सोमवार, 17 मई 2010
देश में विधि का शासन सुनिश्चित करे केंद्र
अगर मुझसे कोई पूछे कि अंग्रेजो की भारत को सबसे बड़ी देन क्या है तो मैं एक क्षण का विलम्ब किये बिना कहूँगा विधि का शासन.अंगरेजी शासन ने घोषित किया कि ब्रिटिश भारत में अब विधि का शासन होगा यानी कानून की नज़र में सब बराबर होंगे.अंग्रेजों ने काफी हद तक इसे सुनिश्चित भी किया.आजादी के बाद के कुछ सालों तक विधि का शासन कायम रहा.लेकिन आज देश में किसी भी तरह से विधि का शासन नहीं है.जो अपराधी जितने बड़े रसूखवाला है कानून के शिकंजे से वह उतना ही सुरक्षित है.न्याय मिलने में इतनी देर लग रही है कि न्यायपालिका का कोई मतलब ही नहीं रह गया है.वह पूरी तरह निरर्थक हो चुकी है.सी.बी.आई. और राज्य पुलिस सहित सभी जाँच और अभियोजन एजेंसियां राजनीतिज्ञों के ईशारों पर काम कर रही हैं ऊपर से इनमें भ्रष्टाचार का व्यापक पैमाने पर बोलबाला है.किसी मामले में जब अभियोजन एजेंसी ही अपराधी का बचाव करने लगती है तब न्यायपालिका के पास उसे बरी कर देने के अलावा और विकल्प भी क्या बचता है?सिख-विरोधी दंगे के आरोपियों को घटना के २६ साल बाद भी सजा नहीं मिल पाई है और न्यायपालिका और अभियोजन पक्ष के बीच आँख-मिचौनी का खेल बदस्तूर जारी है.भोपाल गैस दुर्घटना सहित सैकड़ों दशकों पुराने मामलों में पीड़ितों को न्याय मिलने का इंतजार है.क्या उनका इंतजार अंतहीन साबित होगा?
अब भारतीय राजनीति में एक नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है.दलित राजनीतिज्ञों को जैसे भ्रष्टाचार का विशेषाधिकार मिल गया है.राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह के परिवार पर रिश्वत खाने का आरोप लगता है और वह पदच्युत करने पर आत्महत्या कर लेने की धमकी देते हैं.मामले को दलित राजनेता से सम्बद्ध होने के चलते दबा दिया जाता है.इसी प्रकार संचार मंत्री राजा को प्रमाण होने के बावजूद भ्रष्टाचार के आरोपों से अभयदान मिल जाता है क्योंकि वे जन्मना दलित हैं.मायावती तो दलितों को मिले भ्रष्टाचार के विशेषाधिकार की प्रतीक ही बन गई हैं.सरकार को चाहिए कि वह इन राजनेताओं को इनके अपराधों के लिए सजा सुनिश्चित करे या फ़िर संविधान और आई.पी.सी. में परिवर्तन कर उसमें इस तरह के प्रावधान डाल दे जिससे कि सभी दलितों को भ्रष्टाचार का विशेषाधिकार मिल जाए.आखिर इस अघोषित अधिकार का लाभ सिर्फ राजनेता ही क्यों उठायें?साथ ही केंद्र को संविधान में संशोधन कर इस बात की स्पष्ट घोषणा कर देनी चाहिए कि भारत में विधि का शासन नहीं है बल्कि यहाँ जिसकी लाठी उसकी भैंस चरितार्थ हो रही है अथवा वह देश में वास्तविक रूप से विधि का शासन सुनिश्चित करे.यदि ऐसा हो जाता है और भारतीय लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ भली-भांति अपना कार्य करने लगते हैं तो यह कहना किसी भी तरह से अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत में रामराज्य आ जायेगा और अगर ऐसा नहीं होता है तो देश धीरे-धीरे अराजकता की धुंध में खो जायेगा.
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