बुधवार, 28 मई 2014

70 सालों तक विद्वानों के शिक्षा मंत्री रहते हुए भी देश में शिक्षा की स्थिति बुरी क्यों है?

28 मई,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों देश में बेवजह की बहस छिड़ी हुई है। बहस इस बात को लेकर चल रही है कि भारत के प्रधानमंत्री को एक इंटर पास महिला को भारत का शिक्षा मंत्री नहीं बनाना चाहिए था। लगता है जैसे स्मृति ईरानी को पढ़ाई का इंतजाम नहीं करना है बल्कि किसी विश्वविद्यालय में जाकर पढ़ाना है। मेरे चाचा बिल्कुल अनपढ़ हैं लेकिन किसी इंतजाम में लगा दीजिए तो वो ऐसा इंतजाम करते हैं कि जैसा कोई पीएचडी भी नहीं कर सकता। मेरे एक चचेरे दादाजी जो काफी कम पढ़े-लिखे थे शकुंतला देवी से भी ज्यादा तेजी में गणित की बड़ी-बड़ी गणनाओं को संपन्न कर दिया करते थे।
मित्रों,पिछले 70 सालों में भारत में एक-से-एक विद्वान इस पद को सुशोभित कर चुके हैं लेकिन फिर भी भारत में शिक्षा की स्थिति दयनीय है। क्या स्मृति जी की योग्यता पर सवाल उठानेवाले बंधु बता सकते हैं कि ऐसा क्यों है? क्या शिक्षा मंत्री बनने के लिए विदेश से हाई डिग्रीधारी बेईमान या चोर होना जरूरी है?  पिछले 5 सालों में कपिल सिब्बल ने शिक्षा के क्षेत्र को क्या दिया है सिर्फ शिक्षा के अधिकार के नामवाला कागजी अधिकार देने के सिवाय? ऐसे पढ़े-लिखे धूर्त से तो स्मृतिजी बेहतर ही हैं। वे पूरी तरह से अनपढ़ तो हैं नहीं कि हिन्दी और अंग्रेजी फाइलों को समझ ही नहीं पाएं। तीव्र प्रतिउत्पन्नमतित्व से संपन्न हैं,मेहनती हैं,देशभक्त और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वे ईमानदार भी हैं। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है इसलिए वे हर तरह की चुनौतियों से बेहतर निपट सकती हैं।
मित्रों,अगर हम मुगल काल के इतिहास में झाँके तो हम पाते हैं कि इस काल में दो बड़े बादशाह हुए अकबर और औरंगजेब। अकबर पूरी तरह से अनपढ़ था फिर भी इतना सफल शासक साबित हुआ कि इतिहास ने उसे अकबर महान के विशेषण से विभूषित कर दिया। दूसरी तरफ औरंगजेब महाविद्वान था लेकिन वह उतना ही असफल सिद्ध हुआ। उसकी अव्यावहारिक नीतियों ने मुगल सल्तनत की चूलें हिला दीं। इसी तरह आज जिन कबीर के लिखे दोहों और साखियों को एमए तक में पढ़ा-पढ़ाया जाता है वे पूरी तरह से अनपढ़ थे। इसी तरह सत्य यह भी है कि मानव इतिहास के सबसे बड़े वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कभी स्कूली शिक्षा ली ही नहीं थी और उनका दिमाग आज भी रिसर्च के लिए संभालकर रखा गया है। इसी तरह महाकवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जिनकी कविता राम की शक्ति पूजा को विश्व साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त है और जिन्होंने विवेकानंद साहित्य का अंग्रेजी से हिन्दी में अभूतपूर्व अनुवाद भी किया है और जिनके ऊपर लाखों बच्चे शोध कर चुके हैं मैट्रिक पास भी नहीं थे। इतना ही नहीं आधुनिक युग के एकमात्र हिन्दी महाकाव्य कामायनी के रचयिता जयशंकर प्रसाद भी नन मैट्रिक थे। इसी तरह हिन्दी सिनेमा के शो-मैन राजकपूर भी नन मैट्रिक थे।
मित्रों,क्या अब भी वे भाई लोग यही कहेंगे कि प्रतिभा डिग्री की मोहताज होती है? फिर अपने देश में तो डिग्रियाँ बिकती भी हैं। कई पीएचडी धारक एक आवेदन तक नहीं लिख पाते। ज्यादा पढ़े-लिखे तो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं हैं तो क्या वे मनमोहन सिंह जी से कम योग्य हैं? मनमोहन सिंह विदेश से पीएचडी प्राप्त व्यक्ति थे उन्होंने देश को क्या दिया? अगर डिग्री ही सबकुछ होता है तब तो भारत के तमाम आईआईएम को नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार के इंतजामों का अध्ययन करने के लिए उनके पीछे नहीं भागना चाहिए था। फिर वे भाग क्यों रहे हैं? पिछले दो दिनों में मोदी ने जितना अच्छा काम किया है,एक ही दिन में उन्होंने जिस तरह नौ-नौ राष्ट्राध्यक्षों से वार्ता की क्या उसके लिए जरूरी योग्यता को किताबों को पढ़कर प्राप्त किया जा सकता है? क्या कोई हार्वर्ड का पीएचडी धारी निराला,कबीर,आइंस्टीन,प्रसाद बन सकता है? लाल बहादुर शास्त्री ने तो विदेश में पढ़ाई नहीं की थी फिर उन्होंने अपने दो सालों के छोटे से शासन ने भारत को वह सब कैसे दे दिया जो विदेश में पढ़े नेहरू 17 साल में भी नहीं दे सके।
मित्रों,इसलिए सवा सौ करोड़ भारतीय से विनम्र निवेदन है कि वे कृपया इस तरह का बेवजह का शरारतपूर्ण विवाद खड़ा नहीं करें। हमने कांग्रेस के महायोग्य मंत्रियों की महायोग्यता को पिछले 8 सालों तक देखा है और झेला है। कौन-सा मंत्री योग्य है और कौन-सा अयोग्य इसका निर्णय जनता पर छोड़िए और उनको चैन से 60 महीने तक काम करने दीजिए। जनता 60 महीने बाद खुद ही उनकी योग्यता पर अपना फैसला सुना देगी ठीक वैसे ही जैसे आपलोगों के बारे में सुनाया है और आपलोगों को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा पाने के लायक भी नहीं समझा है।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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