मित्रों,इस समय कांग्रेस नेतृत्व डबल या ट्रिपल नहीं बल्कि कई-कई दर्जन भूमिकाओं वाला किरदार निभाने में लगी है.अद्भूत बात तो यह है कि वह अपने प्रत्येक किरदार का ठीक विपरीत किरदार भी एक ही साथ;एक ही दृश्य में निभाता हुआ नजर आ रहा है.इतनी विविधता तो एक ही फिल्म नौ दिन ओर नौ रातें में ९ रोल निभानेवाले संजीव कुमार के अभिनय में भी नहीं थी.उसका पहला रोल तो वह है जिसमें वह प्रधानमंत्री पद का त्याग करके त्याग की प्रतिमूर्ति बन जाता है.दूसरा रोल वह है जिसमें वह केंद्र की सरकार को बचाने के लिए सांसदों को घूस देने और भ्रष्ट लोगों को मंत्री बनाने से भी परहेज नहीं करता.हद तो तब हो जाती है जब उसका प्रधानमंत्री पहले तो अपने भ्रष्ट मंत्री को पाक-साफ साबित करने के लिए अपनी कथित क्लीन-मैन वाली छवि को दांव पर लगा देता है;लेकिन जब मंत्री न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद जेल चला जाता है;तब वह गठबंधन सरकार की मजबूरी का रोना रोने लगता है.
मित्रों,कांग्रेस नेतृत्व का तीसरा चेहरा वह है जिसके द्वारा वह भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं करने की बात करता है और इसके ठीक विपरीत उसका चौथा चेहरा वह है जिसके द्वारा वह भ्रष्टाचार रोकने के लिए काम करने वाली सबसे बड़ी सरकारी एजेंसी केंद्रीय सतर्कता आयोग के मुखिया के पद पर विपक्ष की नेता के घोर प्रतिरोध के बावजूद एक अति-भ्रष्ट अफसरशाह को बैठा देता है.कांग्रेस नेतृत्व का पांचवां किरदार वह है जिसमें वह महंगाई कम करने के लिए लगातार तारीखों की घोषणा करता रहता है और छठे किरदार में इसके ठीक विपरीत उसकी सरकार का वित्त मंत्री ऐसा बजट पेश करता है जो महंगाई की आग में घी का नहीं बल्कि सीधे किरासन तेल का काम करता है.
मित्रों,उसका सातवाँ रोल है केंद्रीय मंत्रिमंडल जिसमें आप घोर भ्रष्ट और कथित ईमानदार लोगों को एक साथ काम करता हुआ देख सकते हैं.उसका आठवां चेहरा घोर धर्मनिरपेक्ष (सही शब्द पंथनिरपेक्ष है) है जिसके जरिए वह सर्वधर्मसमभाव की बातें करता है और ठीक इसके विपरीत उसका नौवां चेहरा है अति-सांप्रदायिक जिसके माध्यम से वह देश को एक और विभाजन की ओर धकेल रहा है.उसका दसवां चेहरा है उसकी विरोधाभासी और देशविरोधी विदेश नीति.वह मुंबई हमलों के समय स्पष्ट घोषणा करता है कि इस बार पाकिस्तान को आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करनी ही पड़ेगी और जब तक पाकिस्तान ऐसा नहीं करता है तब तक उसकी सरकार उसके साथ किसी तरह की बातचीत ही नहीं करेगी.लेकिन अचानक ५ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए मुसलमानों के एक वर्ग को खुश करने के लिए वह पाकिस्तान के साथ बिना शर्त बातचीत के लिए उतावला हो उठता है.
मित्रों,अब आते हैं कांग्रेस नेतृत्व के उस चेहरे पर,उस बात पर जिससे हमने इस लेख की शुरुआत की थी यानि भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने के मामले में कांग्रेस नेतृत्व की कथनी और करनी में अंतर पर.सबसे पहले राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की बात करते हैं.अभी-अभी आपने देखा,सुना और पढ़ा होगा कि घोटाले में शामिल कई अधिकारी सरकारी वाच डॉग (या कुत्ता) सी.बी.आई. द्वारा समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाने के कारण जेल से बाहर आ गए.मतलब साफ़ है कि इस मामले में जो भी गिरफ़्तारी की गयी थी;दिखावा मात्र थी.खेल अधिकारियों की रिहाई के कल होकर ही सी.बी.आई. घोटाले के कथित मुख्य अभियुक्त सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार करती है.टाईमिंग पर ध्यान दिया आपने?कलमाड़ी की गिरफ़्तारी के शोर में किस तरह खेल अधिकारियों की रिहाई दबकर रह गयी;देखा आपने?यहाँ मैंने कलमाड़ी को कथित मुख्य अभियुक्त इसलिए कहा क्योंकि जो प्रमाण सामने आ रहे हैं उनके अनुसार इस महाघोटाले में सबसे प्रमुख भूमिका प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की थी,कलमाड़ी बेचारा तो एक छोटा-सा मोहरा था.आपको याद होगा कि जेपीसी का जब तक गठन नहीं हुआ था कांग्रेस नेतृत्व बार-बार यह कहने में लगा हुआ था कि भारत में घोटालों के इतिहास में मील का पत्थर दूरसंचार घोटाले की जाँच करने में पीएसी ही सक्षम है और अब जब पीएसी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी जांच रिपोर्ट सौंपना चाह रहे हैं तब सरकार लेने को ही तैयार नहीं है;उस पर कार्रवाई करने की तो कल्पना करना भी बेकार है.
मित्रों,वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व के और भी चेहरे हैं.मैं जनता हूँ कि लेख अभी अधूरा है लेकिन इस अकिंचन के सोंचने और लिखने की अपनी सीमा है;जो बहुत-ही छोटी है.आखिर यहाँ मैं वेदव्यास भी हूँ और गणेश भी.एक तरफ कांग्रेस नेतृत्व के चेहरे और किरदार अनंत हैं वहीँ दूसरी तरफ मेरी क्षमता अत्यंत सीमित.कांग्रेस नेतृत्व द्वारा तैयार स्क्रिप्ट,उसका अभिनय,उसके द्वारा तैयार संवाद सभी कुछ लाजवाब हैं;हॉलीवुड से लेकर बालीवुड तक उसकी प्रतिभा का कोई जोड़ नहीं.वो कहते हैं न मिला न जोड़ा रे वसुधा में.भारत की सत्ता पक्ष की राजनीति का रंगमंच भी कांग्रेस नेतृत्व है,अभिनेता-अभिनेत्री भी,स्क्रिप्ट और डायलोग राईटर भी और निर्माता-निर्देशक तो वह है ही.इस मंच पर जो कुछ भी घटित हो रहा है;सब आभासी है,नाटक-मात्र है.
मित्रों,हिंदी के महान उपन्यासकार अमृत लाल नागर जो चेहरों को पढने में मुझसे कई गुना ज्यादा सक्षम थे,अपने उपन्यास सात घूंघटों वाला चेहरा में नायिका के सात चेहरों को अनावृत करने में ही थक गए थे.कांग्रेस के तो विशालकाय प्याज की तरह अनंत चेहरे हैं.उसके सभी चेहरों का गुणगान तो शायद शेषनाग भी नहीं कर पाएँगे.इसलिए यह जानते हुए कि मेरा यह लेख अधूरा है;मैं अपनी लेखनी को विराम दे रहा हूँ.फिर भी अगर आप पाठकों को लगे कि कांग्रेस नेतृत्व के किसी अतिमहत्वपूर्ण चेहरे या किरदार का जिक्र यहाँ नहीं हो पाया है तो बेझिझक सुझाव दीजिए;उसे इस लेख में निश्चित रूप से शामिल कर लिया जाएगा.यह किसी नेता या राजनैतिक दल का कोरा आश्वासन नहीं है बल्कि एक मित्र से दूसरे मित्र का वादा है.
मित्रों,अब आते हैं कांग्रेस नेतृत्व के उस चेहरे पर,उस बात पर जिससे हमने इस लेख की शुरुआत की थी यानि भारत की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने के मामले में कांग्रेस नेतृत्व की कथनी और करनी में अंतर पर.सबसे पहले राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की बात करते हैं.अभी-अभी आपने देखा,सुना और पढ़ा होगा कि घोटाले में शामिल कई अधिकारी सरकारी वाच डॉग (या कुत्ता) सी.बी.आई. द्वारा समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाने के कारण जेल से बाहर आ गए.मतलब साफ़ है कि इस मामले में जो भी गिरफ़्तारी की गयी थी;दिखावा मात्र थी.खेल अधिकारियों की रिहाई के कल होकर ही सी.बी.आई. घोटाले के कथित मुख्य अभियुक्त सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार करती है.टाईमिंग पर ध्यान दिया आपने?कलमाड़ी की गिरफ़्तारी के शोर में किस तरह खेल अधिकारियों की रिहाई दबकर रह गयी;देखा आपने?यहाँ मैंने कलमाड़ी को कथित मुख्य अभियुक्त इसलिए कहा क्योंकि जो प्रमाण सामने आ रहे हैं उनके अनुसार इस महाघोटाले में सबसे प्रमुख भूमिका प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की थी,कलमाड़ी बेचारा तो एक छोटा-सा मोहरा था.आपको याद होगा कि जेपीसी का जब तक गठन नहीं हुआ था कांग्रेस नेतृत्व बार-बार यह कहने में लगा हुआ था कि भारत में घोटालों के इतिहास में मील का पत्थर दूरसंचार घोटाले की जाँच करने में पीएसी ही सक्षम है और अब जब पीएसी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी जांच रिपोर्ट सौंपना चाह रहे हैं तब सरकार लेने को ही तैयार नहीं है;उस पर कार्रवाई करने की तो कल्पना करना भी बेकार है.
मित्रों,वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व के और भी चेहरे हैं.मैं जनता हूँ कि लेख अभी अधूरा है लेकिन इस अकिंचन के सोंचने और लिखने की अपनी सीमा है;जो बहुत-ही छोटी है.आखिर यहाँ मैं वेदव्यास भी हूँ और गणेश भी.एक तरफ कांग्रेस नेतृत्व के चेहरे और किरदार अनंत हैं वहीँ दूसरी तरफ मेरी क्षमता अत्यंत सीमित.कांग्रेस नेतृत्व द्वारा तैयार स्क्रिप्ट,उसका अभिनय,उसके द्वारा तैयार संवाद सभी कुछ लाजवाब हैं;हॉलीवुड से लेकर बालीवुड तक उसकी प्रतिभा का कोई जोड़ नहीं.वो कहते हैं न मिला न जोड़ा रे वसुधा में.भारत की सत्ता पक्ष की राजनीति का रंगमंच भी कांग्रेस नेतृत्व है,अभिनेता-अभिनेत्री भी,स्क्रिप्ट और डायलोग राईटर भी और निर्माता-निर्देशक तो वह है ही.इस मंच पर जो कुछ भी घटित हो रहा है;सब आभासी है,नाटक-मात्र है.
मित्रों,हिंदी के महान उपन्यासकार अमृत लाल नागर जो चेहरों को पढने में मुझसे कई गुना ज्यादा सक्षम थे,अपने उपन्यास सात घूंघटों वाला चेहरा में नायिका के सात चेहरों को अनावृत करने में ही थक गए थे.कांग्रेस के तो विशालकाय प्याज की तरह अनंत चेहरे हैं.उसके सभी चेहरों का गुणगान तो शायद शेषनाग भी नहीं कर पाएँगे.इसलिए यह जानते हुए कि मेरा यह लेख अधूरा है;मैं अपनी लेखनी को विराम दे रहा हूँ.फिर भी अगर आप पाठकों को लगे कि कांग्रेस नेतृत्व के किसी अतिमहत्वपूर्ण चेहरे या किरदार का जिक्र यहाँ नहीं हो पाया है तो बेझिझक सुझाव दीजिए;उसे इस लेख में निश्चित रूप से शामिल कर लिया जाएगा.यह किसी नेता या राजनैतिक दल का कोरा आश्वासन नहीं है बल्कि एक मित्र से दूसरे मित्र का वादा है.
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