शनिवार, 13 दिसंबर 2014

'घरवापसी' पर हंगामा क्यों?

13 दिसंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यकीन मानिए कि लेखन के लिए धर्म मेरा प्रिय विषय नहीं है लेकिन जब धर्म के नाम पर अधर्म बढ़ने लगे तो फिर लिखना ही पड़ता है। अभी-अभी हमने देखा कि आगरा में चंद मुसलमानों को हिन्दू बना दिया गया है और इस समारोह को नाम दिया गया घरवापसी। न जाने क्यों इस घटना के सामने आते ही देश की कथित धर्मनिरपेक्ष जमात बुरी तरह से तिलमिला उठी है जैसे कि कोई कुत्ते की पूँछ पर पेट्रोल डाल दे या फिर बंदर की पूँछ कुचल दे।
मित्रों,आश्चर्य है कि जब हिन्दू हजारों की संख्या में लालच,दबाव या प्राण पर संकट आने पर किसी दूसरे धर्म को अपनाते हैं तब देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को किसी भी तरह का कोई खतरा नहीं होता लेकिन जब कोई इक्का-दुक्का ऐसा मुसलमान या ईसाई जो स्वयं जन्मना हिन्दू था या जिनके पूर्वज हिन्दू थे फिर से हिन्दू समाज में वापसी करते है तब भारत में धर्मनिरपेक्षता खतरे में आ जाती है! यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है जो प्रत्येक मामले में हिन्दुओं और अन्य धर्माम्बलंबियों के बीच भेदभाव करती है?
मित्रों,इतिहास गवाह है कि भारत ही नहीं काबुल तक के ईलाके में सनातन-धर्मी हिंदू-ही-हिंदू रहते थे। यह भी सही है कि हिन्दुओं में मध्यकाल में ऊँच-नीच और छुआछुत की कुरीति शर्मनाक स्तर तक बढ़ गई थी जिससे आहत होकर बहुत-से हिन्दू मुसलमान बन गए। साथ ही सत्य यह भी है कि बहुत सारे हिन्दुओं को तलवार के बल पर मुसलमान बनने पर बाध्य किया गया। गजनवी,गोरी,तैमूर,नादिरशाह,अब्दाली,खिलजी के साथ भारत आए इतिहासकारों के विवरण इस बात के प्रमाण हैं कि भारत के विभिन्न शहरों में हिन्दू पुरुषों के मुंडों के पहाड़ खड़े कर दिए गए,बच्चों को हवा में उछालकर भालों से बींध दिया गया और स्त्रियों को अरब देशों में ले जाकर बाजार में ठीक उसी तरह से खुलेआम नीलाम कर दिया गया जैसे कि इन दिनों कुर्द व यजीदी महिलाओं को आईएसआईएस के इस्लामिक वीर कर रहे हैं।
मित्रों,गुरू तेगबहादुर को इसलिए बलिदान देना पड़ा क्योंकि उन्होंने औरंगजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों पर किए जा रहे अत्याचार का विरोध किया। अगर कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को मारा और सताया नहीं गया होता तो आज भी कश्मीर हिन्दू-बहुल होता। गुरू गोविन्द सिंह के मासूम बच्चों को दीवार में इसलिए चुनवा दिया गया क्योंकि वे मुसलमान बनने के लिए राजी नहीं हुए।
मित्रों,आज जबकि स्थितियाँ बदल गई हैं। आज हिन्दू समाज में जातिगत भेदभाव न के बराबर रह गया है और न ही हिन्दुओं को हिन्दू होने के चलते जान से हाथ धोने का भय है तो फिर अगर कोई पूर्व हिन्दू मुसलमान या इसाई फिर से हिन्दू बनना चाहता है तो इससे किसी को भी क्यों ऐतराज हो? जब हिन्दू किसी अन्य धर्म को अपनाता है तब तो किसी को भी ऐतराज नहीं होता,क्यों?
मित्रों,स्वयं राष्ट्रपिता गांधी ने इसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं को लालच देकर या बहला-फुसलाकर,झूठ बोलकर इसाई बनाने की जमकर भर्त्सना की है और ऐसा आदिवासी हिन्दुओं के साथ तो आज भी किया जा रहा है इसलिए जरुरत इस बात की है कि गलत तरीके से किए जानेवाले धर्मान्तरण को रोकने के लिए कड़े कानूनी प्रावधान किए जाएँ। केंद्र सरकार इसके लिए तैयार भी दिखती है। तो क्या भारत के छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी लोग इस पुनीत कार्य में सरकार का साथ देने के लिए तैयार हैं?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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