज की स्थापना का;आजादी के बाद से ही हम भारतवासियों के साथ सिर्फ धोखा-ही-धोखा हो रहा है.हम अपने जिन नुमाईन्दों को अपने प्रति वफादार समझ लेते हैं बाद में वे सिर्फ पैसों और कुर्सी के प्रति वफ़ादारी निभाने में लिप्त हो जाते हैं.
             मित्रों,जब अन्ना हजारे नाम से लोकप्रिय एक बूढा,अविवाहित,मंदिर में सोनेवाला आदमी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जनलोकपाल के विकल्प के साथ देश के सामने आया और बिल के लागू होने तक आमरण अनशन करने की घोषणा की तो पूरे देश में उसके प्रति उम्मीद और समर्थन की लहर चल पड़ी.लेकिन हमने देखा कि सरकार ने प्रस्तावित समिति में उसे शामिल करने की घोषणा क्या कर दी,उसने अपना अनशन ही तोड़ दिया.खैर हमने यह सोंचकर कि हमें अनशन के चलने या टूट जाने से क्या लेना देना;असल मुद्दा तो है कि किसी तरह जनलोकपाल बिल संसद में पेश हो और अपने मूलस्वरूप में पारित हो.हमने यही सोंचकर अन्ना और उनके साथियों पर लग रहे विभिन्न प्रकार के आरोपों को नजरंदाज कर दिया और चट्टान की तरह उनके पीछे खड़े रहे.
          मित्रों,हमें अभी तक अन्ना के तेवरों को देखते हुए इस बात का आभास तक नहीं था कि हमारे साथ धोखा भी हो सकता है.लेकिन आज का अख़बार देखने के बाद मालूम हुआ कि अचानक अन्ना के राग बदल गए हैं.अब अन्ना जिस तरह बदले हुए सुर में बोलने लगे हैं हमें संदेह होने लगा है कि कहीं हमारे साथ एक बार फिर से धोखा तो नहीं हुआ है?कहीं एक बार फिर से हमने पत्थर को हीरा तो नहीं समझ लिया?कहीं अन्ना एंड कंपनी केंद्र की महाभ्रष्ट सरकार से मिली हुई तो नहीं है?
         मित्रों,भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में टूट जाने लेकिन नहीं झुकने का दंभ भरनेवाले अन्ना अब यानि संघर्ष के प्रथम चरण में ही झुकते हुए से प्रतीत हो रहे हैं.उन्होंने हमारी उम्मीदों पर चैत के महीने में तुषारापात करते हुए कहा है कि सभी उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाएगा.अन्ना ने ऐसा क्या सोंचकर और किस तरह की मजबूरी में आकर कहा है ये तो वही जानें.लेकिन मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय से रातोंरात भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है?इलाहाबाद उच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार को तो स्वयं सर्वोच्च न्यायालय स्वीकार कर चुका है.उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बालाकृष्णन पर पद का दुरुपयोग कर अकूत धन जमा करने के जो आरोप हैं क्या वे समाप्त हो गए हैं?क्या अब बालाकृष्णन और दिनकरण सरीखे भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता समाप्त हो गयी है?क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार अन्य क्षेत्रों यहाँ तक कि अधीनस्थ न्यायालयों में कायम भ्रष्टाचार से किसी मायने में अलग है?क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्ट तत्वों के होने से अधीनस्थ न्यायालयों या देश से भ्रष्टाचार के समाप्त होने में किसी तरह की मदद मिलेगी?
       मित्रों,ऐसा हरगिज नहीं है.फिर अन्ना क्यों और कैसे समझौतावादी हो गए?मित्रों,मैं जहाँ तक समझता हूँ कि कोई भी समझौता झुकने की प्रक्रिया का अंत नहीं होता बल्कि केवल और केवल एक शुरुआतभर होता है.एक बार समझौता कर लेने के बाद आदमी समझौते पर समझौते करने लगता है.तो क्या अन्ना आगे और भी ज्यादा झुकनेवाले हैं और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार से रसासिक्त सभी क्षेत्रों के अपराधी प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर तो नहीं हो जानेवाले हैं?
               मित्रों,जाहिर है कि अभी यह एक परिकल्पनात्मक प्रश्न है.मैं यहाँ अन्ना और उनके सहयोगियों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारत की जनता को केवल और केवल जन लोकपाल चाहिए और अपने मूल स्वरुप में चाहिए.हम इसमें इसे कमजोर करनेवाला छोटा-से-छोटा संशोधन भी स्वीकार नहीं करेंगे.अन्ना जी अगर आप ऐसा करने को तैयार होते हैं चाहे कारण जो भी हो,तो देश की जनता आँख मूंदकर यही समझेगी कि आपलोगों ने उनके साथ धोखा किया है और आपलोग भी कतिपय नेताओं की तरह बिक गए हैं,गद्दार हैं. 

कैसी है तेरी दुनिया कैसा ये बसेरा है


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कैसी है तेरी दुनिया कैसा ये बसेरा है,
कहीं पे रौशनी है कहीं पे अँधेरा है;
कैसी है तेरी दुनिया कैसा ये बसेरा है.

अपने पास भी कुछ जमीन थी,
अपने भी कुछ काम थे;
अब तक जमीन के कागजातों पर पूर्वजों के नाम थे;
नामांतरण हेतु मैं गया अंचल कार्यालय में,
पैसे की मांग हुई उस सरकारी देवालय में;
लिखी हुई थी ईबारत,
शायद किसी ने की थी शरारत;
ईमानदारी की हर जगह क़द्र होती है,
झूठ है यह बेचारी तो हर जगह बेपर्द होती है;
रूक जाता है काम,बिन पैसों के मेरे राम;
किससे जाकर सुनें फरियादें अपने मन की,
हर तरफ घूसखोरी हर पद पे लुटेरा है,
कैसी है तेरी दुनिया कैसा ये बसेरा है.

मिलता है वृद्धावस्था पेंशन,हर लम्हा नया टेंशन;
आधी रकम दलाली में,आधी मुट्ठी खाली में;
थोड़ी-सी रकम में भला कैसे हो गुजारा,
लूटते थे फिरंगी पहले अब तो अपनों ने ही मारा;
बिना रजाई-कम्बल के कटता है जाड़ा,
ऐसे काटते हैं वक़्त लोग जैसे टूटा हुआ तारा;
उनके लिए हर लम्हा है परेशानी का सबब,
चाहे ढल रही शाम है या फिर चाहे सबेरा है;
कैसी है तेरी दुनिया कैसा ये बसेरा है.

अब पूछो उनकी जो हमको लूटते हैं,
अपनी सारी कमाई वो किस तरह फूंकते है;
पढ़ते हैं उनके बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में,
पढ़ते हैं हमारे बच्चे घुटने-भर धूलों में;
हमारे ही पैसों से बनाते हैं हमें नौकर,
खाते हैं रसगुल्ला रोज खोलते हैं लॉकर;
लुटेरे हैं लूटते हैं करते हैं पाप,
कहते हैं फिर भी हुजूर माई-बाप;
इनके बच्चे करते हैं सड़कों पर छेड़खानी,
लगाती है जब पिटाई होती है मानहानि;
ले आते हैं खरीदकर ये कोई भी चीज,
चाहे हो कारें या चाहे हो फ्रिज;
लगता है मानो पैसे नहीं बुलबुले हों,
सड़क चलते उठाए गए माटी के ढेले हों;
क्या यही गाँधी के सपनों का लोकतंत्र है,
जहाँ हर कोई अपनी मनमानी को स्वतंत्र है;
मूर्खों के राज में ढाई से अनाज के पीछे भागते हैं लोग,
राहत के नाम पर लूटते हैं घूस देकर छूटते हैं लोग;
लगता है डूबकर ही रहेगी मुल्क की कश्ती,
हर तरफ से इसको तूफानों ने घेरा है;
कैसी है तेरी दुनिया कैसा ये बसेरा है.

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

हाथी चले बाजार तो कुत्ता भूंके हजार

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मित्रों,हुआ यूं कि एक बार कुछ हाथी किसी गाँव से होकर गुजर रहे थे.उनके साथ एक बच्चा हाथी भी था.जैसे ही झुंड गाँव में पहुंचा गाँव के कुत्तों ने भौंकना शुरू कर दिया.लेकिन इसका हाथियों पर कोई असर नहीं हुआ.वे अपनी मदमस्त चाल में चलते चले जा रहे थे.यह देखकर शिशु हाथी को घोर आश्चर्य हुआ.उसने अपनी माँ से पूछा कि बड़े हाथी कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहे?तब माँ ने समझाया कि हम इन्हें जब भी चुनौती देते है ये भाग खड़े होते हैं और जैसे ही हम आगे बढ़ने लगते हैं ये फिर से पीछे-पीछे भौंकना शुरू कर देते हैं.इसलिए हमारे लिए उचित यही है कि हम चुपचाप बिना कोई प्रतिक्रिया प्रकट किए अपने मार्ग पर चलते चलें.
                        मित्रों,इस तरह की एक और कहानी स्वामी विवेकानंद बड़े ही चाव से सुनाया करते थे.एक बार कोई लकडहारा जंगल में डाकुओं के हाथ लग गया.डाकुओं को जब उससे कुछ भी हाथ नहीं लगा तो उन्होंने गुस्से में आकर उसकी नाक काट ली.अब बेचारा कटी नाक लेकर अपने गाँव कैसे जाता सो जंगल में ही उसने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया और कुटिया बनाकर रहने लगा.धीरे-धीरे आसपास के लोगों को खबर हुई और वे उसे सिद्ध पुरुष समझकर खाने-पीने का सामान लाने लगे.जब भी कोई उससे कटी नाक का रहस्य पूछता तो वह बताता कि कुछ विशेष सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए उसे अपनी नाक का बलिदान देना पड़ा.कई लोग सिद्धि प्राप्त करने के लिए व्यग्र हो उठे.वह उन्हें रात के अँधेरे में बुलाता और उनकी नाक काट लेता.फिर जिनकी नाक कट गई वे भी उसी प्रकार का ढोंग करने लगे और दूसरों की नाक काटने लगे जिसका परिणाम यह हुआ कि कटी नाक वालों की एक बड़ी जमात खड़ी हो गयी.
         मित्रों,जबसे अन्ना हजारे के आगे भ्रष्ट कांग्रेस पार्टी को झुकना पड़ा है उसके नेता बुरी तरह बौखला गए हैं.वे अन्ना और उनकी टीम के पीछे कुत्ते की तरह पिल गए हैं.वे लगातार भौंक रहे हैं लेकिन जैसे ही अन्ना जवाब में कुछ बोलते हैं वे सीधे यूं टार्न ले ले रहे हैं.पहले सिब्बल ने भौंकना शुरू किया और अब कुतर्क शिरोमणि दिग्विजय अन्ना को भी नककटा सिद्ध करने में लग गए हैं.दिग्विजय इन दिनों पूरी तरह बेरोजगार हैं.उनका काम रह गया है सिर्फ देशविरोधी बयान देना जिससे वे राजमाता को खुश कर सकें.
           मित्रों,हमें इन कुत्ता सदृश व्यवहार करनेवाले तत्वों से सचेत रहना होगा.हमें इस नककटा गिरोह से अपनी नाक तो बचानी है ही साथ ही उन्हें भौंकने से रोकने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास कर अपनी ऊर्जा को नष्ट होने से भी बचाना है.हम लाख प्रयास कर लें इन्हें इनके कुकुरोचित व्यवहार से रोक नहीं सकते.इनका स्वाभाव ही ऐसा है.ये गोब्यल्स के सच्चे अनुयायी हैं,मक्कारी इनके रग-रग में है.
        मित्रों,अन्ना ने तो सिर्फ नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक क्षमता की प्रशंसा की थी.उन्होंने यह नहीं कहा कि मोदी पूरी तरह दूध के धुले हैं.फिर उन्होंने अकेले मोदी की ही बडाई नहीं की है.उन्होंने तो धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक नीतीश कुमार की भी प्रशंसा की थी.फिर कांग्रेसी सिर्फ मोदी को लेकर ही हंगामा क्यों कर रहे हैं?कारण स्पष्ट है कि वे डरे हुए हैं कि अन्ना के आन्दोलन का असर कहीं चारों राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों पर न पड़ जाए.इसलिए वे अन्ना पर बेतुका प्रहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे.साथ ही अन्ना को मोदी की श्रेणी में खड़ा कर देने से उन्हें उम्मीद है कि मुसलमान भाइयों का वोट तो मिल ही जाएगा.
           मित्रों,समझ में नहीं आता कि कांग्रेसी कौन-सा खेल खेल रहे हैं?खेल चाहे जो भी हो वे इसे स्वच्छ तरीके से तो नहीं ही खेल रहे.एक तरफ तो अनशन तुडवाने का श्रेय राजमाता सोनिया को देकर वे उन्हें ईमानदारी की प्रतिमूर्ति बना देने पर तुले हैं वहीं दूसरी और वे अन्ना को बेईमान सिद्ध कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ी जा रही लडाई को कमजोर भी कर रहे हैं.इस तरह का दोहरा खेल कांग्रेसी इंदिरा गाँधी के समय से ही खेल रहे हैं.आपातकाल के समय प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रधान सचिव रहे पी.एन.धर ने अपनी पुस्तक इंदिरा गाँधी,आपातकाल और लोकतंत्र में बताया भी है कि किस तरह श्रीमती गाँधी अपने मंत्रियों को पहले से ही सिखा देती थीं कि वे प्रस्ताव का विरोध करेंगी और आपलोग मेरा विरोध करना.इस तरह मनोवांछित प्रस्ताव भी पारित हो जाएगा और दुनिया यह समझेगी कि कांग्रेस पार्टी में खूब आतंरिक लोकतंत्र है.
                मित्रों,हमें गाँधी परिवार के इस खानदानी दोहरे चरित्र को समझना होगा और उनसे सावधान भी रहना होगा.ये लोग ऐसे जीव नहीं हैं जो आसानी से भ्रष्टाचार को समाप्त हो जाने दें.इसलिए वे हमारे साथ तरह-तरह के खेल खेलेंगे;तरह-तरह के व्यूहों की रचना करेंगे.हमें न केवल अभिमन्यु की तरह उनके बनाए चक्रव्यूहों में घुसना होगा बल्कि अर्जुन की तरह उनकी हर रणनीति पर विजय भी पानी होगी.अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम यह लडाई आरंभिक चरण में ही हार जाएँगे और प्रभावी लोकपाल की स्थापना और भ्रष्टाचारमुक्त भारत की नींव पड़ते-पड़ते रह जाएगी.

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

चुनाव उम्मीदवारों का या पैसों का


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मित्रों,अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार किसी भी लोकतंत्र में जनता का सबसे मूलभूत अधिकार होता है.भारत की जनता पिछले ५८ वर्षों से अपने इस अधिकार का प्रयोग करती आ रही है.आजादी के बाद कुछ वर्षों तक तो जनता उम्मीदवारों की योग्यता के आधार पर वोट डालती रही लेकिन इसी बीच उम्मीदवार पैसों के बल पर जनमत को प्रभावित करने का प्रयास करने लगे.शुरुआत में ऐसा करनेवाले लोग ईक्का-दुक्का थे लेकिन अब इस प्रवृत्ति ने संस्थागत स्वरुप ग्रहण कर लिया है.हालाँकि इसी बीच बंदूक के बल पर चुनाव जीतनेवाले चुनाव आयोग की सख्ती के कारण हाशिये पर चले गए हैं.
        मित्रों,सैद्धांतिक तौर पर तो चुनाव उम्मीदवारों की योग्यता और राजनीतिक दलों की नीतियों के आधार पर लड़े जाते हैं लेकिन व्यवहार में होता ऐसा नहीं है.होता यह है कि चुनावों में पैसा उम्मीदवार होता है,पैसा ही प्रचार करता है,पैसा ही वोट डालता है,पैसा ही चुनाव जीतता और फिर पैसा ही शासन (शोषण) करता है.अच्छे गुण मुंह ताकते रह जाते हैं और पैसा बाजी मार ले जाता है.इस समय तमिलनाडु,केरल,पश्चिम बंगाल और असम से और इनमें भी विशेषकर तमिलनाडु से जिस तरह उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं के बीच करोड़ों रूपये बाँटने की खबरें आ रही हैं वह किसी भी तरह भारतीय लोकतंत्र के शुभचिंतकों की तंदरुस्ती को बढ़ानेवाली नहीं हैं.अकेले तमिलनाडु में ही चुनाव आयोग पक्ष और विपक्ष द्वारा जनता के बीच बाँटने के लिए ले जाए जा रहे ४० करोड़ से भी अधिक रूपये जब्त कर चुकी है.उधर बंगाल में भी ममता बनर्जी जनता से अपील करती फिर रही हैं कि चाहे पैसे किसी भी राजनीतिक दल से ले लो;वोट मुझे ही देना.
     मित्रों,बिहार में भी इस दिनों पंचायत चुनाव की प्रक्रिया चल रही है.पिछले चुनावों में मेरी सबसे बड़ी दीदी श्रीमती सुनीता देवी डुमरांव से जिला परिषद् सदस्य पद के लिए चुनाव लड़ रही थीं.माहौल पक्ष में लग रहा था.तभी चुनाव के ठीक पहले वाली रात प्रतिद्वंद्वी के परिजनों ने मतदाताओं के बीच जमकर रूपये बांटे और देखते-ही-देखते हवा ही बदल गयी.इस बार भी गांववालों ने दीदी से खड़े होने का अनुरोध किया था लेकिन जीजाजी का तर्क था,जो सही भी था कि पिछली बार पैसा बांटकर विजयी होनेवाले उम्मीदवार ने अपने पद और अधिकार का दुरुपयोग करके खूब पैसा बनाया है इसलिए इस बार तो उसे सामने टिक पाना और भी मुश्किल होगा.
      मित्रों,यह बात किसी से भी छिपी हुई नहीं है कि पंचायत से संसद तक हमारे देश में चुनाव जीतनेवाला प्रायः प्रत्येक व्यक्ति काम करने की फ़िक्र में नहीं रहता बल्कि सही-गलत तरीके से पैसा बनाने के चक्कर में लगा रहता है.उसे पता होता है कि चुनावों के समय पैसे ही काम देंगे कोई काम काम नहीं देगा.इन तथ्यों से पूरी तरह अवगत होते हुए भी हमारी केंद्र सरकार ने सांसद क्षेत्रीय विकास निधि को २ करोड़ से बढाकर ५ करोड़ रूपये कर दिया है.इसका सीधा मतलब होगा कि अगले चुनावों में और उसके बाद भी विजयी होनेवाले उम्मीदवारों के पास जनता के बीच बाँटने के लिए काफी ज्यादा धन होगा जिससे अन्य उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी.
               मित्रों,कुल मिलाकर अभी चुनावों के मोर्चे पर गंभीर व प्रभावी सुधारों की गुंजाईश बनी हुई है.शीघ्रातिशीघ्र चुनाव सुधारों को प्राथमिकता के आधार पर लेते हुए कानून में केंद्र सरकार को ऐसे संशोधन करने चाहिए और ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे चुनावों में पैसों का खुल्लम खेल दरबारी बंद हो और विजयी होनेवाले उम्मीदवार अपने कर्तव्यों के प्रति गंभीर होने को बाध्य  हो जाएँ.इसमें कोई शक नहीं कि चुनावों में पैसों का जोर होने से कहीं-न-कहीं देश का विकास भी प्रभावित होता है.मैं मानता हूँ कि ऐसा होने के लिए खुद जनता भी दोषी है लेकिन सरकार सिर्फ जनता के कन्धों पर दोषों का बोझ डालकर अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकती.अगर वह ऐसा करती है तो फिर उसके होने का मतलब ही क्या है?क्या देश को सही दिशा में ले जाना,अग्रसर करना सरकार का प्रथम और अंतिम कर्तव्य नहीं है?

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

गर्व से कहो मैं भी अन्ना हूँ.

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मित्रों,जनलोकपाल विधेयक को लागू करवाने की दिशा में हमने आरंभिक सफलता प्राप्त कर ली है.हम नॉक आउट दौर में पहुँच गए हैं.अभी हमें फाइनल जीतने तक का लम्बा सफ़र तय करना है.सरकार ने प्रखर गांधीवादी अन्ना हजारे की लगभग सारी मांगें मान ली है.अन्ना ने सर्कार के सामने विधेयक को पारित करने के लिए १५ अगस्त तक का समय दिया है.अन्ना तो चाहते थे कि सरकार सीधे विधेयक को संसद का विशेष सत्र बुलाकर पारित कराये लेकिन ऐसा हो नहीं सका.फिर भी हमने सरकार को जहाँ तक झुकने के लिए बाध्य कर दिया है वह भी कोइ कम बड़ी उपलब्धि नहीं कही जा सकती.
                     मित्रों,कभी राष्ट्रपिता गाँधी भी इसी तरह सत्याग्रह किया करते थे और जनता की संघर्ष-क्षमता की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए आन्दोलन को बीच-बीच में वापस भी ले लेते थे.हमें उम्मीद है कि हमारा संघर्ष व्यर्थ नहीं जाएगा और अंततः सरकार को प्रभावी लोकपाल की व्यवस्था करनी ही पड़ेगी.जब अन्ना ने ५ अप्रैल को अनशन शुरू किया था तब सरकार ने उन्हें बिलकुल भी गंभीरता से नहीं लिया था.लेकिन जैसे-जैसे आन्दोलन जोर पकड़ने लगा और समर्थन बढ़ने लगा और सरकार के होश फाख्ता होने लगे.जल्दी ही देश दो भागों में बँट गया.पहला बड़ा भाग उन लोगों का था जो अन्ना के साथ थे और दूसरा अल्पसंख्यक भाग उन लोगों का था जो अन्ना के साथ नहीं थे.
             मित्रों,सफलता भले ही मिल गयी हो लेकिन मैं आन्दोलन को मिले जनसमर्थन से कतई प्रसन्न नहीं हूँ.२ करोड़ की दिल्ली और सवा अरब के भारत में सिर्फ कुछ हजार लोग ही खुलकर सामने आए.मेरे कुछ पत्रकार मित्र तो उल्टे मुझसे ही उलझ पड़े.उनका कहना था कि अन्ना की मांग तो सही है लेकिन उनका तरीका सही नहीं है.उन्हें उनका अनशन ब्लैक मेलिंग जैसा लगता है.मित्र,इस तरह तो भारत का पूरा स्वतंत्रता-संग्राम ही गलत साबित हो जाएगा.मैं अर्ज करना चाहता हूँ कि अन्ना की या हमारी लडाई किसी व्यक्ति-विशेष के विरुद्ध नहीं है.अन्ना ने तो इस अराजनैतिक आन्दोलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी आमंत्रित किया था जो पिछले कई वर्षों से भ्रष्टाचार के खिलाफ सिर्फ जुबानी खर्च करने में लगे हुए है.
             मित्रों,अन्ना ने कोई हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया है,यह आन्दोलन पूरी तरह से सत्य और अहिंसा पर आधारित था,है और रहेगा.इससे किसी को भी किसी तरह का व्यक्तिगत नुकसान होने की आशंका भी नहीं है.साधन भी पवित्र,साध्य तो पवित्र है ही.फिर यह आन्दोलन कैसे अपवित्र हो गया?मेरे कुछ मित्र इस आन्दोलन के पीछे कुछ अदृश्य राजनैतिक हाथों को देख रहे हैं.यह आन्दोलन पूरी तरह से अराजनैतिक था फिर उन्हें कैसे अदृश्य राजनैतिक हाथ नजर आ रहा है,राम जाने.मुझे ऐसे लोगों की बुद्धि और दृष्टि पर तरस आता है.खुद तो परिवर्तन के लिए कोशिश करो नहीं और अगर कोई प्रयास करता भी है तो उसमें जबरन छिद्रान्वेषण करो.
              मित्रों,आन्दोलन की आरंभिक सफलता से यह पूरी तरह से साफ़ हो गया है कि  गांधीवाद आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक है बशर्ते कोई सच्चा गांधीवादी इसका प्रयोग करे.इस आन्दोलन ने यह भी साबित कर दिया है कि जैसे हर धोती पहनने वाला गाँधी नहीं होता वैसे ही कोई व्यक्ति या परिवार नाम के आगे गाँधी शब्द जोड़ लेने मात्र से ही गाँधी नहीं हो जाता बल्कि गाँधी बनने के लिए गाँधी का सच्चा अनुयायी बनाना पड़ता है.इस संघर्ष में यूं तो कोई भी विपक्षी नहीं था लेकिन चूंकि अन्ना की मांग गाँधी परिवार नियंत्रित मनमोहन सरकार से थी इसलिए हम यह कह सकते हैं कि जहाँ आन्दोलनकारी एक विशुद्ध गांधीवादी था वहीं विपक्षी आजादी के बाद देश का सबसे ज्यादा समय तक शोषण करनेवाला गाँधी नाम धारी छद्म गांधीवादी परिवार था.
               मित्रों,इस समय के विपक्ष की भी अपनी अलग पीड़ा है.वह बार-बार सरकार से सर्वदलीय बैठक की मांग कर रहा है.वह चिंतित है कि समिति में उसे क्यों नहीं लिया गया.हे विपक्ष के नाकारा नेताओं!तुम्हें किसने रोका था भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्याग्रह करने से?लेकिन तुम सत्याग्रह करते भी कैसे?सत्ता पक्ष की तरह तुम भी तो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हो.
                  मित्रों,अंत में मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहूँगा.अन्ना ने कोई अमृतपान नहीं किया हुआ है जो वे हम भारतवासियों को हर युग में नेतृत्व प्रदान कर बचाते रहेंगे.भारतमाता को आज एक नहीं हजारों अन्ना चाहिए.भारत के प्रत्येक निवासी को अन्ना की तरह त्यागी,ईमानदार और साहसी बनाना पड़ेगा तभी भारत बचेगा.भगवान बुद्ध ने तो हमसे २५०० वर्ष पहले ही अप्पो दीपो भव का आह्वान किया था.लेकिन हम ढाई हजार साल बाद भी अपनी छोटी-से-छोटी समस्या के समाधान के लिए किसी मसीहा का इंतजार करते रहते हैं.मैं पूछता हूँ कि हममें और अन्ना में क्या अंतर है?हमारे भी दो हाथ,दो पैर,दो आँखें और एक दिमाग है फिर हम क्यों नहीं वही सब कर रहे जो अन्ना कर पा रहे हैं?क्या हमारा जीवन उनके जीवन से ज्यादा मूल्यवान है?नहीं न!तो फिर मैं यह उम्मीद क्यों न रखूँ कि जब भी देश को आपके त्याग व बलिदान की आवश्यकता होगी,आप बिलकुल भी पीछे नहीं हटेंगे.मित्रों,गर्व से कहो मैं भी अन्ना हूँ.

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

निराधारा मुजफ्फरपुर नगरी निरालम्बा सरस्वती

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भक्त प्रवर रामकृष्ण परमहंस अक्सर कहा करते थे कोई स्थल तीर्थस्थल नहीं होता,तीर्थस्थान तो वहीं बन जाता है जहाँ महान आत्माएं निवास करती हैं.बिहार की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने का गौरव धारण करनेवाला मुजफ्फरपुर अब तक आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री का निवास होने से तीर्थ बना हुआ था.चाहे साहित्यकार हो या साहित्यिक अभिरुचिवाला नेता-अभिनेता हो,उनकी बिहार यात्रा बिना निराला निकेतन की चौखट लांघे बिना पूरी ही नहीं होती थी.अब छायावाद का अंतिम छायादर वृक्ष हमसे छिन चुका है.मुजफ्फरपुर नगरी निराधार हो चुकी हैं और सरस्वती असहाय.सरस्वती का मानसपुत्र उम्रभर सरस्वती की निस्स्वार्थ सेवा करने के बाद मृत्यु अटल है की उक्ति को कटु सत्य साबित करता हुआ मृत्यु की गोद में सो गया,हमेशा-हमेशा के लिए.
          आचार्य श्री एक व्यक्ति नहीं थे बल्कि जीवंत इतिहास थे.उन्होंने कई महाकवियों के रचना-कर्म को ही नहीं देखा-परखा था बल्कि उनकी रचना-प्रक्रिया के भी एकमात्र जीवित साक्षी थे.निराला ने अपनी महान छंदोबद्ध कविता राम की शक्ति पूजा आचार्य श्री के साथ वाराणसी में रहते हुए ही लिखी थी और मेहनताने से मिले पैसे से दोनों ने छककर जलेबियाँ उडाई थी.आचार्य श्री को यह महान कविता पूर्णतः कंठस्थ थी और वे इसका कुछ इस अंदाज में पाठ करते थे कि स्वयं निराला ने भी माना था कि वे इस कविता का उतनी अच्छी तरह पाठ नहीं कर सकते जितनी अच्छी तरह से आचार्य श्री करते हैं.निराला के कहने पर ही आचार्य श्री ने संस्कृत छोड़कर हिंदी में कविता लिखनी शुरू की थी और इस प्रकार हिंदी को अपना हिंदी-कोकिल मिला,बिना वसंत के भी निरंतर मीठे गीत गाते रहनेवाला.
         आचार्य श्री पर निराला का इतना गहरा प्रभाव था कि उन्होंने जब मुजफ्फरपुर को अपना स्थायी निवास बनाया तो घर का नाम रखा निराला निकेतन.यह निराला निकेतन सिर्फ नाम से ही निराला नहीं था बल्कि काम से भी निराला था.इस घर में रहनेवाले बिल्ली,कुत्ता,गाय,खरगोश सभी आचार्य परिवार के सदस्य थे.इनकी जब मृत्यु हुई तो मानव की ही भांति इनका का भी अंतिम संस्कार किया गया वह भी परिसर के भीतर ही और उनकी समाधि भी बनाई गयी.हिंदी के अन्य कवियों ने तो अपनी रचनाओं में सिर्फ अमानवों का मानवीकरण ही किया था मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करके;आचार्यश्री ने इन्हें सचमुच मानवों जैसा आदर और प्यार दिया;मानव बना दिया.आचार्य श्री सच्चे प्रकृति-प्रेमी थे पन्त की तरह और मानवता से ओत-प्रोत थे निराला की तरह.वे एकसाथ इन दोनों महान साहित्यिक व्यक्तित्वों को धारण करते थे.
             आचार्य श्री के अहसास की जद में सारा जमाना था.उन्होंने मुजफ्फरपुर के जिस भाग में घर बनाया उसे लोग चतुर्भुज स्थान के नाम से जानते हैं.यूं तो इस मोहल्ले का नाम भगवान विष्णु के ऐतिहासिक मंदिर के नाम पर रखा गया है लेकिन यह जगह ज्यादा प्रसिद्ध है रेड लाईट  एरिया यानि देह-व्यापार की मंडी के रूप में.शायद इसलिए भद्र लोग इस इलाके का नाम लेने में भी हिचकते हैं.लेकिन आचार्य श्री तो ठहरे मानवता के अनन्य पुजारी.चन्दन वृक्ष के समान पवित्र और शीतल.उन्हें तो सबसे प्यार था,पूरी दुनिया उनका परिवार थी;कोई उनका शत्रु नहीं था और न ही उनके लिए कोई पराया ही था.हालाँकि हिंदी के ठेकेदार आलोचकों ने उनकी घोर उपेक्षा की लेकिन आचार्य श्री सारी उपेक्षाओं और आलोचनाओं को नजरंदाज करते हुए निर्विकार होकर अपने रचना-कर्म के लगे रहे.
           सूरज आज भी पूरे ताव में चमक रहा है;उसे क्या लेना-देना इस बात से कि हिंदी साहित्याकाश का सूरज कल ही अस्त हो चुका है.अब मुजफ्फरपुर और मुजफ्फरपुरवासी कभी इस बात पर गर्व नहीं कर पाएँगे कि उनके शहर को छायावाद का अंतिम छायादार वृक्ष छाया दे रहा है.वर्तमान भूत बन चुका है.अपने पदचिन्हों को पीछे छोड़ते हुए अपनी यात्रा पूरी कर चुका है.एक युग का अंत हो चुका है लेकिन अभी दूसरे युग की शुरुआत नहीं हुई.हिंदी-भाषिक संसार जैसे ठिठक गया है,किंकर्तव्यविमूढ़-सा और विदाई दे रहा है अपने अंतिम महायात्री को उसकी महायात्रा के मौके पर.हे महामना!तुम्हें इस अकिंचन की और से भी शत-शत नमन;अलविदा.

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

कैसे बांधे बिल्ली खुद अपने ही गले में घंटी


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मित्रों,यह हमारे लिए बड़े ही हर्ष की बात है कि अन्ना के साथ अनशन पर बैठने वालों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है.शुरू में जहाँ ३५ लोग उनके साथ जंतर-मंतर पर बैठे थे अब २०० लोग साथ दे रहे हैं.उम्मीद करता हूँ कि आगे इसी तरह लोग बढ़ते जाएँगे और कारवां लम्बा होता जाएगा.मैंने लाखों अन्य लोगों की तरह घर में ही ५ अप्रैल को एक दिन का अनशन रखा और आगे भी जब सुविधा होगी रखूंगा.
          मित्रों,इस बीच कई राजनैतिक दलों के नेता अनशनस्थल पर पहुंचे और इससे लाभ उठाने की कोशिश की.इनमें से कई तो ऐसे लोग भी थे जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं.जाहिर है कि ऐसे लोग कम-से-कम भ्रष्टाचार के खात्मे का सच्चा संकल्प लेकर तो नहीं ही आए होंगे.कुछ राजनीतिक दलों ने शुरूआती फायदे के लिए आन्दोलन का समर्थन तो कर दिया लेकिन अब नानूकुर पर उतर आए हैं दुर्भाग्यवश इसमें प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी शामिल है.
           मित्रों,कभी इसी तरह की सफल कोशिश गाँधी के उत्तराधिकारियों ने भी की थी.उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए गाँधी को तो अपना लिया लेकिन गाँधी की विचारधारा को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया.कुछ इसी तरह के प्रयासों में इस समय हमारे नेतागण लगे हुए हैं लेकिन अन्ना उन लोगों में से नहीं हैं जो इतिहास से सबक नहीं ले.इसलिए अन्ना और उनके समर्थकों ने गाँधी और गांधीवाद के हश्र से सीख लेते हुए किसी भी राजनीतिज्ञ को अनशनस्थल पर भाषण नहीं करने दिया.
      मित्रों,हमने बचपन में एक बड़ी ही साधारण-सी लगनेवाली असाधारण कहानी पढ़ी थी.जमीन के अन्दर की दुनिया के किसी भाग में रहनेवाले चूहे किसी बिल्ली के आतंक से परेशान थे.उन्होंने समस्या पर विचार करने के लिए एक सभा का आयोजन किया.जिसमें एक स्वर से यह निर्णय लिया गया कि बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दी जाए.लेकिन समस्या यह थी कि घंटी बांधेगा कौन?कौन लेगा जान का जोखिम?इस समय अपने देश में भी पूरी तरह से समान तो नहीं लेकिन कुछ इसी तरह की समस्या है.जहाँ इस कहानी में चूहों को बिल्ली के गले में घंटी बांधनी थी यहाँ बिल्लियों यानि धूर्त नेताओं को आगे आकर खुद के गले में खुद अपने ही हाथों घंटी बांधनी है.आज अनशन का सिर्फ तीसरा दिन है और इसे मिल रहे व्यापक समर्थन से राजनीतिक दलों की पेशानी पर चिंता की लकीरें उभरने लगी हैं.देखिए ये बिल्लियाँ कब तक अपने गले में घंटी बांधती हैं?
    मित्रों,हमारे कुछ देशवासी इस समय क्रिकेट की खुमारी में खोये हुए हैं.मैं उन मित्रों से जल्द-से-जल्द इस खुमारी से बाहर आने का अनुरोध करता हूँ और उनसे भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गए महासमर के जुटने की अपेक्षा करता हूँ.आखिर यह लडाई सिर्फ अन्ना की नहीं है या हमारी नहीं है.यह हम सबकी लडाई है,हम सबसे सम्बंधित है इसलिए इसके साथ हम सभी को सम्बंधित होना चाहिए.याद रखिए,क्रिकेट जहाँ हमारे जीवन के एक बहुत-छोटे से पक्ष को प्रभावित करता है वहीं भ्रष्टाचार की जद से कुछ भी बाहर नहीं है,क्रिकेट भी नहीं.

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें भ्रष्टाचार मुक्त भारत दूंगा


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मित्रों,भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध शुरू होने में अब कुछ ही घंटे शेष बचे हैं.यह युद्ध इस दिशा में प्रथम संग्राम होगा या आखिरी;भविष्य में पता चलेगा.लेकिन हमें एक साथ दोनों तरह के भावों को धारण करना होगा.हमें इस युद्ध को इतनी गंभीरता और इतनी ताकत से लड़ना होगा जैसे कि यह हमारी अंतिम लडाई हो.साथ ही हमें इसके लम्बा खींचने की स्थिति के लिए कमर कसकर रखनी होगी.
               मित्रों,अभी कुछ ही घंटे हुए हैं जब हमारे प्यारे देश को एशिया-प्रशांत क्षेत्र का चौथा सबसे भ्रष्ट देश घोषित किया गया है.हमारा तंत्र ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट है.बिना घूस दिए हमारा कोई काम नहीं होता फिर भी हम मुर्दे की तरह मूकदर्शक बने हुए हैं.क्या हमारे जिस्म का खून पानी में बदल गया है?कहाँ गया वह महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी,भगत सिंह,आजाद जैसे सूरमाओं के जिस्म में बहनेवाला गरम खून?मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि हमारे पूर्वज ऐसे जियाले थे;लेकिन यही सच है.
              मित्रों,हमें नहीं चाहिए युधिष्ठिर जैसा यथास्थितिवादी और समझौतावादी.हमें तो भीम और अर्जुन जैसे उष्म रक्तपायी चाहिए.दोस्तों,बगावत जवानी का दूसरा नाम है.जब ८० साल की अवस्था में बाबू कुंवर सिंह का खून देश की दुर्दशा को देखकर खौल सकता है,७३ साल की आयु में अन्ना हजारे युद्ध का ऐलान कर सकते हैं तो हम तो नौजवान हैं.फिर हमारा खून देश की दशा को देखकर क्यों नहीं उबाल खा रहा?
              मित्रों,गुलामी सिर्फ भौतिक अवस्था का नाम नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा यह एक मानसिक दशा है.भौतिक रूप से हम भले ही १५ अगस्त,१९४७ को आजाद हो गए हों मानसिक रूप से हम आज भी गुलाम हैं,लालच के,स्वार्थ के और कायरता के.इस गुलामी से बाहर आना असंभव नहीं है क्योंकि यह ओढ़ी हुई गुलामी है.परन्तु इसके लिए हमें अपने भीतर भगत और आजाद जैसा देशभक्ति का उन्माद पैदा करना होगा.
                    मित्रों,अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के सर्वनाश के लिए युद्ध का शंखनाद कर दिया है.जब अन्ना की बूढी-सूखी धमनियां भारतमाता के लिए रक्त बहाने को कसमसा रही हैं तो क्या हम उनसे भी ज्यादा बूढ़े हैं?हम जिस दमघोंटू भ्रष्टतंत्र में जी रहे हैं उसे अगर जड़मूल से समाप्त करना है तो आईये हाथ से हाथ मिलाएं.कल्पना कीजिए अगर एकसाथ करोड़ों युवा हाथ धक्का देंगे तो कौन-सी दीवार नहीं ढहेगी?कहना न होगा इन्हीं युवा हाथों ने तो कभी दुनियाभर में फैले अतिशक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी थी.मित्रों,अगर आपको शोषण की जगह शासन चाहिए,भ्रष्टपालिका की जगह न्यायपालिका चाहिए तो उतर आईये सडकों पर,गलियों में और रोक दीजिए भ्रष्टसत्ता और व्यवस्था के फेफड़ों की और जानेवाली हवा और खून का रास्ता.मैं जानता हूँ और मानता हूँ कि चूंकि इस बार लड़ाई अपनों से है इसलिए आसान नहीं है.लेकिन मैं आपसे यह वादा करता हूँ कि हे भारत के युवाओं,तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें भ्रष्टाचार मुक्त भारत दूंगा.इस समय मेरे पास भी आपको और देश को देने के लिए सिवाय खून और पसीने के कुछ भी नहीं है.   

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

यह रेडियो मूर्खिस्तान है

imagesयह रेडियो मूर्खिस्तान है.अब आप दन्त खिसोर सिंह से समाचार सुनिए.प्रधानमंत्री मगन मोहन सिंह ने कहा है कि वह अर्द्धरात्रि बाद इस्तीफा देने जा रहे हैं.उन्होंने कहा कि लगातार ६ सालों तक कठपुतली डांस करने के चलते उनकी कमर में खिंचाव आ गया है और डॉक्टरों की राय है कि उन्हें अब आराम करना चाहिए. 
               सरकार जन लोकपाल बिल संसद में लाने को तैयार हो गयी है.उसका मानना है कि उसके सभी मंत्री भ्रष्ट हैं और उनकी असली जगह मंत्रालय नहीं जेल है.इस आशय की जानकारी सूचना एवं प्रसारण मंत्री लम्बिका सोनी ने हमारे संतापदाता को अर्द्धरात्रि के बाद मंत्रिमंडल की बैठक की समाप्ति के बाद नॉर्थ ब्लाक के पिछवाड़े से बाहर निकलते हुए दी.
                अभी-अभी प्राप्त सूचना के अनुसार हमारे कृषिमंत्री निर्धन पवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और घोषणा की है कि वे भी ५ अप्रैल से महान गांधीवादी अन्ना हजारे के साथ जंतर-मंतर पर अनशन करेंगे.उन्होंने हमारे संतापदाता को जानकारी दी कि वे युवावस्था से ही अनगिनत घपले-घोटालों में लिप्त रहे हैं.रूपया गिनते-गिनते उनकी ऊंगलियों में स्थाई रूप से सूजन आ गयी है और जनता के साथ झूठ बोलते-बोलते मुंह टेढ़ा हो गया है.अब वे देशहित में कुछ अच्छा काम भी करना चाहते हैं इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है.
              कल रात पश्चिम बंगाल के मूर्खिदाबाद के पास दो मालगाड़ियों की टक्कर में सैंकड़ों यात्री हताहत हुए.गर्मियों में धूलभरी हवा से होने वाली रेल दुर्घटना के डर से रेल मंत्री सुश्री रमता बनर्जी ने रेलवे को माल गाड़ियों में यात्रियों को ढोने के निर्देश दिए थे.दुर्घटनास्थल पर सुश्री बनर्जी ने प्रत्येक मृतक से १ लाख रूपये और प्रत्येक घायल से २ लाख रूपये लेने की घोषणा की.
                वर्ष २०११ की जनगणना के आंकड़े अंतिम रूप से घोषित कर दिए गए हैं.आंकड़ों के अनुसार सरकारी अन्यमनस्कता के चलते भारत में स्त्री जन्म दर में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.अब प्रति १००० पुरुष शिशु के जन्म पर ९१४ स्त्री शिशु जन्म ले रहे हैं.वित्त मंत्री ढनढन मुखर्जी ने आंकड़ों पर ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा है कि इस तरह करोड़ों युवा अविवाहित रह जाएँगे जिससे जनसँख्या में भारी कमी आएगी.
                आज काबुल ओलंपिक के अंतिम दिन भारतीय खिलाडियों का दबदबा रहा.भारतीयों ने भ्रष्टाचार की सभी स्पर्धाओं में स्वर्ण जीतते हुए नए कीर्तिमान स्थापित किए.उधर जनता की छोटी-छोटी खरीदारी पर भी भारी करारोपण करनेवाली केंद्र सरकार ने क्रिकेट विश्व कप से आई.सी.सी. को होनेवाली अरबों रूपये की आय को करमुक्त घोषित कर दिया है.सरकार का मानना है कि इससे सरकारी खजाने को कोई क्षति नहीं होगी,उल्टे लाभ होगा जिस तरह का लाभ २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले से हुआ था.
               और अंत में मौसम का हाल.असफल हो गए उपग्रह डिनर सेट से आए चित्रों से पता चलता है कि इस साल भी जलवायु परिवर्तन के बुरे असर के कारण पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में सूखे की स्थिति रहेगी जबकि राजस्थान और गुजरात के रेगिस्तानी इलाकों में भारी वर्षा होगी.इस विकट स्थिति से निपटने के लिए राजस्थान व गुजरात के लोगों को बिहार,बंगाल,असम,मेघालय व पूर्वी उत्तर प्रदेश में व इन क्षेत्रों के लोगों को जबरन गुजरात और राजस्थान में बसाया जाएगा.सरकार की इस घोषणा से पूरे देश में हर्ष का माहौल है.
                  इसके साथ ही रेडियो मूर्खिस्तान से यह समाचार बुलेटिन समाप्त हुआ.अगला बुलेटिन अगले मूर्ख दिवस पर प्रसारित किया जाएगा.इंतजार करने की कोई जरुरत नहीं है.