मित्रों,अपने बिंदास अंदाजे बयां के लिए मशहूर ओसेदुल्ला खान ग़ालिब ने क्या खूब कहा है-दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है,आखिर इस मर्ज की दवा क्या है;हमें उनसे वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है.मैं समझता हूँ कि अगर आज ग़ालिब होते तो यहाँ मर्ज की जगह भ्रष्टाचार होता.चाहे मुद्दा विकास का हो या भ्रष्टाचारमुक्त समाज की स्थापना का;आजादी के बाद से ही हम भारतवासियों के साथ सिर्फ धोखा-ही-धोखा हो रहा है.हम अपने जिन नुमाईन्दों को अपने प्रति वफादार समझ लेते हैं बाद में वे सिर्फ पैसों और कुर्सी के प्रति वफ़ादारी निभाने में लिप्त हो जाते हैं.
मित्रों,जब अन्ना हजारे नाम से लोकप्रिय एक बूढा,अविवाहित,मंदिर में सोनेवाला आदमी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जनलोकपाल के विकल्प के साथ देश के सामने आया और बिल के लागू होने तक आमरण अनशन करने की घोषणा की तो पूरे देश में उसके प्रति उम्मीद और समर्थन की लहर चल पड़ी.लेकिन हमने देखा कि सरकार ने प्रस्तावित समिति में उसे शामिल करने की घोषणा क्या कर दी,उसने अपना अनशन ही तोड़ दिया.खैर हमने यह सोंचकर कि हमें अनशन के चलने या टूट जाने से क्या लेना देना;असल मुद्दा तो है कि किसी तरह जनलोकपाल बिल संसद में पेश हो और अपने मूलस्वरूप में पारित हो.हमने यही सोंचकर अन्ना और उनके साथियों पर लग रहे विभिन्न प्रकार के आरोपों को नजरंदाज कर दिया और चट्टान की तरह उनके पीछे खड़े रहे.
मित्रों,हमें अभी तक अन्ना के तेवरों को देखते हुए इस बात का आभास तक नहीं था कि हमारे साथ धोखा भी हो सकता है.लेकिन आज का अख़बार देखने के बाद मालूम हुआ कि अचानक अन्ना के राग बदल गए हैं.अब अन्ना जिस तरह बदले हुए सुर में बोलने लगे हैं हमें संदेह होने लगा है कि कहीं हमारे साथ एक बार फिर से धोखा तो नहीं हुआ है?कहीं एक बार फिर से हमने पत्थर को हीरा तो नहीं समझ लिया?कहीं अन्ना एंड कंपनी केंद्र की महाभ्रष्ट सरकार से मिली हुई तो नहीं है?
मित्रों,भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में टूट जाने लेकिन नहीं झुकने का दंभ भरनेवाले अन्ना अब यानि संघर्ष के प्रथम चरण में ही झुकते हुए से प्रतीत हो रहे हैं.उन्होंने हमारी उम्मीदों पर चैत के महीने में तुषारापात करते हुए कहा है कि सभी उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाएगा.अन्ना ने ऐसा क्या सोंचकर और किस तरह की मजबूरी में आकर कहा है ये तो वही जानें.लेकिन मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय से रातोंरात भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है?इलाहाबाद उच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार को तो स्वयं सर्वोच्च न्यायालय स्वीकार कर चुका है.उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बालाकृष्णन पर पद का दुरुपयोग कर अकूत धन जमा करने के जो आरोप हैं क्या वे समाप्त हो गए हैं?क्या अब बालाकृष्णन और दिनकरण सरीखे भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता समाप्त हो गयी है?क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार अन्य क्षेत्रों यहाँ तक कि अधीनस्थ न्यायालयों में कायम भ्रष्टाचार से किसी मायने में अलग है?क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्ट तत्वों के होने से अधीनस्थ न्यायालयों या देश से भ्रष्टाचार के समाप्त होने में किसी तरह की मदद मिलेगी?
मित्रों,ऐसा हरगिज नहीं है.फिर अन्ना क्यों और कैसे समझौतावादी हो गए?मित्रों,मैं जहाँ तक समझता हूँ कि कोई भी समझौता झुकने की प्रक्रिया का अंत नहीं होता बल्कि केवल और केवल एक शुरुआतभर होता है.एक बार समझौता कर लेने के बाद आदमी समझौते पर समझौते करने लगता है.तो क्या अन्ना आगे और भी ज्यादा झुकनेवाले हैं और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार से रसासिक्त सभी क्षेत्रों के अपराधी प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर तो नहीं हो जानेवाले हैं?
मित्रों,जाहिर है कि अभी यह एक परिकल्पनात्मक प्रश्न है.मैं यहाँ अन्ना और उनके सहयोगियों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारत की जनता को केवल और केवल जन लोकपाल चाहिए और अपने मूल स्वरुप में चाहिए.हम इसमें इसे कमजोर करनेवाला छोटा-से-छोटा संशोधन भी स्वीकार नहीं करेंगे.अन्ना जी अगर आप ऐसा करने को तैयार होते हैं चाहे कारण जो भी हो,तो देश की जनता आँख मूंदकर यही समझेगी कि आपलोगों ने उनके साथ धोखा किया है और आपलोग भी कतिपय नेताओं की तरह बिक गए हैं,गद्दार हैं.
मित्रों,ऐसा हरगिज नहीं है.फिर अन्ना क्यों और कैसे समझौतावादी हो गए?मित्रों,मैं जहाँ तक समझता हूँ कि कोई भी समझौता झुकने की प्रक्रिया का अंत नहीं होता बल्कि केवल और केवल एक शुरुआतभर होता है.एक बार समझौता कर लेने के बाद आदमी समझौते पर समझौते करने लगता है.तो क्या अन्ना आगे और भी ज्यादा झुकनेवाले हैं और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार से रसासिक्त सभी क्षेत्रों के अपराधी प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर तो नहीं हो जानेवाले हैं?
मित्रों,जाहिर है कि अभी यह एक परिकल्पनात्मक प्रश्न है.मैं यहाँ अन्ना और उनके सहयोगियों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारत की जनता को केवल और केवल जन लोकपाल चाहिए और अपने मूल स्वरुप में चाहिए.हम इसमें इसे कमजोर करनेवाला छोटा-से-छोटा संशोधन भी स्वीकार नहीं करेंगे.अन्ना जी अगर आप ऐसा करने को तैयार होते हैं चाहे कारण जो भी हो,तो देश की जनता आँख मूंदकर यही समझेगी कि आपलोगों ने उनके साथ धोखा किया है और आपलोग भी कतिपय नेताओं की तरह बिक गए हैं,गद्दार हैं.
3 टिप्पणियां:
पहली चीज टेम्प्लेट बदलें, पढ़ने में असुविधा हो रही है. दूसरा वर्ड वेरीफिकेशन भी हटायें. अब आता हूं आपकी पोस्ट पर. दमदार लिखा है. अन्ना का बयान मैंने नहीं पढ़ा, लेकिन यह वाकई सनसनीखेज भी है और आश्चर्यजनक भी...
मैंने तो यह खबर दैनिक जागरण में पढ़ी.इस खबर में अन्ना ने यह भी कहा है कि वे आगे और भी लचीला रूख अपनाएँगे.
achchha lag raha hai badlao... template me...
anna yadi aisa karenge to nishchit roop se badi haani hogi is vidheyak ko aur janta ko..
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