मित्रों, मुझे उम्मीद है कि आपने कभी-न-कभी कनकौआ जरूर देखा होगा. जो मित्र राहुल गाँधी की तरह अपने शहर में आलू की फैक्ट्री लगाना चाहते हैं उनको बता दूं कि हमारे बिहार में मक्के या आलू के खेत में कौओं,चूहों आदि को डराने के लिए खेतों में एक मानवनुमा पुतले को खड़ा कर दिया जाता है. जानवर और पक्षी उनको आदमी समझ लेते हैं और खेत में आने से डरते हैं जिससे फसल की रक्षा हो जाती है. लेकिन जिस दिन उनको पता चल जाता है कि उनको ठगा जा रहा है उसी दिन उनका डर समाप्त हो जाता है और पक्षियों में सबसे चतुर माने जानेवाले कौवे कनकौवे पर मल विसर्जन करने लगते हैं.
मित्रों, कुछ ऐसा ही चीन इन दिनों अपने पडोसी देशों के साथ करने की कोशिश कर रहा है. वो बार-बार हवाबाजी करता रहता है कि हमारे पास इतनी सेना है, इतने हथियार हैं, हम यह कर देंगे, हम वह कर देंगे लेकिन करता कुछ भी नहीं है. लगता है मानों वो फूंक मारकर ही पहाड़ को उडा देगा.
मित्रों, यह चीन न सिर्फ पाकिस्तानी आतंकियों का संयुक्त राष्ट्र संघ में बचाव कर रहा है बल्कि खुद भी आतंकियों की तरह पड़ोसियों में अपनी कथित ताकत का आतंक पैदा कर उनपर अपनी धौंस जमाना चाहता है. इतिहास साक्षी है कि चीन आमने-सामने की लडाई में आज तक किसी भी देश को हरा नहीं पाया है यहाँ तक कि छोटे-से वियतनाम के हाथों भी उसको शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा था. जहाँ तक १९६२ का सवाल है तो उस समय भी चीन से भारत की सेना हारी नहीं थी बल्कि नेहरु ने उनको जान-बूझकर या अपनी महामूर्खता के कारण एक के बाद एक भयंकर रणनीतिक गलतियाँ करते हुए हरवा-मरवा दिया था. सनद रहे कि उस समय भयंकर अकाल जिसे चीनी झेंप मिटाने के लिए गर्व से ग्रेट चाईनीज फेमिन कहते हैं से होनेवाली करोड़ों लोगों की मौतों के चलते कम्युनिस्ट पार्टी काफी अलोकप्रिय हो चुकी थी और ऐसे में भारत के खिलाफ मिले वाक ओवर ने माओ के लिए संजीविनी का काम किया था. इस संदर्भ में नेहरू की भूमिका संदिग्ध हो जाती है और इसकी गहराई से जांच किए जाने की आवश्यकता है.
मित्रों, वही चीन आज फिर से १९६२ को दोहराना चाहता है मगर उसके पहले प्रयास को ही भारत की वर्तमान संघ सरकार ने ऐसा फटका दिया है कि वो पूरी दुनिया में हँसी का पात्र बनकर रह गया है. पिछले एक-डेढ़ महीने से चीन लगातार भारत को थोथी धमकियाँ देता जा रहा है कि हम पहाड़ हैं तो हम इतने शक्तिशाली हैं, हम ये कर देंगे हम वो कर देंगे लेकिन सच्चाई यही है कि वो डोकलाम में आज भी भारत के मुकाबले कमजोर स्थिति में है. अब तो उसकी स्थिति ऐसी हो गयी है कि उसके एकमात्र पडोसी मित्र पाकिस्तान की मीडिया भी उसका मजाक उड़ाने लगी है.
मित्रों, मेरा मानना है कि भारत को सीमा पर अपनी तैयारियों को युद्ध-स्तर पर और भी चाक-चौबंद तो करना ही चाहिए साथ ही पाकिस्तान का आतंकवाद के मुद्दे पर खुलकर साथ देने के लिए प्रत्येक वैश्विक मंच पर आड़े हाथों भी लेना चाहिए और उसको भी आतंकी राष्ट्र घोषित करवाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि अपराधी की मदद करनेवाला भी बराबर का अपराधी होता है. चीन के कब्जे में आज भी हमारी हजारों किलोमीटर जमीन फँसी हुई है इसलिए वह किसी भी तरह नरम व्यवहार का अधिकारी नहीं है. फिर आज वैश्विक कूटनीति भी भारत के माकूल है इसलिए लोहा इससे पहले कि ठंडा हो जाए हथौड़े का जबरदस्त प्रहार कर देना चाहिए.
मित्रों, कुछ ऐसा ही चीन इन दिनों अपने पडोसी देशों के साथ करने की कोशिश कर रहा है. वो बार-बार हवाबाजी करता रहता है कि हमारे पास इतनी सेना है, इतने हथियार हैं, हम यह कर देंगे, हम वह कर देंगे लेकिन करता कुछ भी नहीं है. लगता है मानों वो फूंक मारकर ही पहाड़ को उडा देगा.
मित्रों, यह चीन न सिर्फ पाकिस्तानी आतंकियों का संयुक्त राष्ट्र संघ में बचाव कर रहा है बल्कि खुद भी आतंकियों की तरह पड़ोसियों में अपनी कथित ताकत का आतंक पैदा कर उनपर अपनी धौंस जमाना चाहता है. इतिहास साक्षी है कि चीन आमने-सामने की लडाई में आज तक किसी भी देश को हरा नहीं पाया है यहाँ तक कि छोटे-से वियतनाम के हाथों भी उसको शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा था. जहाँ तक १९६२ का सवाल है तो उस समय भी चीन से भारत की सेना हारी नहीं थी बल्कि नेहरु ने उनको जान-बूझकर या अपनी महामूर्खता के कारण एक के बाद एक भयंकर रणनीतिक गलतियाँ करते हुए हरवा-मरवा दिया था. सनद रहे कि उस समय भयंकर अकाल जिसे चीनी झेंप मिटाने के लिए गर्व से ग्रेट चाईनीज फेमिन कहते हैं से होनेवाली करोड़ों लोगों की मौतों के चलते कम्युनिस्ट पार्टी काफी अलोकप्रिय हो चुकी थी और ऐसे में भारत के खिलाफ मिले वाक ओवर ने माओ के लिए संजीविनी का काम किया था. इस संदर्भ में नेहरू की भूमिका संदिग्ध हो जाती है और इसकी गहराई से जांच किए जाने की आवश्यकता है.
मित्रों, वही चीन आज फिर से १९६२ को दोहराना चाहता है मगर उसके पहले प्रयास को ही भारत की वर्तमान संघ सरकार ने ऐसा फटका दिया है कि वो पूरी दुनिया में हँसी का पात्र बनकर रह गया है. पिछले एक-डेढ़ महीने से चीन लगातार भारत को थोथी धमकियाँ देता जा रहा है कि हम पहाड़ हैं तो हम इतने शक्तिशाली हैं, हम ये कर देंगे हम वो कर देंगे लेकिन सच्चाई यही है कि वो डोकलाम में आज भी भारत के मुकाबले कमजोर स्थिति में है. अब तो उसकी स्थिति ऐसी हो गयी है कि उसके एकमात्र पडोसी मित्र पाकिस्तान की मीडिया भी उसका मजाक उड़ाने लगी है.
मित्रों, मेरा मानना है कि भारत को सीमा पर अपनी तैयारियों को युद्ध-स्तर पर और भी चाक-चौबंद तो करना ही चाहिए साथ ही पाकिस्तान का आतंकवाद के मुद्दे पर खुलकर साथ देने के लिए प्रत्येक वैश्विक मंच पर आड़े हाथों भी लेना चाहिए और उसको भी आतंकी राष्ट्र घोषित करवाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि अपराधी की मदद करनेवाला भी बराबर का अपराधी होता है. चीन के कब्जे में आज भी हमारी हजारों किलोमीटर जमीन फँसी हुई है इसलिए वह किसी भी तरह नरम व्यवहार का अधिकारी नहीं है. फिर आज वैश्विक कूटनीति भी भारत के माकूल है इसलिए लोहा इससे पहले कि ठंडा हो जाए हथौड़े का जबरदस्त प्रहार कर देना चाहिए.
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