मित्रों,जनलोकपाल विधेयक को लागू करवाने की दिशा में हमने आरंभिक सफलता प्राप्त कर ली है.हम नॉक आउट दौर में पहुँच गए हैं.अभी हमें फाइनल जीतने तक का लम्बा सफ़र तय करना है.सरकार ने प्रखर गांधीवादी अन्ना हजारे की लगभग सारी मांगें मान ली है.अन्ना ने सर्कार के सामने विधेयक को पारित करने के लिए १५ अगस्त तक का समय दिया है.अन्ना तो चाहते थे कि सरकार सीधे विधेयक को संसद का विशेष सत्र बुलाकर पारित कराये लेकिन ऐसा हो नहीं सका.फिर भी हमने सरकार को जहाँ तक झुकने के लिए बाध्य कर दिया है वह भी कोइ कम बड़ी उपलब्धि नहीं कही जा सकती.
मित्रों,सफलता भले ही मिल गयी हो लेकिन मैं आन्दोलन को मिले जनसमर्थन से कतई प्रसन्न नहीं हूँ.२ करोड़ की दिल्ली और सवा अरब के भारत में सिर्फ कुछ हजार लोग ही खुलकर सामने आए.मेरे कुछ पत्रकार मित्र तो उल्टे मुझसे ही उलझ पड़े.उनका कहना था कि अन्ना की मांग तो सही है लेकिन उनका तरीका सही नहीं है.उन्हें उनका अनशन ब्लैक मेलिंग जैसा लगता है.मित्र,इस तरह तो भारत का पूरा स्वतंत्रता-संग्राम ही गलत साबित हो जाएगा.मैं अर्ज करना चाहता हूँ कि अन्ना की या हमारी लडाई किसी व्यक्ति-विशेष के विरुद्ध नहीं है.अन्ना ने तो इस अराजनैतिक आन्दोलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी आमंत्रित किया था जो पिछले कई वर्षों से भ्रष्टाचार के खिलाफ सिर्फ जुबानी खर्च करने में लगे हुए है.
मित्रों,अन्ना ने कोई हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया है,यह आन्दोलन पूरी तरह से सत्य और अहिंसा पर आधारित था,है और रहेगा.इससे किसी को भी किसी तरह का व्यक्तिगत नुकसान होने की आशंका भी नहीं है.साधन भी पवित्र,साध्य तो पवित्र है ही.फिर यह आन्दोलन कैसे अपवित्र हो गया?मेरे कुछ मित्र इस आन्दोलन के पीछे कुछ अदृश्य राजनैतिक हाथों को देख रहे हैं.यह आन्दोलन पूरी तरह से अराजनैतिक था फिर उन्हें कैसे अदृश्य राजनैतिक हाथ नजर आ रहा है,राम जाने.मुझे ऐसे लोगों की बुद्धि और दृष्टि पर तरस आता है.खुद तो परिवर्तन के लिए कोशिश करो नहीं और अगर कोई प्रयास करता भी है तो उसमें जबरन छिद्रान्वेषण करो.
मित्रों,आन्दोलन की आरंभिक सफलता से यह पूरी तरह से साफ़ हो गया है कि गांधीवाद आज भी पूरी तरह से प्रासंगिक है बशर्ते कोई सच्चा गांधीवादी इसका प्रयोग करे.इस आन्दोलन ने यह भी साबित कर दिया है कि जैसे हर धोती पहनने वाला गाँधी नहीं होता वैसे ही कोई व्यक्ति या परिवार नाम के आगे गाँधी शब्द जोड़ लेने मात्र से ही गाँधी नहीं हो जाता बल्कि गाँधी बनने के लिए गाँधी का सच्चा अनुयायी बनाना पड़ता है.इस संघर्ष में यूं तो कोई भी विपक्षी नहीं था लेकिन चूंकि अन्ना की मांग गाँधी परिवार नियंत्रित मनमोहन सरकार से थी इसलिए हम यह कह सकते हैं कि जहाँ आन्दोलनकारी एक विशुद्ध गांधीवादी था वहीं विपक्षी आजादी के बाद देश का सबसे ज्यादा समय तक शोषण करनेवाला गाँधी नाम धारी छद्म गांधीवादी परिवार था.
मित्रों,इस समय के विपक्ष की भी अपनी अलग पीड़ा है.वह बार-बार सरकार से सर्वदलीय बैठक की मांग कर रहा है.वह चिंतित है कि समिति में उसे क्यों नहीं लिया गया.हे विपक्ष के नाकारा नेताओं!तुम्हें किसने रोका था भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सत्याग्रह करने से?लेकिन तुम सत्याग्रह करते भी कैसे?सत्ता पक्ष की तरह तुम भी तो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हो.
मित्रों,अंत में मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहूँगा.अन्ना ने कोई अमृतपान नहीं किया हुआ है जो वे हम भारतवासियों को हर युग में नेतृत्व प्रदान कर बचाते रहेंगे.भारतमाता को आज एक नहीं हजारों अन्ना चाहिए.भारत के प्रत्येक निवासी को अन्ना की तरह त्यागी,ईमानदार और साहसी बनाना पड़ेगा तभी भारत बचेगा.भगवान बुद्ध ने तो हमसे २५०० वर्ष पहले ही अप्पो दीपो भव का आह्वान किया था.लेकिन हम ढाई हजार साल बाद भी अपनी छोटी-से-छोटी समस्या के समाधान के लिए किसी मसीहा का इंतजार करते रहते हैं.मैं पूछता हूँ कि हममें और अन्ना में क्या अंतर है?हमारे भी दो हाथ,दो पैर,दो आँखें और एक दिमाग है फिर हम क्यों नहीं वही सब कर रहे जो अन्ना कर पा रहे हैं?क्या हमारा जीवन उनके जीवन से ज्यादा मूल्यवान है?नहीं न!तो फिर मैं यह उम्मीद क्यों न रखूँ कि जब भी देश को आपके त्याग व बलिदान की आवश्यकता होगी,आप बिलकुल भी पीछे नहीं हटेंगे.मित्रों,गर्व से कहो मैं भी अन्ना हूँ.
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