मित्रों, यह एक दिलचस्प तथ्य है कि अंग्रेजों ने जब भारतीयों को पहले पहल वोटिंग का अधिकार दिया था तब उन्होंने सारे भारतीयों को मताधिकार नहीं दिया बल्कि सिर्फ उन्हीं लोगों को दिया जो आयकर अदा करते थे अर्थात वह एक प्रकार का कुलीन तंत्र था ठीक उसी तरह जैसे फ़्रांस की क्रांति से पहले यूरोप में था.
मित्रों, इन दिनों अपने देश भारत में भी जो कुछ हो रहा है उससे इस बात की आशंका काफी प्रबल हो जाती है कि भारतीय लोकतंत्र एक बार फिर से कुलीन तंत्र की तरफ जा रहा है. एक ऐसे तंत्र की तरफ जहाँ सब कुछ, सारी सेवाएँ निजी होंगी. देश में अमीरों का जीवन जितना सुखकर और आरामदायक होगा, गरीबों का जीवन उतना ही कठिन. फिर एक दिन ऐसा होगा जब देश की बहुसंख्यक जनता सडकों पर होगी और तब कथित लोकतंत्र ही खतरे में पड़ जाएगा.
मित्रों, आप अगर ऐसा सोंच रहे हैं कि मैं कपोल कल्पना कर रहा हूँ तो आप बिलकुल गलत हैं. दरअसल इन दिनों दक्षिण अमेरिका के सबसे धनी देश चिली के लोग सडकों पर उतरे हुए हैं. भारत की ही तरह १९७० से ही चिली में निजीकरण चल रहा है. अभी पिछले साल ही वहां की सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद वहाँ शिक्षण संस्थान चलानेवाले पूंजीपतियों को मनमानी कमाई करने की छूट मिल गई. जिसके बाद छात्रों ने पूरे देश में जमकर उत्पात मचाया. अभी ताजा हिंसक प्रदर्शन इसलिए हो रहा है क्योंकि वहां मेट्रो रेल के किराये में संचालक ने मनमानी वृद्धि कर दी थी. वहां के राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया. फिर बढ़ा हुआ किराया भी वापस ले लिया गया लेकिन प्रदर्शन अभी भी जारी है. अब वहां के लोग वहां के समाज में लगातार बढ़ रही गैरबराबरी को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. राष्ट्रपति ने मंत्रिमंडल को भी बर्खास्त कर दिया है लेकिन प्रदर्शन रूकने के बदले और भी जोर पकड़ते जा रहे हैं.
मित्रों, मैं उस चिली की वर्तमान हालत को देखते हुए आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप कैसा भारत चाहते हैं जिस चिली की प्रतिव्यक्ति आय १४ हजार डॉलर है लेकिन सबसे अमीर १० प्रतिशत लोगों की आय सबसे गरीब १० प्रतिशत लोगों की आय के मुकाबले ३० गुना ज्यादा है? क्या आप भी चाहते हैं कि भारत की स्थिति भविष्य में चिली जैसी हो जाए जबकि भारत में गैरबराबरी कहीं-न-कहीं चिली से भी ज्यादा है.
मित्रों, सच्चाई तो यह है कि १९९१ में उदारीकरण की शुरुआत के बाद से असमानता की स्थिति सुधरी नहीं बल्कि बिगड़ी ही है. भारत में असमानता (Inequality) इन तीन दशकों में लगातार काफी तेजी से बढ़ी है। पिछले साल देश के १०१ अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी के 15% तक पहुंच गई। 5 साल पहले उनके पास जीडीपी के 10% के बराबर दौलत थी। ऑक्सफैम इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है। अमीरों की अमीरी और गरीबों की गरीबी बढ़ने के लिए उसने सरकारी नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। भारत की जीडीपी 2.6 लाख करोड़ डॉलर यानी करीब 168 लाख करोड़ रुपए है। 2017 में यहां अरबपतियों की संख्या (6,500 करोड़ से ज्यादा नेटवर्थ वाले) 101 थी। इस ‘इंडिया इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2018’ में कहा गया है कि भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में है। इसमें कहा गया था कि 2017 में भारत में जो संपत्ति पैदा हुई उसका 73% हिस्सा 1% बड़े अमीरों को मिला। जिन मुट्ठीभर लोगों के हाथों में अकूत संपत्ति है, उनकी अमीरी में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत के 67 करोड़ गरीबों की संपत्ति में सिर्फ 1% बढ़ोतरी हुई.
मित्रों, सारांश यह कि लिबरलाइजेशन का सारा फायदा सिर्फ अमीरों को मिला है गरीबों को नहीं. 50% गरीबों के पास 1991 में 9% संपत्ति थी, 2012 में यह घटकर 5.3% रह गई। वहीँ टॉप 1% अमीरों के पास 1991 में 17% संपत्ति थी, यह 2012 में बढ़कर 28% हो गई। साथ ही, टॉप 10% अमीर लोगों की संपत्ति की हिस्सा इस दौरान 51% से बढ़कर 63% हो गया. इतना ही नहीं वर्तमान भारत में कुल खर्च का 44.7% शीर्ष 20% लोग करते हैं, सबसे कमजोर 20% लोगों का खर्च महज 8.1% है। शहरों में टॉप 10% लोगों का खर्च सबसे गरीब 10% लोगों की तुलना में 19.6 गुना है। रिपोर्ट का कहना है कि 2005 में देश के अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी के 5% के बराबर थी। 2008 में यह बढ़कर 22% पर पहुंच गई। उसी साल दुनिया की इकोनॉमी में गिरावट आई। इससे 2012 में संपत्ति भी कम हुई और अरबपतियों की संपत्ति जीडीपी की तुलना में 10% रह गई। लेकिन उसके बाद जैसे-जैसे हालात सुधरते गए, इनकी संपत्ति भी बढ़ती गई। 2017 में यह जीडीपी की 15% हो गई है. रिपोर्ट कहती है कि 2017 में देश में जो संपत्ति पैदा हुई उसका 73% हिस्सा 1% बड़े अमीरों को मिला। २०१७ में 20.9 लाख करोड़ के इजाफे में से 1% अमीरों की संपत्ति ७३% और 67 करोड़ गरीबों की संपत्ति 1% बढ़ी।
मित्रों, आप समझ सकते हैं कि अंधाधुंध निजीकरण से अपने देश में गरीबों की जिंदगी भविष्य में और भी कितनी कठिन होने जा रही है. ऐसे में समाधान यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था बने रहने दिया जाए न कि घनघोर पूंजीवाद के मुंह में धकेल दिया जाए. सार्वजानिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच एक संतुलन बना रहना चाहिए अन्यथा देश से गरीबी के स्थान पर गरीब मिट जाएँगे.