मित्रों,यह हमारे लिए बड़े ही हर्ष की बात है कि अन्ना के साथ अनशन पर बैठने वालों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है.शुरू में जहाँ ३५ लोग उनके साथ जंतर-मंतर पर बैठे थे अब २०० लोग साथ दे रहे हैं.उम्मीद करता हूँ कि आगे इसी तरह लोग बढ़ते जाएँगे और कारवां लम्बा होता जाएगा.मैंने लाखों अन्य लोगों की तरह घर में ही ५ अप्रैल को एक दिन का अनशन रखा और आगे भी जब सुविधा होगी रखूंगा.
मित्रों,इस बीच कई राजनैतिक दलों के नेता अनशनस्थल पर पहुंचे और इससे लाभ उठाने की कोशिश की.इनमें से कई तो ऐसे लोग भी थे जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप समय-समय पर लगते रहे हैं.जाहिर है कि ऐसे लोग कम-से-कम भ्रष्टाचार के खात्मे का सच्चा संकल्प लेकर तो नहीं ही आए होंगे.कुछ राजनीतिक दलों ने शुरूआती फायदे के लिए आन्दोलन का समर्थन तो कर दिया लेकिन अब नानूकुर पर उतर आए हैं दुर्भाग्यवश इसमें प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी शामिल है.
मित्रों,कभी इसी तरह की सफल कोशिश गाँधी के उत्तराधिकारियों ने भी की थी.उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए गाँधी को तो अपना लिया लेकिन गाँधी की विचारधारा को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया.कुछ इसी तरह के प्रयासों में इस समय हमारे नेतागण लगे हुए हैं लेकिन अन्ना उन लोगों में से नहीं हैं जो इतिहास से सबक नहीं ले.इसलिए अन्ना और उनके समर्थकों ने गाँधी और गांधीवाद के हश्र से सीख लेते हुए किसी भी राजनीतिज्ञ को अनशनस्थल पर भाषण नहीं करने दिया.
मित्रों,हमने बचपन में एक बड़ी ही साधारण-सी लगनेवाली असाधारण कहानी पढ़ी थी.जमीन के अन्दर की दुनिया के किसी भाग में रहनेवाले चूहे किसी बिल्ली के आतंक से परेशान थे.उन्होंने समस्या पर विचार करने के लिए एक सभा का आयोजन किया.जिसमें एक स्वर से यह निर्णय लिया गया कि बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दी जाए.लेकिन समस्या यह थी कि घंटी बांधेगा कौन?कौन लेगा जान का जोखिम?इस समय अपने देश में भी पूरी तरह से समान तो नहीं लेकिन कुछ इसी तरह की समस्या है.जहाँ इस कहानी में चूहों को बिल्ली के गले में घंटी बांधनी थी यहाँ बिल्लियों यानि धूर्त नेताओं को आगे आकर खुद के गले में खुद अपने ही हाथों घंटी बांधनी है.आज अनशन का सिर्फ तीसरा दिन है और इसे मिल रहे व्यापक समर्थन से राजनीतिक दलों की पेशानी पर चिंता की लकीरें उभरने लगी हैं.देखिए ये बिल्लियाँ कब तक अपने गले में घंटी बांधती हैं?
मित्रों,हमारे कुछ देशवासी इस समय क्रिकेट की खुमारी में खोये हुए हैं.मैं उन मित्रों से जल्द-से-जल्द इस खुमारी से बाहर आने का अनुरोध करता हूँ और उनसे भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गए महासमर के जुटने की अपेक्षा करता हूँ.आखिर यह लडाई सिर्फ अन्ना की नहीं है या हमारी नहीं है.यह हम सबकी लडाई है,हम सबसे सम्बंधित है इसलिए इसके साथ हम सभी को सम्बंधित होना चाहिए.याद रखिए,क्रिकेट जहाँ हमारे जीवन के एक बहुत-छोटे से पक्ष को प्रभावित करता है वहीं भ्रष्टाचार की जद से कुछ भी बाहर नहीं है,क्रिकेट भी नहीं.
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