शनिवार, 15 मई 2010
फ्लैट रेट समाप्त किया जाए
अपना देश विरोधाभासों का देश है और सबसे अधिक विरोधाभास अगर कहीं है तो वह है हमारे नेताओं और सरकारों की कथनी और करनी में.एक तरफ हमारे संविधान की प्रस्तावना में भारत को समाजवादी राज्य घोषित कर दिया गया है वहीँ दूसरी ओर हमारी सरकार की नीतियाँ पूरी तरह पूंजीवाद को बढ़ावा देनेवाली हैं.देश जब आजाद हुआ तो उम्मीद थी कि खनिज सम्पदा से भरपूर पिछड़े राज्यों का अब तीव्र गति से विकास होगा.परन्तु हमारे देश के पूंजीपति पिछड़े ईलाकों में जाने और पूँजी लगाने को तैयार नहीं थे वहां महानगरीय सुविधाओं का अभाव जो था.उन्होंने कथित समाजवादी भारत की केंद्र सरकार पर दबाव बनाया.सरकार तो पूंजीपतियों के दबाव में आने के लिए हमेशा व्यग्र तो रहती ही है.सो देश में फ्लैट रेट प्रणाली लागू कर दी गई.इसमें प्रावधान था कि उद्योगपतियों को देश में कहीं से कहीं भी खनिज की ढुलाई क्यों न करनी हो रेल भाड़ा एकसमान ही लगेगा.अब पूंजीपतियों के लिए खनिज उत्पादक क्षेत्रों में उद्योग लगाने की अनिवार्यता समाप्त हो गई.जो उद्योग झारखण्ड (तब के बिहार),बंगाल और छत्तीसगढ़ (तब के मध्य प्रदेश) में लगना था अब दिल्ली और मुंबई के आसपास लगने लगे.विस्थापित हुए वनवासी और आदिवासी और लाभ हुआ पंजाब,हरियाणा और महाराष्ट्र-गुजरात के लोगों को.जो रोजगार इन राज्य के लोगों को मिलना था मिला समृद्ध राज्य के निवासियों को.समृद्ध ईलाके और भी समृद्ध होते चले गए और पिछड़े ईलाके पिछड़ते गए.इसे ही तो कहते हैं माल महाराज के मिर्जा खेले होली.ऐसा भी नहीं था कि इन जगहों पर रहनेवाले लोग वस्तुस्थिति को समझ नहीं रहे थे उनमें नाराजगी का उत्पन्न होना भी स्वाभाविक था.नाराजगी को हवा दे दी नक्सलियों ने और आदिवासियों के हाथों में बन्दूक थमा दी.यह कोई संयोग नहीं है जिन क्षेत्रों में खनिज प्रचुरता से मिलते हैं नक्सलवाद भी उन्ही ईलाकों में ज्यादा है.अगर केंद्र सरकार एकसमान भाड़ा प्रणाली को जितनी जल्दी हो सके समाप्त कर देती है तो निश्चित रूप से यहाँ के निवासियों की एक चिरप्रतीक्षित मांग पूरी हो जाएगी जिससे उनकी आहत भावनाओं को मरहम लगेगा और उनका नक्सली गनतंत्र के बदले भारतीय गणतंत्र में विश्वास बढेगा.इन क्षेत्रों में आधारभूत संरचना का विकास होगा और यहाँ के युवकों को रोजगार मिलेगा.सरकार अगर वास्तव में नक्सली उग्रवाद को जड़ से समाप्त करना चाहती है तो उसे यह शुभ काम जल्दी-से-जल्दी कर लेना चाहिए.अन्यथा भारत तो विरोधाभासों का देश है ही.
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