हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कल न जाने क्यों 3 बजे
दोपहर में मेरे मोहल्ले की बिजली चली गई और आई तो साढ़े चार बज रहे थे। इसी
बीच मुझे फेसबुकिया दोस्तों से मालूम हुआ कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार ने इस्तीफा दे दिया है। यकीन ही नहीं हुआ लेकिन जब इंटरनेट पर ढूंढ़ा
तो पता चला कि यही सच है। फिर 5 बजे नीतीश कुमार ने संवाददाता सम्मेलन
किया और कहा कि हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए वे इस्तीफा देते हैं।
उन्होंने जनता के विवेक पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हुए कहा कि बिहार में मतदान
सांप्रदाय़िक ध्रुवीकरण के आधार पर हुआ है जिससे वे क्षुब्ध हैं। उन्होंने
यह भी बताया कि कल 4 बजे शाम में जदयू विधायक दल की बैठक होगी। मन में कई
तरह के कयास जन्म लेने लगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जिसने बिहार के
मुख्यमंत्री को इस्तीफी देने पर मजबूर कर दिया क्योंकि मैं नहीं मानता कि
इन कथित नमाजवादियों के पास थोड़ी-सी भी नैतिकता बची हुई है जिसके आधार पर
ये इस्तीफा दें। तभी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडे टीवी पर प्रकट हुए
और नीतीश के पद-त्याग को कोरा नाटक करार दे दिया। झारखंड भाजपा नेता सीपी
सिंह ने तो कह भी दिया कि इनके पास नैतिकता है ही नहीं तो फिर ये कैसे
नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे सकते हैं।
मित्रों,इसके बाद टीवी पर दिखाई दिए जदयू के ऱाष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और दावा कर गए कि कल उनके फैसलों से सभी चौंक जाएंगे। साथ ही उन्होंने कथित धर्मनिरपेक्षता की प्राण-रक्षा की खातिर अपने चिर शत्रु रहे लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाने का दावा किया। उधर लालू जी ने भी उनकी तरफ बढ़े हुए मजबूरी की दोस्ती के बढ़े हुए इस हाथ को झटका नहीं दिया और थाम लेने के संकेत दिए।
मित्रों,लेकिन इस नाटक पर से पर्दा उठा दिया जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने। त्यागी जी से जब पूछा गया कि क्या कल नीतीश जी की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को नेता चुना जाएगा तो उन्होंने कहा कि ऐसा संभव ही नहीं है। नीतीश हमारे सर्वमान्य नेता हैं। उन्होंने एनडीए को चुनौती दी कि हम उनको 24 घंटे का समय देते हैं इस बीच अगर उनके पास बहुमत है तो सरकार बना लें। अब कोई रहस्य नहीं रह गया था,सबकुछ सामने था। स्पष्ट हो चुका था कि नीतीश जी यह इस्तीफा उसी तरह से दिया गया इस्तीफा था जिस तरह कि उन्होंने कभी रेल मंत्री के पद से दिया था। तब उन्होंने इस्तीफे को सीधे राष्ट्रपति को नहीं भेजकर प्रधानमंत्री को भेज दिया था जिन्होंने स्वाभाविक तौर पर उनके त्याग-पत्र को नामंजूर कर दिया था। इसलिए नीतीश कुमार के पुराने रिकार्ड को देखते हुए संभावना तो यही है कि आज फिर से विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार जी खुद को नेता चुनवाएंगे और फिर से मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेंगे। देवा रे देवा इतनी हेराफेरी! नीतीश जी जितना नाटक करना है करिए लेकिन जनता के विवेक पर सवाल खड़े नहीं करिए। अवसर आपके लिए भी खुले हुए थे। आपने क्यों जनता को अपनी तरफ नहीं कर लिया? नरेंद्र मोदी ने तो कहीं सांप्रदायिकता की बात ही नहीं की फिर जनता ने कैसे सांप्रदायिक बहकावे में आकर मतदान कर दिया? आप हार चुके हैं,हारना भी सीखिए और हार को पचाना भी। जनता आपको भी समझ रही है और आपके नाटकों को भी जो आप पिछले 8 सालों से बिहार के रंगमंच पर खेल रहे हैं। मिला लीजिए जंगलराज के डाइरेक्टर लालू जी से भी हाथ और फिर भी करते रहिए नैतिक होने का ढोंग।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,इसके बाद टीवी पर दिखाई दिए जदयू के ऱाष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और दावा कर गए कि कल उनके फैसलों से सभी चौंक जाएंगे। साथ ही उन्होंने कथित धर्मनिरपेक्षता की प्राण-रक्षा की खातिर अपने चिर शत्रु रहे लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाने का दावा किया। उधर लालू जी ने भी उनकी तरफ बढ़े हुए मजबूरी की दोस्ती के बढ़े हुए इस हाथ को झटका नहीं दिया और थाम लेने के संकेत दिए।
मित्रों,लेकिन इस नाटक पर से पर्दा उठा दिया जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने। त्यागी जी से जब पूछा गया कि क्या कल नीतीश जी की जगह किसी दूसरे व्यक्ति को नेता चुना जाएगा तो उन्होंने कहा कि ऐसा संभव ही नहीं है। नीतीश हमारे सर्वमान्य नेता हैं। उन्होंने एनडीए को चुनौती दी कि हम उनको 24 घंटे का समय देते हैं इस बीच अगर उनके पास बहुमत है तो सरकार बना लें। अब कोई रहस्य नहीं रह गया था,सबकुछ सामने था। स्पष्ट हो चुका था कि नीतीश जी यह इस्तीफा उसी तरह से दिया गया इस्तीफा था जिस तरह कि उन्होंने कभी रेल मंत्री के पद से दिया था। तब उन्होंने इस्तीफे को सीधे राष्ट्रपति को नहीं भेजकर प्रधानमंत्री को भेज दिया था जिन्होंने स्वाभाविक तौर पर उनके त्याग-पत्र को नामंजूर कर दिया था। इसलिए नीतीश कुमार के पुराने रिकार्ड को देखते हुए संभावना तो यही है कि आज फिर से विधायक दल की बैठक में नीतीश कुमार जी खुद को नेता चुनवाएंगे और फिर से मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेंगे। देवा रे देवा इतनी हेराफेरी! नीतीश जी जितना नाटक करना है करिए लेकिन जनता के विवेक पर सवाल खड़े नहीं करिए। अवसर आपके लिए भी खुले हुए थे। आपने क्यों जनता को अपनी तरफ नहीं कर लिया? नरेंद्र मोदी ने तो कहीं सांप्रदायिकता की बात ही नहीं की फिर जनता ने कैसे सांप्रदायिक बहकावे में आकर मतदान कर दिया? आप हार चुके हैं,हारना भी सीखिए और हार को पचाना भी। जनता आपको भी समझ रही है और आपके नाटकों को भी जो आप पिछले 8 सालों से बिहार के रंगमंच पर खेल रहे हैं। मिला लीजिए जंगलराज के डाइरेक्टर लालू जी से भी हाथ और फिर भी करते रहिए नैतिक होने का ढोंग।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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