सोमवार, 12 जुलाई 2010
कुर्सी के लिए नीतीश कुछ भी करेंगा
जो लोग बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विकास की राजनीति करनेवाला मानते हैं वे अपनी ग़लतफ़हमी दूर कर लें.नीतीश विकास की राजनीति नहीं करते सिर्फ जाहिर तौर पर जनता को बरगलाने के लिए विकास की बातें करते रहते हैं.करते तो वे भी कुर्सी और वोट बैंक की राजनीति ही हैं.जब से बिहार में विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हुई है तभी से नीतीश कुमार बेचैन हैं वोटबैंक वाले अच्छे-बुरे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए चाहे वे नामी-गिरामी अपराधी ही क्यों न हों.अभी ५ जुलाई को उनके दल में शामिल हुए हैं सीमांचल का आतंक कहे जानेवाले तस्लीमुद्दीन.हद तो यह है कि स्वयं नीतीश ने माला पहना कर उनका पार्टी में स्वागत किया.उसके बाद से ही जदयू के सभी नेता इस कुख्यात अपराधी का गुणगान करने में लगे हैं.हालांकि उनकी याददाश्त बहुत तेज़ हैं लेकिन फ़िर भी न जाने कैसे नीतीश भूल गए कि ८० के दशक में वे विधान सभा की उस समिति के सदस्य थे जिसने अपनी रिपोर्ट में तस्लीमुद्दीन के कई जघन्य आपराधिक घटनाओं में संलिप्त रहने की पुष्टि की थी.इस समिति के अध्यक्ष थे राम लखन सिंह यादव.इस रिपोर्ट के अनुसार अपहरण की एक घटना के बाद जब पुलिस जाँच के लिए कुत्ता लेकर आई तो कुत्ता सीधे तस्लीमुद्दीन के घर जाकर रुका.इसी रिपोर्ट में कहा गया है तस्लीमुद्दीन और उनके गुर्गों के आतंक के चलते किशनगंज में लड़कियों का सड़कों पर निकलना भी दूभर था.चुनाव निकर देखकर विकास की राजनीति छोड़ वोट बैंक की राजनीति में जुट जानेवाले नीतीश उस रिपोर्ट को कैसे भूल गए जिसे तैयार करने में कभी उनका भी महत्वपूर्ण योगदान था.तस्लीमुद्दीन अल्पसंख्यक नेता बाद में है उससे पहले वह कुख्यात अपराधी है.अभी ८ जुलाई को भी किशनगंज की एक अदालत ने उसके नाम गैरजमानती वारंट जारी किया है.यह एक खुला रहस्य है कि किसी भी अपराधी का कारोबार उसके आतंक के बल पर चलता है और जब तक शासन-प्रशासन उसका साथ न दे वह आतंक कायम रखने में कामयाब नहीं हो सकता.इसलिए ज्यादातर अपराधी नेता सत्ता बदलते ही सत्ताधारी दल में शामिल होने की फ़िराक में लगे रहते हैं.तस्लीमुद्दीन भी अपवाद नहीं है और इसलिए अगस्त में ही उन्होंने राजद से इस्तीफा दे दिया और जदयू से हरी झंडी मिलने का इंतज़ार करते रहे.करीब एक साल तक लम्बा इंतज़ार किया.राजद में रहकर अब कोई फायदा नहीं था.तस्लीमुद्दीन जदयू में शामिल होते ही संत नहीं हो गए और न ही होनेवाले हैं,वे अपराधी हैं और अपराधी ही रहेंगे.यह कुछ ही दिन पहले उनपर दर्ज कराये गए रंगदारी के मामले से साबित भी हो जाता है.लेकिन नीतीश जी को इससे क्या लेना-देना उन्हें तो हर कीमत पर चुनाव जीतना है चाहे इसके लिए उन्हें कितने भी और कैसे भी पतित लोगों से मदद का लेन-देन क्यों न करना पड़े.
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