अफजल गुरू जेहाद का फल था जड़ नहीं
मित्रों,आज सुबह संसद हमले के आरोपी अफजल गुरू को तिहाड़ जेल में फाँसी दे दी गई। कुछ भारतीय खुश हो रहे हैं कि एक आतंकवादी को उसके अंजाम तक पहुँचा दिया गया। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या उसे फाँसी दे देने से आतंकवाद की सेहत पर कोई बुरा असर पड़ेगा भी? मैं नहीं समझता कि इससे आतंक की फसल सूख जाएगी या मुरझा जाएगी बल्कि इससे कदाचित् आतंकवाद को बढ़ावा ही मिलेगा। कश्मीर में जो कुछ भी होता रहा है और आगे भी जो कुछ होनेवाला है उसके लिए हम भी दोषी हैं,नेहरू जैसे हमारे राजनीतिक पूर्वज भी दोषी हैं लेकिन सबसे ज्यादा कोई अगर दोषी है तो वह है इस्लाम। वो इस्लाम जो दुर्भाग्यवश 21वीं सदी में भी हजरत मुहम्मद के काल का बना हुआ है। वो इस्लाम जो कथित रूप से अपनी स्थापना के समय से ही लगातार खतरे में है। वो इस्लाम जो आज भी दूसरे धर्म-संप्रदायों के विचारों का सम्मान करना नहीं जानता और जबर्दस्ती उनको इस्लाम अपनाने को बाध्य करना चाहता है। वो इस्लाम जिसके एक हाथ में कुरान था और है और दूसरे हाथ में तलवार था और है। वो इस्लाम जो आजकल फिर से सूफीज्म को छोड़कर कट्टरपंथी होता जा रहा है। एक बार तो इस्लाम भारत का विभाजन करवा ही चुका है अब उससे पूछना चाहिए कि हिन्दुस्तान के भीतर से उसे और कितने पाकिस्तान चाहिए?
मित्रों, मैं यह भी पूछता हूँ कि क्या भारत और पूरी दुनिया के इस्लाम को गतिशील नहीं होना चाहिए? क्या उसमें समय के साथ सार्थक परिवर्तन नहीं होना चाहिए? अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर इस्लाम कैसे अन्य धर्म-संप्रदायों के साथ मिलकर विकास के रास्ते पर कदमताल कर पाएगा? क्या कश्मीर की धरती और संस्कृति पर उन हिन्दू पंडितों का भी बराबर का हक नहीं था या है जिनको अनुदार इस्लाम ने वहाँ से डरा-धमकाकर भगा दिया? हम आए दिन देखते हैं कि भारत के मुस्लिम उलेमा किसी-न-किसी बात पर फतवा जारी करते रहते हैं। उनको भारतीय कानून के समानान्तर अपनी सत्ता चलाने का अधिकार किसने दिया और इसका औचित्य क्या है? क्या यह एक किस्म की रंगदारी या गुंडागर्दी नहीं है और इन पर कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? क्या मुसलमानों पर भी देश का कानून बिना भेदभाव के लागू नहीं होना चाहिए? अभी कल-परसों ही कश्मीर के मुफ्ती ने कश्मीरी लड़कियों के बैंड को प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि इससे इस्लाम धर्म को खतरा था। मैं यह नहीं समझ पाया हूँ कि यह कैसा धर्म है जो हमेशा खतरे में रहता है। मैं पूछता हूँ कि क्या वह इस्लाम जिसके अनुयायी पूरी दुनिया में दो अरब के करीब हैं,इतना कमजोर धर्म है जो लड़कियों के बैंड खोलने,उनके स्कूल-कॉलेज जाने या किसी फिल्म के रिलीज होने से या किसी पुस्तक के प्रकाशित होने से खतरे में पड़ जाता है? क्या यह धर्म सन् 613 ई. में ही फ्रिज होकर नहीं रह गया है? क्या आज के समाज को छठी-सातवीं सदी के समाज के नियमों से संचालित करने का प्रयास करना समय की गति को जबरन रोकने जैसा नहीं है? क्या कोई व्यक्ति या धर्म-संप्रदाय समय की गति को रोक सकता है? सवाल तो यह भी उठता है कि अगर कोई धर्म या संप्रदाय विकास की राह में कदमताल करना चाहे ही नहीं तो कैसे कोई सरकार उसका भला कर सकती है या उसकी गरीबी और पिछड़ेपन को दूर कर सकती है? मेरे शिक्षक श्री गजेंद्र बाबू कहा करते थे कि यू कैन ब्रिंग द हॉर्स टू द पौण्ड बट यू कैननॉट कमपेल हिम टू ड्रिंक वाटर।
मित्रों,अगर हमें विकसित कश्मीर चाहिए और और अफजल गुरू नहीं चाहिए तो हमें वहाँ के साथ-साथ पूरे भारत के इस्लाम को सुधारना पड़ेगा। उसे नए जमाने से जोड़ना पड़ेगा,ऐसे विचारों की शिक्षा देनी पड़ेगी जिससे वहाँ के मुसलमान सभी धर्मों को समादर देना सीखें। इस राह में अगर कोई कट्टरपंथी या उलेमा बाधा बनता है तो उनके साथ भी सख्ती से पेश आना होगा। दरअसल अफजल गुरू समस्या का फल है जड़ नहीं। जड़ है इस्लाम में लगातार बढ़ती कट्टरता। हमें जड़ को काटना पड़ेगा और उसके कट जाने के बाद उसमें मट्ठा डालना पड़ेगा। यह काम सिर्फ बंदूक के बल पर नहीं हो पाएगा। इसके लिए बल-प्रयोग के साथ-साथ प्यार से भी काम लेना पड़ेगा। धारा 370 को समाप्त करना पड़ेगा,समान सिविल संहिता को लागू करना पड़ेगा तब जाकर मिटेगा कश्मीर और पूरे भारत से इस्लामी आतंकवाद। जब तक धारा 370 है कश्मीरी जनमानस भारत में रहकर भी भारत से अपने-आपको एकीकृत नहीं कर पाएगा और उनके मन में हमेशा अलगाव की भावना बनी रहेगी। इसी तरह समान नागरिक संहिता को लागू करने से कश्मीर सहित पूरे भारत के मुसलमानों का कानूनी अलगाव समाप्त हो सकेगा। सभी भारतीयों के लिए एक कानून होगा और तभी सबके-सब कानून की नजर में बराबर भी हो सकेंगे। आज के भारत को मनमोहन सिंह या नेहरू नहीं बल्कि सरदार पटेल चाहिए और भारतीय मुसलमानों को चाहिए मुस्तफा कमाल पाशा न कि सलमान खुर्शीद या अकबरूद्दीन। अगर ऐसा हो सका तो कोई कारण नहीं कि कश्मीर सहित पूरे भारत से जेहादी आतंकवाद समूल समाप्त हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो स्वतः हिन्दू कट्टरवाद के अंकुर भी मुरझा जाएंगे क्योंकि हिन्दू कट्टरवाद स्वतःस्फूर्त नहीं है इस्लामी कट्टरवाद की प्रतिक्रिया में है।
2 टिप्पणियां:
That is really attention-grabbing, You are an excessively
skilled blogger. I've joined your feed and sit up for seeking extra of your fantastic post. Also, I've shared your web site in my social networks
Here is my web blog Buy a Car with bad credit
Here is my webpage ; buying a car with bad credit,buy a car with bad credit,how to buy a car with bad credit,buying a car,buy a car,how to buy a car
Saved as a favorite, I like your blog!
Here is my page; buy a car with bad Credit
Also visit my page :: buying a car with bad credit,buy a car with bad credit,how to buy a car with bad credit,buying a car,buy a car,how to buy a car
एक टिप्पणी भेजें