25 दिसंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आपलोग इस शीर्षक को देखकर जरूर चौंक सकते हैं लेकिन हकीकत तो जो है सो है। जम्मू-कश्मीर और झारखंड दोनों ही राज्यों के चुनाव-परिणाम स्पष्ट तौर पर यही दर्शाते हैं कि भारत की जनता का अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में विश्वास बना हुआ है लेकिन साथ-ही चुनावों के नतीजों से यह भी पता चलता है कि पार्टी के तौर पर जनता के लिए भारतीय जनता पार्टी बेतहर विकल्प तो है लेकिन एकमात्र विकल्प नहीं।
मित्रों,अगर हम प्रचुरता में निर्धनता के दुनिया में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण झारखंड को देखें तो वहाँ की जनता ने न सिर्फ सारे पूर्व मुख्यमंत्रियों को नकार दिया बल्कि पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो को भी विधानसभा का मुँह नहीं देखने दिया। जाहिर है कि जनता राज्य को लूटने के लिए जिम्मेदार चेहरों को दंडित करना चाहती थी। जनता ने भाजपा को बहुमत तो दे दिया लेकिन संभावित मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को हरा दिया। विदित हो कि झारखंड के निर्माण के बाद के 14 वर्षों में भाजपा 9 सालों तक सत्ता में रही है और राज्य में सबसे ज्यादा समय तक अर्जुन मुंडा ही मुख्यमंत्री रहे हैं। जाहिर है कि जनता चाहती थी कि भाजपा की ओर से इस बार ऩया व ताजा चेहरा राज्य का मुख्यमंत्री बने। झारखंड के चुनाव-परिणामों से यह भी पता चलता है कि राज्य की एक तिहाई आबादी आदिवासियों का विश्वास अभी भी झारखंड मुक्ति मोर्चा में बना हुआ है। इसके साथ ही झारखंड की जनता ने कांग्रेस,लालू और नीतीश के महागठबंधन को सिरे से नकार दिया है। लालू और नीतीश की पार्टियों का तो राज्य में पहली बार खाता भी नहीं खुला।
मित्रों,इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर के चुनाव-परिणाम भी यही दर्शाते हैं कि जनता का मोदी में विश्वास अभी भी बना हुआ है। कश्मीर में भाजपा ने 44+ का जो लक्ष्य रखा था वह कहीं से भी यथार्थवादी था ही नहीं। मुसलमानों ने इस बार भी भाजपा को वोट नहीं दिया है जबकि जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों का ही बहुमत है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में भाजपा को 25 सीटें ही मिल सकती थीं 44 तो कभी भी नहीं। भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा झटका लद्दाख में कोई सीट नहीं मिलना है जबकि प्रधानमंत्री ने पीएम बनने के बाद भी कई-कई बार इस क्षेत्र का दौरा किया है।
मित्रों,चाहे चुनावों में कोई जीता हो,कोई हारा हो सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन दोनों ही राज्यों में जनता ने अलगाववाद और प्रतिक्रियावाद को नकार दिया और भारी मतदान करके लोकतंत्र में अपनी आस्था पर मुहर तो लगा ही दी है। इसके साथ ही दोनों राज्यों की जनता ने चुनाव-परिणामों के माध्यम से नेताओं को यह चेतावनी भी दी है कि जनता अब लूट और कुशासन के प्रतीकों को बनाए रखने में नहीं बल्कि ढहा देने में यकीन रखती है। चूँकि भाजपा के पास जनता को सुशासन की उम्मीद बंधाने के लिए नरेंद्र मोदी नामक चेहरा मौजूद था इसलिए सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हुआ वैसे फायदे में तो जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और झारखंड में झामुमो भी रहा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,अगर हम प्रचुरता में निर्धनता के दुनिया में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण झारखंड को देखें तो वहाँ की जनता ने न सिर्फ सारे पूर्व मुख्यमंत्रियों को नकार दिया बल्कि पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो को भी विधानसभा का मुँह नहीं देखने दिया। जाहिर है कि जनता राज्य को लूटने के लिए जिम्मेदार चेहरों को दंडित करना चाहती थी। जनता ने भाजपा को बहुमत तो दे दिया लेकिन संभावित मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को हरा दिया। विदित हो कि झारखंड के निर्माण के बाद के 14 वर्षों में भाजपा 9 सालों तक सत्ता में रही है और राज्य में सबसे ज्यादा समय तक अर्जुन मुंडा ही मुख्यमंत्री रहे हैं। जाहिर है कि जनता चाहती थी कि भाजपा की ओर से इस बार ऩया व ताजा चेहरा राज्य का मुख्यमंत्री बने। झारखंड के चुनाव-परिणामों से यह भी पता चलता है कि राज्य की एक तिहाई आबादी आदिवासियों का विश्वास अभी भी झारखंड मुक्ति मोर्चा में बना हुआ है। इसके साथ ही झारखंड की जनता ने कांग्रेस,लालू और नीतीश के महागठबंधन को सिरे से नकार दिया है। लालू और नीतीश की पार्टियों का तो राज्य में पहली बार खाता भी नहीं खुला।
मित्रों,इसी प्रकार जम्मू-कश्मीर के चुनाव-परिणाम भी यही दर्शाते हैं कि जनता का मोदी में विश्वास अभी भी बना हुआ है। कश्मीर में भाजपा ने 44+ का जो लक्ष्य रखा था वह कहीं से भी यथार्थवादी था ही नहीं। मुसलमानों ने इस बार भी भाजपा को वोट नहीं दिया है जबकि जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों का ही बहुमत है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में भाजपा को 25 सीटें ही मिल सकती थीं 44 तो कभी भी नहीं। भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा झटका लद्दाख में कोई सीट नहीं मिलना है जबकि प्रधानमंत्री ने पीएम बनने के बाद भी कई-कई बार इस क्षेत्र का दौरा किया है।
मित्रों,चाहे चुनावों में कोई जीता हो,कोई हारा हो सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन दोनों ही राज्यों में जनता ने अलगाववाद और प्रतिक्रियावाद को नकार दिया और भारी मतदान करके लोकतंत्र में अपनी आस्था पर मुहर तो लगा ही दी है। इसके साथ ही दोनों राज्यों की जनता ने चुनाव-परिणामों के माध्यम से नेताओं को यह चेतावनी भी दी है कि जनता अब लूट और कुशासन के प्रतीकों को बनाए रखने में नहीं बल्कि ढहा देने में यकीन रखती है। चूँकि भाजपा के पास जनता को सुशासन की उम्मीद बंधाने के लिए नरेंद्र मोदी नामक चेहरा मौजूद था इसलिए सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हुआ वैसे फायदे में तो जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और झारखंड में झामुमो भी रहा।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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