मित्रों,यह हम युवाओं के लिए बड़े ही हर्ष और बिहार के लिए गर्व का विषय है कि हम कंवारे और शादीशुदा प्रेमियों की चिंता में दोहरे हुए जा रहे कामदेव के दूसरे अवतार (शास्त्रों के अनुसार पहला अवतार श्रीकृष्णपुत्र प्रद्युम्न थे) गुरुओं के गुरू प्रेमगुरू श्री मटुकनाथ चौधरी जी और उनकी प्रेमाधिकारिणी शिष्या सह सहधर्मिणी रत्यावतार श्रीमती जूली जी बिहार के भागलपुर जिले में स्थित अपने गांव में एक 'लव स्कूल' खोलने जा रहे हैं। कभी इसी भागलपुर में पूर्व मध्यकाल में विक्रमशिला विश्वविद्यालय हुआ करता था। इस स्कूल में वह युवाओं को सिखाएंगे कि प्यार कैसे किया जाए। भारत के अपनी तरह के इस अकेले स्कूल को खोलने के लिए मटुकनाथ ने प्रेमिका जूली के साथ अपने गांव में तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। प्रोफेसर मटुकनाथ चौधरी अपने से आधी उम्र की स्टूडेंट के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने पर चर्चा में आए थे। पटना यूनिवर्सिटी में हिन्दी के प्रोफेसर मटुकनाथ चौधरी का कहना है कि प्यार इंसान को भगवान का दिया सबसे कीमती तोहफा है, ऐसे में हमें इसका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'प्यार हमें कंस्ट्रक्टिव बनाता है। प्यार का मतलब है बलिदान; इसमें स्वार्थ के लिए कोई जगह नहीं होती। प्यार के दो चेहरे होते हैं- पहला डिस्ट्रक्टिव होता है और दूसरा कंस्ट्रक्टिव। दुख की बात है कि आज के युवा प्यार के सही तरीके को नहीं पहचान पा रहे। हम उन्हें सिखाएंगे कि कैसे सर्वोच्च बलिदान करते हुए समाज के लिए उदाहरण पेश किया जाए।' आहा हा दिल द्रवित होने लगा कितने उच्च विचार हैं प्रोफेसर साहब के! ऐसे ही कुछ महान लोगों अथवा प्रेमियों के कारण यह धरती इस कलियुग में भी घूम रही है।
मित्रों,खबर पढ़ते ही मैंने एक संकल्प लिया कि मैं अब इस विद्यालय में नामांकन लूंगा और प्रेम के ढाई आखर पढ़ूंगा। पोथी पढ़-पढ़कर डिग्रियों का ढेर लगा दिया फिर भी दुनिया मुझे बेकार कहती है। बाज आया मैं ऐसी बेकार की पढ़ाई से जिसने मुझे बेकार बना दिया। अब तो मैं प्रेम के सिर्फ ढाई अक्षर ही पढ़ूंगा और दुनिया की नजरों में मटुक सर की तरह पंडित बनूंगा। लेकिन नामांकन से पहले मेरी परम आदरणीय और फादरणीय मटुकनाथ जी से कुछ मांगें हैं जिनको अगर वे पूरी कर देते हैं तो मैं अवश्य ही उनके लव स्कूल में नामांकन ले लूंगा-
1). स्कूल में शिक्षक पद के लिए शत-प्रतिशत महिला आरक्षण होना चाहिए। इस मांग के पीछे मेरा कोई निहित स्वार्थ नहीं है मैं तो बस तहे दिल से महिलाओं का भला चाहता हूँ।
2). थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल की कक्षाएँ लगाई जाएँ और परीक्षाओं में प्रैक्टिकल के अंक ज्यादा रखे जाएँ। असल में दुनिया में बढ़ती हिंसा के पीछे कारण प्रेम का किताबी ज्ञान नहीं होना नहीं है बल्कि वास्तव में वर्तमान काल की एकमात्र समस्या प्रेम का प्रायोगिक ज्ञान नहीं होना है।
3). व्यक्तिगत महिला ट्यूटरों की व्यवस्था हो। क्योंकि हम इस विषय में काफी कमजोर हैं और हमें नहीं लगता कि बिना ट्यूशन पढ़े हम स्कूल में समय-समय पर ली जानेवाली परीक्षाओं में कोई अंक भी ला पाएंगे।
4). हम मटुक सर से मांग करते हैं कि छात्रों को सहपाठी छात्राओं और लावण्यमयी शिक्षिकाओं के साथ ईश्क लड़ाने की पूरी आजादी दी जाए और साथ ही भारत सरकार से मांग करते हैं कि इस तरह का प्रावधान संविधान में भी किया जाए क्योंकि प्रेम करने के अधिकार के बिना मौलिक अधिकारों का कोई मतलब नहीं है। इस अधिकार पर कुछ शर्तें जरूर लगाई जा सकती हैं।
5). विवाहित छात्रों की सुरक्षा का विशेष प्रबंध होना चाहिए और उनको मार्शल आर्ट का गहन प्रशिक्षण भी दिया जाए जिससे कि वे अपनी पत्नी के बेलन से अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकें।
6). प्रेमियों को चेहरे से कालिख मिटाने और जूते-चप्पल खाने का अभ्यास भी कराया जाए।
7). विद्यालय में झाड़ियों,खंडहरों और बाग-बगीचों की अच्छी व्यवस्था भी होनी चाहिए। इससे छात्र-छात्राओं को प्रेम-स्वास्थ्य उत्तम बना रहेगा।
8). विद्यालय का नाम प्रेमवीर श्री मटुकनाथ जी के नाम पर ही रखा जाए।
मित्रों,अगर अमरप्रेमी और जीवित रहते हुए ही किवदंती बन चुके श्री मटुकनाथ चौधरी जी मेरी इन 8 बेतुकी मांगों को मान लेते हैं तो ऐसा कोई कारण नहीं बचता कि मैं उनके विद्यालय में नामांकन न लूँ। इसके साथ ही मैं यह कसम भी खाता हूँ कि मैं उनके इस महान प्रस्तावित विद्यालय का चिर विद्यार्थी बनूंगा अर्थात् मैं हमेशा पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में ही पढ़ता रहूंगा। कौन कमबख्त जाएगा ऐसे महान विद्यालय की कक्षाओं,सीढ़ियों और बगीचों को छोड़कर? मैंने तो सशर्त मन बना लिया है आपने अब तक मन बनाया या नहीं? न भी बनाया हो तो कोई बात नहीं फिर भी मैं अकेले विद्यार्थी के रूप में भी घाटे में नहीं रहूंगा,कैसे? अपने अत्यल्प दिमाग में से थोड़ा-सा दिमाग लगाईए आप भी समझ जाएंगे।
मित्रों,खबर पढ़ते ही मैंने एक संकल्प लिया कि मैं अब इस विद्यालय में नामांकन लूंगा और प्रेम के ढाई आखर पढ़ूंगा। पोथी पढ़-पढ़कर डिग्रियों का ढेर लगा दिया फिर भी दुनिया मुझे बेकार कहती है। बाज आया मैं ऐसी बेकार की पढ़ाई से जिसने मुझे बेकार बना दिया। अब तो मैं प्रेम के सिर्फ ढाई अक्षर ही पढ़ूंगा और दुनिया की नजरों में मटुक सर की तरह पंडित बनूंगा। लेकिन नामांकन से पहले मेरी परम आदरणीय और फादरणीय मटुकनाथ जी से कुछ मांगें हैं जिनको अगर वे पूरी कर देते हैं तो मैं अवश्य ही उनके लव स्कूल में नामांकन ले लूंगा-
1). स्कूल में शिक्षक पद के लिए शत-प्रतिशत महिला आरक्षण होना चाहिए। इस मांग के पीछे मेरा कोई निहित स्वार्थ नहीं है मैं तो बस तहे दिल से महिलाओं का भला चाहता हूँ।
2). थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल की कक्षाएँ लगाई जाएँ और परीक्षाओं में प्रैक्टिकल के अंक ज्यादा रखे जाएँ। असल में दुनिया में बढ़ती हिंसा के पीछे कारण प्रेम का किताबी ज्ञान नहीं होना नहीं है बल्कि वास्तव में वर्तमान काल की एकमात्र समस्या प्रेम का प्रायोगिक ज्ञान नहीं होना है।
3). व्यक्तिगत महिला ट्यूटरों की व्यवस्था हो। क्योंकि हम इस विषय में काफी कमजोर हैं और हमें नहीं लगता कि बिना ट्यूशन पढ़े हम स्कूल में समय-समय पर ली जानेवाली परीक्षाओं में कोई अंक भी ला पाएंगे।
4). हम मटुक सर से मांग करते हैं कि छात्रों को सहपाठी छात्राओं और लावण्यमयी शिक्षिकाओं के साथ ईश्क लड़ाने की पूरी आजादी दी जाए और साथ ही भारत सरकार से मांग करते हैं कि इस तरह का प्रावधान संविधान में भी किया जाए क्योंकि प्रेम करने के अधिकार के बिना मौलिक अधिकारों का कोई मतलब नहीं है। इस अधिकार पर कुछ शर्तें जरूर लगाई जा सकती हैं।
5). विवाहित छात्रों की सुरक्षा का विशेष प्रबंध होना चाहिए और उनको मार्शल आर्ट का गहन प्रशिक्षण भी दिया जाए जिससे कि वे अपनी पत्नी के बेलन से अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकें।
6). प्रेमियों को चेहरे से कालिख मिटाने और जूते-चप्पल खाने का अभ्यास भी कराया जाए।
7). विद्यालय में झाड़ियों,खंडहरों और बाग-बगीचों की अच्छी व्यवस्था भी होनी चाहिए। इससे छात्र-छात्राओं को प्रेम-स्वास्थ्य उत्तम बना रहेगा।
8). विद्यालय का नाम प्रेमवीर श्री मटुकनाथ जी के नाम पर ही रखा जाए।
मित्रों,अगर अमरप्रेमी और जीवित रहते हुए ही किवदंती बन चुके श्री मटुकनाथ चौधरी जी मेरी इन 8 बेतुकी मांगों को मान लेते हैं तो ऐसा कोई कारण नहीं बचता कि मैं उनके विद्यालय में नामांकन न लूँ। इसके साथ ही मैं यह कसम भी खाता हूँ कि मैं उनके इस महान प्रस्तावित विद्यालय का चिर विद्यार्थी बनूंगा अर्थात् मैं हमेशा पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में ही पढ़ता रहूंगा। कौन कमबख्त जाएगा ऐसे महान विद्यालय की कक्षाओं,सीढ़ियों और बगीचों को छोड़कर? मैंने तो सशर्त मन बना लिया है आपने अब तक मन बनाया या नहीं? न भी बनाया हो तो कोई बात नहीं फिर भी मैं अकेले विद्यार्थी के रूप में भी घाटे में नहीं रहूंगा,कैसे? अपने अत्यल्प दिमाग में से थोड़ा-सा दिमाग लगाईए आप भी समझ जाएंगे।
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