शनिवार, 10 सितंबर 2016

साहेब खुश हुआ मगर चंदा बाबू मायूस

मित्रों,पता नहीं आपने मिस्टर इंडिया फिल्म कितनी बार देखी है लेकिन मैंने तो सैंकड़ों बार देखी है। बतौर गालिब दिल को बहलाने के लिए गालिब ये खयाल अच्छा है। उस फिल्म में एक मोगैम्बो होता है जो तभी खुश होता है जब किसी की मौत होती है या फिर कोई देशविरोधी खबर आती है। मोगैम्बो ने तेजाब के तालाब बना रखे हैं जिसमें उसके एक इशारे पर लोग बिना सोंचे-विचारे कूद जाते हैं और घुल जाते हैं। चूँकि फिल्म फिल्म होती है इसलिए उसमें एक हीरो भी होता है जिसके हाथ एक ऐसा गजेट लगता है जिसको पहनने से आदमी अदृश्य हो जाता है। अंत में बुराई की हार होती है और मोगैम्बो का उसके काले साम्राज्यसहित अंत हो जाता है।
मित्रों,ये तो हुई फिल्मों वाली बात। लेकिन असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता और हो भी नहीं सकता। वैसे तो बिहार में अनगिनत मोगैम्बो हैं लेकिन आज हम बात करेंगे सारे मोगैम्बो के साहेब यानि कुख्यात शहाबुद्दीन की। श्रीमान् शहाबुद्दीन जो जेल में रहने के समय से ही राजद की कार्यकारिणी के सदस्य है भी हत्या करके लाश को तेजाब में घुला चुके हैं निरीह-वृद्ध सिवान निवासी चंदा बाबू के बड़े बेटे की लाश। बेचारे का दोष बस इतना था कि वो सिवान में रहता था और मुँह में जुबान रखता था। दूसरे बेटे ने जब साहेब के खिलाफ भाई की हत्या का मुकदमा किया तो उसे भी साहेब ने मरवा दिया। अब परिवार में बचे कुछ जमा 3 लोग। चंदा बाबू,उनकी बीमार पत्नी और विकलांग बेटा। अब कौन लड़ता साहेब के खिलाफ? फिर जिस साहेब के पीछे पूरी सरकार हो और जिसकी जेब में न्यायपालिका को खरीदने के लिए अकूत पैसा हो उससे कोई लड़ेगा भी कैसे? सो आज न कल साहेब की जमानत तो तय थी। जब साहेब जेल में रहते हुए राजदेव रंजन जैसे दिग्गज पत्रकार को आसानी से चींटी की तरह मसल देता है और उसका बाल भी बाँका नहीं होता तो चंदा बाबू जैसों की क्या बिसात?
मित्रों,कुल मिलाकर आज 11 साल बाद साहेब जेल से बाहर आ रहे हैं लेकिन चंदा बाबू मायूस हैं। क्या विडंबना है कि जिस नीतीश कुमार ने उनको जेल में बंद किया उनकी ही सरकार ने उसकी रिहाई का मार्ग भी प्रशस्त किया। डेढ़ हजार से ज्यादा गाड़ियाँ जिन पर साहेब की उनके कद के अनुसार ही बड़ी-सी और लालू-नीतीश की छोटी तस्वीरें लगी हुई हैं उनके स्वागत के लिए भागलपुर पहुँच चुकी हैं और पहुँच चुके हैं 4 मंत्री और 35 विधायक। इनमें से 500 गाड़ियाँ तो सिर्फ सिवान से गई हैं। आज असली मोगैम्बो की जयजयकार से पूरा बिहार गूंजायमान हो जानेवाला है। वैसे साहेब के लिए जेल का कोई मतलब था भी नहीं। वे तो जेल में भी दरबार लगाते थे। उनकी पार्टी दस साल के वनवास के बाद फिर से सत्ता में जो है। लेकिन अब चंदा बाबू क्या करेंगे? पूरी तरह से हताश चंदा बाबू कहते हैं कि अब वे ऊपर की अदालत में नहीं जाएंगे बल्कि ऊपरवाले की अदालत में जाएंगे। विश्वास ही उठ गया है तंत्र पर से। अब उन्होंने सबकुछ भगवान पर छोड़ दिया है। भगवान मन हो तो न्याय करें और न मन हो तो नहीं करें। जिंदगी है कोई मिस्टर इंडिया फिल्म नहीं कि कोई ऐसा गैजेट उनके हाथ लग जाएगा जिसको पहनने के बाद वे या कोई अन्य हीरोनुमा व्यक्ति अदृश्य हो जाए। वैसे अब सिवान की धरती से कई लोग हमेशा के लिए अदृश्य हो जानेवाले हैं। साहेब ने जेल में रहते हुए ही हिट लिस्ट तो तैयार की है। ये बात और है कि साहेब शिकार करने या करवाने के समय माई समीकरण का भी खयाल नहीं रखते,साहेब जो ठहरे। उन्होंने पहले भी ज्यादातर यादवों को मारा है और भविष्य में निश्चित रूप से ज्यादातर यादव ही उनके हाथों मारे जानेवाले हैं। यहाँ मैंने शिकार शब्द का प्रयोग इसलिए किया क्योंकि अगर साहेब ने हत्या की होती तो बाईज्जत बरी होकर यूँ भव्य तरीके से बाहर नहीं आते बल्कि जेल के भीतर ही सड़ा दिए जाते। अब ये मत कहिएगा कि ऐसे शासन से तो राजतंत्र या अंग्रेजों का राज ही अच्छा था।
मित्रों,मैं कह रहा था कि चंदा बाबू अब सीधे संसार के सबसे बड़े न्यायाधिकारी भगवान के शरणागत हैं। कमोबेश हर साधारण बिहारी की यही हालत होती है ऐसी हालत में। पूरा बिहार इन दिनों भगवान भरोसे है। धरती पर जब शैतानों का राज कायम हो तो कोई कर भी क्या सकता है भगवान को गुहारने के सिवा? पहले बिंदी यादव फिर राजवल्लभ यादव और अब साहेब सारे मोगैम्बो तो एक-एक कर जेल से बाहर आते जा रहे हैं। जेल-कोर्ट-कचहरी सब बेमतलब। रहें या न रहें कोई फर्क नहीं। कानून की मोटी-मोटी किताबें भी बेमानी।
मित्रों,इस बीच पता चला है कि पाखंड और ढोंग के मामले में शानदार तरीके से अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करवा चुके बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी जिन्होंने बिहार में बहार लाने का वादा और दावा किया था साहेब के स्वागत में गई गाड़ियों पर लगी तस्वीरों में कोने में स्थान मिलने के बावजूद परेशान हैं। बगुला भगत जी फरमाते हैं कि जहाँ अंडरवर्ल्ड का गढ़ है वहाँ तो पूँजी-निवेश हो रहा है लेकिन बिहार में नहीं हो रहा। शायद श्री महान जी का आशय मुंबई से है।
मित्रों,जिन लोगों को रात में नहीं दिखता उनके बारे में कहा जाता है कि उनको रतौंधी हो गई हैं। जिनको दिन में नहीं दिखता उनको लोग लक्ष्मीजी की सवारी के नाम से संबोधित करते हैं लेकिन जो लोग देखकर भी नहीं देखपाने का नाटक करते हों उनके बारे में क्या कहा जाए। वैसे तो हमारे शब्दकोश में भी कई शब्द हैं लेकिन सारे के सारे असंसदीय हैं। सवाल उठता है कि क्या नीतीश जी व्यवसायियों को बिहार में जबर्दस्ती लाएंगे? अगर ऐसा हो सकता तब तो नीतीश ने अपने मुकुट में एक से बढ़कर एक मोगैम्बो जड़ रखे हैं। काश,ऐसा हो सकता तो हमारा बिहार तरक्की की रेस में अमेरिका से भी आगे होता!!!

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