मित्रों, क्या आपको याद है कि जबसे अपना देश आजाद हुआ है तबसे हमारे देश और प्रदेश में कितने लोकसभा और विधानसभा चुनाव भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लडे गए? न जाने कितनी बार चुनाव जीतनेवाली सरकारों ने चुनावों से पहले हमसे वादे किए कि जीतने के बाद हम सत्तारूढ़ दल के भ्रष्ट नेताओं को सजा दिलवाएंगे लेकिन चुनाव जीतने के बाद भूतपूर्वों को सजा दिलवाना तो दूर वादा करनेवाले खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो गए.
मित्रों, यह हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है कि पिछले ७० सालों में पहली बार केंद्र में एक ऐसी सरकार काम कर रही है जिसने खुद को भ्रष्ट होने से बचाते हुए देसी-विदेशी कालाधन और बेनामी संपत्ति के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई शुरू की है. पिछली सरकारों की तरह इसने भूतपूर्व नेताओं को बख्श नहीं दिया है बल्कि उनके द्वारा अर्जित कालेधन और बेनामी संपत्ति को भी पूरी बेरहमी के साथ जब्त किया है. लेकिन ऐसा देखने में आ रहा है उसकी कार्रवाई में निष्पक्षता नहीं है और चुन-चुनकर सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है. सत्ता पक्ष के जिन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई हुई है वे काफी छोटे स्तर के भ्रष्टाचारी व नेता हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या सिर्फ विपक्ष के नेता ही भ्रष्ट हैं? कल तक जो भ्रष्ट नेता विपक्ष में थे और आज भाजपा में आ गए हैं उनके खिलाफ क्यों कार्रवाई नहीं हो रही? क्या भाजपा में आ जाने मात्र से ही वे ईमानदारों की श्रेणी में आ गए? लालू परिवार अगर भ्रष्ट हैं तो मुलायम परिवार उनसे कम तो नहीं? बिहार के प्रसिद्ध पासवान परिवार की संपत्तियों की गहराई और उतनी ही निष्ठुरता के साथ क्यों नहीं जांच की जा रही? बोकारो स्टील कारखाना बहाली में गड़बड़ी को लेकर उनके खिलाफ सीबीआई ने मनमोहन सरकार के अंतिम दिनों में जो जाँच शुरू की थी उसका क्या हुआ कौन जवाब देगा?
मित्रों, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी पिछले सालों में कई घोटाले हो चुके हैं लेकिन आज तक किसी नेता को सजा नहीं मिली है. इनमें से व्यापम घोटाला तो जैसे भूतहा है. इसी तरह राजस्थान में गौमाता के नाम पर अनगिनत घोटाले हो रहे हैं. सरकारी गौशालाओं में एकसाथ सैंकड़ों गायों की मौत हो रही है लेकिन वहां तो कोई छापा नहीं पड़ रहा.
मित्रों, कुल मिलाकर हमारा मानना है इस तरह की एकतरफा कार्रवाई से भ्रष्टाचार कम तो होगा लेकिन पूरी तरह से ख़त्म नहीं होगा. उसके लिए सारे भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ निष्पक्ष होकर कार्रवाई करनी होगी इस तथ्य को मोदी सरकार को समझना होगा. मैं समझता हूँ कि वो इसे समझ भी रही है.
मित्रों, यह हमारे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है कि पिछले ७० सालों में पहली बार केंद्र में एक ऐसी सरकार काम कर रही है जिसने खुद को भ्रष्ट होने से बचाते हुए देसी-विदेशी कालाधन और बेनामी संपत्ति के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई शुरू की है. पिछली सरकारों की तरह इसने भूतपूर्व नेताओं को बख्श नहीं दिया है बल्कि उनके द्वारा अर्जित कालेधन और बेनामी संपत्ति को भी पूरी बेरहमी के साथ जब्त किया है. लेकिन ऐसा देखने में आ रहा है उसकी कार्रवाई में निष्पक्षता नहीं है और चुन-चुनकर सिर्फ विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है. सत्ता पक्ष के जिन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई हुई है वे काफी छोटे स्तर के भ्रष्टाचारी व नेता हैं.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या सिर्फ विपक्ष के नेता ही भ्रष्ट हैं? कल तक जो भ्रष्ट नेता विपक्ष में थे और आज भाजपा में आ गए हैं उनके खिलाफ क्यों कार्रवाई नहीं हो रही? क्या भाजपा में आ जाने मात्र से ही वे ईमानदारों की श्रेणी में आ गए? लालू परिवार अगर भ्रष्ट हैं तो मुलायम परिवार उनसे कम तो नहीं? बिहार के प्रसिद्ध पासवान परिवार की संपत्तियों की गहराई और उतनी ही निष्ठुरता के साथ क्यों नहीं जांच की जा रही? बोकारो स्टील कारखाना बहाली में गड़बड़ी को लेकर उनके खिलाफ सीबीआई ने मनमोहन सरकार के अंतिम दिनों में जो जाँच शुरू की थी उसका क्या हुआ कौन जवाब देगा?
मित्रों, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी पिछले सालों में कई घोटाले हो चुके हैं लेकिन आज तक किसी नेता को सजा नहीं मिली है. इनमें से व्यापम घोटाला तो जैसे भूतहा है. इसी तरह राजस्थान में गौमाता के नाम पर अनगिनत घोटाले हो रहे हैं. सरकारी गौशालाओं में एकसाथ सैंकड़ों गायों की मौत हो रही है लेकिन वहां तो कोई छापा नहीं पड़ रहा.
मित्रों, कुल मिलाकर हमारा मानना है इस तरह की एकतरफा कार्रवाई से भ्रष्टाचार कम तो होगा लेकिन पूरी तरह से ख़त्म नहीं होगा. उसके लिए सारे भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ निष्पक्ष होकर कार्रवाई करनी होगी इस तथ्य को मोदी सरकार को समझना होगा. मैं समझता हूँ कि वो इसे समझ भी रही है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें