मित्रों, जबसे यह सरकार सत्ता में आई है इसने विदेश नीति का मतलब ही बदल कर रख दिया है. वैसे अर्थ तो इसने अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र का भी बदल दिया है. नाम गरीब का सारे काम अमीरों के लिए. इस सरकार में सब कुछ सिर्फ और सिर्फ दिखावे में बदल गया है. ठीक उसी तरह जैसे कोई लड़की का बाप अपने लड़की की शादी किसी महानालायक से करे मगर गाजे-बाजे और झाडफानूस पर करोड़ों लुटा दे.
मित्रों, अब चीन के प्रीमियर शी जिंग पिंग की इस समय चल रही भारत यात्रा को ही ले लीजिए. उनकी यात्रा को भारत सरकार ने क्या खूब तबज्जो दी है. जैसे चीन के राष्ट्रप्रमुख भारत में आते ही अपने देश की सारी गलतियों के लिए जमीन पर अपनी नाक रगड़ते हुए माफ़ी मांगेंगे और चीन भविष्य में भारत का सबसे अभिन्न मित्र हो जाएगा. चीन के राष्ट्रप्रमुख को दिल्ली के बदले महाबलीपुरम में बुलाया गया है. उनके आगे छप्पनभोग की थाली पेश की गयी है. दोनों नेता लगातार ठहाके लगा-लगाकर बात कर रहे हैं. मगर परिणाम? समझ में नहीं आता कि भारत को ठहाके चाहिए या परिणाम चाहिए. देश की आर्थिक स्थिति ख़राब है और लगातार और भी ख़राब होती जा रही है लेकिन प्रधानमंत्री जनता के अथक परिश्रम से अर्जित पैसे को दिखावे में और शाही भोज में उड़ा रहे हैं. अभी-अभी उन्होंने अमेरिका में राऊडी मोदी का आयोजन किया और पता नहीं क्यों किया? अपने लिए किया या डोनाल्ड ट्रम्प के लिए किया? अपने लिए किया तो भी ठीक मगर उससे भारत को क्या लाभ हुआ क्या प्रधानमंत्री जी बताएंगे? क्या भारत सरकार बताएगी कि इस कार्यक्रम पर भारत के लगातार छीजते खजाने से कितना पैसा गया?
मित्रों, हम भारतीयों को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह चीन ही है जिसने भारत की लाखों वर्ग किमी जमीन पर अपना अवैध कब्ज़ा जमा रखा है. हम यह भी नहीं भूल सकते कि पाकिस्तान इसी चीन की शह पर हम पर गुर्राता रहता है वर्ना उसकी अपनी कोई औकात ही नहीं. वह चीन ही है जो भारत को लगातार चारों तरफ से घेर रहा है. यहाँ तक कि उसने हमसे बिना पूछे पीओके में सड़क भी बना ली है. और फिर भी हम उसके लिए पलकें बिछा रहे हैं? भारत के बाद शी जिंग पिंग नेपाल जाएंगे और वहां भी वे जो कुछ भी करेंगे वो सिर्फ और सिर्फ भारतविरोधी होगा फिर भारत सरकार क्यों उनके स्वागत में बिछी पड़ी है?
मित्रों, हम जानते हैं कि मोदी जी के अमेरिका, चीन, जापान, रूस आदि देशों के शासनाध्यक्षों के साथ बड़े ही मधुर व्यक्तिगत सम्बन्ध हैं. मगर सवाल उठता है कि भारत की जनता को व्यक्तिगत संबंधों से क्या लेना-देना? हमें तो कूटनीतिक संबंधों से मतलब है. हमें तो इस बात से मतलब है कि कोई देश भारत के बारे में क्या सोंचता है और भारत के प्रति उसका व्यवहार कैसा है न कि इस बात का कोई महत्व है कि मोदी जी के स्वागत में अमेरिका में कितने किमी तक लाल मखमल बिछाया गया. मगर हम देख रहे हैं कि भारत के प्रधानमंत्री और उनके दरबारी पत्रकार लगातार यही प्रदर्शित कर रहे हैं कि मोदी जी ट्रंप से इतनी बार गले मिले या फिर इतनी बार शी जिंग पिंग से हाथ मिलाया. क्या बचपना है? ये सब तो ऊपरी बातें हैं वास्तविक तो आधिकारिक बयान या नीति होती है.
मित्रों, देखना यह है कि भारत-चीन शी जिंग पिंग की यात्रा के दौरान कैसा साझा बयान जारी करते हैं. क्या चीन भारत के प्रति सचमुच मित्रतापूर्ण रवैया अपनाता है या फिर अपनी पाकिस्तानपरस्त नीति जारी रखता है? यह भी देखना होगा कि चीन भारत के व्यापार-घाटे को कम करने की दिशा में कोई कदम उठाता भी है या नहीं? अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर यही कहना पड़ेगा कि खाया-पीया कुछ भी नहीं और गिलास तोडा सवा लाख का. वैसे यहाँ तो दोनों जने खूब खा-पी रहे हैं.
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