गुरुवार, 16 मई 2019

ध्रुव त्यागी की हत्या पर इतना सन्नाटा क्यों है भाई?


मित्रों, आपको शोले फिल्म का एक दृश्य जरूर याद होगा.उसमें मौलाना के बेटे की डाकू हत्या कर देते हैं और तब मौलाना चुपचाप खड़े गांववालों से पूछते हैं कि इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
मित्रों, परसों रात में भारत की राजधानी दिल्ली में एक हिन्दू बाप स्कूटी पर अपनी बेटी को लिए घर जा रहा था. तभी कुछ मुसलमानों से उसकी बेटी के साथ छेडछाड की. वो बेचारा उसकी शिकायत लेकर उसके बाप के पास पहुंचा तो उसका बाप अपने बेटे का पक्ष लेकर उसी से लड़ने लगा और अपनी बुढिया माँ को जानवरों को काटने में काम आनेवाला चाकू ले आने को कहा. बुढिया बड़े ही उत्साह में हथियार ले आई और फिर ध्रुव त्यागी को डरे हुए लोगों ने मिलकर मार डाला. इतना ही नहीं बाप को बचाने गए बेटे को भी चाकुओं के वार से छलनी कर उनलोगों ने अच्छे पडोसी होने धर्म बखूबी निभाया.सवाल उठता है कि उस महान मुस्लिम परिवार में किसी ने हत्या का विरोध क्यों नहीं किया बल्कि सभी इस कुकर्म में शामिल क्यों हो गए? क्या इस्लाम यही शिक्षा देता है? क्या इस्लाम में हत्या करना पवित्र और महान कार्य है? क्या ध्रुव त्यागी को इसलिए पूरे परिवार ने रमजान के महीने में घेर कर मार डाला क्योंकि वो उनकी नज़रों में काफ़िर था?
मित्रों, आपको अखलाख तो याद होगा. वही जिसने अपने हिन्दू पडोसी की गाय चुराकर उसे मार डालने का महान कार्य किया था और हिन्दुओं ने चौरकर्म और गोहत्या जैसे महान कार्य में बाधा डाली थी और वो भी उस कालखंड में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार थी. इसी क्रम में मारपीट में उसकी मौत हो गई थी और तब पूरे भारत में अवार्डवापसी का क्रम शुरू हो गया था. लोग कहने लगे थे कि मुसलमान भारत में डरे हुए हैं. आज उन्हीं डरे हुए लोगों ने भारत की राजधानी दिल्ली में हत्या की है तो मानों वही शोले वाला सन्नाटा पसर गया है. कोई कुछ नहीं बोल रहा. सारे धर्मनिरपेक्षतावादी मानों कछुए की तरह अपने खोल में समा गए हैं. अब कोई नहीं बोल रहा कि भारत के मुसलमान डरे हुए हैं.
मित्रों, मैं पूछता हूँ कि ध्रुव त्यागी का अपराध क्या था? क्या भारत में हिन्दू होना सबसे बड़ा अपराध है या मुसलमानों के पड़ोस में बसना सबसे बड़ा अपराध है? या फिर अपनी बेटियों की ईज्जत बचाना हिन्दुओं के लिए अपराध है? जब भारत में हिन्दुओं के साथ ऐसा हो रहा है तो पाकिस्तान में तो क्या नहीं होता होगा?
मित्रों, सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि न तो राहुल गाँधी, न ही अरविन्द केजरीवाल ने अभी तक इस घटना पर कुछ बोला है पीड़ित परिवार से मिलने की बात तो दूर रही. जबकि अखलाख की हत्या के समय इन्होने आसमान सर पे उठा लिया था. ऐसा भेदभाव क्यों है भाई? क्या इसलिए नहीं है क्योंकि हम हिन्दू एकजुट नहीं हैं और जाति-पाति और स्वार्थ में बंटे हुए हैं? बंगाल में जो लोग ममता के पीछे पागल हैं वो भी हिन्दू हैं, बिहार में जो घोटालाशिरोमणि लालू को वोट कर रहे हैं वो भी हिन्दू ही हैं. इसी तरह पूरे भारत में हिन्दू खेमों में बंटे हुए हैं जबकि मुसलमान एकजुट थे और एकजुट हैं. उनके सामने बस एक ही लक्ष्य है कि हिंदुत्ववादी सरकार को हराओ.
मित्रों, अब आते हैं मूल सन्दर्भ पर. श्रीलंका में ईस्टर के दिन जो भयंकर हत्याकांड हुआ उस पर भी भारत के धर्मनिरपेक्षता वादी चुप ही रहे. क्यों? न्यूज़ीलैंड पर शोर और श्रीलंका पर सन्नाटा. यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है? तथापि हमें यह देखकर आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी हो रही है कि श्रीलंका में इस तरह की कोई प्रजाति नहीं पाई जाती है. श्रीलंका बम विस्फोटों में पकडे गए लोगों को वहां वकील नहीं मिल रहे जबकि भारत में तो वकीलों की लाईन लग जाती. लोग लड़ पड़ते कि हम इनका मुकदमा लड़ेंगे.भारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हम आसानी से समझ सकते हैं कि भारत १००० सालों तक गुलाम क्यों रहा.

1 टिप्पणी:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19 -05-2019) को "हिंसा का परिवेश" (चर्चा अंक- 3340) पर भी होगी।

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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी