शनिवार, 29 मई 2010

पत्रकारिता के सम्बन्ध में ओशो के विचार

जीवन का ऐसा कोई भी पहलू नहीं है जिस पर प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक ओशो रजनीश ने अपने विचार व्यक्त नहीं किये हों.पत्रकारिता भी इनमें से एक रही है.ओशो के अनुसार पत्रकारिता सिर्फ एक व्यवसाय न हो.इसे मनुष्यता के प्रति एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व समझा जाना चाहिए.यह साधारण व्यवसाय नहीं है,यह सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं है.मुनाफे के लिए बहुत-से व्यवसाय पड़े हैं,कम-से-कम पत्रकारिता को अपने मुनाफे के लिए भ्रष्ट मत करो.पत्रकारिता को अपने मुनाफे का बलिदान देने के लिए तैयार होना पड़ेगा,तभी वह लोगों की रूग्ण जरूरतों को ही पूरा नहीं करेगी,बल्कि उनके मौलिक और बुनियादी कारणों को प्रकट कर सकेगी,जो दूर किये जा सकते हैं.
                पत्रकारिता व्यवसाय नहीं,एक क्रांति होनी चाहिए.बुनियादी रूप से पत्रकार एक क्रांतिकारी व्यक्ति होता है,जो चाहता है कि यह दुनिया बेहतर हो.वह एक युयुत्स है और उसे सम्यक कारणों के लिए लड़ना है.मैं पत्रकारिता को अन्य व्यवसायों में से एक नहीं मानता.मुनाफा ही कमाना हो तो ढेर सारे व्यवसाय उपलब्ध हैं;कम-से-कम कुछ तो हो जो मुनाफे के उद्देश्य से अछूता रहे.तभी यह संभव होगा कि तुम लोगों को शिक्षित कर सको,जो गलत हैं उनके खिलाफ विद्रोह करने की शिक्षा उन्हें दे सको;जो भी बात विकृति पैदा करती है,उसके खिलाफ उन्हें शिक्षित कर सको.
                                    पत्रकारिता और अन्य समाचार माध्यम इस संसार में एक नई घटना है.इस तरह की कोई प्रणाली गौतम बुद्ध और जीसस के समय नहीं थी.उस वक्त जो दुर्घटनाएं होती थीं,उनका हमें कुछ पता नहीं है,क्योंकि उस समय कोई समाचार माध्यम नहीं था.समाचार माध्यमों के आगमन से बिलकुल ही नई बात पैदा हुई है,जो भी अशुभ है,जो भी बुरा है,जो भी नकारात्मक है-फ़िर वह सच हो अथवा झूठ,वह सनसनीखेज बन जाता है,वह बिकता है.लोगों की उत्सुकता होती है बलात्कार में,हत्या में,रिश्वत में,सब तरह के अपराधी कृत्यों में,दंगे-फसादों में.चूंकि लोग इस तरह के समाचारों की मांग करते हैं इसलिए तुम संसार में जो भी अशुभ घाटा है उसे इकठ्ठा करते हो.फूलों का विस्मरण हो जाता है, केवल कांटें ही कांटें याद रह जाते हैं-और उनको बड़ा करके दिखाया जाता है.अगर तुम उन्हें खोज नहीं पाते हो तो तुम उन्हें पैदा करते हो क्योंकि अब तुम्हारी एक मात्र समस्या है-बिक्री कैसे हो?अतीत में हमें उन्हीं समाचारों का पता चलता था,जिन्हें शुभ समाचार कहें.शस्त्रों में चोरों या हत्यारों के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं लिखा जाता था.वही एक मात्र साहित्य था.पत्रकारिता ने अपराधियों के महान बनने की सम्भावना का द्वार खोल दिया.
                          स्वीडन में पिछले दिनों एक घटना घटी.एक आदमी ने एक अजनबी की हत्या कर दी और अदालत में उस हत्यारे ने कहा कि मैं अपना नाम समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठ पर देखना चाहता था.मेरी एकमात्र इच्छा यह थी कि अख़बारों में मैं अपना नाम छपा हुआ देख लूं.मेरी इच्छा पूरी हुई.यह सब गलत बातों पर ध्यान देने के कारण हैं.इसी वजह से एक बड़ा ही विचित्र व्यक्तित्व पैदा हो रहा है.
               समाचार माध्यमों को कुछ चीजों का बहिष्कार करना चाहिए.जिनसे परध पैसा होते हैं,लोगों के प्रति अमानवीयता पैदा होती है.लेकिन उनका निषेध करने की बजाय तुम उनसे मुनाफा कमाते तो,उनके बल पर समृद्ध होते हो,बिक्री बढ़ाते हो परन्तु इस बात की ओर जरा भी ध्यान नहीं देते कि इसके अंतिम परिणाम क्या होंगे?
               पुराने अर्थशास्त्र की धारणा थी कि मांग होने पर पूर्ति होती है.लेकिन नवीन अन्वेषण बताते हैं कि जहाँ पूर्ति होती है वहां धीरे-धीरे मांग पैदा हो जाती है.पत्रकारिता को न मात्र लोगों की जरूरतों को पूरा करने की ओर ध्यान देना चाहिए बल्कि उसे स्वस्थ पूर्ति भी पैदा करनी चाहिए,जो लोगों में स्वस्थ मांग पैदा करे.लोग विज्ञापन क्यों देते हैं?खासकर अमेरिका में,वह उत्पादन तो दो साल बाद बाजार में आता है और उसका विज्ञापन दो साल पहले शुरू हो जाता है.इस प्रकार पहले पूर्ति होती है,वह पूर्ति मांग पैदा करती है.इसलिए बड़े-बड़े विज्ञापनों की जरूरत होती है.
                                      मैंने पूरे विश्व की यात्रा की है और मैं हैरान हुआ हूँ क़ि यह तथाकथित समाचार माध्यम,अगर उसे कुछ नकारात्मक नहीं मिलता तो वह उसे पैदा करता है.हर प्रकार के झूठ निर्मित किये जाते हैं.वह लोगों के दिमाग में यह ख्याल पैदा नहीं करता क़ि हमारी प्रगति हो रही है;हम विकसित हो रहे हैं;क़ि हमारे भविष्य में इससे बेहतर मनुष्यता होगी.वह सिर्फ यही ख्याल पैदा करती है क़ि रात घनी से घनी होती चली जाएगी.समाचार पत्र,आकाशवाणी के प्रसारणों,दूरदर्शन,फिल्मों पर एक नजर डालें तो ऐसा लगता है क़ि अब नरक की ओर जाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा है.
                              हमारे पाठक भी कुछ कम नहीं हैं.अख़बार में अगर कुछ हिंसा नहीं हुई हो,कहीं कोई आगजनी न हुई हो,कहीं लूटपाट न हुई हो,कोई डाका न पड़ा हो,कोई युद्ध न हुआ हो,कहीं बम न फटा हो तो तुम अख़बार पढ़कर कहते हो कि आज तो कोई खबर ही नहीं है.क्या तुम इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे?क्या तुम सुबह-सुबह उठ कर यही अपेक्षा कर रहे थे कि कहों ऐसी घटना हो?कोई समाचार ही नहीं है.तुम्हें लगता है कि अख़बार में जो खर्च किये,वे व्यर्थ गए.अख़बार तुम्हारे लिए ही छपते हैं.इसलिए अख़बार वाले भी अच्छी खबर नहीं छापते.उसे पढने वाला कोई नहीं है,उसमें कोई उत्तेजना नहीं है,उसमें कोई सेंसेशन नहीं है.पत्रकारिता पश्चिम की दें है.पत्रकारिता को स्वयं को पश्चिम से मुक्त करना है और फ़िर अपने को एक प्रमाणिक , मौलिक आकर देना है.यदि तुमने पत्रकारिता को आध्यात्मिक आयाम दिया तो आज नहीं कल पश्चिम तुम्हारा अनुसरण करेगा.क्योंकि वहीँ तीव्र भूख है,गहन प्यास है.
                             स्वस्थ पत्रकारिता को विकसित करो.ऐसी पत्रकारिता विकसित करो जो मनुष्य के पूरे व्यक्तित्व का पोषण करे-उसका शरीर,उसका मन,उसकी आत्मा को पुष्ट करे;ऐसी पत्रकारिता जो बेहतर मनुष्यता को निर्मित करने में संलग्न हो,सिर्फ घटनाओं के वृतांत इकट्ठे न करे.माना कि नकारात्मकता जीवन का हिस्सा है,मृत्यु जीवन का हिस्सा है,लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें अपनी श्मशान भूमि बीच बाजार में बनानी चाहिए.तुम अपनी श्मशान भूमि शहर के बाहर बनाते हो,जहाँ सिर्फ एक बार जाते हो और फ़िर वापस नहीं लौटते.इसी कारण नकारात्मकता को मानसिक कुंठा मत बनाओ.नकारात्मकता पर जोर न दो वरन उसकी निंदा करो.यही स्वस्थ पत्रकारिता का लक्ष्य होना चाहिए.
                   समय आ गया है.पत्रकारिता एक नए युग का प्रारंभ बन सकती है.राजनीति को जितना पीछे धकेल सकते हो धकेलो.पत्रकारिता में बड़ी-से-बड़ी क्रांति करने की क्षमता है बशर्ते भारत में अलग किस्म की पत्रकारिता पैदा हो,जो राजनीति से नियंत्रित नहीं हो लेकिन देश के प्रज्ञावान लोगों द्वारा प्रेरित हो.पत्रकारिता का मूल कार्य होना चाहिए प्रज्ञावान लोगों को और उसकी प्रज्ञा को प्रकट करना.

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