शनिवार, 23 अप्रैल 2011

बिहार जहाँ आईने भी झूठ बोलते हैं

nitish
मित्रों,हिंदी में एक कहावत बहुत ही मशहूर है कि जब आप आईने के सामने खड़े हों और आपको अपने चेहरे पर दाग नजर आए तो आपको आईने को बुरा-भला कहने के बजाए अपना चेहरा साफ करना चाहिए.दोस्तों,लोकतंत्र में मीडिया आईने का काम करता है;समाज के लिए भी और सरकार के लिए भी.उसकी ही जिम्मेदारी होती है जनता को सच्चाई से रू-ब-रू करवाना.लेकिन बिहार में इनदिनों यह लोकतंत्र का आईना सचबयानी नहीं कर रहा.शासन और प्रशासन के चेहरे कई तरह के दागों से अटे-पटे पड़े हैं लेकिन मीडियारुपी आईना उन्हें जबरन साफ़-सुथरा दिखाने में लगा है.
      मित्रों,कभी कल्याण सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी को भाषणवीर का ख़िताब दिया था.आज बिहार में एक घोषणावीर शासन कर रहा है;जो रोज-रोज नई-नई घोषणाएं करता रहता है;परन्तु उन पर अमल नहीं करता.हालाँकि उसे यह भी अच्छी तरह से पता है कि सिर्फ बातें बनाने से बात नहीं बननेवाली;काम करके दिखाना भी जरुरी है.वह करता भी है तो करता कम है लेकिन दिखावा बहुत ज्यादा का करता है.
          मित्रों,बिहार में सर्वव्याप्त और रात दूनी दिन चौगुनी की रफ़्तार से बढ़ते भ्रष्टाचार की चर्चा कहाँ से शुरू करूं और कहाँ पर ख़त्म करूं समझ में नहीं आता?जहाँ भी निगाह जाती है घूसखोरी व कमीशनखोरी ही नजर आती है.राज्य का मुखिया पटना में बैठा-बैठा भ्रष्टाचार को जड़ सहित उखाड़ फेंकने का राग जुबानी खर्च अलापने में लगा है और भ्रष्टाचार उसी तरह बढ़ता जा रहा है जैसे कौए के टरटराते रहने पर भी धान सूखता रहता है.वह घोषणा करता है कि अब बिहार में भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं.सारे भ्रष्टाचारियों के घरों को जब्त कर उनमें स्कूल खोले जायेंगे.लेकिन ईधर वह घोषणा करता रहता है और उधर भ्रष्टाचारी अपनी अवैध कमाई से हजारों नए घर बनवाने में लग जाते हैं.शुरुआत में दो-चार घर दिखावे के तौर पर जब्त भी किए जाते हैं और फिर सरकार कान में तेल डालकर सो जाती है.आज इस उद्देश्य से गठित विजिलेंस की विशेष यूनिट अधिकारीविहीन होकर अपने हाल पर रो रही है.
           मित्रों,घोषणावीर जी जनता से आह्वान करते हैं कि निगरानी विभाग को सूचना देकर घूसखोरों को पकड़वाईए.लोग उनके बहकावे में आ भी जाते हैं.परिणामस्वरूप कुछ लोग पकडे जाते हैं लेकिन एक हाथ से घूस लेते पकडे जाते हैं और दूसरे हाथ से घूस देकर छूट भी जाते हैं.फिर जो भी नुकसान उठाना पड़ता है वह उठाता है शिकायतकर्ता.बिजली के बारे में इनकी घोषणाओं को अगर लिपिबद्ध कर दें तो ब्रिटेनिका इनसाईक्लोपीडिया से भी मोटी पुस्तक तैयार हो जाएगी.श्रीमान वर्षों नहीं महीनों में बिजली की हालत सुधारने का दावा कर रहे थे लेकिन ज्यों-ज्यों समय बीता इस बेहया की बेवफाई बढती ही गयी.कब आए और कब चली जाए की भविष्यवाणी करने में निस्संदेह आज बेजान दारूवाला के गणेशजी भी सक्षम नहीं हैं.अब घोषणावीर जी इस दिशा में कुछ करने के बजाए सारा ठीकरा केंद्र के माथे फोड़कर बिजली संकट झेलिए और कौन उपाय है;का स्यापा गाने लगे हैं.करूं क्या आस निराश भई?
           मित्रों,गरीब बिहार भी इन दिनों महंगाई के ताप से तप रहा है और वो भी भारत के अधिकतर राज्यों से कहीं ज्यादा.घोषणावीर बाबू बारहा फरमा रहे हैं कि मुद्रास्फीति पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता है;यह तो केंद्र सरकार के इशारों पर नाचनेवाली मदारी है;वही जाने.लेकिन क्या सुशासन बाबू बताएँगे कि जबसे वे सत्ता में आए हैं तब से बिहार मुद्रास्फीति के मामले में पूरे भारत में अग्रणी क्यों बना हुआ है?क्या इसके लिए उनकी सरकार की अकर्मण्यता भी जिम्मेदार नहीं है?उन्हें जनवितरण प्रणाली को दुरुस्त करने से किसने रोक रखा है?यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में राज्यों की कोई भूमिका नहीं होती हैं तो फिर क्यों अलग-अलग राज्यों में इसकी दरें अलग-अलग हैं?
        मित्रों,घोषणावीर बाबू बड़े जोशोखरोश के साथ घोषणा करते हैं कि उनकी सरकार ने सभी मंत्रियों और अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए संपत्ति की वार्षिक घोषणा करना अनिवार्य कर दिया है.सही है गुरु,स्वागत है आपकी सरकार के इस कदम का;लेकिन इन बाघरबिल्लों से यह कौन पूछेगा कि इतना माल आपने बनाया कैसे?अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो फिर संपत्ति की वार्षिक घोषणा करवाने का कुछ मतलब भी रह जाता है क्या?मित्रों,अपने घोषणावीर जी नियम से साप्ताहिक जनता-दरबार लगते हैं.यहाँ वे कथित रूप से जनता की शिकायतें सुनते हैं और उन्हें दूर करने के लिए तत्काल अधिकारियों को आवश्यक निर्देश देते हैं.उसके बाद जनता सम्बद्ध कार्यालयों के चक्कर लगाते-लगाते थक-हार कर घर बैठ जाती है;होईहें वोही जो राम रची राखा.मैं खुद ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जो जनता-दरबार गए लेकिन कई साल बीत जाने पर भी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ.
        मित्रों,अपने घोषणावीर जी नालन्दा में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय खोलने पर पूरी ताकत झोंके हुए हैं लेकिन उन्होंने पूरी स्कूली शिक्षा का किस तरह सत्यानाश कर दिया है;नहीं देख रहे और न ही मीडिया दिखा रही है.माना कि बिहार के स्कूलों की बिल्डिंगें अच्छी हो गयी हैं.बच्चों की चमचमाती साईकिलों से स्कूल-परिसरों की शोभा में चार नहीं दस-बीस चाँद लग गए हैं लेकिन शिक्षकों की बहाली में तो सिर्फ और सिर्फ धांधली ही हुई है न.अब कोई घोषणावीर जी से पूछे कि श्रीमान स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएगा कौन;ये सोलह दूनी आठ वाले शिक्षक?बच्चे स्कूलों में क्या करने जाते हैं?सरकारी साईकिलें खड़ी करने,बिल्डिंग देखने या पढाई करने?कुछ अच्छे शिक्षक जो एकाध प्रतिशत हैं अपने को फंसा हुआ पा रहे हैं और लंका में विभीषण की तरह दिन गुजार रहे हैं.वैसे भी ५-७ हजार रूपये में सिर्फ दिन को काटा जा सकता है,मक्खन-मलाई को नहीं.
              मित्रों,बिहार में पिछले दो सालों से बरसात नहीं हुई है.पूरा बिहार दीर्घकालीन सूखे की चपेट में हैं लेकिन घोषणावीर बाबू की सैंकड़ों घोषणाओं के बावजूद राज्य के ९९% सरकारी नलकूप किसी-न-किसी वजह से बंद पड़े हैं.छह साल में थोक में की गयी सैंकड़ों घोषणाएं भी इन्हें चालू नहीं करवा पाईं.सरकार ने बड़ी कृपा करके सूखापीड़ित किसानों को डीजल अनुदान देने की घोषणा की लेकिन सारा डीजल मुखिया और उसके समर्थक पी गए,जरूरतमंद किसान कल भी आसमान के भरोसे था;आज भी उसे सिर्फ और सिर्फ उसी का भरोसा है.अब तो स्थिति इतनी बिगड़ गयी है कि बिहार के कई जिलों में बड़े-बड़े पेड़ भी सूखने लगे हैं.इसी तरह बिहार में परीक्षाओं में कदाचार रोकने की अनगिनत घोषणाएं पिछले ६ सालों में की गईं लेकिन घोषणाओं का क्या वे तो की ही जाती हैं कभी पूरा नहीं होने के लिए.
               मित्रों,बिहार में जनवितरण प्रणाली या भ्रष्टाचार वितरण प्रणाली वैसे कुत्ते की दुम है जिसने कभी सीधे रास्ते पर चलना ही नहीं सीखा.सारे प्रयोग-अनुप्रयोग इसे सीधा करने में जंग खा जाते हैं.जाहिर है अपनी आदतानुसार घोषणावीर जी ने इसे सीधा करने की भी घोषणा कई-कई बार की है देखिए वे कहाँ तक इसका बाल बांका कर पाते हैं.दोस्तों,बिहार में बिजली कनेक्शन और मीटर लगवाना पैदल कटिहार जाने से भी ज्यादा मुश्किल है.अगरचे आज अगर आप आवेदन देते हैं और साथ में घूस नहीं देते तो अगर आप भाग्यशाली हुए तो शायद आपके बेटे के जीते-जी कनेक्शन और मीटर लग जाए.हाँ एक और छोटी-सी मगर मोटी बात,जब भी आप कनेक्शन लेने जाएँ तो अच्छी तरह से देख-परख लें कि कनेक्शन उसी उपयोग श्रेणी में मिला भी है या नहीं जिसके लिए आपने आवेदन दिया था.अन्यथा घरेलू कनेक्शन की जगह कहीं व्यावसायिक कनेक्शन दे दिया गया तो नुक्ता के फेर से खुदा का जुदा हो जाना तय है.फिर या तो हजारों रूपये का बिल बिन बात का भरिये या फिर श्रेणी बदलवाने के लिए अधिकारियों की जेबें.
           मित्रों,अपना बिहार घोषणावीर बाबू के शासन में इतना ईमानदार हो गया है कि कोई भी नौकरीशुदा व्यक्ति यहाँ रिटायर होने में भी डरता है.इसलिए लोग बराबर सेवानिवृत्ति की उम्र-सीमा बढ़ाने की मांग करते रहते हैं.अगर फिर भी रिटायर होना ही पड़े तो पहले तो पेंशन चालू करवाने,फिर उसे सही करवाने और बाद में बकाया भुगतान के लिए आपको इतनी बार कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ेंगे कि आप सोंचेंगे कि बेकार में बिहार में रिटायर हो गया.इसलिए कुछ लोग रिटायर होने के बाद सीधे पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पहुँच जाते हैं.
              मित्रों,जनवरी महीने में हुए एक हत्याकांड ने पूरे बिहार के माननीयों को दहला दिया था.रूपम पाठक नाम की एक स्कूल अध्यापिका ने पूर्णिया के भाजपा विधायक राजकिशोर केसरी की सरेआम हत्या कर दी.इसके कई महीने पहले उसने विधायक पर बलात्कार का आरोप भी लगाया था,मुकदमा भी दर्ज कराया था;लेकिन उसकी फरियाद अनसुनी रही.सुनता भी कौन?सुननेवाले तो घोषणाएं करने में लगे हुए थे.इसलिए उसने सुनाने के बजाए दिखाने की ठान ली और फिर जो कुछ भी हुआ उसे पूरे भारत ने देखा.उसे गिरफ्तार किया गया और लगातार उस पर दबाव बनाया गया कि किसी तरह वह घरेलू महिला बलात्कार का आरोप वापस ले ले और कह दे कि मैं एक सुपारी किलर हूँ और मैंने यह हत्या सिर्फ पैसों के लिए की.बाद में सी.बी.आई. भी जाँच करने आई लेकिन उसे भी इस सुशासन-पीडिता पर दया नहीं आई.मानसिक प्रताड़ना का सिलसिला जारी है.साथ ही जाँच का नाटक भी मंचित हो रहा है.न्याय बलात्कार होने से खुद को बचा पाता है या नहीं वक़्त बताएगा लेकिन हालात जनता की अदालत में जो कुछ भी बयान कर रहे हैं;अच्छे नहीं हैं.अब आते हैं सरकारी अस्पतालों पर.इनके स्वास्थ्य के बारे में तो पूछिए ही नहीं.सरकार ने उन्हें उपकरण दे दिए,दवाएं भी दे दीं लेकिन चिकित्सकों को मानव-सेवा का जज्बा नहीं दे पाई.वो कहते हैं न कि रास्ता बताओ तो आगे चलो.इसलिए स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आ सका.आज भी वे मरघट के समान है जहाँ मरीज ईलाज करवाने नहीं कफ़न ओढने जाते हैं.यही स्थिति प्राईवेट नर्सिंग होमों और डॉक्टरों की भी है.वे मरीजों को ए.टी.एम. मशीन से अधिक कुछ नहीं समझते.आदम जात तो बिलकुल भी नहीं.
          मित्रों,पटना उच्च न्यायालय ने सरकारी व्यय के हजारों करोड़ रूपयों के उपयोगिता प्रमाण पत्रों को झूठा बता दिया है लेकिन घोषणावीर बाबू को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.ईधर पैसों की उत्तरोत्तर आक्रामक होती लूट जारी है हर दफ्तर में और उधर उनकी जिह्वा पर विराजमान होकर सरस्वती नित-नई घोषणाएं करने में जुटी है.न तो लूटनेवाले थकने की जहमत उठा रहे हैं और न ही घोषणावीर बाबू की जिह्वा ही रूकने का नाम ले रही लेकिन मीडिया में यह सब नहीं दिख रहा.उसके अनुसार तो बिहार में हरियाली ही हरियाली है.दुर्भाग्यवश मीडिया नामक शिकारी यहाँ खुद ही सरकारी विज्ञापन के लालच के चक्कर में शिकार हो गयी है.बिहार में इन दिनों इन आईनों के मायने बदल गए हैं.झूठे हो गए हैं वे.ऐसे में सुशासन के चेहरे का सच जनता को कौन बताएगा?हम ब्लौगरों की पहुँच ही कितनी है?

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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