मित्रों, यह खबर शर्तिया आपको अख़बारों में पढने को नहीं मिली होगी. किसी भी शहर के लिए राज्य की राजधानी होना गौरव की बात होती है लेकिन हाजीपुर के साथ ऐसा कतई नहीं है. बल्कि हाजीपुर के लोग ऐसा होने पर शर्मिंदा हो रहे हैं. आप कहेंगे कि मैं मजाक कर रहा हूँ लेकिन यह भी सच नहीं है. चलिए मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ कि भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में किस शहर को जाना जाता है? आप छूटते ही या फिर सवाल पूरा होने के पहले ही बोलेंगे मुंबई. अब आप सोंच रहे होंगे कि बिहार की आर्थिक राजधानी हाजीपुर है क्या? नहीं भाई वो तो पटना ही है लेकिन बिहार की आपराधिक राजधानी जो पहले से पटना ही था अब पटना नहीं है बल्कि हाजीपुर बन गया है.
मित्रों, यकीन न हो तो किसी भी अख़बार के किसी भी जिला संस्करण को को उलट कर देख लीजिए. रोजाना आपको हाजीपुर में जितनी शराब की बरामदगी, सेक्स रैकेट के भंडाफोड़, हत्या, अपहरण, छिनतई, मार-पीट और लूट की ख़बरें पढने को मिलेंगी क्या मजाल कि किसी और जिले के अख़बार में मिले. ऐसा लगता है जैसे बिहार के सारे अपराधियों ने हाजीपुर को ही अपना आधार-केंद्र बना लिया है. स्थिति ऐसी हो गई है कि हाजीपुर में कारोबार करना अपनी जान के साथ खिलवाड़ करना बन गया है.
मित्रों, आज से दो-ढाई दशक पहले तक हमारा हाजीपुर और हमारा वैशाली जिला ऐसा नहीं था. तब जब हम जहानाबाद, बड़हिया और बेगुसराय के बारे में पढ़ते-सुनते तो हमें अपने आप पर और अपने जिला पर बड़ा गर्व होता कि पूरी दुनिया को अहिंसा का अमर पाठ पढ़ानेवाले भगवान महावीर की जन्मस्थली कितनी शांत है. फिर लालू-राबड़ी के जंगल राज में हाजीपुर अपहरण उद्योग का केंद्र बन गया. अपहरण चाहे बिहार के किसी भी स्थान से हुआ हो अपहृत की बरामदगी हाजीपुर से ही होती थी. २००५ में एनडीए राज आने के बाद यह उद्योग पूरे बिहार के साथ-साथ बिहार में भी बंद हो गया.
मित्रों, लेकिन पिछले करीब चार-पांच सालों में और खासकर जिले में वर्तमान पुलिस कप्तान राकेश कुमार की तैनाती के बाद तो जैसे हाजीपुर ने अपराध के मामले में विश्व-रिकार्ड बना डालने की जिद ही पकड़ ली है. आप कहेंगे कि इसमें पुलिस कप्तान की क्या गलती है तो मैं आपको सलाह देता हूँ कि किसी काम से कभी आप भी एसपी ऑफिस का चक्कर लगा लीजिए. मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ कि पहले तो साहब के अंगरक्षक आपको कार्यालय के बाहर से ही टरकाने की कोशिश करेंगे. अगर आपने एसपी साहब से भेंट कर भी ली तो वो कहेंगे कि उनके नीचे के कर्मचारियों या अधिकारियों से बातचीत कीजिए. कहने का मतलब कि वो कुछ नहीं करेंगे कुछ ले-देकर खुद ही निपटा लीजिए.
मित्रों, जब कप्तान ही ऐसा हो तो टीम के बांकी खिलाडी कैसे होंगे आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं. एक सच्ची घटना पेशे खिदमत है. इन दिनों पटना में सेक्स रैकेट चला रहे लोगों ने भी हाजीपुर का रूख कर लिया है शायद मनु महाराज के डर से. अगर आपका भी हाजीपुर में मकान है और आप उसमें नहीं रहते तो सचेत हो जाईए. ये लोग नकली पति-पत्नी बनकर आपके पास आएँगे और किराया पर फ्लैट ले लेंगे. फिर इनके पति के कथित दोस्तों और पत्नी के कथित भाइयों और बहनों का आना-जाना शुरू होगा जो सारे-के-सारे पटनिया होंगे. इनमें से एक-न-एक हमेशा रास्ते पर नजर रखेगा और मुख्य-दरवाजे को हमेशा बंद रखा जाएगा. फिर जब पडोसी और मकान-मालिक असली खेल को समझ जाएंगे तो डेरा और मोहल्ला बदल दिया जाएगा. फिर पति कोई और बनेगा और पत्नी कोई और. पति और पत्नी की जाति भी बदल जाएगी. हद तो तब हो गई जब मैंने पाया कि ऐसा ही एक चकला मेरे पड़ोस में भी चल रहा था और एक बार तो उक्त फ्लैट के बाहर दारोगा जी से भेंट हो गई. शायद हफ्ता वसूलने आए थे. बेचारे हमसे मिलकर ऐसा झेंपे कि पूछिए मत.
मित्रों, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि हाजीपुर में इन कप्तान साहब को पिछले दो-ढाई सालों से क्यों रखा गया है? क्या हाजीपुर इस मामले में भी उपेक्षित ही रहेगा? क्या हाजीपुर को पटना की तरह तेज-तर्रार पुलिस कप्तान का सुख भोगने का कोई हक़ नहीं? पटना में शिवदीप लांडे, विकास वैभव, मनु महाराज ... जैसे अधिकारी जो मीटिंग नहीं हीटिंग के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं और हाजीपुर में राकेश कुमार जिनको सिवाय मीटिंग के कुछ करना आता ही नहीं है?
मित्रों, यकीन न हो तो किसी भी अख़बार के किसी भी जिला संस्करण को को उलट कर देख लीजिए. रोजाना आपको हाजीपुर में जितनी शराब की बरामदगी, सेक्स रैकेट के भंडाफोड़, हत्या, अपहरण, छिनतई, मार-पीट और लूट की ख़बरें पढने को मिलेंगी क्या मजाल कि किसी और जिले के अख़बार में मिले. ऐसा लगता है जैसे बिहार के सारे अपराधियों ने हाजीपुर को ही अपना आधार-केंद्र बना लिया है. स्थिति ऐसी हो गई है कि हाजीपुर में कारोबार करना अपनी जान के साथ खिलवाड़ करना बन गया है.
मित्रों, आज से दो-ढाई दशक पहले तक हमारा हाजीपुर और हमारा वैशाली जिला ऐसा नहीं था. तब जब हम जहानाबाद, बड़हिया और बेगुसराय के बारे में पढ़ते-सुनते तो हमें अपने आप पर और अपने जिला पर बड़ा गर्व होता कि पूरी दुनिया को अहिंसा का अमर पाठ पढ़ानेवाले भगवान महावीर की जन्मस्थली कितनी शांत है. फिर लालू-राबड़ी के जंगल राज में हाजीपुर अपहरण उद्योग का केंद्र बन गया. अपहरण चाहे बिहार के किसी भी स्थान से हुआ हो अपहृत की बरामदगी हाजीपुर से ही होती थी. २००५ में एनडीए राज आने के बाद यह उद्योग पूरे बिहार के साथ-साथ बिहार में भी बंद हो गया.
मित्रों, लेकिन पिछले करीब चार-पांच सालों में और खासकर जिले में वर्तमान पुलिस कप्तान राकेश कुमार की तैनाती के बाद तो जैसे हाजीपुर ने अपराध के मामले में विश्व-रिकार्ड बना डालने की जिद ही पकड़ ली है. आप कहेंगे कि इसमें पुलिस कप्तान की क्या गलती है तो मैं आपको सलाह देता हूँ कि किसी काम से कभी आप भी एसपी ऑफिस का चक्कर लगा लीजिए. मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ कि पहले तो साहब के अंगरक्षक आपको कार्यालय के बाहर से ही टरकाने की कोशिश करेंगे. अगर आपने एसपी साहब से भेंट कर भी ली तो वो कहेंगे कि उनके नीचे के कर्मचारियों या अधिकारियों से बातचीत कीजिए. कहने का मतलब कि वो कुछ नहीं करेंगे कुछ ले-देकर खुद ही निपटा लीजिए.
मित्रों, जब कप्तान ही ऐसा हो तो टीम के बांकी खिलाडी कैसे होंगे आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं. एक सच्ची घटना पेशे खिदमत है. इन दिनों पटना में सेक्स रैकेट चला रहे लोगों ने भी हाजीपुर का रूख कर लिया है शायद मनु महाराज के डर से. अगर आपका भी हाजीपुर में मकान है और आप उसमें नहीं रहते तो सचेत हो जाईए. ये लोग नकली पति-पत्नी बनकर आपके पास आएँगे और किराया पर फ्लैट ले लेंगे. फिर इनके पति के कथित दोस्तों और पत्नी के कथित भाइयों और बहनों का आना-जाना शुरू होगा जो सारे-के-सारे पटनिया होंगे. इनमें से एक-न-एक हमेशा रास्ते पर नजर रखेगा और मुख्य-दरवाजे को हमेशा बंद रखा जाएगा. फिर जब पडोसी और मकान-मालिक असली खेल को समझ जाएंगे तो डेरा और मोहल्ला बदल दिया जाएगा. फिर पति कोई और बनेगा और पत्नी कोई और. पति और पत्नी की जाति भी बदल जाएगी. हद तो तब हो गई जब मैंने पाया कि ऐसा ही एक चकला मेरे पड़ोस में भी चल रहा था और एक बार तो उक्त फ्लैट के बाहर दारोगा जी से भेंट हो गई. शायद हफ्ता वसूलने आए थे. बेचारे हमसे मिलकर ऐसा झेंपे कि पूछिए मत.
मित्रों, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि हाजीपुर में इन कप्तान साहब को पिछले दो-ढाई सालों से क्यों रखा गया है? क्या हाजीपुर इस मामले में भी उपेक्षित ही रहेगा? क्या हाजीपुर को पटना की तरह तेज-तर्रार पुलिस कप्तान का सुख भोगने का कोई हक़ नहीं? पटना में शिवदीप लांडे, विकास वैभव, मनु महाराज ... जैसे अधिकारी जो मीटिंग नहीं हीटिंग के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं और हाजीपुर में राकेश कुमार जिनको सिवाय मीटिंग के कुछ करना आता ही नहीं है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें