गुरुवार, 29 जुलाई 2010
कभी नाव पे गाड़ी कभी गाड़ी पे नाव
हमारे बिहार में एक कहावत खूब प्रचलित है कभी नाव पे गाड़ी कभी गाड़ी पे नाव.दुनिया में सारे रिश्ते समय से बंधे हुए हैं और समय कब किस ओर करवट ले उसके सिवा कोई नहीं जानता.अभी ६३ साल ही तो बीते हैं जब भारत इंग्लैंड का गुलाम था.हमारे लाखों जवानों ने शहादत दी तब जाकर अंग्रेज भारत छोड़कर भागे.तब भारत अंग्रेजों के लिए असभ्यों का देश था और इसे सभ्य बनाने को वे व्हाइट मेंस बर्डेन मानते थे.जब अँगरेज़ भारत को छोड़कर गए तो हमारे यहाँ उद्योग के नाम पर चंद सूती कपडा,जूट और चीनी बनाने की फैक्ट्रियों के सिवा कुछ भी नहीं था.सूई से लेकर हवाई जहाज तक इंग्लैंड से आता था.हमने कठिन परिश्रम किया और आज हम दुनिया की दूसरी सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था हैं.इंग्लैंड सहित सारे पूंजीवादी देश आज आर्थिक दिवालियेपन के कगार पर खड़े है और उनके लिए उम्मीद की बस दो ही किरणें दुनिया में बची हैं जो उन्हें इस अभूतपूर्व संकट से उबार सकती है और उनमें से एक तो चीन है और दूसरा है अपना प्यारा देश भारत.अभी भारत पर दो सौ सालों तक शासन करने वाले इंग्लैंड के कंजर्वेटिव प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भारत की यात्रा पर हैं.उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य है भारत के साठ हॉक प्रशिक्षण विमान खरीद सहित ऐसे व्यापारिक समझौते करना जिससे इंग्लैंड की दम तोड़ती अर्थव्यवस्था को ताकत मिले.शायद इसलिए इस बार उनकी भाषा बदली हुई है.उन्होंने पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में आतंकवाद के मोर्चे पर दोहरी नीति रखने से बाज़ आने को कहा है.बड़े ही आश्चर्य की बात है कि इंग्लैंड का प्रधानमंत्री वो भी कंजर्वेटिव भारत के पक्ष में बातें करें.वो भी इतने स्पष्ट रूप से जितनी स्पष्टता से शायद लेबर प्रधानमंत्री भी नहीं करता.गांधी जी अंग्रेजों की मानसिकता को तभी समझ गए थे.तभी तो उन्होंने कहा था कि इंग्लैंड बनियों का देश है कमोबेश आज भी उसका वही हाल है.अभी भारत से फायदा लेना है तो भारत के पक्ष में बोल रहा है.कल किसी और के पक्ष में बोलेगा.लोकतंत्र का प्रसार वगैरह सिर्फ किताबी बातें हैं असली चीज तो है आर्थिक लाभ.इसलिए भारत को इन पश्चिमी देशों को लेकर किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए.वैसे भी चाहे वो घरेलू राजनीति हो या वैश्विक राजनीति,राजनीति में न तो कोई किसी का स्थाई मित्र होता है और न ही स्थाई शत्रु.अतः भारत को अपनी मजबूत स्थिति का लाभ उठाने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए और दुनिया के किसी भी देश के साथ किसी भी तरह का समझौता अपनी शर्तों पर करना चाहिए.दुनिया में जिस तरह के हालात हैं उससे अब इस मामले में कोई संदेह नहीं रह गया है कि दुनिया की अगली महाशक्ति चीन बनाने वाला है और चीन पहले से ही हमसे शत्रुता पाले हुए है इसलिए भी हमें प्रत्येक कदम सोंच-समझकर उठाना चाहिए.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें