जब किसी विपक्षी नेता को अपने राज्य में विधानसभा चुनाव में जाना हो और उसे बजट पेश करने का सुनहरा मौका मिल जाए तो जाहिर है वह इसका अपने चुनावी हितों की पूर्ति के लिए भरपूर उपयोग करेगा.नेहरु युग में हो सकता है कि ऐसा नहीं होता हो लेकिन वर्तमान काल में तो ऐसा ही होता है और इस साल ऐसा ही हुआ भी.वर्षों से पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजरें गड़ाए ममता बनर्जी ने तमाम पूर्वानुमानों को सत्य साबित करते हुए केंद्रीय रेल बजट को बंगाल का बजट बनाकर रख दिया.बीच-बीच में अन्य राज्यों जिसमें केरल सबसे आगे रहा,का नाम भी घोषणाओं की बाढ़वाले भाषण में आता रहा लेकिन कम-से-कम आधे समय तक बंगाल की ही बात होती रही.मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जिन श्रोताओं-दर्शकों ने रेल बजट का प्रसारण देखा-सुना होगा उन्हें पश्चिम बंगाल के सभी जिलों के नाम जानने के लिए अब सामान्य ज्ञान की किताबें उलटनी नहीं पड़ेगी बल्कि ममताजी ने आज इनके नामों को इतनी बार दोहराया है कि उन्हें ये नाम यूं ही याद हो गए होंगे.ममता जी की मानें तो भारत में सिर्फ पश्चिम बंगाल ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ महापुरुषों ने जन्म लिया है.
इस साल रेलवे बाजार से १० हजार करोड़ रूपये का कर्ज लेने जा रही हैं क्योंकि रेलवे को प्रत्येक 2.5 रुपये कमाने के लिए 4.5 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.रेलवे की वित्तीय हालत बहुत ही ख्रराब है और यह अति दुखद है कि अकाउंट में हेरफेर कर यह दर्शाया गया है कि वास्तव में वह घाटे में नहीं है।ऐसे में पश्चिम बंगाल,केरल और आंध्र प्रदेश (यहाँ कांग्रेसी राज्य सरकार को चौतरफा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है) के लिए नई परियोजनाओं की झड़ी लगा देनेवाली ममता ने यह नहीं बताया कि इनके लिए धन आएगा कहाँ से?खुदा न करे अगर ममता इस साल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बन गईं तो उनकी जगह आनेवाला रेलमंत्री उनकी घोषणाओं के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैय्या नहीं अपनाएगा इसकी क्या गारंटी है?लालू के जाने के बाद जिस तरह ममता ने बिहार की सभी रेल परियोजनाओं को निर्ममतापूर्वक अधर में लटका दिया आनेवाला रेलमंत्री भी कहीं उनके सपनों की परियोजनाओं के साथ वैसा ही व्यवहार तो नहीं करेगा?किसी भी रेल बजट की खामी पर्याप्त आवंटन का नहीं होना तो होता ही है;बजट में यह भी नहीं बताया जाता है कि किसी योजना को कितने समय में पूरा हो जाना है.लगता है जैसे देरी रेलवे का अनिवार्य गुण बन गयी है.फिर चाहे वह देरी ट्रेनों के परिचालन की हो या योजनाओं के पूरा होने की.ममता ने इस साल भी यात्री किराये में किसी तरह की वृद्धि नहीं की है.ज्ञात हो कि यात्री किराया बढ़े करीब एक दशक बीत चुके हैं.जाहिर है कि ऐसा करते समय उनके दिमाग में पश्चिम बंगाल का चुनाव तो होगा ही;साथ ही कमरतोड़ महंगाई का ख्याल भी कहीं-न-कहीं उनके जेहन में होगा.पिछले १० सालों में रेलवे किराया और बस किराया में भारी अंतर पैदा हो चुका है.उदाहरण के लिए हाजीपुर से मुजफ्फरपुर का बस का भाडा ३५ रूपया है जबकि रेलवे का भाडा पैसेंजर से १० रूपया और एक्सप्रेस से मात्र २४ रूपया है.अगर यात्री किराये में मामूली वृद्धि कर दी जाती है तो भी आमलोगों की जेब पर बोझ नहीं पड़ता.बदले में सरकार की आमदनी काफी बढ़ जाती जिससे ममता जी रेलयात्रियों की सुरक्षा के लिए कदम उठा पातीं न कि सिर्फ जुबानी खर्च से काम चलातीं.साथ ही नए रेल लाइन निर्माण के लक्ष्य को भी कई गुना बढाया जा सकता था.इतना ही नहीं यात्री कोच और मालगाड़ी के डिब्बे की कमी भी दूर हो जाती.साथ ही पिछले बजट में उन्होंने कई प्रमुख स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाने की जो घोषणा की थी उसे पूरा नहीं कर पाने लिए उन्हें देश से माफ़ी भी नहीं मांगनी पड़ती.
आजकल जब भी रेलगाड़ी में कोई आपराधिक घटना घटती है तो केंद्र राज्य पर और राज्य केंद्र पर आरोप लगाने लगता है.ट्रेनें चलायमान वस्तु हैं और उन्हें कई राज्यों और जिलों से होकर गुजरना पड़ता है.ऐसे में कभी-कभी दो राज्यों की पुलिसों और कभी-कभी दो जिलों की पुलिसों के मध्य विवाद उत्पन्न हो जाता है कि जब घटना घटी तब ट्रेन किस राज्य या जिले में थी.अच्छा होता अगर रेलवे के लिए अलग से राष्ट्रीय पुलिस सेवा की स्थापना कर दी जाती और रेल संपत्ति और यात्रिओं की सुरक्षा का जिम्मा पूरी तरह उसको ही सौंप दिया जाता.इस बार के रेल बजट में मंत्री ने दुर्घटनारोधी यंत्रों को कुछ चुनिन्दा रेल मंडलों में लगाने की घोषणा की है जिसे अधूरे मन से और बहुत देर से उठाया गया कदम ही कहा जा सकता है; इसके सिवा और कुछ भी नहीं.जबकि ममता जी द्वारा २०१०-११ के रेल बजट में की गयी दर्जनों घोषणाएं अभी भी अमल के इंतजार में हैं तो फिर कैसे विश्वास कर लिया जाए कि नई घोषणाओं को अमलीजामा पहनाया ही जाएगा?मंत्री को जब तक पुराने लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक नए लक्ष्यों की घोषणा नहीं करनी चाहिए थी.ममता ने पिछले बजट में १०२१ कि.मी. नई लाइन की स्थापना की घोषणा की थी लेकिन काम हुआ एक चौथाई से भी कम.इतना ही नहीं बजट में ८०० कि.मी. आमान परिवर्तन का लक्ष्य रखा गया था लेकिन काम हुआ एक बटा तीन.इन परिस्थितियों में बढ़ा-चढ़ाकर लक्ष्य घोषित करना या तो मूर्खता है या फिर धूर्तता.
रेलमंत्री को शिकायत है कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जाता.यह वह रेलमंत्री बोल रही हैं जो लम्बे समय से कैबिनेट और सदन की बैठकों में भाग ही नहीं ले रहीं.उनके ऐसे आरोपों पर सिर्फ हँसा ही जा सकता है.पूरी दुनिया के देशों में इस समय बुलेट ट्रेन चलाने की होड़ लगी है और हमारे यहाँ ट्रेनें चल रही हैं ५०-६० की रफ़्तार में.अगर भारत को विकास की वैश्विक दौड़ में सचमुच शामिल होना है तो उसे रेलवे सहित हरेक क्षेत्र में अपनी आधारभूत संरचना का विकास करना होगा और सुपर गति से करता होगा.वरना प्रत्यक्ष विदेश निवेश में आया ज्वार अब उतरने लगा ही है और आगे इसकी गति और भी तेज होनेवाली है.
जहाँ तक रेल बजट में की जानेवाली घोषणाओं के लिए धनाभाव का प्रश्न है तो या तो इसके लिए अलग से स्थायी कोष का गठन किया जाए या फिर रेल बजट को आम बजट का ही हिस्सा बना दिया जाए.इससे योजनाएं भविष्य में अटका नहीं करेंगी और उनके समय पर पूरी होने की भी गारंटी होगी.
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