जबर्दस्ती की यौन-कुंठा
मित्रों,कई साल हुए उन दिनों मैं पटना,हिन्दुस्तान में कार्यरत था। बड़े मस्ती भरे दिन थे। उन दिनों मुझ पर हर पल बड़े-बड़े पत्रकारों से परिचय करने का जुनून सवार रहता था। उन्हीं दिनों मैं एक दिन दैनिक ****, पटना गया था एक पांडेजी से मिलने। पांडेजी उस अखबार में वरिष्ठ पद पर थे। बड़ी ही गर्मजोशी से उन्होंने मेरा स्वागत किया। उस समय वे चार-पाँच सहकर्मियों के साथ बैठे थे जिनमें से मैं किसी को भी नहीं पहचानता था। मैंने उनसे पत्रकारिता जगत की दशा और दिशा पर चर्चा छेड़ी लेकिन वे लगे नॉन स्टॉप नॉन भेज चुटकुले सुनाने। मैं पूर्णतया भेजीटेरियन हूँ भोजन से भी और बातों से भी परन्तु उनका तो प्रत्येक वाक्य शिश्न से शुरू होता था और योनि पर समाप्त। वे बार-बार न जाने क्यों अपनी नौकरानी की देहयष्टि का अश्लील वर्णन करते। उनका तो यहाँ तक दावा था कि वे उसके साथ संभोग भी करते हैं। मैं स्तब्ध था और अपने-आपको फँसा हुआ पा रहा था। कोई एक घंटा किसी तरह काटकर मैं वहाँ से भागा और फिर कभी उनसे मिलने की गुस्ताखी नहीं की। बाद में पता चला कि पांडेजी को अपने लिं* के आकार पर बड़ा अभिमान है और इसलिए उनके सहकर्मी उनकी अनुपस्थिति में उनको *डाधिपति कहकर बुलाते हैं। पांडेजी अधेड़ थे यही कोई 50-55 साल के और राम जी की देनी से शादी-शुदा और बाल-बच्चेदार भी थे परन्तु पटना में रहते थे अकेले ही।
मित्रों,उनसे मिलने के बाद मैं कई दिनों तक यही सोंचता रहा कि कोई व्यक्ति इस तरह का क्यों हो जाता है? पांडेजी पढ़े-लिखे थे और अपना भला-बुरा भलीभाँति समझते थे फिर भी वे लंपट थे। फिर शुरुआत हुई नवभारत टाइम्स पर ब्लॉगिंग की। मैंने भी लिखना शुरू किया और कई लेखकों की लेखनी से भी परिचित होने का अवसर भी मुझे यहाँ मिला। इन्हीं सुप्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं नवभारत टाइम्स डॉट कॉम के संपादक श्री नीरेंद्र नागर जी। जाहिर है इतने बड़े समाचार-पत्र के ऑनलाईन संपादक हैं तो योग्य और विद्वान तो होंगे ही लेकिन न जाने क्यों वे अन्य या समसामयिक मुद्दों पर कम लिखते हैं और सेक्स पर खूब लिखते हैं। उनके ऐसे आलेखों के शीर्षक भी काफी सेक्सी होते हैं जैसे-यदि प्रज्ञा ठाकुर की यो* में पत्थर डाले गए होते?, उसने पाया कई 'पत्नियों' का प्यार..., सेक्स से वंचित क्यों रहें अनब्याही लड़कियां?, तृप्ता, क्या तुम अपने मन का कर पाई?, हुसेन की 'सरस्वती' पेंटिंग अश्लील थी, और ये?, काश कि इस देश में ऐसे करोड़ों दोगले होते..., मैं भी वेश्या, तू भी वेश्या..., न वे वेश्याएं हैं, न सेक्स की भूखी हैं..., 10 मिनट का सेक्स और 24 घंटों का प्यार, गे सेक्स अननैचरल है तो ब्रह्मचर्य क्या है?, तेरे लिए मज़ा था वह उसके लिए सज़ा बन गई, वह बोली, तुम तो बहुत गिरे हुए निकले...आदि। मेरी समझ में यह नहीं आता कि कोई स्वस्थ दिमागवाला व्यक्ति कैसे लगभग इतना ज्यादा और इस भाषा में सेक्स के बारे में लिख सकता है। मनोविज्ञान तो यही बताता है कि जो व्यक्ति लगभग हरदम सेक्स के बारे में ही सोंचता होगा वही ऐसा कर सकता है। तो क्या नीरेन्द्र नागर जी भी पटनावाले पांडेजी की तरह लगभग हमेशा सेक्स के बारे में ही सोंचते हैं? क्या उनके दिमाग में भी लगभग हमेशा सेक्स ही भरा होता है? जहाँ तक मैं समझता हूँ यौन-कुंठा का शिकार वैसे लोगों को होना चाहिए जिनकी ढलती उम्र तक शादी नहीं हुई है या जिनको सेक्स का अवसर नहीं मिला है। हमलोग जब माखनलाल में पढ़ते थे तब हमलोगों के बीच एक मुहावरा खूब लोकप्रिय हुआ करता था जिसका इस्तेमाल हम उन मित्रों के लिए करते थे जो अपनी बातों में बार-बार पुरूष जननांग का उल्लेख किया करते थे। हम उनके मुँह की उपमा अण्डरवीयर से देते और कहते कि उसका मुँह नहीं है अण्डरवीयर है जब भी खुलता है ** ही निकलता है। जाहिर है कि इनमें से लगभग सारे-के-सारे 30 साल से ज्यादा की आयु के थे और तब तक कुँआरे थे। परन्तु कोई भी ऐसा व्यक्ति जो रामजी की देनी से कई-कई बच्चों का पिता हो वो कैसे यौन कुंठित हो सकता है? क्या लालू प्रसाद जी यौन कुंठित हो सकते हैं? यह तो वही बात हो गई कि कोई व्यक्ति 100-50 रसगुल्ले खाने के बाद यह कहे कि उसे तो खाने में स्वाद ही नहीं मिला,मजा ही नहीं आया। तो फिर जनाब इतना दबा कैसे गए?
मित्रों,आदरणीय नागर जी कभी समाज के सभी व्यक्तियों को वेश्या साबित करते हैं तो कभी आप उनको समलैंगिकता का सबसे बड़ा पैरोकार बनते देख सकते हैं। इतना ही नहीं कभी उनको साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की योनि की चिंता सताने लगती है तो कभी विवाह से वंचित लड़कियों को सेक्स का आनंद उपलब्ध करवाने की। कहने का तात्पर्य यह है कि इस तरह की जो यौन-कुंठा होती है वो जबर्दस्ती की यौन-कुंठा होती है और इसे मानसिक बीमारी की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। मैं मानता हूँ कि सेक्स मानव के लिए जरूरी होता है लेकिन एक सीमा तक ही। सेक्स जीवन के लिए जरूरी जरूर होता है लेकिन सेक्स जीवन तो नहीं हो सकता। यह मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य तो नहीं हो सकता। आयुर्वेद के अनुसार मानव को स्वस्थ जीवन के लिए संतुलित मात्रा में निद्रा,मैथुन और आहार का सेवन करना चाहिए। इसलिए मेरी समझ में न तो इनका पूर्ण परित्याग ही उचित है और न तो सिर्फ इनके लिए ही जीना अथवा इनको अपने जीवन का पर्याय बना लेना। मैं समझता हूँ कि जीवन जीने के लिए मध्यम मार्ग सर्वोत्तम मार्ग था और है। कहा भी गया है कि-अति रूपेण हृते सीता,अति गर्वेणहतः रावणः,अति दानात्बद्ध्यो बलि,अति सर्वत्र वर्जयेत्। अति चाहे किसी भी चीज की हो कभी अच्छी नहीं होती।
मित्रों,हमारे समाज में हमारे पूर्वजों द्वारा हर चीज का एक वक्त निर्धारित है,व्यक्ति निर्धारित है और स्थान निर्धारित है। प्रत्येक काम तभी अच्छा लगता है जब उसका समय उचित हो,उसके लिए व्यक्ति नीतिसम्मत हो और उस काम को सही स्थान पर अंजाम दिया जाए। सेक्स से संबंधित बातें करने के लिए और सेक्स करने के लिए जब भगवान ने आपको जीवन साथी दिया ही है तो फिर आप समाज में क्यों गंध फैला रहे हैं? हर चीज की,हर संबंध की एक मर्यादा होती है। मैं नहीं जानता कि पटनावाले पांडे जी से श्री नीरेंद्र नागर जी का चरित्र कहाँ तक मिलता है लेकिन इतना तो निश्चित है कि नागर जी भी कुछ-न-कुछ उसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं जिससे कि पांडेजी ग्रस्त थे।
मित्रों,आचार्य चाणक्य ने कहा है कि काम (सेक्स) से बड़ी कोई बीमारी नहीं होती। अन्य बीमारियाँ तो जीवित व्यक्तियों को मारती हैं परन्तु यह रोग तो मरे को भी मारता है। चूँकि यह एक मानसिक बीमारी है इसलिए इस जबर्दस्ती की यौन-कुंठा का ईलाज भी मनोवैज्ञानिक ही हो सकता है। इस रोग के रोगियों को चाहिए कि वे अपने मन पर नियंत्रण पाने का कठोर अभ्यास करें। मन तो रस्सी में बंधे जानवर की तरह होता है इसलिए इसके लिए रस्सी (नियंत्रण) भी मजबूत चाहिए अन्यथा वह कभी भी रस्सी को तोड़ डालेगा और दूसरों के खेतों में घुस जाएगा। फिर क्या परिणाम हो सकता है यह आपलोग भी जानते हैं। मन पर नियंत्रण के लिए वे चाहें तो जैन ग्रंथों का गहरा अध्ययन कर सकते हैं या फिर किसी योग्य जैन मुनि से संपर्क कर उनके निर्देशन में मन को साधने का अभ्यास भी कर सकते हैं। अगर फिर भी काम वश में न आए तो आप किसी मनोचिकित्सक से भी परामर्श ले सकते हैं। हाँ,वे यह सब तभी करें जब उनमें मन को साधने की दृढ़ ईच्छा हो,सच्ची लगन हो अन्यथा मैंने कई शराबियों को कई-कई महीने पुनर्वास-गृहों में रहने पर भी शराब को नहीं छोड़ते भी देखा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें