शनिवार, 8 मई 2010

पादुकोपाख्यानम

 
आप अपने जूते-चप्पलों से क्या-क्या काम लेते है?जाहिर है कि पैरों में तो पहनते ही होंगे.आज नहीं अपने अविष्कार के समय से ही खुद पर काँटों से लेकर कीलों तक का प्रहार झेलकर हमारे पैरों की पूरे मनोयोग से रक्षा करनेवाले इन बेचारों की हमेशा उपेक्षा की गई है और इनसे सिर्फ पैरों में पहनने का काम लिया जाता रहा है.लेकिन कहते हैं कि कुत्तों के भी दिन आते हैं.तो इनकी उपेक्षा से द्रवित होकर कुछ लोगों ने इनसे एक ऐसा नेक काम लेना शुरू किया है जिसने इनकी प्रतिष्ठा में चार चांद लगा दिए हैं.वह काम हैं इनसे नेताओं पर निशाना लगाना.हालांकि ज्यादातर निशानेबाज चूंकि अप्रशिक्षित होते हैं इसलिए निशाना चूकने की सम्भावना ही ज्यादा होती है.लेकिन इतना निश्चित है कि यह निशाना नहीं लगा पाने के बावजूद अपने अभ्यासियों को पूरी दुनिया में प्रसिद्ध जरूर कर देता है.अभी तक इस खेल में बिहार पिछड़ रहा था.कोई भी खिलाड़ी आगे नहीं आ रहा था.यह हमारे लिए बड़े ही गर्व की बात है कि कल मुख्यमंत्री नीतीश पर दरभंगा में निशाना लगाकर एक युवक ने बिहार को दुनिया के सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया है हालांकि उसका निशाना भी चूक गया.अब देश ने बांकी खेलों में कौन-सा तीर मार लिया है जो उस अनाड़ी युवक पर दोष लगाया जाए.लेकिन अगर सरकार इस खेल पर थोड़ा-सा ध्यान दे तो हम निश्चित रूप से इस खेल में दुनिया में नंबर एक हो सकते हैं.मेरी सरकार से सभी जूता-चप्पल निशानेबाजों की तरफ से मांग है कि-१.जब भी नेताओं का भाषण हो तो भाषणस्थल  पर सबसे आगे का स्थान निशानेबाजों के लिए आरक्षित रखा जाए.२.इस विशेष प्रकार की निशानेबाजी को कानूनी रूप से दंडनीय की श्रेणी से बाहर कर दिया जाए.३.इस खेल में अच्छा प्रदर्शन करनेवाले खिलाड़ियों को ईनाम-पुरस्कार देकर प्रोत्साहित किया जाए.

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