मित्रों,अगर आप वर्तमान सरकार की पाकिस्तान नीति पर नजर डालें तो आप उस पर बिना हँसे नहीं रह सकेंगे.आप चाहें तो अपना सिर भी पीट सकते हैं लेकिन वह निश्चित रूप से आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं रहेगा.जब दुनिया २६/११ के बाद पाक समर्थित आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की आपबीती सुनने को तैयार नहीं थी तब तो हमने खूब शोर मचाया और आज जब भारत का सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान उसकी सरजमीं पर दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी लादेन की बरामदगी और मौत के बाद पूरी दुनिया के सीधे निशाने पर है तब पाक समर्थित आतंकवाद का सबसे बड़ा और बुरा शिकार भारत;उसके प्रति नरमी बरत रहा है.
मित्रों,भारत सरकार इस समय पाकिस्तान के प्रति अजीबोगरीब नरम-गरम खेल खेल रही है.एक तरफ उसके गृह मंत्री पी.चिदंबरम जिन पर आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी है मुखर हैं वहीं विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा आश्चर्यजनक तरीके से चुप हैं.क्या उन्हें पता नहीं है कि वे किस विभाग के मंत्री हैं और उन्हें क्या करना होता है?अगर यह सच भी हो तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए क्योंकि ये वही महाशय हैं जो कुछ महीने पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने बदले पुर्तगाली विदेश मंत्री का भाषण पढने लगे थे.प्रधानमंत्री जो खुद भी शाहे बेखबर हैं या दिखते हैं;ने एकदम अपनी बिरादरी के व्यक्ति को ही विदेश मंत्री बनाया है.
मित्रों,भारत सरकार और कांग्रेस पार्टी को मुगालते में रहने की पुरानी आदत है.शायद ये लोग यह समझ रहे हैं कि आतंकवादी ओसामा को ओसामाजी कहने से या पाकिस्तान के प्रति इस समय नरमी बरतने से मुस्लिम समाज खुश होगा.यह मुगालता भी तब है जबकि भारतभर के सभी मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने एक स्वर में भारत सरकार से वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए पाकिस्तान के प्रति कठोर रवैय्या अपनाने का अनुरोध किया है.क्या आपको पता है कि कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह से खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का क्या रिश्ता था जिसके चलते वे उसे कैमरे के सामने ओसामाजी कहते और उसके अंतिम संस्कार करने के तरीके पर प्रश्न-चिन्ह लगाते फिर रहे हैं?क्या वह उनका बहनोई था या समधी था?ऐसा होने की जब दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं है तो शायद दोनों के बीच मित्रता जैसा कोई अन्तरंग सम्बन्ध हो?
मित्रों,हमारे गाँव में कहावत है कि चोट तभी करनी चाहिए जब लोहा गरम हो;जब लोहा ठंडा पड़ जाता है तब उस पर हथौड़ा मारने से कोई फायदा नहीं होता.अभी जब पूरी दुनिया पाकिस्तान से आतंकवाद के प्रति उसके दोहरे रवैय्ये पर कैफियत मांग रही है तब उचित ही नहीं भारत सरकार के लिए एकमात्र करणीय कर्म यही रहेगा कि वह दुनिया के सामने पाकिस्तानी सरकार समर्थित आतंकवाद का मुद्दा और भी जोर-शोर से उठाए.अभी जोर लगाने से संभव है कि पाकिस्तान को आतंकवाद की सभी नर्सरियों को अपनी जमीन पर से उजाड़ना पड़े और भारत को इस समस्या से स्थाई रूप से निदान मिल जाए.अगर भारत सरकार इस समय नरमी बरतती है और दुनिया के सुर में सुर नहीं मिलाती है तो बाद में २६/११ जैसी किसी घटना के घटने के बाद वह किस मुंह से दुनिया को पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए कहेगी?
मित्रों,इतिहास की पुस्तकों के काले पन्ने इस बात के साक्षी हैं कि पाकिस्तान ने न तो कभी भारत को अपना मित्र माना है और न ही आगे कभी मानने ही वाला है;इसलिए हमें शठं शठे समाचरेत की नीति अपनाते हुए ईश्वर की कृपा से प्राप्त हुए इस सुअवसर को भुनाना चाहिए.कहते हैं कि अवसर के सिर में सिर्फ आगे से ही बाल होते हैं;पीछे से नहीं होते इसलिए जो व्यक्ति मिले हुए अवसर का लाभ समय पर नहीं उठा पाता बाद में उसके पास सिर्फ हाथ मलते रहने के और कोई विकल्प नहीं रह जाता.इसलिए अंत में मैं भारत सरकार से भारत की सवा अरब जनता की ओर से अनुरोध करता हूँ कि वह वोट बैंक की सोंच से ऊपर उठाते हुए अभी नहीं तो कभी नहीं की नीति पर चलते हुए पाकिस्तान को आतंकी ट्रेनिग कैम्पों को नष्ट करने के लिए और अपनी नीतियाँ बदलने के लिए मजबूर करे नहीं तो वह वक्त भी जल्दी ही आ जाएगा जब उसके और उसके निकम्मे मंत्रियों के पास गलतियाँ करने का अधिकार भी नहीं रह जाएगा.आखिर उसे चुनाव तो लड़ना है ही;एक माघ के कट जाने से जाड़ा हमेशा के लिए समाप्त थोड़े ही हो जाता है.
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