सोमवार, 19 जुलाई 2010
मानवाधिकारों की कब्रगाह पाकिस्तान
१४ अगस्त १९४७ को पाकिस्तान बनते समय उम्मीद की गई थी कि वो मुसलमानों के लिए एक आदर्श देश साबित होगा और मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा भी था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश ज़रूर होगा मगर सभी आस्थाओं वाले लोगों को पूरी धार्मिक आज़ादी होगी।पाकिस्तान के संविधान में ग़ैर मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी के बारे में कहा भी गया है, “देश के हर नागरिक को यह आज़ादी होगी कि वह अपने धर्म की आस्थाओं में विश्वास करते हुए उसका पालन और प्रचार कर सके और इसके साथ ही हर धार्मिक आस्था वाले समुदाय को अपनी धार्मिक संस्थाएँ बनाने और उनका रखरखाव और प्रबंधन करने की इजाज़त होगी।” मगर आज के हालात पर ग़ौर करें तो पाकिस्तान में परिस्थितियाँ ख़ासी चिंताजनक हैं।सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही नहीं बल्कि बहुसंख्यकों को भी शरियत के आधार पर जीवन जीने को बाध्य किया जा रहा है. पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम प्रान्त के लाखों निवासियों के मानवाधिकारों के प्रति अंतर्राष्ट्रीय संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गंभीर चिंता व्यक्त की है.उसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान के इस प्रान्त के लोगों को किसी भी तरह का कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है और वे तालिबान के जुल्म को सहने को विवश हैं.स्कूलों पर तालिबान कब्ज़ा कर रहे हैं और बच्चों को सिखाया जा रहा है कि अफगानिस्तान में कैसे लड़ाई लड़ी जाए.लड़कियों को स्कूलों से निकाला जा रहा है और पुरुषों को दाढ़ी रखने पर मजबूर किया जा रहा है और प्रत्येक उस आदमी को धमकी दी जा रही है जिन्हें तालिबान पसंद नहीं करते.वास्तव में इस क्षेत्र की जनता तालिबानियों और सरकारी सुरक्षा बलों के बीच पिस रही है और निरुपाय है.ऊपर से अमेरिकी विमान आसमान से आँख मूँद कर बम गिरा रहे हैं जिससे भारी संख्या में महिलाओं और बच्चों सहित निर्दोष लोग मारे जा रहे है. संस्था की वर्ष २०१० की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार विरोधी संगठन देशभर में लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं.दूसरी ओर,सुरक्षा बल भी लोगों को फर्जी मुठभेड़ों में मार रहे हैं.देश भर में अल्पसंख्यकों की हत्या और उत्पीडन के मामले बढ़ रहे है और सरकार इन्हें सुरक्षा प्रदान करने में पूरी तरह विफल साबित हो रही है.तालिबान हिन्दू,सिख और ईसाइयों से जजिया कर वसूल रहे हैं या फ़िर उन्हें संपत्ति से बेदखल कर रहे हैं.उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध है.भारत के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन के पूर्व मौजूदा पाकिस्तान में रहनेवाले हिन्दुओं में से ज्यादातर पढ़े-लिखे और खाते-पीते परिवारों से थे.लेकिन बंटवारे के बाद सबकुछ बदल गया.विभाजन के दौरान मानव इतिहास के सबसे हिंसक सांप्रदायिक दंगे हुए और संपन्न हिन्दू भागकर भारत चले गए.पाकिस्तान में बच गए गरीब और लाचार हिन्दू.उनके पूर्वज सदियों से पाकिस्तान में रह रहे थे और उनका वहां की जमीन से गहरा लगाव था.इन हिन्दुओं में ज्यादातर सिंध प्रान्त में रहते थे और अब भी वहीँ रहते हैं.१९४१ की जनगणना के अनुसार सिंध में १६ लाख हिन्दू थे.बंटवारे के बाद जब हिंसा का ज्वार उतरा तब वहां ८ लाख हिन्दू बच गए थे.वर्तमान में सरकारी आंकड़ों के अनुसार उनकी संख्या करीब ४० लाख है लेकिन गैरसरकारी सूत्रों के अनुसार उनकी संख्या कम-से-कम ८० लाख है.समय-समय पर हिन्दुओं पर अत्याचार की घटनाएँ सामने आती रही हैं.१९९२ बाबरी-ढांचा के विध्वंस के जवाब में पाकिस्तान में कई हिन्दू मंदिरों को तोड़ डाला गया.इसी तरह का वाकया बलूचिस्तान के दिलबदीन में तब सामने आया जब एक हिन्दू औरत पर इल्जाम लगाया गया कि वह कुरआन के पन्नों पर मिठाइयां बँट रही है.इसी बात पर दंगे शुरू हो गए और एक मंदिर और चार घर जलाकर राख कर दिए गए.इन दंगों ने कम-से-कम तीन हिन्दुओं की जान ले ली.मानवाधिकार संगठनों के अनुसार पकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी समस्या धर्मपरिवर्तन की है.खास तौर पर लड़कियों को इस्लाम कबूल करने के लिए जबरदस्ती मजबूर किया जा रहा है.कई बार जब परिवारवाले विरोध करते हैं तब ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर दी जाती हैं जिसके चलते उन्हें गाँव ही छोड़ना पड़ जाता है.इतना ही नहीं पाकिस्तान के स्कूलों में हिन्दू अध्यापक नहीं रखे जाते और हिन्दू छात्र-छात्राओं को न चाहते हुए भी इस्लामिक शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है अन्यथा उनके अंक कम कर दिए जाते हैं.पाकिस्तान में सिर्फ अल्पसंख्यक ही बढती धार्मिक कट्टरता से परेशान नहीं हैं अपितु उदारवादी मुसलमान भी अपने को प्रताड़ित महसूस करते हैं क्योंकि ऐसे माहौल में कट्टरवाद के विरुद्ध आवाज उठाने का मतलब है जान-माल के लिए जोखिम मोल लेना.पाकिस्तान को उदारवादी इस्लामिक गणतंत्र बनाने का मोहम्मद अली जिन्ना सपना तो उनके जीते-जी ही चकनाचूर हो गया था, उनकी मौत के बाद पाकिस्तान में समय का चक्र उल्टा चलने लगा और पाकिस्तान २१वीं सदी में १६वीं-१७वीं का देश बन चुका है.आगे जो भी होने की आशंका है वह और भी भयावह होगा.अगर पूरे देश पर तालिबान का कब्ज़ा हो जाता है तब १९४७ से पहले भारत का हिस्सा रह चुका यह देश कबायली-युग में ही पहुँच जायेगा और मानवाधिकार जैसी बातें पूरी तरह से बेमानी हो जाएगी.
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