1 नवंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जबसे केंद्र में मोदी
सरकार ने सत्ता संभाली है कुछ लोगों की बर्दाश्त करने की शक्ति एकाएक जवाब
दे गई है। बेचारे यह स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं कि अब देश में एक काम
करनेवाली सरकार है। इन दिनों ऐसे शरारती तत्त्व इस बात के इंतजार में रहते
हैं कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के खिलाफ कुछ बोले और जैसे ही कौलेजियम प्रणाली
में बदलाव से नाराज सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश केंद्र सरकार के खिलाफ कोई
तल्ख टिप्पणी करते हैं कांग्रेस,आप और साम्यवादी दलों के चुके हुए राजनेता
हुआँ-हुआँ करने लगते हैं। उनको लगता है कि ऐसा करके वे सरकार को जनता के
बीच इतना अधिक बदनाम कर देंगे कि मोदी नाम का प्रचंड जनमतवाला चक्रवात
कमजोर पड़ जाएगा। इन दिनों कांग्रेस अपने लकवाग्रस्त पंजे को थप्पड़ की तरह
हवा में बेतहाशा भाँजने में लग गई है और दनादन अपने ही गाल पर थप्पड़ ठोके
जा रही है,आपिये आपे से बाहर हो गए हैं और साम्यवादी दल जो पहले लाल थे अब
लाल की जगह पीले पड़ने लगे हैं।
मित्रों,ऐसे तत्त्व यह भूल गए हैं कि अब वह जमाना नहीं रहा जब सौ गीदड़ मिलकर एक शेर का शिकार कर डालते थे और बाँकी जानवर या तो तटस्थ हो जाते थे या फिर भुलावे में आकर तालियाँ पीटने लगते थे। इस बार देश की जनता न तो भुलावे में आने जा रही है और न ही तटस्थ रहनेवाली है बल्कि सबके-सब शेर के समर्थन में शेर ही बन गए हैं। इन लोगों ने काले धन के मुद्दे पर राम जेठमलानी नामक एक ऐसे देशविरोध महावकील की सहायता ली जो पिछले तीन दशक से देश की विभिन्न अदालतों में आतंकवादियों की वकालत करता आ रहा है। इस थाली के बैगन की न तो कोई विचारधारा है और न ही कोई दृष्टिकोण।
मित्रों,संस्कृत में एक श्लोक है-पुस्तकेषु तु या विद्या परहस्तगतं धनं,कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनमं अर्थात् पुस्तकों में स्थित विद्या और दूसरों के हाथों में गया धन कभी बुरे वक्त में काम नहीं आता। हमारी गीदड़ मंडली ने भी अपने लंबे सार्थक जीवन में इस बात का अनुभव किया होगा कि किसी से अपना धन वापस ले पाना ही कठिन होता है और धन छीन लेना तो कतई आसान नहीं होता। फिर उन्होंने विदेशों में जमा काले धन के मामले में कैसे सोंच लिया कि मोदी सरकार 100 दिनों में ही उसको वापस ले आएगी? लोकसभा चुनावों के दौरान नमो के लगभग सारे भाषणों के अपनी खबरों में स्थान देने के नाते हम दावे से कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी ने किसी भी मुद्दे पर यह नहीं कहा था कि वह इनको अपनी जादुई ताकत से 100 दिनों में हल कर देंगे। बल्कि उन्होंने चुनाव-प्रचार के दौरान हमेशा कहा कि वे जनता से 60 महीने मांग रहे हैं और इसलिए उनसे कामकाज का हिसाब भी पाँच साल के बाद ही लिया जाए।
मित्रों,लगता है कि हमारी हुआँ-हुआँ पार्टियाँ को मोदी सरकार के काम करने का नया तरीका पसंद नहीं आ रहा है। मोदी तमाम पुरानी परंपराओं को लगातार भंग करते जा रहे हैं और देश में एक नितांत नवीन स्वतःस्फूर्त वातावरण तैयार कर रहे हैं। देश में चलता है वाली संस्कृति दम तोड़ने लगी है और देश के क्षितिज पर ऐसा होगा और केवल ऐसा ही होगा की नई संस्कृति की लाली फूटने लगी है ऐसे में लगता है जैसे हमारे विपक्षी दलों को भय लगने लगा है कि अब उनके भविष्य का क्या होगा और उनकी राजनैतिक विचारधारा-सड़ी-गली सोंच का क्या होगा? मगर गोबयल्स के अनुयायी भूल से यह भूल जाते हैं कि आज देश की 65 प्रतिशत आबादी युवा है जिसको कोरी विचारधारा नहीं वरन् धरातल पर विकास चाहिए। उनके बेवजह शोर मचाने से सरकार को कतई प्रभावित नहीं होना चाहिए और चुपचाप अपने तरीके से अपना काम करना चाहिए। सरकार को देश की समझदार जनता की समझदारी पर पूरा भरोसा करना चाहिए क्योंकि भारत की सवा करोड़ जनता अब उन लोगों के बहकावे में बिल्कुल भी नहीं आनेवाली है जिन्होंने भारत को एक असफल राष्ट्र और एशिया का मरीज बना डाला था। साथ ही हम वैशाख के अंधों को मुफ्त में यह सलाह भी देना चाहेंगे कि या तो वे मोदी सरकार के राष्ट्रनिर्माण में सक्रिय भागेदारी करें और अगर उनको मोदी सरकार के अच्छे काम रास नहीं आ रहे हैं,उनकी आँखों को नयनसुख प्रदान नहीं कर पा रहे हैं तो कृपया मानसिक अवसाद से बचने के लिए अपने नेत्रों का दान कर दें। उनकी आँखें उनके खुद के काम आने से तो रहीं तो फिर किसी नेत्रहीन को ही क्यों न उनका लाभ मिले?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,ऐसे तत्त्व यह भूल गए हैं कि अब वह जमाना नहीं रहा जब सौ गीदड़ मिलकर एक शेर का शिकार कर डालते थे और बाँकी जानवर या तो तटस्थ हो जाते थे या फिर भुलावे में आकर तालियाँ पीटने लगते थे। इस बार देश की जनता न तो भुलावे में आने जा रही है और न ही तटस्थ रहनेवाली है बल्कि सबके-सब शेर के समर्थन में शेर ही बन गए हैं। इन लोगों ने काले धन के मुद्दे पर राम जेठमलानी नामक एक ऐसे देशविरोध महावकील की सहायता ली जो पिछले तीन दशक से देश की विभिन्न अदालतों में आतंकवादियों की वकालत करता आ रहा है। इस थाली के बैगन की न तो कोई विचारधारा है और न ही कोई दृष्टिकोण।
मित्रों,संस्कृत में एक श्लोक है-पुस्तकेषु तु या विद्या परहस्तगतं धनं,कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनमं अर्थात् पुस्तकों में स्थित विद्या और दूसरों के हाथों में गया धन कभी बुरे वक्त में काम नहीं आता। हमारी गीदड़ मंडली ने भी अपने लंबे सार्थक जीवन में इस बात का अनुभव किया होगा कि किसी से अपना धन वापस ले पाना ही कठिन होता है और धन छीन लेना तो कतई आसान नहीं होता। फिर उन्होंने विदेशों में जमा काले धन के मामले में कैसे सोंच लिया कि मोदी सरकार 100 दिनों में ही उसको वापस ले आएगी? लोकसभा चुनावों के दौरान नमो के लगभग सारे भाषणों के अपनी खबरों में स्थान देने के नाते हम दावे से कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी ने किसी भी मुद्दे पर यह नहीं कहा था कि वह इनको अपनी जादुई ताकत से 100 दिनों में हल कर देंगे। बल्कि उन्होंने चुनाव-प्रचार के दौरान हमेशा कहा कि वे जनता से 60 महीने मांग रहे हैं और इसलिए उनसे कामकाज का हिसाब भी पाँच साल के बाद ही लिया जाए।
मित्रों,लगता है कि हमारी हुआँ-हुआँ पार्टियाँ को मोदी सरकार के काम करने का नया तरीका पसंद नहीं आ रहा है। मोदी तमाम पुरानी परंपराओं को लगातार भंग करते जा रहे हैं और देश में एक नितांत नवीन स्वतःस्फूर्त वातावरण तैयार कर रहे हैं। देश में चलता है वाली संस्कृति दम तोड़ने लगी है और देश के क्षितिज पर ऐसा होगा और केवल ऐसा ही होगा की नई संस्कृति की लाली फूटने लगी है ऐसे में लगता है जैसे हमारे विपक्षी दलों को भय लगने लगा है कि अब उनके भविष्य का क्या होगा और उनकी राजनैतिक विचारधारा-सड़ी-गली सोंच का क्या होगा? मगर गोबयल्स के अनुयायी भूल से यह भूल जाते हैं कि आज देश की 65 प्रतिशत आबादी युवा है जिसको कोरी विचारधारा नहीं वरन् धरातल पर विकास चाहिए। उनके बेवजह शोर मचाने से सरकार को कतई प्रभावित नहीं होना चाहिए और चुपचाप अपने तरीके से अपना काम करना चाहिए। सरकार को देश की समझदार जनता की समझदारी पर पूरा भरोसा करना चाहिए क्योंकि भारत की सवा करोड़ जनता अब उन लोगों के बहकावे में बिल्कुल भी नहीं आनेवाली है जिन्होंने भारत को एक असफल राष्ट्र और एशिया का मरीज बना डाला था। साथ ही हम वैशाख के अंधों को मुफ्त में यह सलाह भी देना चाहेंगे कि या तो वे मोदी सरकार के राष्ट्रनिर्माण में सक्रिय भागेदारी करें और अगर उनको मोदी सरकार के अच्छे काम रास नहीं आ रहे हैं,उनकी आँखों को नयनसुख प्रदान नहीं कर पा रहे हैं तो कृपया मानसिक अवसाद से बचने के लिए अपने नेत्रों का दान कर दें। उनकी आँखें उनके खुद के काम आने से तो रहीं तो फिर किसी नेत्रहीन को ही क्यों न उनका लाभ मिले?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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