गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत


मित्रों, यह एक दिलचस्प तथ्य है कि अंग्रेजों ने जब भारतीयों को पहले पहल वोटिंग का अधिकार दिया था तब उन्होंने सारे भारतीयों को मताधिकार नहीं दिया बल्कि सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जो आयकर अदा करते थे अर्थात वह एक प्रकार का कुलीन तंत्र था ठीक उसी तरह जैसे फ़्रांस की क्रांति से पहले यूरोप में था.
मित्रों, इन दिनों अपने देश भारत में भी जो कुछ हो रहा है उससे इस बात की आशंका काफी प्रबल हो जाती है कि भारतीय लोकतंत्र एक बार फिर से कुलीन तंत्र की तरफ जा रहा है. एक ऐसे तंत्र की तरफ जहाँ सब कुछ, सारी सेवाएँ निजी होंगी. देश में अमीरों का जीवन जितना सुखकर और आरामदायक होगा, गरीबों का जीवन उतना ही कठिन. फिर एक दिन ऐसा होगा जब देश की बहुसंख्यक जनता सडकों पर होगी और तब कथित लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाएगा.
मित्रों, आप अगर ऐसा सोंच रहे हैं कि मैं कपोल कल्पना कर रहा हूँ तो आप बिलकुल गलत हैं. दरअसल इन दिनों दक्षिण अमेरिका के सबसे धनी देश चिली के लोग सडकों पर उतरे हुए हैं. भारत की ही तरह १९७० से ही चिली में निजीकरण चल रहा है. अभी पिछले साल ही वहां की सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद वहाँ शिक्षण संस्थान चलानेवाले पूंजीपतियों को मनमानी कमाई करने की छूट मिल गई. जिसके बाद छात्रों ने पूरे देश में जमकर उत्पात मचाया. अभी ताजा हिंसक प्रदर्शन इसलिए हो रहा है क्योंकि वहां मेट्रो रेल के किराये में संचालक ने मनमानी वृद्धि कर दी थी. वहां के राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया. फिर बढ़ा हुआ किराया भी वापस ले लिया गया लेकिन प्रदर्शन अभी भी जारी है. अब वहां के लोग वहां के समाज में लगातार बढ़ रही गैरबराबरी को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. राष्ट्रपति ने मंत्रिमंडल को भी बर्खास्त कर दिया है लेकिन प्रदर्शन रूकने के बदले और भी जोर पकड़ते जा रहे हैं.
मित्रों, मैं उस चिली की वर्तमान हालत को देखते हुए आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप कैसा भारत चाहते हैं जिस चिली की प्रतिव्यक्ति आय १४ हजार डॉलर है लेकिन सबसे अमीर १० प्रतिशत लोगों की आय सबसे गरीब १० प्रतिशत लोगों की आय के मुकाबले ३० गुना ज्यादा है? क्या आप भी चाहते हैं कि भारत की स्थिति भविष्य में चिली जैसी हो जाए जबकि भारत में गैरबराबरी कहीं-न-कहीं चिली से भी ज्यादा है.
मित्रों, सच्चाई तो यह है कि १९९१ में उदारीकरण की शुरुआत के बाद से असमानता की स्थिति सुधरी नहीं बल्कि बिगड़ी ही है.  भारत में असमानता (Inequality) इन तीन दशकों में लगातार काफी तेजी से बढ़ी है। पिछले साल देश के १०१ अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी के 15% तक पहुंच गई। 5 साल पहले उनके पास जीडीपी के 10% के बराबर दौलत थी। ऑक्सफैम इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है। अमीरों की अमीरी और गरीबों की गरीबी बढ़ने के लिए उसने सरकारी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। भारत की जीडीपी 2.6 लाख करोड़ डॉलर यानी करीब 168 लाख करोड़ रुपए है। 2017 में यहां अरबपतियों की संख्या (6,500 करोड़ से ज्यादा नेटवर्थ वाले) 101 थी। इस ‘इंडिया इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2018’ में कहा गया है कि भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में है। इसमें कहा गया था कि 2017 में भारत में जो संपत्ति पैदा हुई उसका 73% हिस्सा 1% बड़े अमीरों को मिला। जिन मुट्‌ठीभर लोगों के हाथों में अकूत संपत्ति है, उनकी अमीरी में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत के 67 करोड़ गरीबों की संपत्ति में सिर्फ 1% बढ़ोतरी हुई.
मित्रों, सारांश यह कि लिबरलाइजेशन का सारा फायदा सिर्फ अमीरों को मिला है गरीबों को नहीं. 50% गरीबों के पास 1991 में 9% संपत्ति थी, 2012 में यह घटकर 5.3% रह गई। वहीँ टॉप 1% अमीरों के पास 1991 में 17% संपत्ति थी, यह 2012 में बढ़कर 28% हो गई। साथ ही, टॉप 10% अमीर लोगों की संपत्ति की हिस्सा इस दौरान 51% से बढ़कर 63% हो गया. इतना ही नहीं वर्तमान भारत में कुल खर्च का 44.7% शीर्ष 20% लोग करते हैं, सबसे कमजोर 20% लोगों का खर्च महज 8.1% है। शहरों में टॉप 10% लोगों का खर्च सबसे गरीब 10% लोगों की तुलना में 19.6 गुना है। रिपोर्ट का कहना है कि 2005 में देश के अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी के 5% के बराबर थी। 2008 में यह बढ़कर 22% पर पहुंच गई। उसी साल दुनिया की इकोनॉमी में गिरावट आई। इससे 2012 में संपत्ति भी कम हुई और अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी की तुलना में 10% रह गई। लेकिन उसके बाद जैसे-जैसे हालात सुधरते गए, इनकी संपत्ति भी बढ़ती गई। 2017 में यह जीडीपी की 15% हो गई है. रिपोर्ट कहती है कि 2017 में देश में जो संपत्ति पैदा हुई उसका 73% हिस्सा 1% बड़े अमीरों को मिला। २०१७ में 20.9 लाख करोड़ के इजाफे में से 1% अमीरों की संपत्ति ७३% और 67 करोड़ गरीबों की संपत्ति 1% बढ़ी।
मित्रों, आप समझ सकते हैं कि अंधाधुंध निजीकरण से अपने देश में गरीबों की जिंदगी भविष्य में और भी कितनी कठिन होने जा रही है. ऐसे में समाधान यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था बने रहने दिया जाए न कि घनघोर पूंजीवाद के मुंह में धकेल दिया जाए. सार्वजानिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच एक संतुलन बना रहना चाहिए अन्यथा देश से गरीबी के स्थान पर गरीब मिट जाएँगे. 

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

नाटक, नौटंकी और राजनीति


मित्रों, कभी तथाकथित पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि हम बदलेंगे देश बदलेगा. बाद में देश के लोगों को लगा कि नेहरु जी की पार्टी को हटाकर सरकार बदलेंगे तब देश बदलेगा. लेकिन अब देश की जनता को लग रहा है कि यह देश कभी नहीं बदलेगा. और अगर बदलेगा भी तो अच्छे दिन तो कतई नहीं आनेवाले हैं अलबत्ता तन पर नहीं रह जाएगा लत्ता और इस तरह देशवासियों के बुरे दिन आने वाले हैं.
मित्रों, समझ में नहीं आता कि अपने देश की राजनीति को हो क्या गया है? सब कुछ सिर्फ सिम्बोलिज्म यानि प्रतीकवाद. गणित में हम पढ़ते हैं कि मान लिया कि ....आज की राजनीति भी कहती है कि ऐसा मान लीजिए. कैसे मान लें जिंदगी कोई बीजगणित या अलजेब्रा तो है नहीं जो मान लें.
मित्रों, आज की राजनीति कहती है कि मान लो कि हम बचपन में गरीब थे और स्टेशन पर चाय बेचा करते थे. आज की राजनीति कहती है कि मान लो कि हमारे पास मास्टर डिग्री है. आज की राजनीति यह भी कहती है कि मान लो कि हम देश के लिए खाते हैं, देश के लिए पीते हैं, देश के लिए १० लाख का कपडा पहनते हैं, देश के लिए शादी की फिर देश के लिए पत्नी को छोड़ा, घर को छोड़ा. आज की राजनीति कहती है कि मान भी लो कि हमने देश के लिए चुनाव प्रचार के लिए हजारों मोटरसाइकिल खरीदीं और देशहित में उनको अपनी पार्टी के कार्यालयों में सडा रहे हैं. आज की राजनीति कहती है कि मान लो कि जो विपक्षी नेता हमारे पक्ष में आ गए वे अब पाक-साफ़ हैं. आज की राजनीति कहती है कि मान लो नोटबंदी और जीएसटी लागू करना देश के लिए काफी लाभदायक रहे. वो यह भी मान लेने के लिए अतिविनम्र निवेदन करती है कि इस समय देश में कोई मंदी नहीं है और देश अगले ५ सालों में ५० ख़राब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी. वो यह भी कहती है कि कोई चैनल नहीं देखो और सिर्फ नमो एप देखो क्योंकि हम जो दिखाते हैं सिर्फ वही सच है बांकी सब माया है. आज की राजनीति कहती है कि यह मत देखो कि तुम बेरोजगार हो बल्कि यह देखो कि चुनावों से ४ दिन पहले हमने कितने पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. आज की राजनीति कहती है कि तुम हर महीने के अंतिम रविवार को मेरे मन की बात सुनो क्योंकि तुम सिर्फ चुपचाप सुनने के लिए पैदा हुए हो. आज की राजनीति कहती है कि तेरी जेब खाली होने को लेकर दुखी मत होओ क्योंकि हमने तुमसे दुखी होने का अधिकार छीन लिया है. बल्कि तुम्हे हर हाल में यह देखकर खुश होना होगा कि हमने आंकड़ों में महंगाई को समाप्त कर दिया है. तुम्हे यह देखकर भी खुश होना होगा कि मेरा स्वागत अमेरिका में रेड कार्पेट पर होता है. आज की राजनीति कहती है कि तुम्हें अपने लाडले सैनिक पुत्र के शव पर विलाप नहीं करना है बल्कि यह देखकर खुश होना है कि देश के प्रधानमंत्री तुम्हारे सैनिक पुत्र के साथ दिवाली मनाते हैं. आज की राजनीति कहती है कि मान लो कि देश का सबको साथ में लेकर सबका विकास हो रहा है और सबका विश्वास भी हासिल कर लिया गया है. आज की राजनीति कहती है कि मान लो कि निजीकरण देशहित में है और समस्त समस्याओं का एकमात्र ईलाज निजीकरण है.
मित्रों, कुल मिलाकर इस समय पूरे देश की राजनीति सिर्फ प्रतीकवाद के सहारे चल रही है. मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अधिकारी सब बस एक प्रतीक बनकर रह गए हैं उनका वास्तविक अस्तित्व है ही नहीं. ऐसा लगता है कि जैसे विशालकाय भारत के रंगमंच पर कोई महानाटक मंचित हो रहा है. ऐसा महानाटक जिसका कोई अंत ही नहीं है. अभिनय देखिए और ताली बजाते रहिए. आँखों में आंसू हो तब भी हंसकर ताली पीटनी पड़ेगी क्योंकि आपके सामने इस बात को मानने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है कि हमारा देश दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन चुका है और हमारे प्रधानमंत्री दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति. ख़बरदार जो रोये या ताली पीटना बंद किया क्योंकि ऐसा करना अब अपने देश में देशद्रोह है.

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

भाजपा को झटका जनता का फटका


मित्रों, इस साल जबसे भाजपा लोकसभा चुनाव जीती है एक अलग ही मूड में है. इस समय भाजपा की मनोदशा ठीक वैसी ही है जैसी कांग्रेस की २००९ का चुनाव जीतने के बाद थी. उसका और उसके शीर्षस्थ नेता द्वय का घमंड दोबारा केंद्र में सरकार के गठन के बाद से ही सातवें आसमान पर है. भाजपा के शीर्ष नेता जनता को भेड़ और खुद को चरवाहा समझ रहे हैं और उनको लगता है कि वे उनको जिधर हांक देंगे वे बिना किसी नानुकर के उधर ही चल देंगे.
मित्रों, इस बारे में मुझे एक किस्सा याद आ रहा है. बिहार की राजनीति में एक बहुत बड़े नेता हुए हैं नाम था-सत्येन्द्र नारायण सिन्हा. १९८५ में कांग्रेस के बिहार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उनकी भेंट महनार (वैशाली) से चुनाव हार चुके वरिष्ठ समाजवादी नेता मुनीश्वर प्रसाद सिंह से पटना में हुई. मुनीश्वर बाबू जाहिर है कि बड़े उदास थे. तब सत्येन्द्र बाबू ने चुटकी लेते हुए मुनीश्वर बाबू को कहा था कि तुम कैसे चुनाव हार जाते हो हम तो हर बार जीत जाते हैं चाहे हम जनता के लिए कुछ करें या न करें.
मित्रों, उन्हीं सत्येन्द्र बाबू को बाद में कई बार हार का सामना करना पड़ा और गुमनामी में दिन काटना पड़ा. कहने का तात्पर्य यह है कि जनता किसी की गुलाम नहीं है बल्कि मनमौजी है. जब मौज चढ़ा तो एक चायवाले को भी राजा बना देती है जब गुस्सा आया तो सत्येन्द्र बाबू जैसे राजा को भी सड़क पर ला देती है. मुझे लगता है मोदी और शाह सत्ता के नशे में अभी इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर समझकर भी नहीं समझना चाहते हैं.
मित्रों, पिछले कई चुनावों से हम देख रहे हैं कि भाजपा जमीन से जुड़े मुद्दों को झुठलाकर हवाई मुद्दों के आधार पर चुनाव जीतने का प्रयास करती रही है. देश की जनता कितनी परेशान है इस बात से जैसे उसका कोई सरोकार ही नहीं रह गया है. देश में छाई मंदी और उससे उपजी बेरोजगारी, महंगाई और बैंकों की खस्ता हालत और महँगी होती बैंकिंग सेवा ने लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है लेकिन मोदी देश को चाँद दिखा रहे हैं. अभी महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव होना था तो पाकिस्तान पर हमला बोल दिया. मतदान ख़त्म,हमला समाप्त. जबकि केंद्र सरकार को इस बात की चिंता होनी चाहिए कि कश्मीर से सेब देश में कैसे पहुंचेगा क्योंकि आतंकवादी सेब बेचनेवाले किसानों और सेब खरीदनेवाले व्यापारियों दोनों की लगातार हत्या कर रहे हैं. सवाल उठता है कि क्या केंद्र सरकार में इतना दम है कि वो कश्मीरी सेब उत्पादकों में भरोसा पैदा कर सके?
मित्रों, पिछले कुछ सालों में भाजपा ने दूसरे दलों से जमकर नेताओं का आयात किया है और उनको अपने कार्यकर्ताओं पर थोप दिया है. साथ ही जमकर मशहूर हस्तियों को भी टिकट बांटा गया है. इन चुनावों ने भाजपा को बता दिया है कि अब ऐसा नहीं चलेगा। बल्कि अब जनता पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को जिताएगी भले ही वो निर्दलीय उम्मीदवार हो। ये तो हुई पूरे चुनाव परिणाम की बात। जहां तक बिहार का प्रश्न है तो उपचुनावों में पटखनी देकर बिहार की जनता ने भाजपा नेतृत्व को चेतावनी दे दी है कि अब वो नीतीश कुमार की नाकारा सरकार को बर्दाश्त करने की स्थिति में कदापि नहीं है। 

शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

कमलेश तिवारी को मिली सच बोलने की सजा?

मित्रों,  लखनऊ में सरकार की नाक के नीचे हिन्दू नेता कमलेश तिवारी की हत्या कर दी गई. अभी तक यह पता नहीं है कि किन लोगों ने और क्यों उनकी हत्या की लेकिन अब तक कई खबरें वायरल हो रही हैं जिनमें यह भी संकेत मिल रहे हैं कि दरिंदगी से दहला देनेवाले आईएसआईएस का हाथ है.
मित्रों, दरअसल कई साल पहले जब समलैंगिकों ने आन्दोलन किया था तब आजम खान ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बेवजह तंज करते हुए आरोप लगाया था कि समलैंगिकता आरएसएस का मौलिक लक्षण है. तब हिन्दू महासभा के नेता कमलेश तिवारी ने जवाब देते हुए कहा था कि खुद इस्लाम के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब में कई सारे मानवीय अवगुण थे जिसमे समलैंगिकता भी एक था. उनके बयान के बाद मुस्लिम समुदाय काफी गुस्से में आ गया था. उनके खिलाफ देवबंद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, लखनऊ सहित देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हुआ था. पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के कालियाचक में भी बड़ा बवाल हुआ था. जनवरी 2016 में करीब 2.5 लाख मुसलमानों ने उग्र रैली निकाली और आगजनी की गई. पुलिस थाने पर हमला हुआ. BSF की एक गाड़ी को भी आग के हवाले कर दिया. यात्रियों से भरी बस पर भी पथराव किया गया. दंगाई कमलेश तिवारी की मौत मांग रहे थे. कमलेश तिवारी की मौत को लेकर फतवे जारी हुए. बिजनौर के जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अनवरुल हक और मुफ्ती नईम कासमी ने कमलेश तिवारी का सिर काटने वाले को 51 लाख रुपए का इनाम देने का एलान किया.  बाद में पुलिस ने कमलेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. उस समय अखिलेश यादव की सरकार ने उनके खिलाफ रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) भी लगाया था. हालांकि, सितंबर 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उनपर लगे रासुका को हटा दिया था. वो फिलहाल जमातन पर रिहा चल रहे थे.
मित्रों, समझ में नहीं आता कि पूरी दुनिया में जब भी कोई मोहम्मद साहब का चरित्र चित्रण करने का प्रयास करता है तो इतना हंगामा क्यों खड़ा हो जाता है? चाहे आशाराम हो या बाबा राम रहीम सिंह हो या रामपाल पिछले दिनों इनके बारे में क्या-क्या नहीं कहा गया. भगवान राम और श्रीकृष्ण के बारे में भी रोजाना क्या-क्या नहीं कहा जाता. भगत सिंह ने अपनी पुस्तक मैं नास्तिक क्यों हूँ में भगवान को क्या-क्या नहीं कहा है? उन्होंने सीधे-सीधे सवाल उठाया है कि अगर दुनिया में अच्छा होने के लिए भगवान जिम्मेदार है तो निर्दोषों की मौत की जिम्मेदारी भी उसे ही लेनी होगी. लेकिन कहीं कोई हंगामा नहीं हुआ. लेकिन जैसे ही इस्लाम की जहरीली और अमानवीय शिक्षाओं और मोहम्मद साहब के बारे में कुछ कहा जाता है पूरी दुनिया में जैसे हिंसा का ज्वार पैदा हो जाता है. ऐसा क्यों है? जब आजम खान आरएसएस के बारे में घटिया बातें करता है तब तो कोई उसे मना नहीं करता लेकिन जब कोई कमलेश तिवारी उसका उत्तर देता है और तथ्यों के आधार पर देता है तब लोग क्यों पूरी दुनिया के गैर मुस्लिमों को जला देने पर आमादा हो जाते हैं?
मित्रों, अच्छा तो यह होता कि दुनियाभर के मुसलमान आत्मविश्लेषण करते और अपने धर्म में इस प्रकार से सुधार करते जिससे किसी को उनके ऊपर ऊँगली उठाने का मौका ही नहीं मिलता. बजाए इसके वे उनके कुकृत्यों की चर्चा करनेवाले के पीछे ही पड़ जाते हैं. अभी कल ही अफगानिस्तान में एक मस्जिद में बम फोड़कर ६२ निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है. हो सकता है कि ऐसा किसी ने जन्नत जाने के लालच में किया हो लेकिन सवाल उठता है कि क्या भगवान पागल है जो ऐसे लोगों को दोजख के बजाए जन्नत में भेजेगा बशर्ते अगर जन्नत और दोजख होते हों? इसी तरह से सीरिया और इराक में खुद मुसलमान मुसलमान को मार रहे हैं. लाखों लोग अभी तक पश्चिमी एशिया में इनके आपसी झगडे में मारे जा चुके हैं क्या इसकी कोई चर्चा भी न करे? आखिर क्यों मुसलमानों के अतिहिंसक होने के कारणों का विश्लेषण नहीं होना चाहिए जबकि उनसे पूरी दुनिया परेशान है? पाकिस्तान जैसे देशों ने तो इसे रोकने के लिए ईशनिंदा कानून ही बना रखा है. किसी शायर ने क्या खूब कहा है-
हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती.
मित्रों, सच बोलना तो हर समाज में गुनाह रहा है. सिर्फ भारत ही है जो मुंडे मुंडे मति भिन्नाः को मानता है. याद करिए कि किस तरह सुकरात को सच बोलने के लिए जहर पीना पड़ा था. ईसा शूली पर चढ़े और मंसूर अल हल्लाज को आग में झोंक दिया गया. लेकिन हमारे भारत में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता-बल्कि यहाँ तो लोग वेदों का विरोध करने के बावजूद सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बना देते हैं. फिर आज के भारत में सच बोलना गुनाह कैसे हो गया? मुझे लगता है कि कमलेश तिवारी भी सच बोलने के चलते मारे गए. ऐसे शहीद को श्रद्धांजलि.
-इस बीच, सोशल मीडिया पर एक तथाकथित संगठन अलहिंद ब्रिगेड के नाम से एक मेसेज वायरल हो रहा है, जिसमें हत्या की जिम्मेदारी ली गई है। मेसेज में दावा किया गया है कि जो भी इस्लाम या मुस्लिमों पर उंगली उठाएगा, उसका यही अंजाम होगा। मेसेज की सत्यता की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। यूपी पुलिस की भी जानकारी में यह मेसेज है और इसकी जांच की जा रही है।

बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

नरेन्द्र मोदी की रॉबिनहुडी सरकार


मित्रों, जब मोदी जी २०१४ में चुनाव प्रचार कर रहे थे तो न जाने उन्होंने क्या-क्या वादे किए थे. जैसे कि देश उनको सिर्फ ६० महीने देकर देखे. वे बेरोजगारी, गरीबी और कालेधन का कलंक हमेशा के लिए मिटा देंगे. पांच साल के बाद भ्रष्टाचार बीते दिनों की बात हो चुकेगी. लेकिन हमारे देश में हो क्या रहा है? बेरोजगारी इन दिनों ऐतिहासिक ऊंचाई पर है, भुखमरी के मामले में भारत पाकिस्तान से भी पीछे है और कालाधन जो विदेश से सौ दिनों में वापस आनेवाला था उसका अबतक कोई अता-पता नहीं है. अलबत्ता कांग्रेस के लगभग सारे भ्रष्ट नेता जरूर भाजपा में आकर पवित्र हो चुके हैं.
मित्रों, जब मोदी जी ने नोटबंदी लागू की तो मैं समझा था और मैं ही क्या पूरा देश समझा था कि मोदी जी की नीयत साफ़ है और वे विदेश के साथ-साथ देश में मौजूद कालेधन का भी नामो-निशान मिटा देंगे. तब भारत के छोटे-मोटे कारोबारियों ने देशहित के नाम पर मोदी जी की बातों पर यकीन करके अपने रोजगार छिन जाने के गम को भी बर्दाश्त कर लिया. लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा देश के गरीबों ने सोंचा था. चालाक अमीरों ने तो बैंकवालों की मिलीभगत से अपने सारे कालेधन को सफ़ेद कर लिया लेकिन गरीबों का रोजगार कभी फिर से पटरी पर नहीं आ सका. इतना ही नहीं नोटबंदी के कारण लाखों लघु और मध्यम दर्जे की औद्योगिक ईकाईयां हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो गईं जिससे लाखों श्रमिकों की नौकरी चली गयी और वे बैंक में जमा बुरे वक़्त के लिए बचाए गए धन पर निर्भर हो गए.
मित्रों, मंदी को और भी लम्बा और मारक बनाने के लिए मोदी सरकार ने मूर्खतापूर्ण तरीके से जीएसटी को लागू कर दिया जिसमें अग्रिम कर देने की व्यवस्था थी. सरकार ने समय पर व्यवसायियों को उनका अग्रिम पैसा नहीं लौटाया जिससे उनको दोहरी क्षति हुई. बाद में जीएसटी के कारण कर-वसूली में आई कमी को पूरा करने लिए सरकार ने सार्वजानिक क्षेत्र की ईकाईयों जैसे ओएनजीसी और एलआईसी से जबरन पैसे लिए जिससे इनकी हालत ख़राब हो गई. पहले जहाँ वे महानवरत्न थे आज पत्थर बनकर रह गए हैं. इतना ही नहीं सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भी नहीं छोड़ा.
मित्रों, यह सरकार इतने पर ही रूक जाती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन अब तो यह सरकार रेलवे का भी निजीकरण करने में जुट गई है. इससे पहले बीएसएनएल, एमटीएनएल को मनमाने ऑफर लाकर बर्बाद किया जा चुका है. मतलब कि भविष्य में गरीब लोग रेलगाड़ी में चढ़ भी नहीं पाएँगे. इतना ही नहीं इन सरकारी कंपनियों और रेलवे में निकट-भविष्य में जमकर छंटनी हो सकती है. मंदी के चलते कई निजी एयरलाइन्स पहले ही बर्बाद हो चुकी हैं. आसमान का महाराजा एयर इण्डिया भी जल्द ही परायाधन बननेवाला है.इसी तरह भारत पेट्रोलियम को भी कौड़ी के दाम में बेचने की पूरी तैयारी हो चुकी है. राजतिलक की करो तैयारी आ रहे हैं भगवाधारी. इस सरकार के रहते भविष्य में बैंकों में लोगों की जमा पूँजी भी सुरक्षित है या नहीं कहा नहीं जा सकता. सरकार पैसे की कमी के चलते पहले ही तरह-तरह की चालाकियों से गरीबों से पैसे वसूल रही है जैसे एक तरफ तो सरकार बैंकों से लिए गए बड़े ऋणों को माफ़ कर रही है वहीँ गरीबों से न्यूनतम जमा राशि के नाम पर दोनों हाथों से पैसे लूट रही है.
मित्रों, इन दिनों देश की जनता की हालत कुल मिलाकर बेटा मांगने गए और पति को भी गँवा दिया वाली हो गयी है. यह सही है कि सरकार ने धारा ३७० को समाप्त कर दिया है और भविष्य में शायद वो समान नागरिक संहिता को भी लागू करेगी. साथ ही कदाचित राम मंदिर भी अयोध्या में बना दिया जाएगा. लेकिन इसके बदले सरकार देश के गरीबों से उनकी जिंदगी ही छीन लेना चाहती है. भविष्य में उनके पास जिंदगी तो होगी परन्तु उनकी जिंदगी के स्वामी पूंजीपति होंगे. अर्थात कभी पाकिस्तान के नाम पर तो कभी चंद्रयान के नाम पर तो कभी चीनी राष्ट्रपति की यात्रा या राऊडी मोदी के नाम पर भारतवासियों को लगातार बरगलाया जा रहा है. असलियत तो यह है कि यह सरकार रॉबिनहुड से उलट व्यवहार करनेवाली सरकार है. जहाँ रॉबिनहुड अमीरों से धन लूटकर उसे गरीबों में बाँट दिया करता था यह सरकार अमीरों को पहले ऋण देती है और फिर उनके ऋणों को माफ़ कर उसकी कीमत गरीबों से वसूलती है. चाहे वो पेट्रोल-डीजल और बिजली की ऊंची दर के रूप में हो या फिर उच्च शिक्षा में बेतहाशा बढ़ी हुई फीस के रूप में हो या रेलगाड़ी में बढे हुए तत्काल सीटों और टिकटों के रूप में हो. खुद सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि इस सरकार के समय रोजगार नहीं बढ़ा बल्कि बेरोजगारी बढ़ी हैं लेकिन सरकार अपने आंकड़ों को ही झुठला रही है. अभी-अभी कल ही खबर आई कि यूपी सरकार २५ हजार गृहरक्षकों को नौकरी से निकालने जा रही है. लेकिन बाद में मामले को तूल पकड़ते देख निर्णय को तत्काल टाल दिया गया. अरे भाई गरीबों का जिन्दा रहना कोई जरूरी है क्या जरूरी तो राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण है. इस सरकार के मंत्री मंदी को फिल्मों से जोड़कर अजीबोगरीब बयान देकर गरीबों के जख्मों पर नमक छिड़क रहे हैं. आश्चर्यजनक तो यह है जब अर्थव्यवस्था में क्षेत्र में चौतरफा निराशाजनक हालात हैं तब भारत के प्रधानमन्त्री देश की जनता को चने के झाड़ पर चढाते हुए भारत को ५० ख़राब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रहे हैं. 
मित्रों, मैं नहीं जानता कि मोदी जी कितने गरीब परिवार से आते हैं लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि इनके समय में लाखों लोग सड़क पर जरूर आ गए हैं. मोदी जी को उन परिवारों का दर्द नहीं पता जिनके पैसे इस समय पंजाब एंड महाराष्ट्र बैंक में फंस गए हैं और जो आत्महत्या कर रहे हैं. मोदी जी, हो सकता है कि आपने बचपन में चाय बेची होगी लेकिन क्या इसका बदला आप देश के गरीबों से लेंगे और हम सबसे चाय बेचवाएंगे और पकौड़े तलवाएंगे?

शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

शी जिंग पिंग अच्छे तो इमरान बुरे कैसे


मित्रों, जबसे यह सरकार सत्ता में आई है इसने विदेश नीति का मतलब ही बदल कर रख दिया है. वैसे अर्थ तो इसने अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र का भी बदल दिया है. नाम गरीब का सारे काम अमीरों के लिए. इस सरकार में सब कुछ सिर्फ और सिर्फ दिखावे में बदल गया है. ठीक उसी तरह जैसे कोई लड़की का बाप अपने लड़की की शादी किसी महानालायक से करे मगर गाजे-बाजे और झाडफानूस पर करोड़ों लुटा दे.
मित्रों, अब चीन के प्रीमियर शी जिंग पिंग की इस समय चल रही भारत यात्रा को ही ले लीजिए. उनकी यात्रा को भारत सरकार ने क्या खूब तबज्जो दी है. जैसे चीन के राष्ट्रप्रमुख भारत में आते ही अपने देश की सारी गलतियों के लिए जमीन पर अपनी नाक रगड़ते हुए माफ़ी मांगेंगे और चीन भविष्य में भारत का सबसे अभिन्न मित्र हो जाएगा. चीन के राष्ट्रप्रमुख को दिल्ली के बदले महाबलीपुरम में बुलाया गया है. उनके आगे छप्पनभोग की थाली पेश की गयी है. दोनों नेता लगातार ठहाके लगा-लगाकर बात कर रहे हैं. मगर परिणाम? समझ में नहीं आता कि भारत को ठहाके चाहिए या परिणाम चाहिए. देश की आर्थिक स्थिति ख़राब है और लगातार और भी ख़राब होती जा रही है लेकिन प्रधानमंत्री जनता के अथक परिश्रम से अर्जित पैसे को दिखावे में और शाही भोज में उड़ा रहे हैं. अभी-अभी उन्होंने अमेरिका में राऊडी मोदी का आयोजन किया और पता नहीं क्यों किया? अपने लिए किया या डोनाल्ड ट्रम्प के लिए किया? अपने लिए किया तो भी ठीक मगर उससे भारत को क्या लाभ हुआ क्या प्रधानमंत्री जी बताएंगे? क्या भारत सरकार बताएगी कि इस कार्यक्रम पर भारत के लगातार छीजते खजाने से कितना पैसा गया?
मित्रों, हम भारतीयों को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह चीन ही है जिसने भारत की लाखों वर्ग किमी जमीन पर अपना अवैध कब्ज़ा जमा रखा है. हम यह भी नहीं भूल सकते कि पाकिस्तान इसी चीन की शह पर हम पर गुर्राता रहता है वर्ना उसकी अपनी कोई औकात ही नहीं. वह चीन ही है जो भारत को लगातार चारों तरफ से घेर रहा है. यहाँ तक कि उसने हमसे बिना पूछे पीओके में सड़क भी बना ली है. और फिर भी हम उसके लिए पलकें बिछा रहे हैं? भारत के बाद शी जिंग पिंग नेपाल जाएंगे और वहां भी वे जो कुछ भी करेंगे वो सिर्फ और सिर्फ भारतविरोधी होगा फिर भारत सरकार क्यों उनके स्वागत में बिछी पड़ी है?
मित्रों, हम जानते हैं कि मोदी जी के अमेरिका, चीन, जापान, रूस आदि देशों के शासनाध्यक्षों के साथ बड़े ही मधुर व्यक्तिगत सम्बन्ध हैं. मगर सवाल उठता है कि भारत की जनता को व्यक्तिगत संबंधों से क्या लेना-देना? हमें तो कूटनीतिक संबंधों से मतलब है. हमें तो इस बात से मतलब है कि कोई देश भारत के बारे में क्या सोंचता है और भारत के प्रति उसका व्यवहार कैसा है न कि इस बात का कोई महत्व है कि मोदी जी के स्वागत में अमेरिका में कितने किमी तक लाल मखमल बिछाया गया. मगर हम देख रहे हैं कि भारत के प्रधानमंत्री और उनके दरबारी पत्रकार लगातार यही प्रदर्शित कर रहे हैं कि मोदी जी ट्रंप से इतनी बार गले मिले या फिर इतनी बार शी जिंग पिंग से हाथ मिलाया. क्या बचपना है? ये सब तो ऊपरी बातें हैं वास्तविक तो आधिकारिक बयान  या नीति होती है.
मित्रों, देखना यह है कि भारत-चीन शी जिंग पिंग की यात्रा के दौरान कैसा साझा बयान जारी करते हैं. क्या चीन भारत के प्रति सचमुच मित्रतापूर्ण रवैया अपनाता है या फिर अपनी पाकिस्तानपरस्त नीति जारी रखता है? यह भी देखना होगा कि चीन भारत के व्यापार-घाटे को कम करने की दिशा में कोई कदम उठाता भी है या नहीं? अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर यही कहना पड़ेगा कि खाया-पीया कुछ भी नहीं और गिलास तोडा सवा लाख का. वैसे यहाँ तो दोनों जने खूब खा-पी रहे हैं.

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

गया सुशासन पानी में


मित्रों, बिहार के गांवों में एक लोक गीत वर्षो से लोकप्रिय है खासकर भैंस पालनेवालों की बीच-गईल गईल रे भईसिया पानी में, दूधो न देबे जवानी में, गईल गईल रे भईसिया पानी में.
मित्रों, अपना बिहार भी विचित्र है. पहले यहाँ भैंस पानी से बाहर आने का नाम नहीं लेती थी. तब लालू जी ने इसका उपाय बताया था कि छोड़ दो भईसिया को उसके हाल पर. भूख लगेगी तो खुद ही पानी से बाहर आ जाएगी. बिहार में जबतक लालू जी का शासन था लगता था कि भैंस के साथ-साथ पूरा बिहार भी पानी में है और उसके साथ बिहार सरकार भी.
मित्रों, फिर कुछ समय के लिए बिहार में फील गुड वाला समय आया. जब २००५ में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तब लगा कि अब ये सरकार बिहार को पानी से बाहर निकलेगी. लेकिन अब लगता है कि इससे अच्छी स्थिति तो लालू के समय थी. तब पटना इस तरह पानी में डूबता नहीं था. बताईए भला इन्द्रदेव की इतनी हिमाकत कि २-२ करोड़ के फ्लैट वाले ईलाके को भी पानी-पानी कर दिया. नीचे का पूरा फ्लोर तो डूब ही गया. ऊपर से बिजली गायब. न खाने को कुछ न पीने को. लोग भागना भी चाहते थे तो भाग नहीं पा रहे थे. फिर खबर आई कि बिहार की प्रख्यात लोक गायिका शारदा सिन्हा जी अपने घर में फंसी हुई हैं. इसके साथ ही यह खबर भी आई कि बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी पानी में घिरे हुए हैं. अब जब छोटे सरकार ही पानी में डूब रहे थे तो जनता को बचाता कौन? 
मित्रों, कुछ दिनों तक पूरा पटना एक समंदर में बदल गया था. सरकारी राहत सरकारी तरीके से चलनी शुरू हुई. सड़े हुए आलू, सडा हुआ चूड़ा असमान से बरसाए जाने लगे. खाना हो तो खाओ नहीं हो मरो अपनी बला से. जमीन पर और पानी में तो कहीं सरकार का पता ही नहीं था.
मित्रों, इसी बीच पटना के लोगों के लिए मसीहा बनकर आए हारे हुए नेता पप्पू यादव. बेचारे पटना के लगभग हर घर तक गए. भोजन-पैसा-पानी बांटा, लोगों को घर से बाहर निकाला. सुबह से देर रात तक पटना की सड़कों पर सिर्फ पप्पू यादव और उनके लोग ही नजर आ रहे थे. यहाँ तक कि लोग राहत के लिए पैसे भी पप्पू यादव के पास ही जमा करवाने लगे. वो तो जब अमिताभ बच्चन जी ५१ लाख का चेक दिया तब पता चला कि बिहार में मुख्यमंत्री भी है और एक मुख्यमंत्री आपदा कोष भी.
मित्रों, सवाल उठता है कि जो काम पप्पू यादव कर रहे थे और अब भी कर रहे हैं उसे बिहार सरकार ने क्यों नहीं किया? क्या एनडीए को इस बात का अभिमान हो गया है कि उसके पास जरूरत से ज्यादा जनसमर्थन है? आश्चर्य तो तब हुआ जब पटना की मेयर जो भाजपाई हैं मीडिया के सामने आई. पता चला कि वे दूसरी राबड़ी देवी हैं. निपट अनपढ़ और अज्ञानी. शायद यही कारण है कि पटना नगर निगम के पास ड्रेनेज का मानचित्र तक नहीं है ड्रेनेज सिस्टम सुधारने की बात तो दूर ही रही.
मित्रों, कुल मिलाकर इन दिनों बिहार में सुशासन पानी में है और जल-क्रीडा का आनंद ले रहा है. पता नहीं कब वो पानी से बाहर आएगा या फिर आएगा भी या नहीं.

शनिवार, 5 अक्टूबर 2019

गाँधी का संक्षिप्त मगर निर्मम मूल्यांकन


मित्रों, इन दिनों हम महात्मा गाँधी की १५०वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने पिछले दशकों में गाँधी जी को बुद्ध और कबीर की तरह सीधे भगवान ही बना दिया जबकि गाँधी भी इनकी ही तरह मानव थे. बुद्ध और कबीर ने तो लोगों को मना भी किया था कि मरने के बाद मुझे भगवान मत बना देना लेकिन भारत की जनता सुनती कहाँ हैं वो तो बस पूजती है. अगर महापुरुषों की सुनती तो आज भारत की हालत वो नहीं होती जो है.
मित्रों, मेरी बातों से आप अब तक यह समझ गए होंगे कि मैं गाँधी जी को भगवान नहीं मानता इसलिए मैं उनका भक्त भी नहीं हूँ और इसलिए मैं उनके मूल्यांकन में निर्ममता बरतनेवाला हूँ. मैं समझता हूँ कि खुद गाँधी ने भी अपना निर्मम और तटस्थ मूल्यांकन करने की कोशिश की थी वरना वे अपनी आत्मकथा में उन बातों का जिक्र नहीं करते जो अश्लील तो हैं ही खुद उनका चरित्रहनन करती हैं. जी हाँ, आपने सही समझा मैं उनकी आत्मकथा में वर्णित शादी के तत्काल बाद पत्नी कस्तूरबा का साथ किए गए सेक्स और बुढ़ापे में नंगी लड़कियों के साथ नंगे सोकर किए गए ब्रह्मचर्य के अनूठे प्रयोग की बात कर रहा हूँ.
मित्रों, हम सभी अपनी जीवन में बहुत सारे ऐसा काम करते हैं जिनको प्रकट करना समाजोपयोगी नहीं होता. मैं समझता हूँ कि भले ही गाँधी जी सत्यवादी थे लेकिन हम जानते हैं कि गाँधी संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे और संस्कृत कहता है- सत्यम ब्रूयात, प्रियम ब्रूयात, न ब्रूयात अप्रियम सत्यम. गांधीजी को समझना चाहिए था कि ऐसा नंगा सत्य किसी के काम का नहीं होता जो खुद आपको ही नंगा कर दे. सच्चाई अच्छी चीज है लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरूरी है व्यावहारिकता. यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूं कि गाँधी का ब्रह्मचर्य को लेकर किये गए प्रयोग किसी भी तरह से नैतिक नहीं थे. ब्रह्मचर्य की जांच के और भी तरीके हो सकते हैं लेकिन यह तरीका नहीं हो सकता.
मित्रों, बहुत सारे लोग समझते हैं कि गाँधी जी काफी विनम्र, अभिमानरहित और लोकतान्त्रिक थे लेकिन अगर हम गाँधी जी के जीवन को देखें तो हम पाते हैं कि ऊपर से गाँधी भले ही विनम्र दिखें लेकिन अन्दर से वे अभिमानी और तानशाह थे. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि गाँधी १९२० के बाद से ही कांग्रेस को अपने इशारों पर चलाते रहे यहाँ तक कि १९३४ में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दी मगर कांग्रेस फिर भी उनका जेबी संगठन बना रहा. यहाँ तक कि १९३९ में जब त्रिपुरी अधिवेशन में गाँधी के उम्मीदवार पट्टाभिसीतारमैया को हराकर सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए तब गाँधी जी ने इसे अपनी व्यक्तिगत हार माना और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों पर अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल करते हुए सुभाष बाबू को काम करने से रोक दिया. अंततः बड़े ही भरे मन से सुभाष बाबू को कांग्रेस अध्यक्ष के पद इस्तीफा देना पड़ा. अगर गाँधी जी निरभिमानी और लोकतांत्रिक होते तो मैं समझता हूँ कि सुभाष बाबू का साथ देते न कि विरोध करते. बाद में हम पाते हैं कि जब आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री चुनने का अवसर आया तब भी गाँधी ने सीडबल्यूसी के बहुमत को नजरअंदाज करते हुए पटेल की जगह नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जो तत्कालीन परिस्थितियों में बिलकुल भी सही नहीं थे और जिनकी गलतियों का परिणाम आज भी भारत भुगत रहा है.
मित्रों, इसी तरह गाँधी का मुस्लिमों के प्रति तुष्टीकरण वाला व्यवहार कई बार इतने आगे तक चला जाता था कि हिन्दुओं को क्षति उठानी पड़ रही थी. चाहे दंगें हो या पाकिस्तान को पैसा देने के लिए अनशन करना. मैं समझता हूँ कि गाँधी उसी तरह दिन-ब-दिन भारत के लिए ज्यादा हानिकारक होते जा रहे थे जैसे कि महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह धर्म और पांडवों की जीत में रोड़ा बन गए थे. जैसे भीष्म पर प्रहार करते समय अर्जुन का ह्रदय रो रहा था उसी तरह से गाँधी पर गोली चलाते समय नाथूराम गोडसे भी दुखी थे.

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

चिन्मयानंद और हिंदुत्व


मित्रों, हिन्दू धर्म में ४ आश्रमों को व्यवस्था की गई है. मानव जीवन को १०० वर्षों का मानकर चार भागों में विभाजित किया गया है. जन्म से लेकर २५ वर्ष की आयु तक के समय को ब्रह्मचर्य, २५ से ५० तक के समय को गृहस्थ, ५० से ७५ तक के समय को वानप्रस्थ और ७५ से १०० वर्ष तक की आयु को संन्यास आश्रम कहा गया है. लेकिन बहुत-से लोग जिनमें वैराग्य की भावना प्रबल होती थी वे सीधे संन्यासी ही बन जाते हैं और ऐसा लाखों वर्षों से होता आ रहा है. प्रखर संन्यासी विवेकानन्द के अनुसार संन्यासी वो है जो पूरी तरह से काम,क्रोध,मद,मोह और लोभ से मुक्त हो और माया जनित समस्त विकारों से पूर्णतया स्वतंत्र हो. जिसका पूरा जीवन सिर्फ और सिर्फ मानवों और जीव-जगत के भले के लिए समर्पित हो. भारत में ऐसे तेजस्वी संन्यासियों की लम्बी परंपरा रही है.
मित्रों, मध्यकाल में ही बहुत-से आलसी लोग घर-बार छोड़ कर भिक्षाटन पर गुजारा करने और बिना परिश्रम के आराम की जिंदगी जीने के लालच में संन्यासी बनने लगे थे. संत कबीर ने ऐसे लोगों पर कटाक्ष करते हुए उसी समय कहा था-
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।।
आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।।
कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो, जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।।
मित्रों, आप पटना से दिल्ली जानेवाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाईए तो पाएंगे कि इस बीच कम-से-कम १०० भिखारी आपसे पैसे मांगने आएंगे. आप दया से द्रवित होकर १० का नोट दे भी देंगे लेकिन कभी आपने सोंचा है कि यह उनकी मजबूरी नहीं है बल्कि व्यवसाय है. एक-एक भिखारी सुबह से शाम तक कम-से-कम १००० रूपया कम लेता है आपसे भी कहीं ज्यादा और इस तरह आप एक गलत प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे होते हैं. आरएसएस प्रचारक इन्द्रेश कुमार के अनुसार ऐसे लोगों की संख्या भारत में २० करोड़ है. मेरा अनुमान है कि इनमें से ५ करोड तो हिन्दू संन्यासी होंगे.
मित्रों, अभी मैं हरिद्वार गया हुआ था और मैंने वहां पाया कि हमारी धर्मभीरूता का जमकर दोहन किया जा रहा है. जिन स्थानों पर २००६ में एक मंदिर था वहां अब कई-कई मंदिर बन गए हैं जो वास्तव में कलेक्शन सेंटर हैं. इसी तरह घाट पर भी कई लोग झूठा चंदा काटते हुए मिल जाएंगे. मुझे तो ऐसा लगा कि जैसे यह पूरा शहर ही भिखारियों का शहर है.
मित्रों, पहले भी लोग संन्यास धारण करते थे और शंकराचार्य और विवेकानंद जैसे संन्यासियों ने तो अपने छोटे से जीवन में ही हिंदुत्व को नई ऊंचाई दी. लेकिन इन दिनों भगवा और हिंदुत्व के नाम पर भारत में जो कुछ हो रहा है वो सही तो नहीं ही है शर्मनाक भी है. कोई भी लम्पट भगवा कपडे पहनकर साधू बन जाता है और हमारी धर्मभीरुता का लाभ उठाकर अकूत धन इकठ्ठा कर लेता है. फिर आलिशान आश्रम बना लेता है, दिन-रात ऐसे-ऐसे भोग-विलास करता है जो हम गृहस्थों के लिए कदापि संभव नहीं है. कभी-कभी तो नेता भी बन जाता है और मंत्री भी लेकिन उसके कर्म तब भी गर्हित ही होते हैं. फिर खुद बदनाम होकर हिंदुत्व को भी बदनाम करता है.
मित्रों, १९८७ में जब मैं सातवीं कक्षा में था मेरे गाँव के बगल में वासुदेवपुर चंदेल में यज्ञ हुआ था. तभी मैंने देखा था कि इन यज्ञों से किसी को कोई लाभ नहीं होता बल्कि लाभ होता है इसमें पधारनेवाले शंकराचार्यों और कथित संन्यासियों को जो दिन-रात मलाई और मेवे खाते हैं. ये लोग बिना एसी के एक पल भी नहीं रह सकते और बिना कार के एक कदम भी नहीं चल सकते. उनमें से कुछेक का वजन तो इतना ज्यादा था कि उनके चलने से धरती प्रकम्पित होती थी. इन मठाधीशों से पूछा जाना चाहिए कि ये जिस तरह के आचरण की अपेक्षा अपने श्रोताओं से करते हैं क्या इनका खुद का आचरण वैसा है?
मित्रों, स्वामी चिन्मयानन्द जैसे कुछ संन्यासियों की करतूतों को देखकर तो इतनी शर्मिंदगी होती है और इतना क्रोध आता है कि क्या कहें? जब कामवासना पर नियंत्रण नहीं रख सकते तो क्यों नहीं शादी करके घर बसाते हो? एक तरफ तो पवित्र भगवा धारण कर रखा है और दूसरी तरफ इतना नीच कर्म कर रहे हो कि बड़ा-से-बड़ा कुकर्मी भी शरमा जाए. कुछ लोग इन दिनों इन्टरनेट पर यह साबित करने में लगे हैं कि मुस्लिम और इसाई धर्माचार्य भी ऐसा ही कर रहे हैं. मुझे नहीं है लेना-देना इस बात से कि बांकी धर्म के लोग क्या कर रहे हैं लेकिन मुझे हिन्दू धर्म में ऐसा व्यभिचार कतई बर्दाश्त नहीं. ऐसे लोगों को अविलम्ब फांसी चढ़ा देना चाहिए क्योंकि इन्होंने परम पवित्र संन्यास आश्रम को बदनाम किया है. लेकिन हो क्या रहा है? सरकार उल्टे इनका ही बचाव कर रही है और पीडिता को ही अपराधी बना दिया है जैसे उसने इनके कुकर्मों को उजागर करके बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.
मित्रों, हम भाजपा और आरएसएस को बता देना चाहते हैं कि हमें हिंदुत्व का अभ्युदय तो मंजूर है लेकिन हिंदुत्व के नाम पर अनाचार और अत्याचार फ़ैलाने को हम हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते. मनु महाराज कहते हैं-
    धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
    धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९१)
    जो व्यक्ति सामान्य धर्म तक का पालन नहीं कर सकता वो संन्यासी कैसे हो सकता है? श्रीमद्भगवदगीता कहती है कि संन्यास का एकमात्र लक्ष्य मोक्ष होता है और मोक्ष का अर्थ है सभी प्रकार के सांसारिक बंधनों से मुक्ति। बंधन वे जो मनुष्य को संसार से बांध कर रखते हैं, जो सांसारिक सुखों और सुविधाओ के प्रति आसक्ति पैदा करते हैं। इस आसक्ति के कारण हम अनेक तरह की चिंता, दुःख, अशांति, अभाव, निराशा, हताशा, जीवन के प्रति अवसाद और उदासीनता से घिरे रहते हैं। ये दुःख और चिंता जीवन पर्यन्त चलती रहती हैं। इसलिए शंकराचार्य ने संन्यासियों के लिए नारी को नरक का द्वार बताया है तो वहीँ रामकृष्ण परमहंस ने आजीवन कामिनी और कंचन को स्पर्श तक नहीं किया था.
मित्रों, कुल मिलाकर संन्यास आश्रम में आ गई विकृतियों को दूर करने का समय आ गया है. समस्त मठों और अखाड़ों में सुधार किया जाना चाहिए जिससे आपादमस्तक स्वर्णाभूषणों से लदे-पदे रहनेवाले ५ स्टार बाबाओं व दिन-रात स्त्रियों के साथ कामाचार में लगे दुष्टों को संन्यास आश्रम से बाहर किया जा सके.