मित्रों,इन दिनों भ्रष्टाचार के महान क्षेत्र में सारे पूर्व कीर्तिमानों को भंग कर चुकी कांग्रेस पार्टी माईक टाईसन हुई जा रही है और उसके लिए मुक्केबाजी के अभ्यास के लिए आसान पंचिंग बैग बन गई है वह संस्था जिसको संविधान ने खजाने का पहरेदार बनाया है। मौका मिला नहीं कि चला दिया एक घूसा। यह बात अलग है कि उनके घूसे अक्सर निशाने पर नहीं होते और तब वे टाईसन की तरह काट खाने की कोशिश करने लगते हैं। इन दिनों यह चलन बन गया है कि गलती सरकार करती है और ठीकरा फोड़ देती है बेचारे सीएजी पर। मंत्रियों के रवैय्ये से तो यही लगता है कि जैसे वित्तीय अनियमितताओं को उजागर कर सीएजी ने ही कोई गंभीर घोटाला या अपराध किया है। इन दिनों 2जी नीलामी में नाकामी को लेकर कैग पर आरोपों की बरसात पहले तो मनीष तिवारी ने की और अब बरस रहे हैं कुतर्क चूड़ामणि कपिल सिब्बल। आज 2-जी नीलामी के मुद्दे पर मंत्री समूह की बैठक हुई है जिसमें 2-जी नीलामी के मुद्दे पर सरकारी फैसले का बचाव किया गया और कहा गया कि सरकार लोगों का फायदा चाहती थी अगर ऐसा था तो यह सुप्रीम कोर्ट को बताना चाहिए था कि 10 जनवरी,2008 को राजा के दोस्तों को कैसे फायदा हो गया? संचार मंत्री सिब्बल ने इशारों- इशारों में 2जी नीलामी में सरकार के फ्लॉप शो का सारा ठीकरा कैग के मत्थे मढ़ दिया। केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल फरमाते हैं कि पूरे मामले को सनसनीखेज बनाया गया लेकिन इस नकारात्मक प्रचार का क्या फायदा हुआ? शायद इस चोरी और सीनाजोरी पर ही किसी शायर ने कहा है कि वो रोज फटाखे फोड़ते हैं तो कोई बात नहीं,हमने एक दीप जलाया तो बुरा मान गए। सिब्बल कहते हैं कि सरकार का काम नीतियां बनाना है न कि कैग का। क्या सिब्बल साहब बताएंगे कि नीतियाँ बनाना अगर सरकार का काम है तो उन पर ईमानदार और पारदर्शी तरीके से अमल करना किसका काम है? क्या ए. राजा द्वारा रिश्वत लेकर 2-जी स्पेक्ट्रम की बंदरबाँट करना भी सरकारी नीति के अंतर्गत आता है?
मित्रों,सिब्बल ने कहा कि सरकार को स्पेक्ट्रम नीलामी तथा मौजूदा दूरसंचार कंपनियों पर एकमुश्त शुल्क से 17,343 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से क्षुब्ध हूं कि उपभोक्ताओं को लाभ नहीं हुआ। पता नहीं सिब्बल साहब इस बात से क्षुब्ध हैं या फिर वे इस बात से क्षुब्ध हैं कि सर्वोच्च न्यायालय और सीएजी की कारस्तानी के चलते वे राजा की तरह अपने अपनों को उपकृत नहीं कर पाए। उनको देश की जनता की चिंता है या बाजार की? अगर उनको सही मायने में जनता की चिंता होती तो वे कल यह बयान नहीं देते कि बाजार को कैसे काम करना है यह बाजार को ही निर्धारित करने देना चाहिए। अगर ऐसा ही है तो फिर सरकार संविधान में संशोधन कर क्यों नहीं प्रस्तावना में समाजवादी गणराज्य के स्थान पर पूंजीवादी भ्रष्टराज्य लिखवा देती है? जब बाजार को ही अर्थव्यवस्था का नियंता बनना है तो क्या जरुरत है संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी गणराज्य शब्द को बनाए रखना? क्या सिब्बल का ऐसा कहना देश की जनता और संविधान के साथ धोखा नहीं है? इसके साथ ही सरकार को अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी को भी समाप्त कर देना चाहिए। क्यों नहीं बाजार ही अनाज के दाम और मजदूरी की न्यूनतम दरों का निर्धारण करे? इसके साथ ही रेलवे और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को भी तत्काल बंद कर देना चाहिए और पूरे देश को, देश की हर एक सेवा को बाजार को परमेश्वर मानते हुए उसी के हवाले कर देना चाहिए फिर चाहे जनता जिए या मरे।
मित्रों, सिब्बल ने कैग पर हमला बोलते हुए कहा कि 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का जो आंकड़ा दिया गया वह सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए था। कैग न हुआ टीवी चैनल हो गया। इस बैठक में केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल, केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदबंरम और केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी मौजूद थे। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि 2जी घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा भ्रामक है। चिदंबरम साहब को यह समझना चाहिए कि सीएजी ने जो रिपोर्ट दी थी वह देश की 10 जनवरी,2008 (जिस दिन 2-जी स्पेक्ट्रम की बंदरबाँट की गई थी) की आर्थिक स्थिति को देखते हुए दी थी न कि आज 12-14 नवंबर,2012 की आर्थिक स्थिति को देखकर। तब आर्थिक क्षेत्र में बहारों का मौसम चल रहा था और आज पतझड़ है। तब तेजी थी आज मंदी है और औद्योगिक सूचकांक तो शून्य से भी नीचे ऋणात्मक भी हो चुका है। तब ग्रोथ का ग्राफ 80-90 डिग्री पर था आज 10-20 डिग्री पर भी नहीं है। फिर कहाँ से आएंगे 2008 की तरह खरीददार? 2-जी क्या आज 3-जी स्पेक्ट्रमों की भी फिर से नीलामी की जाए तो भी उतने पैसे नहीं मिलेंगे जितने कि 2010 में मिले थे (106,219 करोड़ रु.)।
मित्रों,2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी जिस तरह उम्मीद से बहुत कम कीमत पड़ हुई है उससे स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस और केंद्रीय सत्ता को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग को नए सिरे से गलत ठहराने का स्वर्णिम अवसर मिल गया है, लेकिन इस निराशाजनक नीलामी के लिए कैग को ही पूरी तौर पर उत्तरदायी ठहराना सही नहीं होगा। कैग ने पूर्व में 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये की राजस्व हानि का जो अनुमान लगाया था उसमें कुछ खामी हो सकती है, लेकिन केवल इसी आधार पर कैग के निष्कर्षो को खारिज कर देना अथवा उन्हें आत्मनिरीक्षण की नसीहत देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं हो सकता। राजस्व हानि के आकलन के संदर्भ में तो कैग को आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर इस संस्था के निष्कर्षो पर तो वस्तुत: केंद्र सरकार को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। कैग ने न केवल 2जी स्पेक्ट्रम, बल्कि कोयला खदानों के आवंटन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के तथ्यों से पर्दा हटाने का काम किया है। यदि ऐसा नहीं होता तो न तो उच्चतम न्यायालय को 2जी स्पेक्ट्रम के सभी लाइसेंस रद करने पड़ते और न ही तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा और उनके अजीज दोस्तों को जेल जाना पड़ता। वास्तव में कैग दूर तक छाए घनघोर अंधेरे में रोशनी का दिया बना हुआ है और सरकार है कि इसे भी बुझा देना चाहती है।
मित्रों,जहां तक 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में अपेक्षा से कम राजस्व हासिल होने का सवाल है तो केंद्र सरकार के नीति-निर्धारकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या उन्होंने बाजार की परिस्थितियों का आकलन वास्तव में उचित तरीके से किया था? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि दूरसंचार कंपनियों की ओर से पहले से ही यह कहा जा रहा था कि 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए सरकार की ओर से जो आधार मूल्य तय किया गया है वह बहुत अधिक है। वैसे भी जबकि 3-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हो चुकी है और 4-जी की चर्चा हो रही है तब 2जी स्पेक्ट्रम के लिए इतना अधिक आधार मूल्य रखने का कोई मतलब ही नहीं था। यदि आधार मूल्य वर्तमान बाजार की परिस्थितियों के हिसाब से रखा गया होता तो संभवत: नीलामी के नतीजे अच्छे भी हो सकते थे। जब पहले से ही इस तरह की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि आर्थिक मोर्चे पर व्याप्त निराशा के माहौल के कारण स्पेक्ट्रम बाजार के मौजूदा हालात नीलामी पर भारी पड़ सकते हैं और दूरसंचार कंपनियां इस प्रक्रिया से अपने हाथ पीछे खींच सकती हैं तब फिर इसका कोई अर्थ नहीं है कि नीलामी में कम राजस्व हासिल होने का सारा दोष कैग के मत्थे डाल दिया जाए। 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में जिस तरह केंद्र सरकार बाजार की स्थितियों का आकलन करने में सक्षम साबित नहीं हुई और अब उसकी ओर से यह कहा जा रहा है कि नीलामी की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू की जा सकती है उससे तो यही लगता है कि वह अभी भी देश के मौजूदा आर्थिक परिदृश्य से परिचित नहीं है। बेहतर होता कि केंद्र सरकार 2जी स्पेक्ट्रम की निराशाजनक नीलामी के लिए सारा दोष कैग के मत्थे मढ़ने के बजाय इस पर विचार करती कि उससे कहाँ-कहाँ गलती हुई और भविष्य में किस प्रकार इस तरह की गलती से बचा जा सकता है? ऐसा आत्मचिंतन इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि नीलामी की विफलता इस बात का संकेत है कि जिस दूरसंचार क्षेत्र को अब तक भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति का आधार माना जा रहा था उसमें भी अब निराशा का वातावरण बनने लगा है।
मित्रों,सिब्बल ने कहा कि सरकार को स्पेक्ट्रम नीलामी तथा मौजूदा दूरसंचार कंपनियों पर एकमुश्त शुल्क से 17,343 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से क्षुब्ध हूं कि उपभोक्ताओं को लाभ नहीं हुआ। पता नहीं सिब्बल साहब इस बात से क्षुब्ध हैं या फिर वे इस बात से क्षुब्ध हैं कि सर्वोच्च न्यायालय और सीएजी की कारस्तानी के चलते वे राजा की तरह अपने अपनों को उपकृत नहीं कर पाए। उनको देश की जनता की चिंता है या बाजार की? अगर उनको सही मायने में जनता की चिंता होती तो वे कल यह बयान नहीं देते कि बाजार को कैसे काम करना है यह बाजार को ही निर्धारित करने देना चाहिए। अगर ऐसा ही है तो फिर सरकार संविधान में संशोधन कर क्यों नहीं प्रस्तावना में समाजवादी गणराज्य के स्थान पर पूंजीवादी भ्रष्टराज्य लिखवा देती है? जब बाजार को ही अर्थव्यवस्था का नियंता बनना है तो क्या जरुरत है संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी गणराज्य शब्द को बनाए रखना? क्या सिब्बल का ऐसा कहना देश की जनता और संविधान के साथ धोखा नहीं है? इसके साथ ही सरकार को अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी को भी समाप्त कर देना चाहिए। क्यों नहीं बाजार ही अनाज के दाम और मजदूरी की न्यूनतम दरों का निर्धारण करे? इसके साथ ही रेलवे और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को भी तत्काल बंद कर देना चाहिए और पूरे देश को, देश की हर एक सेवा को बाजार को परमेश्वर मानते हुए उसी के हवाले कर देना चाहिए फिर चाहे जनता जिए या मरे।
मित्रों, सिब्बल ने कैग पर हमला बोलते हुए कहा कि 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का जो आंकड़ा दिया गया वह सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए था। कैग न हुआ टीवी चैनल हो गया। इस बैठक में केंद्रीय संचार मंत्री कपिल सिब्बल, केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदबंरम और केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी मौजूद थे। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि 2जी घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा भ्रामक है। चिदंबरम साहब को यह समझना चाहिए कि सीएजी ने जो रिपोर्ट दी थी वह देश की 10 जनवरी,2008 (जिस दिन 2-जी स्पेक्ट्रम की बंदरबाँट की गई थी) की आर्थिक स्थिति को देखते हुए दी थी न कि आज 12-14 नवंबर,2012 की आर्थिक स्थिति को देखकर। तब आर्थिक क्षेत्र में बहारों का मौसम चल रहा था और आज पतझड़ है। तब तेजी थी आज मंदी है और औद्योगिक सूचकांक तो शून्य से भी नीचे ऋणात्मक भी हो चुका है। तब ग्रोथ का ग्राफ 80-90 डिग्री पर था आज 10-20 डिग्री पर भी नहीं है। फिर कहाँ से आएंगे 2008 की तरह खरीददार? 2-जी क्या आज 3-जी स्पेक्ट्रमों की भी फिर से नीलामी की जाए तो भी उतने पैसे नहीं मिलेंगे जितने कि 2010 में मिले थे (106,219 करोड़ रु.)।
मित्रों,2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी जिस तरह उम्मीद से बहुत कम कीमत पड़ हुई है उससे स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस और केंद्रीय सत्ता को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग को नए सिरे से गलत ठहराने का स्वर्णिम अवसर मिल गया है, लेकिन इस निराशाजनक नीलामी के लिए कैग को ही पूरी तौर पर उत्तरदायी ठहराना सही नहीं होगा। कैग ने पूर्व में 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये की राजस्व हानि का जो अनुमान लगाया था उसमें कुछ खामी हो सकती है, लेकिन केवल इसी आधार पर कैग के निष्कर्षो को खारिज कर देना अथवा उन्हें आत्मनिरीक्षण की नसीहत देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं हो सकता। राजस्व हानि के आकलन के संदर्भ में तो कैग को आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर इस संस्था के निष्कर्षो पर तो वस्तुत: केंद्र सरकार को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। कैग ने न केवल 2जी स्पेक्ट्रम, बल्कि कोयला खदानों के आवंटन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के तथ्यों से पर्दा हटाने का काम किया है। यदि ऐसा नहीं होता तो न तो उच्चतम न्यायालय को 2जी स्पेक्ट्रम के सभी लाइसेंस रद करने पड़ते और न ही तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा और उनके अजीज दोस्तों को जेल जाना पड़ता। वास्तव में कैग दूर तक छाए घनघोर अंधेरे में रोशनी का दिया बना हुआ है और सरकार है कि इसे भी बुझा देना चाहती है।
मित्रों,जहां तक 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में अपेक्षा से कम राजस्व हासिल होने का सवाल है तो केंद्र सरकार के नीति-निर्धारकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या उन्होंने बाजार की परिस्थितियों का आकलन वास्तव में उचित तरीके से किया था? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि दूरसंचार कंपनियों की ओर से पहले से ही यह कहा जा रहा था कि 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए सरकार की ओर से जो आधार मूल्य तय किया गया है वह बहुत अधिक है। वैसे भी जबकि 3-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हो चुकी है और 4-जी की चर्चा हो रही है तब 2जी स्पेक्ट्रम के लिए इतना अधिक आधार मूल्य रखने का कोई मतलब ही नहीं था। यदि आधार मूल्य वर्तमान बाजार की परिस्थितियों के हिसाब से रखा गया होता तो संभवत: नीलामी के नतीजे अच्छे भी हो सकते थे। जब पहले से ही इस तरह की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि आर्थिक मोर्चे पर व्याप्त निराशा के माहौल के कारण स्पेक्ट्रम बाजार के मौजूदा हालात नीलामी पर भारी पड़ सकते हैं और दूरसंचार कंपनियां इस प्रक्रिया से अपने हाथ पीछे खींच सकती हैं तब फिर इसका कोई अर्थ नहीं है कि नीलामी में कम राजस्व हासिल होने का सारा दोष कैग के मत्थे डाल दिया जाए। 2-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में जिस तरह केंद्र सरकार बाजार की स्थितियों का आकलन करने में सक्षम साबित नहीं हुई और अब उसकी ओर से यह कहा जा रहा है कि नीलामी की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू की जा सकती है उससे तो यही लगता है कि वह अभी भी देश के मौजूदा आर्थिक परिदृश्य से परिचित नहीं है। बेहतर होता कि केंद्र सरकार 2जी स्पेक्ट्रम की निराशाजनक नीलामी के लिए सारा दोष कैग के मत्थे मढ़ने के बजाय इस पर विचार करती कि उससे कहाँ-कहाँ गलती हुई और भविष्य में किस प्रकार इस तरह की गलती से बचा जा सकता है? ऐसा आत्मचिंतन इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि नीलामी की विफलता इस बात का संकेत है कि जिस दूरसंचार क्षेत्र को अब तक भारत की तीव्र आर्थिक प्रगति का आधार माना जा रहा था उसमें भी अब निराशा का वातावरण बनने लगा है।
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