मित्रों,कभी पिछड़ेपन का पर्याय रहा बिहार आज देश के विकास का ईंजन बना चाहता है। उसकी विकास दर इस समय देश के अन्य सारे राज्यों से ज्यादा है 16% वार्षिक से भी अधिक। लेकिन देश के इस सबसे युवा प्रदेश को इतने भर से कतई संतोष नहीं है। वह और तेज गति से विकास करना चाहता है लेकिन इसके लिए उसको चाहिए करों में छूट जो बिना विशेष राज्य का दर्जा मिले संभव नहीं है। प्रश्न उठता है कि क्यों मिलना चाहिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा? बिहार में ऐसा क्या है? बिहार को विशेष राज्य का दर्जा इसलिए मिलना चाहिए क्योंकि इस समय बिहार विकास का भूखा है और उसने अपने ही सीमित संसाधनों से वह करके दिखाया है जिसकी वर्ष 2005 तक किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। याद करिए कि जब बिहार का बँटवारा हुआ था तब बिहार को पूरी तरह से कंगाल करके रख देनेवाले तत्कालीन बिहार के शीर्ष नेता लालू प्रसाद यादव ने क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि अब बिहार में सिवाय लालू,आलू और बालू के कुछ नहीं बचा है। आज वही लालू,आलू और बालू वाला बिहार देश में सबसे तेज गति विकास कर रहा है,गुजरात से भी तेज और चीन से भी तेज। आप अगर रेडियो सुनते होंगे और दूरदर्शन देखते होंगे तो यकीनन आपको पता होगा कि इन दिनों केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए विशेष छात्रवृत्ति योजना चला रखी है। इसका जाहिराना तौर पर क्या उद्देश्य है? यही न कि जो अल्पसंख्यक बच्चा पढ़ाई में तेज है लेकिन आर्थिक दृष्टि से कमजोर है उसको आर्थिक मदद दी जाए जिससे उसकी पढ़ाई न रूके और जिससे वह भी अन्य बच्चों की तरह अपना सर्वांगीण विकास कर सके। हालाँकि यह नीति बहुसंख्यक हिन्दुओं के साथ भेदभाव कर रही है ठीक उसी तरह जैसे बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देकर बिहार के साथ द्विनीति बरती जा रही है। क्या हिन्दू गरीब नहीं हैं,क्या हजारों हिन्दू बच्चों की पढ़ाई धनाभाव के कारण नहीं रूक जा रही है? जो बच्चे विश्वविद्यालय में प्रथम आ सकते थे क्या वे होटलों में प्लेट धोने को बाध्य नहीं हैं? फिर मुसलमानों के लिए विशेष योजना क्यों और हिन्दुओं के लिए वही योजना क्यों नहीं? (यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सिक्खों और ईसाई अल्पसंख्यकों की आर्थिक दशा तो हिन्दुओं से भी काफी अच्छी है इसलिए वे इन योजनाओं का शायद ही लाभ लेने जाएँ।) ठीक इसी तरह क्या सिर्फ पहाड़ी राज्य ही पिछड़े हुए हैं? क्या सिर्फ उनको ही विकास का अधिकार है? विशेष राज्य का दर्जा पाए कितने पहाड़ी राज्यों ने विकास में सर्वोच्च स्थान लाकर दिखाया है? फिर वास्तविक जरूरतमंद राज्य बिहार को स्कॉलरशिप देकर प्रोत्साहित क्यों नहीं किया जाना चाहिए जिससे वह आर्थिक मंदी की महादशा में देश के विकास का ईंजन बन सके और देश 1991 के ऐतिहासिक मोड़ पर फिर से पहुँच जाने से बच जाए?
मित्रों,हो सकता है और हो सकता है क्या हो भी रहा है कि नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य के दर्जें के मुद्दे पर गंदी राजनीति कर रहे हैं। जो मुद्दा साढ़े 10 करोड़ लोगों का है उसे उन्होंने सिर्फ अपना और अपनी पार्टी का मुद्दा बनाने का महापाप किया है। यहाँ तक कि उन्होंने बिहार के गौरवपूर्ण विकास की महागाथा लिखने में सहयोगी रहे दल भाजपा को भी इस मुद्दे से अलग-थलग किया हुआ है। क्या इस तरह की कुत्सित राजनीति करने से मिलेगा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा? कदापि नहीं। वह तो तभी मिलेगा जब एक साथ पक्ष-विपक्ष के सारे बिहारी उठ खड़े होंगे और एक साथ दिल्ली में डेरा डाल देंगे,संसद को जाम कर देंगे।
मित्रों,क्या आपने कभी दो मिनट के लिए सोंचा है कि अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए को क्या-क्या हो सकता है? तब देश-विदेश के सारे उद्योगपतियों का गन्तव्य बिहार हो जाएगा। जब सिर्फ आलू और बालू (लालू अब अतीत बन चुके हैं) के बल पर बिहार ने 15-16% का विकास दर प्राप्त करके दिखाया है तो अगर उसे विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो संभव है कि वह 50 या 100% की विकास दर भी प्राप्त कर ले और पूरी दुनिया के लिए संपूर्ण विनाश के बाद विकास का एक अद्वितीय उदाहरण बन जाए। इस मामले में केंद्र सरकार का हठ बेवजह है। क्या बिहार की जीडीपी के और तेज बढ़ने से भारत की जीडीपी भी तेज गति से नहीं बढ़ेगी? क्या बिहार भारत से बाहर है? भारत की जीडीपी को फिर से दहाईं अंकों में लाने का रास्ता आँखों के सामने है फिर भी केंद्र सरकार वैश्विक मंदी,राजस्व और राजकोषीय घाटे का रोना रो रही है और जनता पर बोझ-पर-बोझ डाले जा रही है। बल्कि उसको तो बिहार को एक अवसर की तरह लेना चाहिए और लपक लेना चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो विकास और अर्थव्यवस्था संबंधी उसकी सारी चिंताएँ व्यर्थ हैं,ढोंग और स्वांग हैं। वह नहीं चाहती कि भारत मंदी की अंधेरी सुरंग बाहर आए और पूरी दुनिया का आर्थिक महाशक्ति बनकर नेतृत्व करे। बल्कि यह तो वही बात हो गई कि बुढ़ा रही दुल्हन के दरवाजे पर बाँका जवान बारात लिए खड़ा हो और दुल्हन कहती हो कि अभी तो मुझे नींद आ रही है। अगर ऐसा है तो सोने दीजिए भारतीय अर्थव्यवस्था को और गोंता लगाने दीजिए जीडीपी की विकास दर को। मैं कहता हूँ कि सिर्फ एक बार आप बिहार को मौका तो दीजिए और फिर भूल जाईए जीडीपी की चिंता को और पीछे वर्णित दुल्हन की तरह पैरों में शुद्ध सरसों का ईंजन छाप तेल लगाकर सो जाईए। केंद्र की नकारा सरकार को यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि बिहार ऐसे ही विशेष राज्य का दर्जा नहीं मांग रहा है अपितु उसने प्रकाश झा की फिल्म अपहरण के अजय देवगन की तरह पहले हुनर दिखाया है,खुद को विशेष सिद्ध किया है तब जाकर विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो इसका यह भी मतलब होगा कि उसको गोबर के उपले में घी सुखाने में मजा आता है अर्थात् आप भोंदू विद्यार्थी को तो भरपूर छात्रवृत्ति दे रहे हैं और जो यूनिवर्सिटी टॉपर है उसको गालियाँ देकर हतोत्साहित कर रहे हैं।
मित्रों,हो सकता है और हो सकता है क्या हो भी रहा है कि नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य के दर्जें के मुद्दे पर गंदी राजनीति कर रहे हैं। जो मुद्दा साढ़े 10 करोड़ लोगों का है उसे उन्होंने सिर्फ अपना और अपनी पार्टी का मुद्दा बनाने का महापाप किया है। यहाँ तक कि उन्होंने बिहार के गौरवपूर्ण विकास की महागाथा लिखने में सहयोगी रहे दल भाजपा को भी इस मुद्दे से अलग-थलग किया हुआ है। क्या इस तरह की कुत्सित राजनीति करने से मिलेगा बिहार को विशेष राज्य का दर्जा? कदापि नहीं। वह तो तभी मिलेगा जब एक साथ पक्ष-विपक्ष के सारे बिहारी उठ खड़े होंगे और एक साथ दिल्ली में डेरा डाल देंगे,संसद को जाम कर देंगे।
मित्रों,क्या आपने कभी दो मिनट के लिए सोंचा है कि अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए को क्या-क्या हो सकता है? तब देश-विदेश के सारे उद्योगपतियों का गन्तव्य बिहार हो जाएगा। जब सिर्फ आलू और बालू (लालू अब अतीत बन चुके हैं) के बल पर बिहार ने 15-16% का विकास दर प्राप्त करके दिखाया है तो अगर उसे विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो संभव है कि वह 50 या 100% की विकास दर भी प्राप्त कर ले और पूरी दुनिया के लिए संपूर्ण विनाश के बाद विकास का एक अद्वितीय उदाहरण बन जाए। इस मामले में केंद्र सरकार का हठ बेवजह है। क्या बिहार की जीडीपी के और तेज बढ़ने से भारत की जीडीपी भी तेज गति से नहीं बढ़ेगी? क्या बिहार भारत से बाहर है? भारत की जीडीपी को फिर से दहाईं अंकों में लाने का रास्ता आँखों के सामने है फिर भी केंद्र सरकार वैश्विक मंदी,राजस्व और राजकोषीय घाटे का रोना रो रही है और जनता पर बोझ-पर-बोझ डाले जा रही है। बल्कि उसको तो बिहार को एक अवसर की तरह लेना चाहिए और लपक लेना चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो विकास और अर्थव्यवस्था संबंधी उसकी सारी चिंताएँ व्यर्थ हैं,ढोंग और स्वांग हैं। वह नहीं चाहती कि भारत मंदी की अंधेरी सुरंग बाहर आए और पूरी दुनिया का आर्थिक महाशक्ति बनकर नेतृत्व करे। बल्कि यह तो वही बात हो गई कि बुढ़ा रही दुल्हन के दरवाजे पर बाँका जवान बारात लिए खड़ा हो और दुल्हन कहती हो कि अभी तो मुझे नींद आ रही है। अगर ऐसा है तो सोने दीजिए भारतीय अर्थव्यवस्था को और गोंता लगाने दीजिए जीडीपी की विकास दर को। मैं कहता हूँ कि सिर्फ एक बार आप बिहार को मौका तो दीजिए और फिर भूल जाईए जीडीपी की चिंता को और पीछे वर्णित दुल्हन की तरह पैरों में शुद्ध सरसों का ईंजन छाप तेल लगाकर सो जाईए। केंद्र की नकारा सरकार को यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि बिहार ऐसे ही विशेष राज्य का दर्जा नहीं मांग रहा है अपितु उसने प्रकाश झा की फिल्म अपहरण के अजय देवगन की तरह पहले हुनर दिखाया है,खुद को विशेष सिद्ध किया है तब जाकर विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो इसका यह भी मतलब होगा कि उसको गोबर के उपले में घी सुखाने में मजा आता है अर्थात् आप भोंदू विद्यार्थी को तो भरपूर छात्रवृत्ति दे रहे हैं और जो यूनिवर्सिटी टॉपर है उसको गालियाँ देकर हतोत्साहित कर रहे हैं।
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