शनिवार, 1 मई 2010
दलालों से सावधान
आपने शहरों में ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों के बाहर एक बोर्ड लगा हुआ अक्सर देखा होगा-कुत्तों से सावधान.लेकिन आपने कहीं भी इस तरह का बोर्ड नहीं देखा होगा कि दलालों से सावधान.जबकि इस प्रजाति के सदस्य तो खतरनाक विशालकाय कुत्तों से भी ज्यादा खतरनाक हैं.इनमें एक साथ कई जानवरों के गुण जो हैं.ये बिल्ली की तरह चतुर हैं और शातिर भी.इनकी बोली कोयल से भी ज्यादा मीठी है और नजर बाज से भी तेज.इतना ही नहीं ये आदमी की तरह धोखेबाज और झूठे भी हैं. मैं अपने एक लेख में पहले ही भारत में पनप रही दलाल संस्कृति के प्रति पाठकों को आगाह कर चुका हूँ लेकिन इन दिनों सबकुछ जानते-समझते हुए भी मैं दलालों से बच नहीं पा रहा हूँ.इन दिनों मेरे शहर हाजीपुर में जमीन की दलाली का व्यवसाय पूरे जोर पर है.मैं ठहरा बेघर सो अगर घर चाहिए तो जमीन तो लेनी ही पड़ेगी.मैंने कई पूर्व परिचितों से संपर्क किया.उन्होंने मेरे लिए प्रयास भी किये लेकिन सबने ५० हजार से लेकर २ लाख तक की दलाली खाने की कोशिश की.इससे पहले मैं अपने गाँव के ही एक शिक्षक से धोखा खा चुका हूँ इसलिए इन मृदुभाषियों पर मेरा विश्वास नहीं जम पाता.वैसे भी लोग हमेशा अपनों से ही धोखा खाते हैं.इसलिए जांचना-परखना मेरी आदतों में शामिल हो चुका है और जैसे ही मुझे संदेह होता है कि मेरे साथ धोखा हो सकता है मैं जमीन लेने से मना कर देता हूँ.अब एक प्लाट को लीजिये दलाल के अनुसार वह प्लाट पूरी तरह से झंझटरहित है लेकिन मुझे पता चला कि प्लाट तो मुक़दमे में फँसा हुआ है.मैंने दलाल से जब पूछा तो उसने मुकदमा होने की बात तो स्वीकार की लेकिन यह भी कहा कि मुक़दमे में जमीन मालिक जीत चुका है.जब हमने उससे डिग्री के कागजात मांगे तो नानुकुर करने लगा.अंत में मैंने उससे मुकदमे का नंबर माँगा.वह कल होकर एक कातिब के साथ प्रकट हुआ.कातिब ने हमें जो डिग्री के कागज़ दिखाए उसके अनुसार दूसरा पक्ष सचमुच मुकदमा हार चुका था.हमने कातिब के द्वारा आश्वस्त करने और मना करने के बावजूद केस नंबर नोट कर लिया.अदालत से पता लगाने पर पता चला कि मुक़दमा अब भी चल रहा है और दोनों पक्षों की ओर से गवाही चल रही है.हमने दलाल को बताया और मिलने को कहा लेकिन दलाल गायब है और अब हमारे पास आने का नाम ही नहीं ले रहा है.यानी इस शहर में आपको बसना है तो आँख-कान के साथ ही दिमाग को भी खुला रखना पड़ेगा अन्यथा आप कभी भी ठगे जा सकते हैं और आपकी जीवनभर की कमाई पानी में जा सकती है.बाद में हमने एक और जमीन के लिए बात की.जमीन की देखभाल एक यादवजी करते हैं और उनका पूरा कुनबा जमीन दलाली के पेशे में लगा हुआ है.उन्होंने जमीन का बाजार मूल्य ८ लाख प्रति कट्ठा बताया और कम कराने के लिए प्रयास करने का वादा किया.लेकिन यह तो शुरुआत भर थी.दो दिन बाद उसने बताया कि भूमिपति जमीन का दाम १० लाख से काम करने के लिए तैयार ही नहीं है.जब हमसे अडवांस में एक लाख रूपये की मांग की गई तो हमारे मन में संदेह उत्पन्न हो गया. हमने जब आस-पास के लोगों से पूछा तो पता चला वह जमीन किसी भी तरह ७ लाख रूपये से ज्यादा की नहीं है और इसमें यादवजी और एक मेरे रिश्तेदार कम-से-कम २ लाख रूपया दलाली खाने के चक्कर में हैं.बहुत पहले मैंने संस्कृत में एक कहानी पढ़ी थी जिसमें चार ठग मिलकर एक बकरा ले जा रहे किसान को यकीन दिला देते हैं कि उसका बकरा बकरा नहीं है बल्कि कुत्ता है और इस प्रकार वह सीधा-सादा किसान ठगा जाता है.मेरे शहर में पांव के नीचे जमीन तलाशनेवालों की स्थितियां भी इससे अलग नहीं है.चार दलाल लोग मिलकर किसी भी जमीन का मूल्य फर्श से अर्श तक पहुंचा सकते हैं और बिडम्बना तो यह है कि ठगा जाने वाला सबकुछ जानते हुए भी सिवाए ठगाने के और कुछ भी नहीं कर पाता है. जिस तरह हरि की लीला अपरम्पार है उनकी कथाएं अनंत हैं उसी तरह दलालों की महिमा भी अपरम्पार है और उनकी कथाएं भी. इसलिए इन लीलाधारियों की कुछ लीलाओं को मैं भविष्य के लिए भी छोड़ रहा हूँ इमरजेंसी के लिए, क्या पता कब मेरे पास बातों की कमी पड़ जाए.
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