16 नवंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,बिहार के पीएम इऩ वेटिंग
नीतीश कुमार के भाषणों को सुनकर उनपर दया भी आती है और हँसी भी। आश्चर्य
होता है कि नीतीश कुमार कितने झूठे और बेशर्म हैं! मैं एक बिहारी होने और
पिछले सात सालों से बिहार में ही रहने के कारण यह दावे के साथ कह सकता हूँ
कि न सिर्फ भारत बल्कि पूरी वसुंधरा पर नीतीश कुमार से बड़ा दूसरा कोई
वादावीर इस समय नहीं है और गजब यह कि अपने 9 सालों के काफी लंबे शासन में
अपना एक भी वादा पूरा नहीं करनेवाले नीतीश भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी से उनके छठे महीने में ही उनके द्वारा किए गए वादों का हिसाब मांग रहे
हैं।
मित्रों,जब 2005 का विधानसभा चुनाव चल रहा था तब नीतीश कुमार ने बिहार को सुशासन देने का वादा किया। बिहार में सुशासन तो आया नहीं मगर नौकरशाहों का शासन जरूर आ गया। मतलब कि एक अति के बदले नीतीश ने दूसरी अति को स्थापित कर दिया। इसी प्रकार जब वर्ष 2010 का विधानसभा चुनाव चल रहा था तब नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से वादा किया कि पहली पारी में हमने कानून-व्यवस्था में सुधार किया अब अगली पारी में भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे। हालाँकि रोज-रोज बिहार में औसतन तीन-चार घूसखोरों को रंगे हाथों पकड़ा गया लेकिन इससे राज्य में भ्रष्टाचार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा बल्कि बढ़े हुए जोखिम के मद्देनजर रेट में कई गुना की बढ़ोतरी हो गई।
मित्रों,फिर भी बिहार की जनता नीतीश सरकार से काफी हद तक संतुष्ट थी मगर इसी बीच नीतीश जी पर भारत का प्रधानमंत्री बनने का फितूर सवार हो गया और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से सांप्रदायिकता के नाम पर गठबंधन तोड़ दिया। बिहार की जनता हतप्रभ थी कि जो पार्टी पिछले 18 सालों से धर्मनिरपेक्ष थी 2014 के लोकसभा चुनावों के समय कैसे सांप्रदायिक हो गई। जनता ने नीतीश के इस घोर अवसरवादी कदम और सहयोगी दल के साथ की गई धोखेबाजी को बिल्कुल भी पसंद नहीं किया और उनकी पार्टी आज बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन चुकी है।
मित्रों,इसी तरह नीतीश जी ने कहा था कि अगर 2015 तक बिहार के हर गांव और घर में बिजली नहीं पहुँची तो वे वोट मांगने नहीं आएंगे मगर नीतीश जी अपने इस वचन पर भी कायम नहीं रहे और विधानसभा चुनावों से एक साल पहले से ही जनता के द्वार पर जा पहुँचे हैं। नीतीश जी ने अपनी धन्यवाद यात्रा और विकास यात्रा के दौरान बिहार के कई गांवों में रात बिताई और जमकर थोक में शिलान्यास किया। बेगूसराय और मोतीहारी की जनता ने जब कई महीनों के इंतजार के बाद भी पाया कि काम शुरू नहीं हो रहा है तब उन्होंने शिलापट्ट को उखाड़कर फेंक दिया। इधर नीतीश जी भी यकीनन शिलान्यासों को भूल चुके थे। मेरे क्षेत्र राघोपुर (वैशाली) की जनता भी इन दिनों काफी निराश है क्योंकि उनकी सड़क-पुल की उम्मीद धूमिल होने लगी है और इस दिशा में कहीं कोई काम होता हुआ नहीं दिख रहा है। बिहार के भूमिहीनों के साथ नीतीश कुमार ने वादा किया था कि उनको तीन-तीन डिसमिल जमीन दी जाएगी मगर हुआ कुछ नहीं। इसी तरह नीतीश जी ने बिहार के हर जिले में पॉलिटेक्निक और हर गांव में उच्च विद्यालय खोलने का वादा किया था जो शायद अब उनको याद भी नहीं है। नीतीश जी यह भी भूल गए हैं कि उन्होंने मार्क्सवादी नेता स्व. वासुदेव सिंह के इस आरोप कि बिहार सरकार प्राईवेट कंपनी बन गई है के जवाब में कहा था कि अबसे बिहार सरकार कांट्रैक्ट के आधार पर नहीं बल्कि स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति करेगी। इसी प्रकार नीतीश कुमार महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर पाए जो आज तक भी नहीं हो पाई है। नीतीश कुमार ने वादा किया था कि बीपीएससी की परीक्षा अब प्रत्येक साल हुआ करेगी लेकिन वे यह वादा भी पूरा नहीं कर सके। नीतीश कुमार ने वादा किया था कि वे बिहार में कानून का राज कायम करेंगे मगर नीतीश की पहली पारी के विपरीत आज के बिहार में फिर से जंगलराज की स्थिति बन गई है। इसी तरह नीतीश कुमार ने वादा किया था कि वे कभी जाति-धर्म की राजनीति नहीं करेंगे बल्कि हमेशा विकास की राजनीति करेंगे। नीतीश जी ने कहा था कि मंदिरों-मस्जिदों और स्कूलों के पास शराब की सरकारी दुकानें नहीं खोली जाएंगी और जो दुकानें खुल गई हैं उनको बंद कर दिया जाएगा मगर अफसोस ऐसा हो न सका। नीतीश कुमार ने पटना को जलजमाव से मुक्त करने का वादा भी किया था लेकिन राजधानी पटना इस साल भी बरसात में झील में बदल गई और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद भी बनी रही। नीतीश कुमार ने वादा किया था कि वे बिहार की शिक्षा-व्यवस्था का कायाकल्प कर देंगे मगर उन्होंने उल्टे शिक्षा को बर्बाद कर दिया। इस साल इंटर के परीक्षार्थियों के साथ कैसा मजाक हुआ यह पूरी दुनिया ने देखा है। स्क्रूटनी में कॉपियाँ जाँची नहीं गईं और कॉपियों को खोले बिना ही एक-दो नंबर बढ़ा दिए गए जिससे मेधावी छात्र-छात्राओं का एक साल बर्बाद हो गया।
मित्रों,हम कहाँ तक गिनवाएँ कि नीतीश कुमार ने कितने वादे किए थे शायद शेषनाग भी नहीं गिना पाएंगे। हाँ,हम इतना दावे के साथ कह सकते हैं कि नीतीश कुमार ने उनमें से किसी भी एक भी वादा को पूरा नहीं किया। इस प्रकार हम उनको भारत का सबसे बड़ा वादावीर के रूप में विभूषित कर सकते हैं। जहाँ तक नरेंद्र मोदी का सवाल है तो कालाधन से लेकर प्रत्येक मुद्दे और वादे पर केंद्र सरकार कायम है और संजीदगी व शीघ्रता से उस दिशा में कदम भी उठा रही है। यहाँ तक कि जी20 की बैठकों में भी मोदी का सबसे ज्यादा जोर भ्रष्टाचार और कालेधन की वापसी पर ही है। ये बात और है कि नीतीश जी की रणनीति चूँकि केंद्र सरकार की कथित विफलताओं को मुद्दा बनाकर बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ना है इसलिए उनको केंद्र सरकार काम करती हुई दिख ही नहीं रही जबकि होना तो यह चाहिए उनको केंद्र की वर्तमान सरकार की विफलताओं के मुद्दे पर नहीं बल्कि अपनी सरकार की सफलताओं के मुद्दे पर चुनावों में जाना चाहिए।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,जब 2005 का विधानसभा चुनाव चल रहा था तब नीतीश कुमार ने बिहार को सुशासन देने का वादा किया। बिहार में सुशासन तो आया नहीं मगर नौकरशाहों का शासन जरूर आ गया। मतलब कि एक अति के बदले नीतीश ने दूसरी अति को स्थापित कर दिया। इसी प्रकार जब वर्ष 2010 का विधानसभा चुनाव चल रहा था तब नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से वादा किया कि पहली पारी में हमने कानून-व्यवस्था में सुधार किया अब अगली पारी में भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे। हालाँकि रोज-रोज बिहार में औसतन तीन-चार घूसखोरों को रंगे हाथों पकड़ा गया लेकिन इससे राज्य में भ्रष्टाचार की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा बल्कि बढ़े हुए जोखिम के मद्देनजर रेट में कई गुना की बढ़ोतरी हो गई।
मित्रों,फिर भी बिहार की जनता नीतीश सरकार से काफी हद तक संतुष्ट थी मगर इसी बीच नीतीश जी पर भारत का प्रधानमंत्री बनने का फितूर सवार हो गया और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से सांप्रदायिकता के नाम पर गठबंधन तोड़ दिया। बिहार की जनता हतप्रभ थी कि जो पार्टी पिछले 18 सालों से धर्मनिरपेक्ष थी 2014 के लोकसभा चुनावों के समय कैसे सांप्रदायिक हो गई। जनता ने नीतीश के इस घोर अवसरवादी कदम और सहयोगी दल के साथ की गई धोखेबाजी को बिल्कुल भी पसंद नहीं किया और उनकी पार्टी आज बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन चुकी है।
मित्रों,इसी तरह नीतीश जी ने कहा था कि अगर 2015 तक बिहार के हर गांव और घर में बिजली नहीं पहुँची तो वे वोट मांगने नहीं आएंगे मगर नीतीश जी अपने इस वचन पर भी कायम नहीं रहे और विधानसभा चुनावों से एक साल पहले से ही जनता के द्वार पर जा पहुँचे हैं। नीतीश जी ने अपनी धन्यवाद यात्रा और विकास यात्रा के दौरान बिहार के कई गांवों में रात बिताई और जमकर थोक में शिलान्यास किया। बेगूसराय और मोतीहारी की जनता ने जब कई महीनों के इंतजार के बाद भी पाया कि काम शुरू नहीं हो रहा है तब उन्होंने शिलापट्ट को उखाड़कर फेंक दिया। इधर नीतीश जी भी यकीनन शिलान्यासों को भूल चुके थे। मेरे क्षेत्र राघोपुर (वैशाली) की जनता भी इन दिनों काफी निराश है क्योंकि उनकी सड़क-पुल की उम्मीद धूमिल होने लगी है और इस दिशा में कहीं कोई काम होता हुआ नहीं दिख रहा है। बिहार के भूमिहीनों के साथ नीतीश कुमार ने वादा किया था कि उनको तीन-तीन डिसमिल जमीन दी जाएगी मगर हुआ कुछ नहीं। इसी तरह नीतीश जी ने बिहार के हर जिले में पॉलिटेक्निक और हर गांव में उच्च विद्यालय खोलने का वादा किया था जो शायद अब उनको याद भी नहीं है। नीतीश जी यह भी भूल गए हैं कि उन्होंने मार्क्सवादी नेता स्व. वासुदेव सिंह के इस आरोप कि बिहार सरकार प्राईवेट कंपनी बन गई है के जवाब में कहा था कि अबसे बिहार सरकार कांट्रैक्ट के आधार पर नहीं बल्कि स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति करेगी। इसी प्रकार नीतीश कुमार महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर पाए जो आज तक भी नहीं हो पाई है। नीतीश कुमार ने वादा किया था कि बीपीएससी की परीक्षा अब प्रत्येक साल हुआ करेगी लेकिन वे यह वादा भी पूरा नहीं कर सके। नीतीश कुमार ने वादा किया था कि वे बिहार में कानून का राज कायम करेंगे मगर नीतीश की पहली पारी के विपरीत आज के बिहार में फिर से जंगलराज की स्थिति बन गई है। इसी तरह नीतीश कुमार ने वादा किया था कि वे कभी जाति-धर्म की राजनीति नहीं करेंगे बल्कि हमेशा विकास की राजनीति करेंगे। नीतीश जी ने कहा था कि मंदिरों-मस्जिदों और स्कूलों के पास शराब की सरकारी दुकानें नहीं खोली जाएंगी और जो दुकानें खुल गई हैं उनको बंद कर दिया जाएगा मगर अफसोस ऐसा हो न सका। नीतीश कुमार ने पटना को जलजमाव से मुक्त करने का वादा भी किया था लेकिन राजधानी पटना इस साल भी बरसात में झील में बदल गई और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद भी बनी रही। नीतीश कुमार ने वादा किया था कि वे बिहार की शिक्षा-व्यवस्था का कायाकल्प कर देंगे मगर उन्होंने उल्टे शिक्षा को बर्बाद कर दिया। इस साल इंटर के परीक्षार्थियों के साथ कैसा मजाक हुआ यह पूरी दुनिया ने देखा है। स्क्रूटनी में कॉपियाँ जाँची नहीं गईं और कॉपियों को खोले बिना ही एक-दो नंबर बढ़ा दिए गए जिससे मेधावी छात्र-छात्राओं का एक साल बर्बाद हो गया।
मित्रों,हम कहाँ तक गिनवाएँ कि नीतीश कुमार ने कितने वादे किए थे शायद शेषनाग भी नहीं गिना पाएंगे। हाँ,हम इतना दावे के साथ कह सकते हैं कि नीतीश कुमार ने उनमें से किसी भी एक भी वादा को पूरा नहीं किया। इस प्रकार हम उनको भारत का सबसे बड़ा वादावीर के रूप में विभूषित कर सकते हैं। जहाँ तक नरेंद्र मोदी का सवाल है तो कालाधन से लेकर प्रत्येक मुद्दे और वादे पर केंद्र सरकार कायम है और संजीदगी व शीघ्रता से उस दिशा में कदम भी उठा रही है। यहाँ तक कि जी20 की बैठकों में भी मोदी का सबसे ज्यादा जोर भ्रष्टाचार और कालेधन की वापसी पर ही है। ये बात और है कि नीतीश जी की रणनीति चूँकि केंद्र सरकार की कथित विफलताओं को मुद्दा बनाकर बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ना है इसलिए उनको केंद्र सरकार काम करती हुई दिख ही नहीं रही जबकि होना तो यह चाहिए उनको केंद्र की वर्तमान सरकार की विफलताओं के मुद्दे पर नहीं बल्कि अपनी सरकार की सफलताओं के मुद्दे पर चुनावों में जाना चाहिए।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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