गुरुवार, 14 नवंबर 2024
नीतीश बाबू का सुशासन मॉडल अद्भुत-मोदी!
मित्रों, आज हमने ज्यों ही दैनिक हिंदुस्तान अख़बार का प्रथम पृष्ठ देखा चौंक गया. कल दरभंगा की धरती से भारत के प्रधानमंत्री ने बिहार की नीतीश सरकार के प्रशस्ति गान में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और यहाँ तक बोल गए कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी का सुशासन मॉडल अद्भुत है. पता नहीं एक समय नीतीश जी के डीएनए पर सवाल उठानेवाले प्रधानमंत्री जी ने ऐसा राजनैतिक मजबूरी में कहा या फिर उनको बिहार की वस्तु-स्थिति के बारे में कुछ पता ही नहीं है. वैसे कारण चाहे पहला हो या दूसरा दोनों ही स्थिति खतरनाक है.
मित्रों, इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि नीतीश जी के बिहार के मुख्यमंत्री बनने से पहले बिहार में जंगलराज था लेकिन बिहार में जंगलराज तो आज भी है बस उसका स्वरुप बदल गया है. पहले जहाँ रंगबाज जनता को बन्दूक दिखाकर लूट रहे थे नीतीश राज में अधिकारी कलम दिखाकर जनता को लूट रहे हैं. आज की तारीख में ऐसा कोई सरकारी काम नहीं जो बिहार में बिना रिश्वत दिए हो जाता हो. सबसे ख़राब स्थिति पुलिस और राजस्व विभाग की है. पुलिस बिना रिश्वत लिए एफ़आईआर तक दर्ज नहीं करती तो वहीँ राजस्व विभाग बिना पैसे लिए दाखिल ख़ारिज तक नहीं करता. खुद मैंने ४ मौजों में जमीन का दाखिल ख़ारिज करवा कर भ्रष्टाचार को जाना और भोगा है जबकि सम्बंधित अंचलाधिकारी अच्छी तरह से जानते थे कि मैं एक पत्रकार हूँ. फिर भी उन्होंने एक ही तरह के कागजात के आधार पर तीन मौजे की जमीन का दाखिल ख़ारिज तो कर दिया लेकिन एक मौजे का आवेदन इस बेतुके आधार पर रिजेक्ट कर दिया कि कागजात अपठनीय है जबकि कागजात हुबहू वही थे. आखिर तीन मौजे के मामले में वही कागजात पठनीय और एक मौजे के मामले में अपठनीय कैसे हो गए? नहीं समझे तो समझाता हूँ दरअसल बांकी तीन के लिए मैंने पैसे दिए थे जबकि एक के लिए नहीं दिए.
मित्रों, अब आप कहेंगे कि दोषी मैं भी हूँ रिश्वत देने का. हाँ, मैं दोषी हूँ लेकिन अगर पैसे नहीं देता तो निश्चित रूप से अंचलाधिकारी महोदय बांकी तीन मौजों के आवेदन भी रद्द कर देते. मुझे इस सन्दर्भ में इतिहास से एक उदाहरण याद आ रहा है. कहते हैं कि फिरोजशाह तुगलक (१३५१-८८) के समय में भ्रष्टाचार चरम पर था. सुल्तान का एक नजदीकी जब इसकी शिकायत लेकर सुल्तान के पास पहुंचा तब सुल्तान ने कहा कि कभी-कभी तो उसे खुद रिश्वत देनी पड़ती है. फिर सुल्तान ने उस व्यक्ति को पैसे देते हुए कहा कि जाओ उस अधिकारी को ये पैसे देकर अपना काम करवा लो.
मित्रों, अभी शुक्रवार 8 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भ्रष्ट लोगों के खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई बहुत ही जरूरी है, क्योंकि देरी से या कमजोर कार्रवाई से ऐसे लोगों को बढ़ावा मिलता है। राष्ट्रपति ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के सतर्कता जागरूकता सप्ताह समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि विश्वास सामाजिक जीवन का आधार है और भ्रष्टाचार लोकतंत्र में जनता के विश्वास को कमजोर करता है. लेकिन सवाल उठता है कि जब अधिकारी एक पत्रकार को भी अंगूठा दिखा देते हैं तो आम आदमी की क्या बिसात? सवाल यह भी उठता है कि बिहार के अधिकारियों में ऐसा करने की हिम्मत आती कहाँ से है? मैंने फिर नमो ऐप पर शिकायत की वो भी पूरे प्रमाण के साथ. वहां से मेरी शिकायत वैशाली जिला लोक शिकायत में भेज दी गयी और फिर शुरू हुआ तारीखों का खेल. लोक शिकायत पदाधिकारी ने कई महीनों तक कार्यालय में कदम ही नहीं रखे. फिर एक दिन मुझे बताए बिना उस सीओ को बुलाकर स्पष्टीकरण लिखवा लिया गया जिसमें वही सफाई दी गई थी कि कागजात अपठनीय थे. उनसे यह पूछा तक नहीं गया कि जबकि तीन मौजों के लिए कागजात पठनीय थे तो एक मौजा के लिए अपठनीय कैसे हो गए? और फिर मेरे केस को रिजेक्ट कर दिया गया. उसके बाद से जब भी मैंने नमो ऐप पर बिहार सरकार से सम्बंधित कोई भी शिकायत की है तो उसे लोकशिकायतों की कब्रगाह जिला लोक शिकायत में भेज दिया गया है और कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गई है. जबकि मामले को सीधे सम्बंधित विभाग में भेजा जाना चाहिए था. अब भारत की माननीया राष्ट्रपति जी बताएंगी कि बिहार की भ्रष्ट्राचारपीड़ित जनता जाए तो कहाँ जाए जबकि प्रधानमंत्री के स्तर तक तो कुछ होता नहीं. अब क्या हम अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय, हेग का रूख करें?
मित्रों, इतना ही नहीं बिहार में अदालत के फैसलों का भी कोई मतलब नहीं है. मान लिया आपने कोई जमीन का मुकदमा जीता और कोर्ट ने आपको दखल कब्ज़ा भी करवा दिया तो इसका मतलब यह नहीं कि आपका उस जमीन कर कब्ज़ा हो ही जाएगा. उधर कोर्ट के अधिकारी कब्ज़ा दिलवाकर वापस गए नहीं कि दबंग फिर से जमीन पर चढ़ जाएंगे और फिर से वही सारे चक्कर. बिहार में नीतीश राज में भी मुगलकालीन कहावत लागू होती है-जमीन जोरू जोर का नहीं तो किसी और का. कहने का तात्पर्य यह कि मोदीजी बुरा मानें या भला बिहार में कोई सुशासन नहीं है बल्कि आज भी बिहार में जंगलराज है. बिहार में पहले अपराधी जनता को लूटते थे अब सिस्टम लूट रहा है मगर पूरी खामोशी से. बिहार में आज भी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी काम नहीं करने के ऐवज में सरकार से वेतन लेते हैं और काम करने के बदले जनता से रिश्वत. लालू-राबड़ी राज से अंतर बस इतना है कि आज पटना उच्च न्यायालय नहीं कह रहा कि बिहार में जंगलराज है. मैं मोदी जी और नीतीश कुमार जी से हाथ जोड़कर विनती करना चाहूँगा कि सिर्फ दिखावा नहीं करिए वास्तव में धरातल पर काम होना चाहिए। और वास्तिवकता यह है जब आप बिहार के थाने में अपने मोबाइल के चोरी हो जाने की एफ़आइआर करने जाएंगे तो आपसे लिखवाया जाएगा कि मोबाइल चोरी नहीं हुआ खो गया है. इतना ही नहीं जब आपके किसी परिजन की हत्या हो जाती है और आप लाश लेने पोस्टमार्टम कक्ष में जाते हैं तो क्या मजाल कि बिना हजारों रूपये की रिश्वत लिए आपको अपने प्रियजन का शव दे दिया जाए. फिर न्याय मिलना तो दूर की कौड़ी रही. गुर्दाचोरी की शिकार सुनीता के साथ जो कुछ हुआ किसी से छिपा हुआ नहीं है. गजब तो यह कि कल जब प्रधानमंत्री बिहार में सुशासन होने के अद्भुत दावे कर रहे थे उसी दिन बिहार की राजधानी पटना के एक आश्रय गृह में जहरीला भोजन खाने से छः और १२ वर्ष की दो बच्चियों सहित तीन महिलाओं की मौत हो गई, वहीं 12 महिलाएं गंभीर रूप से बीमार पड़ गईं।
मित्रों, आज से डेढ़ सौ साल पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जो तत्कालीन शासन के बारे में कहा था वही बात दुर्भाग्यवश आज के राजनेताओं पर भी अक्षरशः लागू होती है फिर चाहे वो किसी भी पार्टी का कोई भी नेता हो-
भीतर भीतर सब रस चूसै।
हँसि हँसि कै तन मन धन मूसै।
जाहिर बातन मैं अति तेज।
क्यों सखि साजन नहिं अँगरेज।
गुरुवार, 7 नवंबर 2024
ट्रम्प की जीत और भारत
मित्रों, सारे पूर्वानुमानों को असत्य साबित करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं और वो भी भारी बहुमत से. पूरी दुनिया के देश इस समय उनकी जीत के दुनिया और अपने-अपने देशों पर पड़नेवाले प्रभावों का विश्लेषण करने में लगे हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ट्रम्प एक बेहद महत्वाकांक्षी, शक्तिशाली और एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके बारे में कोई भी पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है कि आगे किसी मुद्दे पर वो क्या करनेवाले हैं.
मित्रों, फिर भी दुनियाभर के विशेषज्ञों का अनुमान है कि ट्रम्प के दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के क्या परिणाम देखने को मिल सकते हैं. उदाहरण के लिए ट्रम्प यूक्रेन की मदद रोक सकते हैं, ईजराइल को और ताकत दे सकते हैं और चीन के प्रति काफी कठोर रवैया अपना सकते हैं. इसके साथ ही कदाचित पाकिस्तान के साथ-साथ बांग्लादेश की वर्तमान अवैध सरकार के प्रति भी ट्रम्प काफी कठोरता से पेश आएंगे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. हो सकता है कि फिर से बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली हो जाए और फिर से शेख हसीना वाजेद की प्रधानमंत्री के रूप में वापसी भी हो जाए क्योंकि ट्रंप पहले से ही मोहम्मद यूनुस के डेमोक्रेटिक पार्टी को अंधसमर्थन से नाराज़ हैं। अगर ऐसा होता है तो भारत के साथ-साथ बांग्लादेश का भी भला होगा जिसकी अर्थव्यवस्था इन दिनों वहां छाई अराजकता के चलते रसातल में जाती हुई दिखाई दे रही है.
मित्रों, पिछली बार जब ट्रंप जीते थे तब भी हमने एक आलेख के माध्यम से कहा था कि ट्रंप सबसे पहले अपने देश का भला देखेंगे बाद में किसी और का और वह बात इस बार भी लागू होती है। फिर भी इतना तो तय है कि भारत-अमेरिकी संबंधों में सुधार होगा जो जो वाईडन के कार्यकाल में अधोगति की तरफ जाने लगा था। वैसे भी भारत का वर्तमान नेतृत्व इतना कमजोर नहीं है कि उसे अमेरिका की जरुरत पड़े और इस सच्चाई से न तो चीन, न ही रूस, न ही यूरोप, न ही मणिशंकर अय्यर और न ही अमेरिका नावाकिफ है। वैसे एक समाचार यह भी है जो काफी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से बातचीत की और उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर फिर से बधाई दी। सूत्रों के अनुसार, दोनों नेताओं ने वैश्विक शांति के लिए साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई। बातचीत के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि पूरी दुनिया उन्हें प्यार करती है। उन्होंने भारत को एक महान देश और पीएम मोदी को एक महान नेता बताया।
बुधवार, 6 नवंबर 2024
बिहार कोकिला शारदा दी को श्रद्धांजलि
मित्रों, बिहार कोकिला शारदा सिन्हा इतनी जल्दी हमसे दूर चली जाएंगी और वो भी छठ पर्व के दौरान शायद ही किसी ने सोंचा था। वो शारदा सिन्हा ही थीं जिनके गाए हुए छठ गीतों को सुनकर हम सभी बड़े हुए हैं। अकस्मात कुछ दिन पहले समाचारों में आया कि वो गंभीर रूप से बीमार हैं। साथ ही यह भी पता चला कि उनके पति ब्रजकिशोर सिन्हा जी के सितम्बर में गुजर जाने का उनको गहरा सदमा लगा है जो शारदा दी जैसी कोमल और मधुर स्वभाव वाली महिला के लिए स्वाभाविक भी था।
मित्रों, हमारा तो उनसे कभी आमना-सामना नहीं हुआ लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से उनके साथ यदा-कदा विचारों का आदान-प्रदान हो जाता था। जहां तक मुझे याद आ रहा है जब हम नौ-दस साल के थे तब पहली बार उनके गाए छठ गीत सुनने का सौभाग्य मिला था। हमारे जिले की भाषा बज्जिका में गाया उनका गीत केरबा जे फरेला धऊड़ से ओई पर सुगा मडराए, मारबऊ से सुगबा धनुष से सुगा गिरे मुरझाए गीत तो इतना लोकप्रिय हुआ कि बाद में महाराष्ट्रवासी अनुराधा पोडवाल ने भी उसे गाया। साथ ही पनिया के जहाज से पल्टनिया बनी अईह गीत भी फिजाओं में गूंजने लगा था। अब जाकर पता चला कि यह गीत गिरमिटिया प्रथा के विरूद्ध गाया गया था।
मित्रों, इतना ही नहीं उनके गाए विवाह-गीतों के बिना शायद ही बिहार में कोई विवाह संपन्न होता था। फिर चाहे वो बबुआ देत काहे गारी बता द बबुआ गीत हो या अवध नगरिया से अईले दोनों भईया हाय रे जियरा या फिर कहवां से सिया दुल्हनिया पड़ेला झिरझिर बुनिया गीत हो।
मित्रों, पहले पहल हम शारदा दी को भोजपुरी गायिका समझते थे लेकिन बाद में पता चला कि उन्होंने तो बिहार की समस्त भाषाओं में गीत गाए हैं फिर चाहे भोजपुरी हो या मैथिली,अंगिका,मगही या बज्जिका. मैंने प्यार किया फिल्म में उनके द्वारा गाए गीत कहे तोसे सजना तोहरे सजनिया को भला कोई भूल सकता है क्या? क्या गरिमा, क्या सुर पर पकड़ थी शारदा दी की, अद्भुत! उन्होंने कभी भोजपुरी, मैथिली या अन्य किसी भी आंचलिक भाषा कोई अश्लील गीत नहीं गाया। बल्कि भगवान ने जितना दिया उतने में ही संतुष्ट रहीं। जब-जब बिहार सरकार ने विश्वविद्यालय शिक्षकों के प्रति अन्याय किया शारदा दी ने मिथिला विश्वविद्यालय के एक विश्वविद्यालय शिक्षक के रूप में उसका तीव्रतम विरोध किया।
मित्रों, कुछ दिनों पहले ही शारदा दी ने एक गजल सोशल मीडिया पर डाला था जिसमें उनको अपने बेटे-बेटियां के साथ मिलकर आज जाने की जिद न करो, मेरे पहलू में बैठे रहो गाते हुए देखा जा सकता था लेकिन तब हमें क्या पता था कि वो खुद इतनी जल्दी जाने की जिद कर देंगी। आज बिहार का उपवन सूना हो गया। वैसे जबतक धरती रहेगी बिहार-कोकिला के गाए गीत बिहार के हर घर में और हर आंगन में गूंजते रहेंगे। शारदा दी को हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि। अलविदा दीदी!
मंगलवार, 22 अक्तूबर 2024
चीन हारा सुनीता भी हारी
मित्रों, काफी दिन पहले मैंने एक फिल्म देखी थी जिसमें विलेन के पास उसका आदमी खबरें लेकर आता है और पूछता है कि उसके पास दो खबरें हैं एक अच्छी और एक बुरी, आप पहले किसे सुनना चाहेंगे? और जाहिर तौर पर विलेन पहले अच्छी खबर सुनाने को बोलता है।
मित्रों, ठीक उसी तरह आज मेरे पास एक अच्छी और बुरी खबर है। वैसे बचपन में जब हमारे पास खाने के लिए अच्छी और ज्यादा अच्छी चीज़ होती थी तब हम तो पहले अच्छी और बाद में ज्यादा अच्छी चीज खाते थे। खैर हम भी आपको पहले अच्छी खबर सुनाते हैं।
मित्रों, हुआ यह है कि हमारा पुराना दुश्मन चीन लद्दाख में भारत-तिब्बत सीमा पर साल 2020 वाली पुरानी स्थिति बहाल करने के लिए राजी हो गया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि चीन आगे बढ़कर पीछे हट जाए। ऐसा भारत सरकार और भारतीय सेना की दृढ़ता और बेजोड़ कूटनीति के चलते संभव हो सका है। हम बिहारियों के लिए यह उपलब्धि और भी ज्यादा गर्व करने लायक है क्योंकि गलवान में शहीद होनेवाले अधिकतर जवान बिहार रेजिमेंट के थे।
मित्रों, दरअसल चीन पुराने और नये भारत के अंतर को समझ नहीं पाया। अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा भी समझ नहीं पा रहे हैं। नया भारत न केवल आंखों में आंखें डालकर बात करना जानता है बल्कि उसे शत्रुओं की आंखें निकालकर गोटी खेलना भी न केवल आता है भाता भी है। न केवल भारत ने सीमा पर चीन को ईंट का जवाब पत्थर से दिया बल्कि वैश्विक कूटनीति में भी ऐसा धोबिया पछाड़ लगाया कि चीन को दिन में ही तारे नजर आने लगे। जहां मनमोहन सरकार के लिए सोनिया परिवार ही सबकुछ था मोदी सरकार के लिए देश ही सबकुछ है। बस इतनी-सी बात चीन की समझ में नहीं आई और उसने इसलिए मुंह की खाई।
मित्रों, जो लोग गरीबों को कीड़े-मकोड़े से ज्यादा नहीं समझते उनके लिए दूसरी खबर कोई मायने नहीं रखती लेकिन मेरे लिए इसकी अहमियत पहली खबर से कम नहीं है. हुआ यह है कि सुनीता जिन्दगी के लिए लड़ते-लड़ते हार गई है और उसका देहांत हो गया है. आप कहेंगे कौन-सी सुनीता, देश में तो रोजाना लाखो सुनीता मरती है. लीजिए आपकी याददाश्त भी भारतीय जनता की तरह कमजोर निकली. बता दें कि वर्ष 2022 में 11 जुलाई को मुजफ्फरपुर जिले की सकरा थाना क्षेत्र के बाजी राउत गांव की 35 वर्षीय सुनीता देवी जो चमार जाति से आती है के पेट में दर्द हुआ तो इलाज के लिए उसे डॉक्टर पवन कुमार के क्लिनिक लाया गया. डॉक्टर ने उसे गर्भाशय निकालने के लिए ऑपरेशन की सलाह दी. बरियारपुर स्थित शुभकांत क्लिनिक में 3 सितंबर 2022 को सुनीता के गर्भाशय का ऑपरेशन किया गया था, जो झोलाछाप डॉक्टर पवन कुमार ने किया था. उसने इस ऑपरेशन के लिए 30 हजार रुपए लिए थे. इसके बाद भी जब सुनीता की दिक्कत दूर नहीं हुई और पेट में दर्द होता रहा तो 5 सितंबर को सुनीता की तबीयत खराब होने पर उसे श्रीकृष्ण चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल लाया गया. यहां 7 सितंबर 2022 को जांच के बाद पता चला कि उसकी दोनों किडनी निकाल ली गई है. बता दें कि वर्ष 2022 में गलत ऑपरेशन का शिकार हुई सुनीता जो दो साल से डायलिसिस पर थी बीते साल सीएम नीतीश कुमार से भी मिली थी. इसके बाद सीएम नीतीश ने 5 लाख का चेक भी सरकार की ओर से दिया था. वहीं, बीते महीने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से भी की किडनी लगवाने की मांग की थी, लेकिन उनकी यह मांग अधूरी ही रह गई और अब उसने दम तोड़ दिया.
मित्रों, मैं पूछता हूँ कि बिहार और भारत सरकार का अरबों रूपयों का बजट किस काम का जब वो किसी गरीब सुनीता की जान न बचा सके? सुनीता और उसके परिवार को जो भोगना पड़ा और भविष्य में जो भोगना पड़ेगा उसके लिए दोषी कौन है? हमारा लचर कानून और उससे भी ज्यादा लचर और भ्रष्ट व्यवस्था? मैं चीन के खिलाफ भारत की बढ़त का स्वागत करता हूँ और तहे दिल से स्वागत करता हूँ लेकिन मैं सुनीता की हत्या की भारी मन से निंदा भी करता हूँ. क्योंकि हमारा तंत्र इतना ज्यादा भ्रष्ट हो चुका है कि कोई नहीं जानता कि कब किसे सुनीता बना दिया जाए. फिर किडनी तो गरीबों के कथित मसीहा लालू यादव की भी ख़राब हुई थी लेकिन उनके पास आज अरबों रूपये हैं इसलिए वो स्वस्थ हो गए लेकिन गरीब सुनीता को तो देर-सबेर मरना ही था ना, सो वो मर गयी और आगे भी मरती रहेगी यही तो लोकतंत्र है.
सोमवार, 30 सितंबर 2024
बिहार में पीके फिरकी तो नहीं ले रहा?
मित्रों, दस साल हो गए एक फिल्म आई थी और सुपर डुपर हिट भी रही थी. नाम था पीके. उस फिल्म में भगवान, खुदा और गॉड के नाम दुनिया में व्याप्त झूठ और पाखण्ड पर व्यंग्य किया गया था. अगर आपने वो फिल्म देखी है तो देखा होगा कि उस फिल्म का नायक पीके जो सुदूर दूसरे ग्रह से आया है धर्माधिकारियों को लेकर एक बात बार-बार कहता है कि ये फिरकी ले रहा है मतलब धोखा दे रहा है.
मित्रों, इन दिनों बिहार में भी एक पीके यानि प्रशांत किशोर आए हुए हैं और वे कतई दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं. श्रीमान इन दिनों गाँधी की तस्वीर लिए पूरे बिहार में घूम रहे हैं. उनका कहना है कि वे बिहार का कायाकल्प कर देंगे और बिहार सबसे निचले पायदान से सबसे ऊपर के पायदान पर पहुँच जाएगा. लोअर बर्थ से अपर बर्थ पर. उनका पूरा तौर-तरीका वही है जो २०१३-१४ में केजरीवाल का था. जहाँ केजरीवाल ने कथित जीवित गाँधी अन्ना हजारे को यूज किया वहीँ ये पीके गाँधी और गाँधीवाद के बल पर बिहार को जीतना चाहता है.
मित्रों, कहना न होगा कि भारत की आजादी के बाद से ही भारत को जितना गाँधीवादियों ने लूटा है किसी और ने नहीं लूटा. इतिहास साक्षी है कि पूरी मानवता के इतिहास में गाँधी से बड़ा कोई ढोंगी और पाखंडी हुआ ही नहीं. वह महान व्यक्ति दिन में महात्मा बना फिरता था और रातों में खुलेआम नंगी औरतों के साथ नंगा सोकर अपनी अतृप्त वासना को तृप्त करता था. इतना ही नहीं गाँधी ने भाईचारा की जिद में जितना हिन्दुओं और हिंदुस्तान को मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से नुकसान पहुँचाया आज किसी से छिपा हुआ नहीं है.
मित्रों, इन दिनों पीके भी उसी गाँधी की तरह खुलकर मुस्लिम तुष्टिकरण की बातें कर रहा है. इसने तो घोषणा भी कर दी है कि वो टिकट वितरण में मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात से कई गुना अधिक टिकट देगा. एक गाँधी ने भारत का बंटाधार कर दिया और अब पीके दूसरा गाँधी बनने का दावा करता फिर रहा है. सवाल उठता है कि क्या बिहार और भारत को एक और गाँधी की आवश्यकता है?
मित्रों, एक कहावत है कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली. सवाल उठता है कि २०१५ में क्यों पीके को बिहार का हित-अहित नजर नहीं आया जब वे बिहार में महागठबंधन को जिता रहे थे? तब उनको इस बात की चिंता क्यों नहीं थी कि महागठबंधन की जीत के बाद तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बनेंगे? क्या तब तेजस्वी यादव नौवीं फेल नहीं थे? इसी तरह आज के पश्चिम बंगाल में जो अराजकता और अत्याचार का माहौल है और जिस प्रकार बिहार के लालू राज की तरह आईएएस की पत्नी तक सुरक्षित नहीं है क्या उसके लिए प्रशांत किशोर की जिम्मेदारी नहीं बनती है जो पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के लिए रणनीति बना रहे थे?
मित्रों, आज वही प्रशांत किशोर जो पैसों के लिए किसी भी चोर-डाकू को चुनाव जितवा सकता था दांत में तिनका दबाकर खुद को पाक-साफ़ बताता फिर रहा है. कोई क्यों यकीन करे उस पर? कभी मुक्तिबोध में कहा था कि
जो है मुझे उससे बेहतर चाहिए,
पूरी दुनिया साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए.
प्रश्न उठता है कि क्या प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से बेहतर विकल्प हैं? हम पहले ही केजरीवाल को चुनकर दिल्ली में धोखा खा चुके हैं जो २०१३-१४ में पीके की तरह ही मीठी-मीठी बातें करते थे और अब १५६ दिनों तक जेल से शासन चलाकर अनचाहा और शर्मनाक विश्व रिकॉर्ड बना चुके हैं. तो क्या प्रशांत किशोर भी केजरीवाल साबित होने वाले हैं? उन्होंने सत्ताग्रहण के पंद्रह मिनट के भीतर बिहार में शराबबंदी समाप्त करने की घोषणा करके इस बात के संकेत भी दे दिए हैं। सवाल तो यह भी उठता है कि गांधी तो मद्यपान के विरोधी थे फिर ये प्रशांत किशोर किस प्रकार का गांधीवादी है?
मित्रों, एक समय बिहार के लोगों ने जगन्नाथ मिश्र की सरकार को हटाकर लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाया था पर मिला क्या? जंगलराज? इसी तरह क्या केजरीवाल शीला दीक्षित से बेहतर साबित हो रहे हैं? इसमें कोई संदेह नहीं कि नीतीश कुमार के शासन में बिहार का विकास हुआ है और तमाम कमियों के बावजूद स्थिति में सुधार हुआ है और निरंतर हो रहा है.
मित्रों, एक बात और इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बार का लोकसभा चुनाव परिणाम बिहार के लिए अनंत संभावनाएं लेकर आया है. विपक्ष तो आरोप भी लगा रहा है कि इस साल का आम बजट भारत का कम बिहार का बजट ज्यादा है. फिर क्यों न बिहार में डबल ईंजन की सरकार बनी रहने दी जाए? क्यों वर्तमान व्यवस्था के साथ छेड़-छाड़ की जाए और वो भी एक अविश्वसनीय पीके के कहने पर? आखिर क्यों बेवजह का जोखिम लिया जाए? बल्कि क्यों न वर्तमान सरकार को ही प्रभावी सुधार करने के लिए बाध्य किया जाए?
बुधवार, 18 सितंबर 2024
आतिशी राबड़ी हैं या मनमोहन
मित्रों, आम आदमी पार्टी (आप) की बैठक में दिल्ली की नई मुख्यमंत्री चुनी गईं आतिशी का कहना है कि वो इस जिम्मेदारी से खुश तो हैं, लेकिन उन्हें इसका भारी गम भी है कि अरविंद केजरीवाल सीएम नहीं रहेंगे। सोचिए, जो दिल्ली जैसे अहम प्रदेश जहां से पूरे भारतका शासन चलता है की मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं, वो खुलकर यह भी नहीं कह सकतीं कि हां, अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन अब वो यह कमान संभालने जा रही हैं। बल्कि वो यह कह रही हैं कि दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है और उसका नाम है- अरविंद केजरीवाल।
मित्रों, आतिशी ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, 'मैं आज ये जरूर कहना चाहती हूं आम आदमी पार्टी के सभी विधायकों की तरफ से, दिल्ली की दो करोड़ जनता की तरफ से कि दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है, और उस मुख्यमंत्री का नाम अरविंद केजरीवाल है।' आतिशी के इस बयान के बाद क्या विरोधियों का यह आरोप साबित नहीं होता है कि दिल्ली के असली मुख्यमंत्री तो इस्तीफे के बाद भी अरविंद केजरीवाल ही रहेंगे, आतिशी तो बस रबर स्टांप रहेंगी? ध्यान रहे कि यही छवि देश के लगातार दो बार प्रधानमंत्री रहे काफी पढ़े-लिखे मनमोहन सिंह की रही। तथ्यों, तर्कों और सबूतों के आधार पर एक बड़ा वर्ग मानता है कि 2004 से 2014 तक भारत की असली प्रधानमंत्री तो सोनिया गांधी थीं, मनमोहन सिंह तो बस यस मैन की भूमिका में फाइलों पर दस्तखत करने तक सीमित थे।
मित्रों, 2004 के लोकसभा चुनावों में 145 सीटों के साथ कांग्रेस पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। बीजेपी 138 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर खिसक गई। कांग्रेस पार्टी ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के साथी दलों के साथ केंद्र में सरकार बना ली। सोनिया गांधी प्रधानमंत्री की स्वाभाविक दावेदार थीं, लेकिन विदेशी मूल का मुद्दा उछला और सोनिया को कदम वापस खींचने पड़े। बीजेपी की धाकड़ नेता सुषमा स्वराज ने तब खुला ऐलान किया था कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं, तो वह राजनीतिक संन्यास ले लेंगी और अपना सिर मुंडवाकर जमीन पर सोएंगी।
मित्रों, विपक्ष के कड़े विरोध के आगे सत्ता की भूखी सोनिया को झुकना पड़ा। वो झुकीं, लेकिन हार मानने के बजाय बाजी अपने हाथों में रखी। सोनिया ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना। मनमोहन सिंह हमेशा से ब्यूरोक्रैट रहे, राजनेता नहीं। उनका ट्रैक रिकॉर्ड गारंटी दे रहा था कि वो कभी सोनिया की खिंची लक्ष्मण रेखा पार नहीं करेंगे। सोनिया को और क्या चाहिए था? दायरा क्रॉस करने की आशंका जिनसे थी, उन प्रणब मुखर्जी को सोनिया ने दरकिनार कर दिया था। बाद में प्रणब दा को राष्ट्रपति भवन भेज दिया गया।
मित्रों, हमारे यहां तेरहवीं को श्राद्ध होता है लेकिन मनमोहन सरकार के गठन के 13वें दिन ही राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) का गठन हो गया। सोनिया गांधी इसकी चेयरपर्सन बन गईं। एनएसी के गठन के पीछे दलील यह दी गई कि यूपीए के कई साथी दल हैं, जिनके साझा घोषणापत्र को लागू करने के लिए एक ऐसी संस्था की दरकार है जो सरकार को वक्त-वक्त पर सही सुझाव दे सके। लेकिन यह तो कहने की बात थी। सोनिया गांधी की अध्यक्षता में एनएसी के फैसले और सरकार में उसकी दखल के सबूत सामने आने लगे तो पता चल गया कि दरअसल असली पीएम सोनिया ही हैं, मनमोहन सिंह तो बस मुखौटा हैं।
मित्रों, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधीन सरकार का संचालन भले ही संवैधानिक रूप से स्वतंत्र था, लेकिन एनएसी के जरिए सोनिया गांधी की सीधी या परोक्ष भागीदारी ने इसे 'समानांतर सत्ता केंद्र' की शक्ति दे दी। बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों ने एनएसी को 'सुपर कैबिनेट' कहकर इसकी आलोचना की और कहा कि मनमोहन सिंह की सरकार पर सोनिया गांधी की छाया बनी हुई है। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे 'दो सत्ता केंद्रों' वाली सरकार कहा, जिसमें मनमोहन सिंह एक निर्वाचित और संवैधानिक प्रधानमंत्री थे, लेकिन निर्णय लेने में उनका योगदान लगभग शून्य था।
इन दोनों कार्यकाल में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह सरकार को कभी फ्री हैंड नहीं छोड़ा और उस पर साया बनकर मंडराती रहीं। 2014 में बीजेपी सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो सरकार ने एनएसी से जुड़ी सैकड़ों फाइलें सार्वजनिक कर दीं। वो फाइलें बताती हैं कि किस तरह देश को सूचना का अधिकार (आरटीआई) देने वाली एनएसी ने अपने ही कामकाज को गुप्त रखने का पक्का इतंजाम किया था। एनएसी ने 2005 में तय किया था कि उसके रिकॉर्ड सिर्फ एनएसी के सदस्य ही देख सकते हैं, वो भी तब जब सदस्य इसकी मांग करें। एनएसी की बैठकों में मंत्रियों और नौकरशाहों को बुलाया जाता था। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की फाइलें सोनिया गांधी के पास जाती थीं और वहां से पास होकर पीएमओ आती थीं। कई बार उलटा होता था। सोनिया गांधी की तरफ से ही फाइलें तैयार होकर पीएमओ आती थीं जिन्हें लागू करवाना मनमोहन सिंह सरकार के लिए अनिवार्य होता था। नो इफ, नो बट, सोनिया गांधी का निर्देश सर माथे पर। यही थी बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी जिम्मेदारी। मोदी सरकार की तरफ से सार्वजनिक की गई कई एनएसी फाइलें चीख-चीखकर यह सत्य बताती हैं। इन फाइलों से साफ झलकता है कि कैसे सोनिया गांधी के निर्देशों को मनमोहन सिंह को मानना ही पड़ता था।
मित्रों, केंद्र से अब रुख करते हैं बिहार का। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पशुपालन घोटाले में फंसे तो पटना के स्पेशल कोर्ट ने 25 जुलाई, 1997 को उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। इस कारण लालू ने उसी दिन मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कमान अपनी पत्नी राबड़ी देवी के हाथों सौंप दी। लालू ने सुप्रीम कोर्ट में पटना स्पेशल कोर्ट को चुनौती दी लेकिन 29 जुलाई को याचिका खारिज हो गई और अगले ही दिन 30 जुलाई, 1997 को लालू ने स्पेशल कोर्ट के सामने सरेंडर कर दिया। लालू प्रसाद यादव को कोर्ट से जेल भेज दिया गया। अब सवाल उठता है कि क्या आतिशी के रूप में दिल्ली को राबड़ी देवी मिल गई हैं या मनमोहन मिल गये हैं। इशारा साफ है- मुख्यमंत्री की कुर्सी भले ही आतिशी के पास हो, लेकिन असली ताकत तो केजरीवाल के पास ही रहेगी, निर्णय तो वही लेंगे इसे आतिशी भी मान ही चुकी हैं। राबड़ी देवी अशिक्षित थीं और आतिशी मनमोहन की तरह उच्च शिक्षित मगर दशा एक जैसी। राजनीति में खड़ाऊं पूजन की व्यवस्था से पद पाए लोगों की महत्वाकांक्षा भी जग सकती है। आतिशी को 'शीशमहल' अपने मोहपाश में बांधा पाता है कि नहीं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। यहां हम आपको यह भी बता दें कि कभी आतिशी के पिता विजय सिंह ने एक समय संसद पर हमले में शामिल आतंकी अफजल गुरु को फांसी से बचाने के लिए खून-पसीना एक कर दिया था। इतना ही नहीं नक्सल आतंकवाद के कट्टर समर्थक आतिशी मरलेना के कट्टर कम्युनिस्ट माता-पिता ने इनके उपनाम मरलेना में मर मार्क्स से जबकि लेना लेलिन से लिया है।
बुधवार, 11 सितंबर 2024
आखिर किसके विपक्ष में हैं विपक्ष के नेता राहुल
मित्रों, इन दिनों भारत की जनता एक सवाल से परेशान है और उसका उत्तर ढूंढ रही है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी आखिर किसके विपक्ष में हैं मोदी के या भारत के? दरअसल पिछले कई सालों से राहुल गाँधी जब भी विदेश जाते हैं तो भूल जाते हैं कि वो मोदी के खिलाफ बोलने के बजाए भारत के खिलाफ बोल रहे हैं.
राहुल भूल जाते हैं कि मोदी और भारत अलग-अलग चीज हैं दोनों एक नहीं हैं. माना कि राहुल गाँधी भारत को भारतमाता नहीं मानते लेकिन हैं तो भारत के ही. पहले जब वो सामान्य नागरिक या सांसद के रूप में विदेश की धरती से अपने देश के खिलाफ बोलते थे तब बात दूसरी थी लेकिन अब वो विपक्ष के नेता हैं, एक जिम्मेदार पद पर हैं. और विदेश में जाकर भारत के खिलाफ बोलना और दुश्मन देश चीन की स्तुति करना कहीं से लोकसभा में विपक्ष के नेता को शोभा नहीं देता.
मित्रों, विपक्ष के नेता अटलजी भी थे, आडवाणी जी थे. उन्होंने हमेशा सिर्फ सत्तारूढ़ दल की खिलाफत की कभी देश की खिलाफत नहीं की. फिर राहुल इस तरह विचित्र व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
जब सिखों को विमान तक में कृपाण ले जाने की अनुमति है तो फिर राहुल ने सिखों को लेकर अमेरिका में झूठ क्यों बोला? क्या राहुल अलग खालिस्तान चाहते हैं और अमेरिका भारत तोड़ो यात्रा पर गये थे? जिस तरह गांधी नेहरू ने भारत के तीन टुकड़े किये क्या राहुल भी चाहते हैं कि भारत के अनेक टुकड़े हो जायें? क्या राहुल को भी खालिस्तानियों ने केजरीवाल की तरह अरबों रूपये दिये हैं चीन के साथ तो उनका अग्रीमेंट ही है?
मित्रों, अंत में मैं उन सभी नेताओं से जो भारत को अपनी पुण्यभूमि नहीं मानते; यह कहना चाहता हूँ कि अगर आपको चीन या पाकिस्तान ज्यादा प्यारा लगता है और भारत से नफरत है तो आप भारत में क्या कर रहे हैं चीन-पाकिस्तान चले क्यों नहीं जाते?
शनिवार, 29 जून 2024
धारा ३५६ समाप्त किया जाए
मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि मुझे क्या हो गया है जो मैं भारत के प्रधानमंत्री से संविधान से धारा ३५६ को समाप्त करने की मांग कर रहा हूँ. तो भाई साब और बहन जी मैं बिल्कुल ठीक हूँ और पूरे होशो-हवास में यह मांग कर रहा हूँ. दरअसल पश्चिम बंगाल और केरल की पिछले कई सालों से चली आ रही स्थिति को देखकर मेरा मन बेहद क्रोधित और उद्विग्न है. इन दोनों राज्यों में विशेष रूप से बंगाल में लोकतंत्र पूरी तरह से समाप्त हो चुका है, भाजपा के मतदाताओं और महिला समर्थकों को सड़कों पर नंगा करके पीटा जा रहा है लेकिन मोदी जी जिद पकडे बैठे हैं कि वे कहीं भी धारा ३५६ का प्रयोग करेंगे ही नहीं भले ही उस राज्य में सारे-के-सारे भाजपा समर्थकों और कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या ही क्यों न कर दी जाए.
मित्रों, आप ही बताईए कि जो नेता या पार्टी अपने ही समर्थकों की रक्षा नहीं कर पाए उसे कोई क्यों वोट दे? इसी तरह भाजपा और मोदी जी ने अपने आधार मतदाताओं की उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में जमकर उपेक्षा की और फिर भी उम्मीद करते रहे कि वे उनको ही वोट देंगे परिणाम पूरी दुनिया के सामने है. मैं अपनी सीट हाजीपुर लोकसभा सीट की ही बात करूं तो न तो कोई बीएलओ हमें मतदाता पर्ची देने आया और न ही भाजपा या लोजपा का कोई पोलिंग एजेंट बूथ पर मौजूद था. यह तो संयोग था या फिर एनडीए समर्थकों का दृढ़निश्चय कि चिराग पासवान यहाँ से जीत गए.
मित्रों, विषयांतर के लिए क्षमा चाहता हूँ और मोदी जी से पूछना चाहता हूँ कि जब वो बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा ही नहीं सकते तो फिर संविधान में धारा ३५६ की जरुरत ही क्या है? फिर क्यों नहीं धारा ३७० की तरह इसे भी संविधान से हटा दिया जाए? सिर्फ ५६ ईंच बोल देने से किसी का सीना ५६ ईंच का नहीं हो जाता बल्कि उसे चरितार्थ भी करना पड़ता है. माना कि मोदी जी टीम इंडिया में विश्वास करते हैं लेकिन ममता तो ऐसा नहीं मानती? उसका तो एकदलीय शासन में विश्वास है लोकतंत्र में विश्वास ही नहीं है.
मित्रों, मोदी जी बंगाल के राज्यपाल की स्थिति कितनी दुर्बल बना दी है? कभी राज्यपाल की गाडी पर हमला हो जाता है तो कभी राज्यपाल को मुख्यमंत्री द्वारा किए गए अपमान के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करना पड़ता है. राज्य के संवैधानिक प्रधान की ऐसी दुर्गति? ५६ ईंच की कौन कहे मुझे तो लगता है कि मोदी जी के सीना है ही नहीं उसकी जगह पत्थर है. अगर सीना होता तो बंगाल में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर अवश्य चीत्कारता. जिस तरह भाजपा समर्थक महिला की नग्न परेड कराई गई है अब तक तो भाजपा को सडकों पर उतर जाना चाहिए था और पूरे बंगाल को ठप्प कर देना चाहिए था तो यह भी नहीं हो रहा है.
मित्रों, पहले भी अपने आलेख में मैं मोदी जी से निवेदन कर चुका हूँ कि मोदी जी को गाँधी नहीं सावरकर बनना होगा और अगर वे सावरकर नहीं बन सकते तो उनको योगी जी के लिए सिंहासन खाली कर देना चाहिए. गाँधी बननेवाले नेताओं की तो पहले से ही देश में कोई कमी नहीं थी. अच्छा हो कि मोदी जी समय निकालकर रणदीप हुड्डा की सावरकर फिल्म को एक बार देख लें शायद आधुनिक गाजी तुगलक मोदी जी को जोश आ जाए.
शुक्रवार, 7 जून 2024
रामचंद्र कह गए सिया से
मित्रों, कई दशक पहले गोपी फिल्म में एक गाना था कि रामचंद्र कह गये सिया से, ऐसा कलजुग आएगा, हंस चुगेगा दाना दुनका कौआ मोती खाएगा. इस बार के लोकसभा चुनाव परिणामों को देखकर यही कहा जा सकता है कि इस बार सच की हार हुई है और झूठ जीत गया है. यद्यपि मोदी जी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं तथापि उनके हाथ कमजोर हुए हैं और कमजोर भी किसने किया है? उनलोगों ने जिनके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया. हिन्दू ह्रदय सम्राट बाहुबली अपने लोगों कटप्पा द्वारा दिए गए धोखे से व्यथित है, भीतर-ही-भीतर रो रहा है ऊपर से कुछ बोल नहीं रहा.
मित्रों, किसने कल्पना की थी कि भाजपा अयोध्या की सीट हार जाएगी, किसने कल्पना की थी? उस अयोध्या की सीट जहाँ ५०० सालों के बाद मोदी जी के प्रयास से राम जी फिर से भव्य मंदिर में विराजे हैं. किसने कल्पना की थी कि कसाब को फांसी दिलवाने वाले उज्ज्वल निकम चुनाव हार जाएँगे और जेलों में बंद पंजाब और कश्मीर के दुर्दांत आतंकवादी चुनाव जीतकर माननीय बन जाएँगे? किसने कल्पना की थी कि पूर्व आईपीएस अन्नामलाई चुनाव हार जाएँगे और सनातन को बीमारी बतानेवाली पार्टी तमिलनाडु में क्लीन स्वीप करेगी?
मित्रों, सचमुच घनघोर कलयुग आ गया है. दुर्भाग्यवश हम हिन्दू बहुत आसानी से बहकावे और लालच में आ जाते हैं और इस बार तो हमने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं चलाई और बल्कि कुल्हाड़ी पर पैर मार लिया है. हम आखिर समय के संकेतों को क्यों नहीं समझ पा रहे? मैं यहाँ गैर यादवों की बात कर रहा हूँ क्योंकि यादव तो बहुत पहले से हिन्दू नहीं रहे. जेहादी अजगर छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी भ्रष्ट दलों की सहायता से सनातन को निगलने के लिए तैयार बैठा है. यूपी में सहारनपुर में मोदी जी को बोटी-बोटी कर देने की धमकी देनेवाले मसूद को भी आपने जितवा दिया. और कल-परसों से ही वहां के मुसलमान हिन्दुओं के घरों पर चढ़कर गालियाँ भी देने लगे हैं. कहाँ जाओगे भागकर सोंचा भी है?
मित्रों, बंगाल की हार के लिए मैं हिन्दुओं को नहीं बल्कि स्वयं मोदी जी को दोषी ठहराता हूँ. जब संविधान में अनुच्छेद ३५६ का प्रावधान किया गया है तो उन्होंने अब तक उसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया? सवाल उठता है कि जब आपके वोटरों को वोट गिराने ही नहीं दिया जाएगा तो आप जीतेंगे कैसे?
खैर, अब तो जो होना था हो चुका. अमित शाह जी का फेक वीडियो और कांग्रेस पार्टी की झूठी गारंटी अपना कमाल दिखा चुकी. हमारा क्या है, हम तो मोदी जी के साथ थे, हैं और रहेंगे. मोदी जी को उनके नए कार्यकाल के लिए शुभकामनाएँ और बधाई.
बुधवार, 1 मई 2024
अबकी बार ४०० पार
मित्रों, इन दिनों पूरा भारत चुनावी बुखार से तप रहा है. भारतीय जनता पार्टी अपने दो चिर विलम्बित वादों को पिछले कार्यकालों में पूरा कर चुकी है और अब बारी है सबसे बड़े वादे की अर्थात समान नागरिक संहिता की. यह ऐसा वादा है जो वादा मूलतः हमारे संविधान निर्माताओं ने देश की जनता से किया था. कांग्रेस पार्टी जिसकी संविधान सभा में सबसे बड़ी भागेदारी थी इस वादे को बहुत पहले भूल चुकी है और कई दशकों से भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने की बजाए गजवाए हिन्द लाने के कुत्सित प्रयास कर रही है. कांग्रेस पार्टी के इस बार के चुनावी घोषणा-पत्र को अगर हम देखें तो पाएँगे कि या तो वह स्वतंत्रता पूर्व मुस्लिम लीग का घोषणा-पत्र है या फिर वर्तमान पाकिस्तान का. उद्देश्य है हिन्दुओं में फूट डालना और मुसलमानों का शत-प्रतिशत मत प्राप्त करना. कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में हिन्दुओं के लिए कोई वादा किया ही नहीं है बल्कि उसके सारे वादे मुस्लिम-तुष्टिकरण की पराकाष्ठा हैं. राहुल गाँधी अपने भाषणों में जिस क्रांति का वादा कर रहे हैं वास्तव में वो इस्लामिक क्रांति है जो पिछली सदी में ईरान और अफगानिस्तान में देखने को मिली थी.
मित्रों, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अपना देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है. हमें शरियत और संविधान के मध्य चुनाव करना है. ५०० साल बाद मोदी जी की शुभेच्छा से रामलला अपने भवन में पधारे हैं और देश के माथे से धारा ३७० जिसने कश्मीर को हिन्दूविहीन बना दिया का कलंक मिटाया जा चुका है. भारत में पहली बार एक ऐसी सरकार सत्ता में है जिस पर दस साल तक लगातार सत्ता में रहने के बावजूद भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था नित नई ऊंचाई छू रही है, २५ करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं. पहली बार गरीबी मिटाना नारा न होकर एक हकीकत है. जो लोग सबसे ज्यादा जनसँख्या बढ़ाकर जनसँख्या जिहाद चला रहे हैं वही लोग सबसे ज्यादा बेरोजगारी का रोना रो रहे हैं.
मित्रों, हजारों सालों की गुलामी और बर्बादी के बाद यह चुनाव नहीं है बल्कि अवसर है हजारों सालों के लिए देश का उज्ज्वल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करने का. चुनना आपको है कि आपको २०१४ से पहले वाला बम विस्फोटों, बलात्कारों, घोटालों वाला भारत चाहिए या फिर मौर्य और गुप्त काल वाला विश्वगुरु भारत चाहिए. मुसलमानों का एक भी वोट जाया नहीं जानेवाला है यह निश्चित है मगर क्या हम ऐसी ही गारंटी मोदी जी को हिन्दुओं के मतों को लेकर दे सकते हैं? इस बार कांग्रेस द्वारा अतीत में गजवाए हिंद की दिशा में उठाए गए सारे नापाक क़दमों चाहे वो मुस्लिम पर्सनल लॉ हो या वक्फ बोर्ड को मिटाने की बारी है और इसके लिए समान नागरिक संहिता लाना ही एकमात्र समाधान है सिर्फ उत्तराखंड से कुछ नहीं होनेवाला इसे पूरे भारत में लागू करना होगा और उसके लिए चाहिए ४०० पार. क्या हम गारंटी पुरुष मोदी जी को ४०० पार की गारंटी दे सकते हैं?
बुधवार, 17 अप्रैल 2024
केके पाठक का बढ़ता पागलपन
मित्रों, दुनिया में कुछ लोग काम के पीछे पागल होते हैं तो कुछ नाम के पीछे। बिहार में एक आईएएस अधिकारी ऐसे ही हैं जो दिखावा तो काम का करते हैं लेकिन दरअसल उनका लक्ष्य सिर्फ नाम बटोरना है।
मित्रों, बिहार के उस पागल अधिकारी का नाम है केके पाठक। श्रीमान अपनी मर्जी के मालिक हैं। मंत्री यहां तक कि मुख्यमंत्री विधानसभा में कुछ भी बोलें इनको कोई मतलब नहीं। श्रीमान को हम नौकरशाही की पराकाष्ठा भी कह सकते हैं और निरंकुशता की चरम सीमा भी।
मित्रों, आपने माता दुर्गा की प्रतिमा को देखा होगा। माता की सवारी सिंह है जो शक्ति का प्रतीक है लेकिन लोक जन रंजन पद पंकज रूपी माता के पैरों तले है। लोकतंत्र में भी शक्ति यानि नौकरशाही को जनप्रतिनिधियों के पैरों तले होना चाहिए लेकिन केके पाठक जी ने तो हद ही कर रखी है। ये तो मुख्यमंत्री तक की नहीं मानते।
मित्रों, शिक्षा विभाग से पहले श्रीमान उत्पाद विभाग के सर्वेसर्वा थे। वहां भी इन्होंने हजारों ड्रोन खरीद डाले। कहा कि आसमान से शराब तस्करों की निगरानी करेंगे। मगर जब परिणाम शून्य बटा सन्नाटा रहा तब श्रीमान अधिकारियों के साथ गाली-गलौज करने लगे। शिक्षा विभाग में भी इन्होंने इन दिनों खूब बंदरकूद मचा रखी है लेकिन परिणाम अबतक शून्य बटा सन्नाटा ही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। अलबत्ता इन्होंने नाकारा शिक्षकों को बिहार सरकार का कर्मचारी जरूर बना दिया है।
मित्रों, जब श्रीमान सरकारी स्कूलों में कुछ खास सुधार नहीं कर पाए तो विश्वविद्यालय शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को तंग करने लगे और उनका वेतन-पेंशन रोक दिया। इतना ही नहीं सीधे राज्यपाल से उलझ भी गए जबकि कानूनन विश्वविद्यालय स्वायत्त संस्था होते हैं और राज्यपाल उनके कुलाधिपति होते हैं। न जाने कब बिहार के भूखे-प्यासे विश्वविद्यालय शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों को वेतन-पेंशन मिलेगा तीन महीनों से तो नहीं मिला है।
मित्रों, इतना ही नहीं अब तो श्रीमान ने चुनाव आयोग के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है जबकि पूरे देश में आचार-संहिता लागू है। मल्लब श्रीमान खुद को सबसे ऊपर समझते हैं. क्या पता कब सर्वोच्च न्यायालय और प्रधानमंत्री जी को भी कोई निर्देश दे डालें महामहिम राज्यपाल महोदय तक तो पहुँच ही गए हैं.
सोमवार, 1 अप्रैल 2024
एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग
मित्रों, यूं तो मैंने इन दिनों आलेख लिखना काफी कम कर दिया है. एक तो स्वास्थ्य साथ नहीं देता तो वहीँ दूसरी ओर निजी समस्याओं ने परेशान कर रखा है लेकिन पिछले दिनों घटी दो घटनाओं ने मुझे इस आलेख को लिखने के लिए बाध्य कर दिया है. पहली घटना १९ मार्च की है. मैं बता दूं कि मेरे घर के पीछे पहले महिला थाना था जो अब पुलिस लाइन, हाजीपुर के पास मुजफ्फरपुर रोड में चला गया है. जब तक मेरे पड़ोस में महिला थाना था तब तक मोहल्ले के दुसाधों की मौज रही. उनके ही बीच का एक दुसाध विनोद महिला थाने में दलाली जो करता था. तब भोर के ३-४ बजे से मोहल्ले के दुसाध थाना के शौचालय में शौच के लिए जाने लगते. दिनभर मोटर चलाते और ठंडा पानी से नहाते, कपडे धोते. कभी-कभी मोटर जल जाता तो विनोद बनवा देता, शौचालय भी साफ़ करवा देता. लेकिन हुआ यूं कि पिछले साल ५ सितम्बर को महिला थाना यहाँ से पुलिस लाईन में चला गया और यहाँ पहले साईबर थाना और बाद में जढुआ ओपी भी खुल गया. विनोद भी अब महिला थाना के नए परिसर में दलाली करने लगा. अब शुरू हुई परेशानी, नए पुलिसवाले दुसाधों को रोकने लगे जो स्वाभाविक भी था. क्योंकि दुसाधों को तो सिर्फ शौच करने से मतलब था साफ़ कौन करता या करवाता?
मित्रों, १९ मार्च को जब कोई दुसाध थाना परिसर में शौच करने और कूड़ा फेंकने आया तो थानेदार धर्मेन्द्र ने उसे रोकने की कोशिश की. फिर क्या था एससी एक्ट की ऐंठन से ऐंठे युवक ने भाई के साथ मिलकर थानेदार को उठाकर पटक दिया. थानेदार जान बचाकर भागे क्योंकि उस समय थाना में मात्र २-३ पुलिसकर्मी ही थे जबकि कुछ ही मिनट में दुसाधों ने थाना को घेर लिया और पथराव करने लगे. साथ ही थाना के सामने की सड़क को जाम कर थानेदार को एससी-एसटी एक्ट में फंसा देने की धमकी देने के साथ-साथ भद्दी-भद्दी गालियाँ भी देने लगे. हंगामा बढ़ता देख नगर थाना को फोन किया गया. जब भारी संख्या में पुलिस फ़ोर्स जमा हो गई तब एक महिला सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया जिनको बाद में जेल भेज दिया गया. विनोद पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया गया. इन दिनों वो फरार चल रहा है. साथ ही थानेदार का तबादला कर दिया गया.
मित्रों, अब आते हैं दूसरी घटना पर जो होली के दिन की है. हुआ यूं कि वैशाली जिले के ही महनार थाना के जगरनाथपुर में गाँव के ही चमारों ने एक पीपल के पेड़ पर नीला झंडा लगा दिया और वहां लिखकर टांग दिया कि यहाँ राजपूतों का प्रवेश निषेध है. चूँकि पीपल का पेड़ राजपूतों की जमीन पर था इसलिए जब राजपूत विरोध करने के लिए पहुंचे तब योजनाबद्ध तरीके से उनके ऊपर लाठी और ईट-पत्थरों से हमला कर दिया गया जिससे कई राजपूत युवक लहू-लुहान हो गए. गजब तो तब हुआ कि जब वे लोग थाना पर केस करने पहुंचे तो उलटे उन चारों राजपूतों को एससी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. मतलब कि मार भी उनको ही पड़ी और जेल भी उनको ही जाना पड़ा. साथ ही केस में नाम होने के चलते कई राजपूत बेवजह इन दिनों फरारी का जीवन जी रहे हैं जबकि किसानों के लिए यह समय काफी महत्वपूर्ण है.
मित्रों, समझ में नहीं आता कि इस एससी-एसटी एक्ट को मोदी सरकार ने संशोधित क्यों किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके भारी संख्या में दुरुपयोग को देखते हुए इस एक्ट के मामले में जांच से पहले गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी? रोजाना उत्तर प्रदेश से इस एक्ट के दुरुपयोग की खबरें हम अब तक पढ़ते आ रहे थे लेकिन अब तो बिहार में भी इसका दुरुपयोग होने लगा और मेरी आँखों के आगे हो रहा है. यहाँ मैं पूछना चाहते हूँ कि अगर धर्मेन्द्र थानेदार नहीं होते तो इस समय जेल में कौन होता? उनके ऊपर हमला करनवाले दुसाध या खुद धर्मेन्द्र? इस तरह तो गैर अनुसूचित जाति के हिन्दुओं का खुद अपने ही गाँव में रहना मुश्किल हो जाएगा साथ ही नौकरी करने में भी समस्या आएगी. जब थानेदार को एक्ट के दम पर थाना में पीटा जा सकता है तो आम आदमी की क्या बिसात?
बुधवार, 20 मार्च 2024
सावधान इंडिया, शांतिप्रिय समाज से सावधान
मित्रों, इतिहास गवाह है कि पिछले १४०० सालों में जितने निर्दोषों की हत्या कथित शांतिप्रिय लोगों ने की है उतनी कदाचित हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित राक्षसों ने भी नहीं की होगी. सब जानते हैं कि दुनिया भर में चल रही जेहादी हिंसा के लिए कुरान की २६ आयतें जिम्मेदार हैं लेकिन सब चुप हैं. न तो कमलेश तिवारी के हत्यारों की उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी, न ही कन्हैयालाल के हत्यारों की कन्हैयालाल से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी. जेहादी हिंसा के शिकार निर्दोष हिन्दुओं लिस्ट काफी लम्बी है इसलिए सीधे कल की बदायूं में घटी घटना पर आते हैं. हुआ यूं कि दो मुस्लिम पडोसी अपने हिन्दू पडोसी विनोद सिंह के घर पर ५००० रू. कर्ज मांगने के बहाने जाते हैं. स्वागत में जब उनकी पत्नी सुनीता चाय बनाने में लग जाती है तब साजिद नामक नमाजी दूसरी मंजिल पर चला जाता है और उनके तीनों बेटे आयुष (१२ वर्ष), हनी (८ वर्ष) और पीयूष पर उस्तरे से हमला कर देता है जिसमें आयुष और हनी गला काटे जाने के चलते तत्काल दम तोड़ देते हैं जबकि पीयूष किसी तरह भागने में सफल हो जाता है. इतना ही नहीं वह नरपिशाच गला काटने के बाद उन बच्चों का खून भी पीता है. उधर जावेद सुनीता के पास ही बैठा रहता है और उनकी खतरनाक योजना से अनजान सुनीता उसे 5000 रू दे भी देती है।
मित्रों, पिछले १४०० सालों से जेहादियों ने पूरी दुनिया में निर्दोषों की हत्या का जैसे ठेका लिया हुआ है. भला १२ या ८ साल के बच्चे से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है? उनलोगों ने उनका क्या बिगाड़ा होगा सिवाय हिन्दू माता-पिता से जन्म लेने के सिवाय? ७ अक्तूबर २०२३ को इजरायल में हमास ने जिस तरह की राक्षसी हिंसा का नग्न प्रदर्शन किया उसे पूरी दुनिया ने देखा है. भारत में भी चाहे 1920 के दशक में मोपलाओं द्वारा किया गया हिन्दू नरसंहार हो या 16 अगस्त 1946 को कोलकाता नरसंहार हो या 1990 में कश्मीर में किया गया हिन्दुओं का नरसंहार हो या फिर 2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस अग्रिकांड हो या फिर २०२० के दिल्ली के एकतरफा दंगे हों मानवता के हत्यारों द्वारा लगातार की गई रक्तरंजित हिंसा के बावजूद हम हिन्दुओं की आँखें बंद हैं और हम भाईचारे के गीत गाने में मगन हैं. हमें बहुत पहले सावधान हो जाना चाहिए था. हम यह नहीं कहते कि हमें उनपर हमला कर देना चाहिए लेकिन अपनी आत्मरक्षा के लिए हम पारंपरिक हथियार तो रख ही सकते हैं. साथ ही हमें झूठी धर्मनिरपेक्षता के खतरों को भी समझना होगा. इतना ही नहीं हमें आनेवाले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का हाथ मजबूत करना होगा और ४०० सीटों पर जिताना होगा अन्यथा भारत को भारत-विरोधी राक्षसी शक्तियों के हाथों में जाने से कोई नहीं रोक सकेगा. फिर हम हिंदुओं का वही होगा जो इन दिनों पाकिस्तान और बांग्लादेश में हो रहा है।
सोमवार, 29 जनवरी 2024
बिहार में दोषी कौन, नीतीश, लालू या कांग्रेस?
मित्रों, कई दशक बीत गए. पिताजी डॉ. विष्णुपद सिंह आर.पी.एस. कॉलेज, महनार, वैशाली के प्रधानाचार्य के पद से रिटायर हो चुके थे. बचे हुए शिक्षकों में प्रधानाचार्य बनने के लिए बड़ी मारा-मारी थी. तभी हमने सुना कि महाविद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक गिरी चाचा ने प्रधानाचार्य बनने के बाद पहनने के लिए कोट भी सिलवा लिया है हालांकि वरीयता क्रम के अनुसार उनके प्रधानाचार्य बनने में अभी देरी थी.
मित्रों, ठीक इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी साल २०१३-१४ से अचकन सिलाए बैठे हैं इस प्रतीक्षा में कि जब वो प्रधानमंत्री बनेंगे तब इसको पहनेंगे. इस तरह की एक और घटना महनार में रहते हुए हमें देखने को मिली थी. एक अधेड़ उम्र का बढ़ई बाल-बच्चेदार होते हुए भी शादी करने के लिए बेहाल था. महनार के माली टोला के युवकों ने एक बार उसको शादी करवा देने का लालच दिया. उन युवकों में से ही एक युवक को दुल्हन बना दिया गया. जमकर दावत हुई और सुहागरात के दिन जो होना था वही हुआ. जब पोल खुली तब बढ़ई ने लोगों को जमकर गाली दी.
मित्रों, माननीय नीतीश जी की हालत न सिर्फ गिरी चाचा से बल्कि उस बुजुर्ग बढ़ई से भी मिलती है. कोई भी उनको प्रधानमंत्री बनाने के सपने दिखाकर बेवकूफ बना जाता है जबकि उनके पास सिर्फ १६ सांसद है हालाँकि बिहार के पड़ोसी झारखण्ड में निर्दलीय भी मुख्यमंत्री हो चुका है. मान लिया कि नीतीश जी को प्रधानमंत्री के पद के झूठे सपने दिखाकर धोखा दिया गया लेकिन उनको चने के झाड़ पर चढ़ने को किसने कहा था? क्या वो भी राहुल गाँधी की तरह पप्पू हैं?
मित्रों, मैं यह नहीं कहता कि कल की नीतीश की पल्टी के लिए सिर्फ नीतीश जी ही दोषी हैं. उनको झूठे सपने दिखाकर मूर्ख बनानेवाले भी कम दोषी नहीं है लेकिन सबसे ज्यादा दोषी खुद नीतीश जी हैं इसमें कोई सन्देह नहीं. आखिर २०२० का विधानसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के साथ रहकर जीता था फिर उनको जनमत का अपमान करने का अधिकार किसने दिया था? इसी तरह उन्होंने २०१७ में भी जनमत को ठेंगा दिखाया था जो गलत था. खैर लौट के बुद्धू घर को आए और उम्मीद करता हूँ कि अब वो पलटी नहीं मारेंगे. शायद!
लेबल:
नीतीश,
बिहार में दोषी कौन,
लालू या कांग्रेस?
शुक्रवार, 12 जनवरी 2024
मेरे पिता स्व. डॉ. विष्णुपद सिंह
मित्रों, मेरे पिता स्व. डॉ. विष्णुपद सिंह को दुनिया से गए आज पूरे तीन साल हो चुके हैं. आज ही के दिन रात के ९ बजे उन्होंने स्थानीय गणपति अस्पताल में अंतिम सांस ली थी हालाँकि वे ५ जनवरी २०२१ से ही बेहोश थे. इन तीन सालों में मैं अपने ही पिता को शाब्दिक श्रद्धांजलि नहीं दे पाया जबकि गाहे-बेगाहे लिखना मेरी आदत रही है. दरअसल मेरे पिता मेरे सूर्य थे और उनका अस्त हो जाना जैसे मेरे जीवन में अकस्मात् शाम नहीं सीधे अर्द्धरात्रि ले आया. उस अँधेरे में मैं उन शब्दों को खोजता रहा जिन शब्दों द्वारा मैं अपने पिता के जीवन और मेरे जीवन में उनके महत्व को अभिव्यक्त कर सकूं. पिताजी को याद करते ही मेरा मन और मेरी लेखनी का भावुकता के मारे गला ही रूंध जाता और बात शुरू होने से पहले ही रूक जाती.
मित्रों, मेरे पिता मेरे गुरु, मेरे आदर्श, मेरे मार्गदर्शक सबकुछ एक साथ थे. वो इस घनघोर कलियुग में भी घनघोर ईमानदार और आदर्शवादी थे. जाहिर है उनका और हमारा जीवन घनघोर अभावों में बीता. चाहते तो अपने ईमान का सौदा करके वैभवपूर्ण जीवन जी सकते थे लेकिन निहायत नरम, विनम्र और लचीले स्वभाव वाले मेरे पिता ने इस एक मुद्दे पर कभी समझौता नहीं किया. हमेशा कर्ज में रहे लेकिन देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण को चुकता करने में कभी कंजूसी नहीं की. पटना यूनिवर्सिटी के टॉपर होते हुए भी आरपीएस कॉलेज, चकेयाज, महनार जैसे देहात में शिक्षण किया. खुद का चूल्हा भले ही जले या न जले गरीब विद्यार्थियों की फीस बेफिक्र होकर अपनी जेब से भर देते यहाँ तक कि कर्ज लेकर भी. अपने ३५-४० साल लम्बे अध्यापन काल के आरंभिक १५ वर्षों तक जब तक कॉलेज सरकारी नहीं हुआ था मामूली वेतन पर काम किया पर विद्यार्थियों को फ्री में ट्यूशन, गेस और नोट्स देते रहे. उनके नोट्स गागर में सागर होते. होते भी क्यों नहीं पिताजी एक साथ अंकगणित, हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी के विद्वान जो थे, इतिहास के तो वो प्राध्यापक ही थे.
मित्रों, उन्होंने एक साथ तीन पीढ़ियों को पढाया लेकिन उनका कॉलेज में कभी किसी से न तो झगडा हुआ और न ही बहस हुई. जब कभी छात्र आपस में मारा-मारी करने लगते तब पिताजी बिना कुछ कहे अपने कमरे से बाहर आकर बरामदे में खड़ा भर हो जाते क्षण भर में झगडा स्वतः बंद हो जाता.
मित्रों, पिताजी अजातशत्रु थे फिर भी अपनी ससुराल में उनको जमीन का मुकदमा लड़ना पड़ा ठीक उसी तरह जैसे धर्मराज युधिष्ठिर को दुर्योधन से लड़ना पड़ा था. पिताजी विनम्र थे लेकिन दृढप्रतिज्ञ भी थे. जो धर्मयुद्ध मेरी नानी श्रीमती धन्ना कुंवर ने प्रारंभ किया था उसे उन्होंने अंजाम तक पंहुचा कर छोड़ा. साथ ही उन्होंने जिस तरह मेरी नानी का ख्याल रखा आज भी पूरे ईलाके में मिसाल है.
मित्रों, मेरी पिताजी से कुछ शिकायतें भी हैं. उन्होंने कभी अपने परिवार और अपने परिवार के कल की चिंता नहीं की. साथ ही सिर्फ वो माँ को ही परिवार समझने लगे थे अपने एकमात्र पुत्र और पुत्रवधू की उन्होंने कभी क़द्र नहीं की. यही कारण था कि जब वे धराधाम से विदा हुए तब उनके सर पर अपनी छत नहीं थी और किराये के घर से ही उनका श्राद्ध हुआ और उनकी अटैची से सिर्फ ६०००० रू. ही निकले. फिर भी मैं अपने महान पिताजी को आज उनकी मृत्यु की तीसरी वार्षिकी पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. मुझे आज भी इस बात का मलाल है कि वे बिना कुछ कहे अचानक बेहोश हो गए और फिर होश में नहीं आए. मैं ८ दिनों तक अस्पताल की कुर्सी पर बैठे-बैठे माता भगवती से उनके फिर से उठ खड़े होने की प्रार्थना करता रहा लेकिन वो नहीं माने वर्ना माता उनकी बात काट ही नहीं सकती. पिताजी आप न सिर्फ मेरे पिता थे बल्कि आदर्श और गुरु भी थे और हमेशा रहेंगे. पिताजी मैं आपकी कमी रोजाना महसूस करता हूँ और प्रत्येक क्षण आपको याद करता हूं. आपको कोटिशः नमन बाबू. जब तक आप जीवित थे आपकी ख़ुशी में ही मैंने अपनी ख़ुशी समझी और अपना सबकुछ आपको समर्पित कर दिया. अब आप नहीं हैं तो मैं आपको अपने उद्गार चंद शब्दों के माध्यम से समर्पित करता हूँ.
जाना था हमसे दूर बहाने बना लिए,
अब तुमने कितनी दूर ठिकाने बना लिए....
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