बिहार कर्मचारी चयन आयोग है या बिहार कुर्मी चयन आयोग
मित्रों,वर्ष 2007 से 2009 तक मैं हिन्दुस्तान,पटना में नौकर हुआ करता था। उन दिनों हमारे स्थानीय संपादक हुआ करते थे सुनील दूबेजी। कद के छोटे,दिनभर पान चबाते रहते। गुस्सा तो जैसे उनकी नाक पर ही सवार रहता था। किस दिन किसकी शामत आ जाए कोई नहीं जानता था। वे थोड़े-से जातिवादी भी थे। हम सब पीड़ित मनाते रहते कि दूबेजी जाएँ और कोई दूसरा संपादक आए। हमें न जाने क्यों यह उम्मीद थी कि नया संपादक अच्छा होगा। फिर 2009 में सचमुच संपादक जी की छुट्टी हो गई और अकु श्रीवास्तव संपादक बनकर आ गए। अब हमारी हालत पहले से भी खराब हो गई।
मित्रों,ठीक यही हालत बिहार में आयोजित होनेवाली प्रतियोगिता परीक्षाओं की है। पहले भी बिहार में दशकों से उम्मीदवार दो तरीके से नौकरी पाते रहे हैं। पहले तरीके में लोग अपने मेरिट से पास होते हैं और दूसरे तरीके में परीक्षा लेनेवालों की डिमेरिट से। जैसे-जैसे वक्त गुजरता रहा मेरिट से पास होनेवालों की संख्या कम होती गई और डिमेरिट से पास होनेवालों की संख्या बढ़ती गई। अभी कुछ ही दिनों पहले कहीं यह पढ़ने को मिला कि लालू ने बिहार में किसा के लिए कुछ नहीं किया। हालाँकि यह सर्वविदित तथ्य है कि लालू के समय में भी दारोगा,प्रोफेसर और यहाँ तक कि बिहार प्रशासनिक सेवकों की बहाली में भी यादवों के पक्ष में जमकर धांधली की गई। 1993-94 में दारोगा में बहाली के लिए चयनित कुल 1400 अभ्यर्थियों में से 400 ऐसे पाए गए थे जिनकी न तो लंबाई ही और न ही सीना निर्धारित मानदंडों को पूरा करता था। धांधली से प्रभावित उम्मीदवारों ने बीपीएससी के कार्यालय पर जमकर हंगामा भी किया था परन्तु वे परिणाम को बदलवा नहीं सके थे। इसी प्रकार लालू-राबड़ी के शासन में विश्वविद्यालय शिक्षकों की बहाली में जहां 100 अंकों की लिखित परीक्षा ली गई वहीं 200 अंकों का साक्षात्कार लिया गया और जब अंतिम परिणाम निकला तो सूची में कई बाहुबली मंत्री,विधायक और उनके परिजन उत्तीर्ण घोषित किए गए थे।
मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि सत्ता बदलने से डिमेरिट से लाभान्वितों की जातियाँ भी बदलती रहीं। कांग्रेस राज में ब्राह्मण लाभान्वित हो रहे थे तो लालू-राबड़ी राज में यादव और अब नीतीश राज में कुर्मी लाभान्वित हो रहे हैं। बिहार कर्मचारी चयन आयोग के सूत्र मुझे पहले भी बता रहे थे कि इस बार सचिवालय सहायक की परीक्षा में कुर्मियों के पक्ष में धांधली की पूरी तैयारी है। इसी बीच वर्ष 2012 में एसटीएफ ने कुछ लोगों को कर्मचारी चयन आयोग के भवन में घुसकर रात के 12 बजे काँपियों में हेराफेरी करते हुए पकड़ा था। सचिवालय सहायक की पीटी परीक्षा में कई छात्रों ने जब उत्तर-पत्रक को सादा छोड़ दिया था तब भी हमारा माथा ठनका था। फिर भी हमें न जाने क्यों नीतीश जी की ईमानदारी भरी बातों पर भरोसा बना रहा परंतु अब जबकि सचिवालय सहायक परीक्षा का परिणाम आ गया है यह भरोसा भी टूट गया है।
मित्रों,पहले तो मुख्य परीक्षा में कम-से-कम 5 प्रश्न ही गलत थे फिर जब मॉडल उत्तर आया तो 5 उत्तर भी गलत पाए गए और इसके साथ ही उम्मीदवारों की योग्यता जाँचने वाले कर्मचारी चयन आयोग की योग्यता ही सवालों के घेरे में आ गई। फिर आयोग ने अप्रत्याशित जल्दीबाजी दिखाते हुए एक हफ्ते में ही 06-02-2013 को परिणाम घोषित कर दिया जैसे कि रिजल्ट पहले से ही तैयार करके रखा गया हो। रिजल्ट भी ऐसा जिससे मुख्य परीक्षा का कोई औचित्य ही नहीं रह जाए। मुख्य परीक्षा में शामिल 26078 उम्मीदवारों में से 25792 को सफल घोषित कर दिया गया जबकि रिक्तियाँ सिर्फ 3285 थीं। कर्मचारी चयन आयोग की 06-02-13 को जारी अधिसूचना के अनुसार जिन भी उम्मीदवार ने राज्य सरकार द्वारा निर्धारित उत्तीर्णांक को प्राप्त कर लिया है उन सबको मुख्य परीक्षा में सफल घोषित कर दिया गया है। आश्चर्य की बात है कि परीक्षा का आयोजन किया बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने और उत्तीर्णांक का निर्धारण बिहार सरकार कर रही है। फिर कैसे परीक्षा की पवित्रता बनी रहेगी? फिर तो यह भी असंभव नहीं कि परिणाम भी आयोग के बदले राज्य सरकार ने ही तैयार किया हो।
मित्रों,परीक्षा परिणाम घोषित हुए आज 14 दिन हो चुके हैं लेकिन काफी रहस्यमय तरीके से अब तक सफल घोषित उम्मीदवारों द्वारा हल प्रश्नों की संख्या,सही उत्तरों की संख्या,गलत उत्तरों की संख्या और उनके द्वारा प्राप्त प्राप्तांक को वेबसाईट पर प्रदर्शित नहीं किया गया है जो सीधे तौर पर परीक्षा-परिणाम में हुई धांधली की ओर संकेत करती है। इसी बीच फिर से जल्दीबाजी दिखाते हुए कल 19 तारीख को काउन्सिलिंग का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया गया है जिसमें कुल सीट जितना ही 3285 उम्मीदवारों को काउन्सिलिंग के लिए आमंत्रित किया गया है परनतु अभी भी उम्मीदवारों का प्राप्तांक घोषित नहीं किया गया है और शायद कभी घोषित किया भी नहीं जाएगा क्योंकि ऐसा करने से धांधली के उजागर हो जाने का खतरा है।
मित्रों,मैं नीतीश
सरकार से मांग करता हूँ कि काउन्सिलिंग को अविलंब स्थगित करते हुए वह मेरिट
लिस्ट में सफल सभी उम्मीदवारों के प्राप्तांक के साथ-साथ उनकी जाति को भी
वेबसाईट पर प्रदर्शित करे जिससे यह पता चल सके कि इनमें से उनके स्वजातीय
अर्थात् कुर्मी जाति से आनेवाले कितने उम्मीदवार शामिल हैं। आखिर नीतीश
कुमार को किसने हक दिया कि वे बिहार कर्मचारी चयन आयोग को अघोषित रूप से
बिहार कुर्मी चयन आयोग में बदल दें? मैं तो यह भी कहता हूँ कि संविधान की
प्रस्तावना के एक बार फिर से संशोधन किया जाए और उसमें भारत को
धर्मनिरपेक्ष के साथ-साथ जातिनिरपेक्ष घोषित करते हुए जातिनिरपेक्ष शब्द
जोड़ा जाए। दोस्तों, कुल मिलाकर मेरे इस आलेख का लब्बोलुआब यह है कि कथित
सुशासन ने सचिवालय सहायक परीक्षा के वैसे उम्मीदवारों को घनघोर रूप से
निराश किया है जो मेरिट वाली श्रेणी से आते हैं और जहाँ तक डिमेरिट श्रेणी
वालों का प्रश्न है तो वे तो प्रत्येक शासन में मजे में थे,मजे में हैं और
मजे में रहेंगे।
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