मुख्यमंत्री ने उसकी मांग को ध्यान से सुना और डीजीपी को कार्रवाई करने को कहा। पुलिस ने मामले के अनुसंधान पदाधिकारी को निलंबित भर कर दिया और अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली। दो बलात्कारियों की गिरफ्तारी हुई तो पूरा गांव थाने पर चढ़ बैठा उनके समर्थन में। क्या यह संकेत नहीं है हमारे गांवों के नैतिक पतन का? पहले तो गांवों में अपराधियों को बहिष्कृत कर देने की प्रथा थी।
स्थानीय विधायक सतीश कुमार कहते हैं कि अपराधी दूसरे क्षेत्रों से आए हुए लोग थे। अगर ऐसा था तो फिर उनको गांववालों का साथ कैसे मिल गया? राजदेव को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी किसकी थी? पुलिस ने समुचित कदम क्यों नहीं उठाया? हथियार का लाइसेंस अगर दे दिया गया होता तो राजदेव अपनी रक्षा स्वयं कर लेते। क्यों उनको लाइसेंस नहीं दिया गया? क्या बिना घूस लिए पुलिस-प्रशासन किसी को भी लाइसेंस नहीं देती है? जब किसी को राज्य का मुख्यमंत्री भी सुरक्षा नहीं दिला सकता तो फिर कोई जरुरतमंद किससे उम्मीद रखेगा? क्या मतलब है मुख्यमंत्री के जनता दरबार का? इन परिस्थितियों में क्या अब कोई राजदेव बनने की हिमाकत करेगा भी? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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