भारत में युगों-युगों से अतिथियों को देवता माना जाता रहा है-अतिथि देवो भव.लेकिन कभी-कभी निहित स्वार्थी तत्व हमारी इस सदाशयता का बेजा फायदा उठा लेते हैं.इन दिनों ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि भारत में शरण लिए तिब्बती बौद्ध-गुरु करमापा लामा वास्तव में चीनी एजेंट हैं.
हितोपदेश के अनुसार जब तक आग लकड़ी में सटती नहीं है तब तक लकड़ी को जला नहीं सकती उसी तरह किसी को धोखा देने से पहले जरुरी होता है कि उसका विश्वास हासिल किया जाए अर्थात मित्रता की जाए.करमापा ने भी शायद यही नीति अपनायी.हालांकि जाँच अभी आरंभिक दौर में है फ़िर भी अगर हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने करमापा पर आरोप लगाए हैं तो यह उम्मीद करना बेमानी नहीं होगी कि उनके पास इस बात के पुख्ता सबूत अवश्य होंगे.
चीन की विदेश नीति जिस प्रकार की रही है उसे देखते हुए अगर आरोप सच हों तो भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ चीन तक अपनी तानाशाही के सीमित रहने से बिलकुल भी संतुष्ट नहीं है और वह पूरी दुनिया पर चीनी तानाशाही स्थापित करना चाहती है.हालांकि वह इन दिनों अरब देशों में तानाशाहों के विरुद्ध भड़के असंतोष को देखकर घबरा गई है और उसने इन्टरनेट पर ईजिप्ट और ट्यूनीशिया सर्च करने पर रोक लगा दी है.कभी १८वीं-१९वीं शताब्दियों में फ़्रांस और यूरोप के बारे में कहा जाता था कि जब भी फ़्रांस को जुकाम होता है तो पूरा यूरोप छींकने लगता है.तब पूरा यूरोप फ़्रांस में तानाशाही के स्थान पर लोकतंत्र की स्थापना से डरा हुआ था.उसे इस बात का भय था कि कहीं नए विचारों की हवा उनकी जनता को भी न लग जाए.आज के चीन की भी वही हालत है.जुकाम अरब को हुआ है और छींक चीन को आ रही है.
चीन की चाहे जो भी कूटनीति हो,जो जैसा करेगा वैसा भरेगा.जहाँ तक करमापा का प्रश्न है तो अगर करमापा के नेतृत्व में तिब्बती भारतीय भूमि पर कब्जे की कोशिश कर रहे हैं और इस बात में अगर थोड़ी-सी भी सच्चाई है तो करमापा को उनके अनुयायियों सहित तत्काल बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए.हम अतिथि को भले ही देवता मानते हैं लेकिन हम यह हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते कि कोई अतिथि अपनी मर्यादा का उल्लंघन करते हुए हमारे ही यानी मेजबानों के घरों पर कब्ज़ा कर ले या ऐसा करने का प्रयास करे.हमारी भलमनसाहत को बाहरी दुनिया का कोई भी देश या व्यक्ति हमारी कमजोरी नहीं समझ ले यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है.
भारत न तो इराक है और और न ही उत्तरी कोरिया.भारत सवा अरब की विशाल आबादी वाला मजबूत मुल्क है.इसे इसके गद्दार नेताओं-अफसरों ने खोखला कर दिया है अन्यथा चीन या दूसरे किसी भी देश की क्या बिसात जो भारत की तरफ आँख उठाकर भी देखे.अब तक भारत के विदेश मंत्री ने ऐसी कोई महत्वपूर्ण सफलता हासिल नहीं की है जिसे दुनिया के कूटनीतिक इतिहास में मील का पत्थर कहा जा सके.चीन तो फ़िर भी चीन है इस समय तो श्रीलंका भी भारत को घुड़कियाँ दे रहा है.तो क्या हम यह समझें कि हमारे विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा करमापा मामले को भली-भांति संचालित कर पाएँगे और भारत की जनता चीन-तिब्बत से आए आस्तीन के साँपों से उत्पन्न खतरों से निश्चिन्त हो पाएगी?
हितोपदेश के अनुसार जब तक आग लकड़ी में सटती नहीं है तब तक लकड़ी को जला नहीं सकती उसी तरह किसी को धोखा देने से पहले जरुरी होता है कि उसका विश्वास हासिल किया जाए अर्थात मित्रता की जाए.करमापा ने भी शायद यही नीति अपनायी.हालांकि जाँच अभी आरंभिक दौर में है फ़िर भी अगर हमारी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने करमापा पर आरोप लगाए हैं तो यह उम्मीद करना बेमानी नहीं होगी कि उनके पास इस बात के पुख्ता सबूत अवश्य होंगे.
चीन की विदेश नीति जिस प्रकार की रही है उसे देखते हुए अगर आरोप सच हों तो भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ चीन तक अपनी तानाशाही के सीमित रहने से बिलकुल भी संतुष्ट नहीं है और वह पूरी दुनिया पर चीनी तानाशाही स्थापित करना चाहती है.हालांकि वह इन दिनों अरब देशों में तानाशाहों के विरुद्ध भड़के असंतोष को देखकर घबरा गई है और उसने इन्टरनेट पर ईजिप्ट और ट्यूनीशिया सर्च करने पर रोक लगा दी है.कभी १८वीं-१९वीं शताब्दियों में फ़्रांस और यूरोप के बारे में कहा जाता था कि जब भी फ़्रांस को जुकाम होता है तो पूरा यूरोप छींकने लगता है.तब पूरा यूरोप फ़्रांस में तानाशाही के स्थान पर लोकतंत्र की स्थापना से डरा हुआ था.उसे इस बात का भय था कि कहीं नए विचारों की हवा उनकी जनता को भी न लग जाए.आज के चीन की भी वही हालत है.जुकाम अरब को हुआ है और छींक चीन को आ रही है.
चीन की चाहे जो भी कूटनीति हो,जो जैसा करेगा वैसा भरेगा.जहाँ तक करमापा का प्रश्न है तो अगर करमापा के नेतृत्व में तिब्बती भारतीय भूमि पर कब्जे की कोशिश कर रहे हैं और इस बात में अगर थोड़ी-सी भी सच्चाई है तो करमापा को उनके अनुयायियों सहित तत्काल बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए.हम अतिथि को भले ही देवता मानते हैं लेकिन हम यह हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते कि कोई अतिथि अपनी मर्यादा का उल्लंघन करते हुए हमारे ही यानी मेजबानों के घरों पर कब्ज़ा कर ले या ऐसा करने का प्रयास करे.हमारी भलमनसाहत को बाहरी दुनिया का कोई भी देश या व्यक्ति हमारी कमजोरी नहीं समझ ले यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत सरकार की है.
भारत न तो इराक है और और न ही उत्तरी कोरिया.भारत सवा अरब की विशाल आबादी वाला मजबूत मुल्क है.इसे इसके गद्दार नेताओं-अफसरों ने खोखला कर दिया है अन्यथा चीन या दूसरे किसी भी देश की क्या बिसात जो भारत की तरफ आँख उठाकर भी देखे.अब तक भारत के विदेश मंत्री ने ऐसी कोई महत्वपूर्ण सफलता हासिल नहीं की है जिसे दुनिया के कूटनीतिक इतिहास में मील का पत्थर कहा जा सके.चीन तो फ़िर भी चीन है इस समय तो श्रीलंका भी भारत को घुड़कियाँ दे रहा है.तो क्या हम यह समझें कि हमारे विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा करमापा मामले को भली-भांति संचालित कर पाएँगे और भारत की जनता चीन-तिब्बत से आए आस्तीन के साँपों से उत्पन्न खतरों से निश्चिन्त हो पाएगी?
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