28 दिसंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कल वैशाली जिले के महान
समाजवादी नेता मुंशीलाल राय का निधन हो गया। आज बहुत से लोग उनको याद कर
रहे हैं। मैं ठहरा एक छोटा और आम आदमी सो मैं उनको इसी रूप में याद करूंगा।
मुंशीलाल जी का नाम मैंने पहली बार 80 के दशक में सुना मेरे ननिहाल
जगन्नाथपुर जो कि बासुदेवपुर चंदेल और महनार रोड रेलवे स्टेशन के पास है
में। तब अक्सर उनके बारे में लोग बातें करते। उनकी शिकायत रहती कि बगल के
गोरीगामा गांव में तो मुंशीलाल जी जो तब महनार के विधायक थे गली-गली में
सड़कें बनवा रहे हैं लेकिन जगन्नाथपुर जो कि राजपूतों का गांव था में वोट
मांगने भी नहीं आते।
मित्रों,इसके बाद आया 1985 का चुनाव। चूँकि कांग्रेस प्रत्याशी प्रो. मिथिलेश्वर प्रसाद सिंह मेरे पिताजी के स्नेहिल थे इसलिए अक्सर हमारे दरवाजे पर जमे रहते। मगर जब मतदान शुरू हुआ तो मेरे मामा शोकहरण प्रसाद सिंह के दबाव में गांववालों ने मुनीश्वर प्रसाद सिंह को वोट दे दिया जो वोटकटवा की भूमिका में थे। परिणाम यह हुआ कि मुंशीलाल जी 2-ढाई हजार मतों से जीतकर फिर से विधायक बन गए। मगर इस बार भी उनका रवैय्या वही था कि वे सिर्फ अवर्णों के पास मत मांगने गए और सवर्णों से दूरी बनाए रखी।
मित्रों,फिर 1990 के चुनाव में उनको महनार से टिकट ही नहीं मिला। पार्टी की अंदरूनी राजनीति के चलते हाजीपुर से मिला था मगर वे चौथे स्थान पर रहे। कहा जाता है कि लालू जी मुंशीलाल जी से डरते थे कि कहीं मुंशीलाल जी चुनावों के बाद मुख्यमंत्री न बन जाएँ। 1990 के बाद बिहार में जातीय युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए जिससे महनार भी अछूता नहीं रहा। महनार बाजार में 1992 में मुक्तियारपुर के मुखिया प्रह्लाद सिंह की हत्या हो गई जिसमें महनार के बनियों का भी नाम आया। तब बनिए आरक्षण के नाम पर पिछड़ी जातियों के साथ एकजुट थे। मगर जल्दी ही हालत बदल गई। यादव जाति के दो अपराधियों देशराजपुर के नागेश्वर राय और चकेसो के राजगीर राय ने महनार में अपहरण को उद्योग का रूप दे दिया और धीरे-धीरे स्थिति इतनी खराब हो गई कि दिन ढलते-ढलते बाजार बंद हो जाता। जब भी महनार से हाजीपुर आने-जानेवाली बसों को चकौसन,चेचर या खिलवत में रोका जाता तो लोग समझ जाते कि महनार के किसी तेली-कलवार या बढ़ई का अपहरण हो गया। रात में राजगीर राय घोड़े पर सवार होकर महनार बाजार में निकलता तो महनार के तेली-कलवार और सुनार कथित रूप से रास्तों पर थालियों में रुपये और सोना-चांदी लेकर खड़े रहते। अब तक मुंशीलाल जी समाजवाद भूलकर अन्य यादव नेताओें की तरह जातिवादी हो चुके थे और महनार के लोगों का मानना था कि अपहर्ताओं को मुंशीलाल का वरदहस्त प्राप्त था।
मित्रों,इसी माहौल में 1995 का विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार मुंशीलाल जी महनार से जनता दल के उम्मीदवार थे। बक्से से जिन्न निकला और वे जीत गए। जीतने के बाद उन्होंने अपने संरक्षक शरद यादव जी के यहां लॉबिंग की कि उनको नई सरकार में मंत्री बनाया जाना चाहिए। शरद यादव जी जब मुंशीलाल जी को साथ में लेकर लालू जी के यहाँ पहुँचे तो उनके साथ महनार के उनके कई समर्थक भी थे जिनमें से किसी ने हमें बताया था कि लालू जी ने शरद जी से तब कहा था कि हमने 13 को 39 कर दिया अब मंत्री भी बना दें? यानि 13 हजार मत को 39 हजार कर दिया अब मंत्री कैसे बना दें? लेकिन बाद में जब जनता दल का विभाजन हुआ तो मजबूरन लालू जी को मुंशीलाल जी को मंत्री बनाना ही पड़ा। अभी भी महनार में नागेश्वर राय और राजगीर राय का आतंकराज जारी था।
मित्रों,मुंशीलाल जी को इस बार कुछ नए चेले मिल गए थे। उनमें से सबसे बड़ा नाम था महनार के इशहाकपुर के बंधुद्वय बच्चू राय और शंभू राय का। दोनों भाई ठेकेदार थे और छँटे हुए बदमाश भी। मुंशीलाल जी के कथित इशारे पर उनके चेलों ने पहले लावापुर के चंद्रशेखर राय की और बाद में महनार बाजार के ही रामपुकार सिंह की हत्या कर दी। उस कालखंड का एक वाकया मुझे आज भी याद है। एक बार डीएम साहब महनार में नाली-निर्माण का निरीक्षण कर रहे थे। महनार के महान समाजवादी और कर्पूरी ठाकुर के मित्र रहे सत्यनारायण दिवाकर जी भी साथ में थे। दिवाकर जी ने कहा कि अगर मैं जोर से पेशाब कर दूँ तो यह नाली बह जाएगी। डीएम साहब ने ठेका रद्द कर दिया। बाद में बच्चू और शंभू राय ने सत्यनारायण दिवाकर जी को उनकी उम्र का ख्याल किए बिना न सिर्फ अपमानित किया बल्कि जमकर पीटा भी। मुझे आज भी चलचित्र की तरह याद है कि रामपुकार सिंह की प्रतिमा का अनावरण हो रहा था और अनावरण करने के लिए बिहार सरकार में पीएचडी मंत्री मुंशीलाल राय जी मंच पर मौजूद थे। तभी सत्यनारायण दिवाकर जी ने माईक संभाली और कहा कि मंत्रीजी बड़े ही दयालु हैं। पहले तो हत्या करवाते हैं,फिर अपने फंड से मूर्ति बनवाते हैं और अपने हाथों से अनावरण भी करते हैं। फिर तो मुंशीलाल जी को जनता के इतने तीखे विरोध का सामना करना पड़ा कि उन्होंने निकल भागने में ही अपनी भलाई समझी। यह बात अलग है कि इसके बाद दिवाकर जी कई दिनों तक घर से बाहर ही नहीं निकले।
मित्रों,इसी बीच पहले नागेश्वर राय और फिर बाद में राजगीर राय की हत्या हो गई। मौके की नजाकत को समझते हुए अब मुंशीलाल जी सवर्णों के गांवों में भी आने-जाने लगे। जगन्नाथपुर में भी उन्होंने स्टेट बोरिंग की स्थापना करवाई। यह बात अलग है कि आज तक बोरिंग ने पानी देना शुरू नहीं किया है। फिर आया साल 2000 का चुनाव और इस बार मुंशीलाल जी रामा सिंह से 40000 मतों के भारी अंतर से पराजित हो गए। इसी के साथ उनके राजनैतिक जीवन का लगभग अंत हो गया और इसके बाद वे लगातार चुनावों में हारते रहे।
मित्रों,मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूँ कि मैं एक आम आदमी था और आज भी हूँ इसलिए मैं उसी रूप में मुंशीलाल जी याद करूंगा। खास रहता तो उनके बारे में खास बातें बताता। दरअसल मेरी नजर में मुंशीलाल जी समाजवादी कम जातिवादी ज्यादा थे। लालू युग से पहले भी वे सवर्णों से दूरी रखते थे। शायद उनकी दृष्टि में ऐसा करना ही समाजवाद था। बाद में उन्होंने अपराधियों को जमकर संरक्षण दिया। कथित रूप से दो-चार हत्याएँ भी करवाईं शायद यह भी उनका समाजवाद ही था। अगर हम दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि आज लालू-मुलायम-नीतीश-शरद आदि का समाजवाद भी तो वही समाजवाद है जो मुंशीलाल जी का समाजवाद था। वैसे आप क्या समझते हैं कि मुंशीलाल जी का भटकाव समाजवादियों का भटकाव था या स्वयं समाजवाद का?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,इसके बाद आया 1985 का चुनाव। चूँकि कांग्रेस प्रत्याशी प्रो. मिथिलेश्वर प्रसाद सिंह मेरे पिताजी के स्नेहिल थे इसलिए अक्सर हमारे दरवाजे पर जमे रहते। मगर जब मतदान शुरू हुआ तो मेरे मामा शोकहरण प्रसाद सिंह के दबाव में गांववालों ने मुनीश्वर प्रसाद सिंह को वोट दे दिया जो वोटकटवा की भूमिका में थे। परिणाम यह हुआ कि मुंशीलाल जी 2-ढाई हजार मतों से जीतकर फिर से विधायक बन गए। मगर इस बार भी उनका रवैय्या वही था कि वे सिर्फ अवर्णों के पास मत मांगने गए और सवर्णों से दूरी बनाए रखी।
मित्रों,फिर 1990 के चुनाव में उनको महनार से टिकट ही नहीं मिला। पार्टी की अंदरूनी राजनीति के चलते हाजीपुर से मिला था मगर वे चौथे स्थान पर रहे। कहा जाता है कि लालू जी मुंशीलाल जी से डरते थे कि कहीं मुंशीलाल जी चुनावों के बाद मुख्यमंत्री न बन जाएँ। 1990 के बाद बिहार में जातीय युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए जिससे महनार भी अछूता नहीं रहा। महनार बाजार में 1992 में मुक्तियारपुर के मुखिया प्रह्लाद सिंह की हत्या हो गई जिसमें महनार के बनियों का भी नाम आया। तब बनिए आरक्षण के नाम पर पिछड़ी जातियों के साथ एकजुट थे। मगर जल्दी ही हालत बदल गई। यादव जाति के दो अपराधियों देशराजपुर के नागेश्वर राय और चकेसो के राजगीर राय ने महनार में अपहरण को उद्योग का रूप दे दिया और धीरे-धीरे स्थिति इतनी खराब हो गई कि दिन ढलते-ढलते बाजार बंद हो जाता। जब भी महनार से हाजीपुर आने-जानेवाली बसों को चकौसन,चेचर या खिलवत में रोका जाता तो लोग समझ जाते कि महनार के किसी तेली-कलवार या बढ़ई का अपहरण हो गया। रात में राजगीर राय घोड़े पर सवार होकर महनार बाजार में निकलता तो महनार के तेली-कलवार और सुनार कथित रूप से रास्तों पर थालियों में रुपये और सोना-चांदी लेकर खड़े रहते। अब तक मुंशीलाल जी समाजवाद भूलकर अन्य यादव नेताओें की तरह जातिवादी हो चुके थे और महनार के लोगों का मानना था कि अपहर्ताओं को मुंशीलाल का वरदहस्त प्राप्त था।
मित्रों,इसी माहौल में 1995 का विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार मुंशीलाल जी महनार से जनता दल के उम्मीदवार थे। बक्से से जिन्न निकला और वे जीत गए। जीतने के बाद उन्होंने अपने संरक्षक शरद यादव जी के यहां लॉबिंग की कि उनको नई सरकार में मंत्री बनाया जाना चाहिए। शरद यादव जी जब मुंशीलाल जी को साथ में लेकर लालू जी के यहाँ पहुँचे तो उनके साथ महनार के उनके कई समर्थक भी थे जिनमें से किसी ने हमें बताया था कि लालू जी ने शरद जी से तब कहा था कि हमने 13 को 39 कर दिया अब मंत्री भी बना दें? यानि 13 हजार मत को 39 हजार कर दिया अब मंत्री कैसे बना दें? लेकिन बाद में जब जनता दल का विभाजन हुआ तो मजबूरन लालू जी को मुंशीलाल जी को मंत्री बनाना ही पड़ा। अभी भी महनार में नागेश्वर राय और राजगीर राय का आतंकराज जारी था।
मित्रों,मुंशीलाल जी को इस बार कुछ नए चेले मिल गए थे। उनमें से सबसे बड़ा नाम था महनार के इशहाकपुर के बंधुद्वय बच्चू राय और शंभू राय का। दोनों भाई ठेकेदार थे और छँटे हुए बदमाश भी। मुंशीलाल जी के कथित इशारे पर उनके चेलों ने पहले लावापुर के चंद्रशेखर राय की और बाद में महनार बाजार के ही रामपुकार सिंह की हत्या कर दी। उस कालखंड का एक वाकया मुझे आज भी याद है। एक बार डीएम साहब महनार में नाली-निर्माण का निरीक्षण कर रहे थे। महनार के महान समाजवादी और कर्पूरी ठाकुर के मित्र रहे सत्यनारायण दिवाकर जी भी साथ में थे। दिवाकर जी ने कहा कि अगर मैं जोर से पेशाब कर दूँ तो यह नाली बह जाएगी। डीएम साहब ने ठेका रद्द कर दिया। बाद में बच्चू और शंभू राय ने सत्यनारायण दिवाकर जी को उनकी उम्र का ख्याल किए बिना न सिर्फ अपमानित किया बल्कि जमकर पीटा भी। मुझे आज भी चलचित्र की तरह याद है कि रामपुकार सिंह की प्रतिमा का अनावरण हो रहा था और अनावरण करने के लिए बिहार सरकार में पीएचडी मंत्री मुंशीलाल राय जी मंच पर मौजूद थे। तभी सत्यनारायण दिवाकर जी ने माईक संभाली और कहा कि मंत्रीजी बड़े ही दयालु हैं। पहले तो हत्या करवाते हैं,फिर अपने फंड से मूर्ति बनवाते हैं और अपने हाथों से अनावरण भी करते हैं। फिर तो मुंशीलाल जी को जनता के इतने तीखे विरोध का सामना करना पड़ा कि उन्होंने निकल भागने में ही अपनी भलाई समझी। यह बात अलग है कि इसके बाद दिवाकर जी कई दिनों तक घर से बाहर ही नहीं निकले।
मित्रों,इसी बीच पहले नागेश्वर राय और फिर बाद में राजगीर राय की हत्या हो गई। मौके की नजाकत को समझते हुए अब मुंशीलाल जी सवर्णों के गांवों में भी आने-जाने लगे। जगन्नाथपुर में भी उन्होंने स्टेट बोरिंग की स्थापना करवाई। यह बात अलग है कि आज तक बोरिंग ने पानी देना शुरू नहीं किया है। फिर आया साल 2000 का चुनाव और इस बार मुंशीलाल जी रामा सिंह से 40000 मतों के भारी अंतर से पराजित हो गए। इसी के साथ उनके राजनैतिक जीवन का लगभग अंत हो गया और इसके बाद वे लगातार चुनावों में हारते रहे।
मित्रों,मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूँ कि मैं एक आम आदमी था और आज भी हूँ इसलिए मैं उसी रूप में मुंशीलाल जी याद करूंगा। खास रहता तो उनके बारे में खास बातें बताता। दरअसल मेरी नजर में मुंशीलाल जी समाजवादी कम जातिवादी ज्यादा थे। लालू युग से पहले भी वे सवर्णों से दूरी रखते थे। शायद उनकी दृष्टि में ऐसा करना ही समाजवाद था। बाद में उन्होंने अपराधियों को जमकर संरक्षण दिया। कथित रूप से दो-चार हत्याएँ भी करवाईं शायद यह भी उनका समाजवाद ही था। अगर हम दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि आज लालू-मुलायम-नीतीश-शरद आदि का समाजवाद भी तो वही समाजवाद है जो मुंशीलाल जी का समाजवाद था। वैसे आप क्या समझते हैं कि मुंशीलाल जी का भटकाव समाजवादियों का भटकाव था या स्वयं समाजवाद का?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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