26 नवंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जैसा कि नाम से ही जाहिर
होता है कि रिपोर्ट कार्ड में सरकार की उपलब्धियाँ होनी चाहिए,सरकार
द्वारा किए गए कार्यों का जिक्र होना चाहिए लेकिन बिहार की मांझी सरकार की
वार्षिक रिपोर्ट को देखकर यह दुःखद आश्चर्य हुआ कि रिपोर्ट कार्ड में
रिपोर्ट थी ही नहीं बल्कि थी तो सिर्फ वादों की भरमाऱ। नौ साल से बिहार पर
राज कर रही जदयू सरकार ने एक बार फिर से राज्य के लोगों के साथ प्रति वर्ष
एक के हिसाब से 9 वादे कर दिए कि हम सभी किसानों को छह माह में बिजली
कनेक्शन देंगे, धान के क्रय पर प्रति क्विंटल 300 रुपये बोनस देंगे, उत्तर
प्रदेश, कर्नाटक व दिल्ली की तर्ज पर 70 हजार सिपाही-हवलदारों को 13 महीने
का वेतन देंगे, एससी-एसटी आवासीय विद्यालयों में आवासन क्षमता 20 हजार से
बढ़ाकर अब एक लाख करेंगे, एक लाख से अधिक आबादी के शहरों में एक यातायात
थाना खोलेंगे, दो लाख से अधिक की आबादी के लिए डीएसपी कार्यालय की स्थापना
करेंगे, बिहार उर्दू अकादमी को एक करोड़ के अनुदान को बढ़ाकर तीन करोड़
करेंगे, पर्यावरण की चिंता करेंगे व मुंगेर में वानिकी महाविद्यालय
खोलेंगे, अफसरों और कर्मचारियों के प्रशिक्षण की नयी व्यवस्था शुरू करेंगे।
वहीं सरकार ने अपनी उपलब्धियों में जाति,आय एवं आवास प्रमाण-पत्र के लिए
तत्काल सेवा आरंभ करने के काम को सबसे ऊपर रखा है। बिहार लोक सेवाओं के
अधिकार के तहत प्राप्त 8 करोड़ 39 लाख 77 हजार 695 आवेदनों में से 8 करोड़
26 लाख 76 हजार 474 के निष्पादन को भी सरकार बड़ी उपलब्धि बता रही है। मगर
सवाल उठता है कि क्या सारे आवेदनों का निष्पादन निर्धारित समय-सीमा के भीतर
कर दिया गया? अगर नहीं तो फिर पहले और वर्तमान की स्थिति में क्या अंतर रह
गया? इसी तरह सरकार 411 भ्रष्ट लोक सेवकों की बर्खास्तगी को भी अपनी
उपलब्धि बता रही है परंतु सवाल उठता है कि क्या इससे राज्य में भ्रष्टाचार
में और घूस के रेट में किसी तरह की कमी आई है? नहीं भ्रष्टाचार तो पहले से
और भी बढ़ा है फिर यह कैसा जीरो टॉलरेंस है? फिर ये जो 411 भ्रष्ट लोकसेवक
हैं उनको तो जनता ने पहल करके पकड़वाया है सरकार अपनी तरफ से कब
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ स्वतः कार्रवाई करेगी? जब मुख्यमंत्री ही अपने
दामाद को पीए बनाकर नियमों को तोड़ेगा,जब मुख्यमंत्री का बेटा ही शराब पीकर
होटल में रंगदारी करेगा,महिला दारोगा का यौन-शोषण करेगा तो फिर कैसे
भ्रष्टाचार कमेगा?
मित्रों,इसी तरह से सरकार कह रही है कि वर्ष 2015 तक राज्य के लिए 5000 मेगावाट बिजली उपलब्ध होगी मगर सरकार ने यह नहीं बताया है कि वह बिजली आएगी कहाँ से। सच्चाई तो यह है कि इसमें से ज्यादातर बिजली केंद्र द्वारा बिहार को प्राप्त हो रही है और बिहार में बिजली का उत्पादन आज भी काफी कम है। सरकार ने रिपोर्ट कार्ड में खुलेआम जाति-पाँति का खेल खेला है। सरकार जहाँ एक ओर सवर्ण आयोग को जल्दी रिपोर्ट देने के लिए कह रही है वहीं वह यह भी बता रही है कि फलां-फलां जाति को अनुसूचित जाति और अत्यंत पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया है। मतलब अभी भी आरक्षण को सरकार ने वोट पाने का हथियार बनाया हुआ है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सीएम मांझी अभी कुछ ही दिन पहले सवर्णों को विदेशी बता रहे थे और अब अचानक सवर्णों पर मेहरबान हो रहे हैं। मुझे तो इस बात की आशंका लग रही हैं कि कहीं मुख्यमंत्री इस मामले में भी ऐसा न कह दें कि मैंने तो मजाक किया था। मुख्यमंत्री मजाक बहुत करते हैं। काम कुछ नहीं करते राज्य की जनता के साथ सिर्फ मजाक ही करते हैं। न जाने कब किस मुद्दे पर पलट जाएँ और कह दें कि मैंने तो जनता के साथ मजाक किया था। साथ ही सरकार बता रही है कि राज्य में एक आतंकवाद निरोधी दस्ते का गठन किया गया है मगर यह नहीं बताया है कि इस दस्ते ने अबतक किया क्या है? कितने आतंकियों को पकड़ा है और कितने माड्युलों को ध्वस्त किया है? राज्य में 85 नए थाने भी खोले गए हैं। आश्चर्य है कि नए थानों का खुलना उपलब्धि कैसे हो गई बल्कि यह तो शर्मनाक स्थिति है कि अपराध बढ़े हैं तभी तो नए थाने खोलने की आवश्यकता पड़ी? सरकार कहती है कि उसने इतने आर्सेनिक और लौह-शोधक पेयजल संयंत्र स्थापित किए मगर जहाँ तक हमारी जानकारी है वैशाली जिले में स्थापित किया गया ऐसा कोई भी संयंत्र इस समय काम नहीं कर रहा है और सफेद हाथी बना हुआ है और मैं समझता हूँ कि राज्य के बाँकी जिलों के संयंत्रों का भी यही हाल है।
मित्रों,रिपोर्ट कार्ड में किए गए जिस वादे पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो यह है कि सरकार राज्य की छात्राओं को मुफ्त में उच्च शिक्षा देगी। अच्छा होता कि सरकार उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के उपाय करती बजाए मुफ्त शिक्षा देने के। सच्चाई तो यह है कि राज्य के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अब पढ़ाई होती ही नहीं है बल्कि डिग्री बाँटी जाती है। राज्य में शोध के नाम पर सिर्फ कट,कॉपी,पेस्ट चल रहा है। मैट्रिक से लेकर एमए तक की परीक्षाओं में कुछेक अपवादों को छोड़कर छात्र-छात्राओं को जमकर नकल की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है जिससे एमए पास विद्यार्थी भी एक आवेदन-पत्र तक लिख पाने में असमर्थ होते हैं।
मित्रों,आश्चर्यजनक तरीके से वादों की लिस्ट से भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नदारद है जबकि 2010 के चुनावों में यह सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर था। तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकार ने भ्रष्टाचार के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है? कहने का तात्पर्य यह है कि राज्य सरकार के पास उपलब्धियों के नाम पर जब कुछ था ही नहीं तो वो बताती क्या? वास्तविकता तो यह है वर्ष 2005 से 2013 की उस अवधि में जब भाजपा भी सरकार में शामिल थी तब सरकार ने जो भी अच्छे काम किए उनमें से ज्यादातर या लगभग सारे भाजपा मंत्रियों द्वारा किये गए थे। वास्तविकता यह भी है कि भाजपा को सरकार से हटाने के बाद से उन मंत्रालयों व विभागों की स्थिति को बिगाड़ा ही गया है जिसमें स्वास्थ्य विभाग सबसे ऊपर है जिसका सर्वोत्तम उदाहरण आईजीआईएमएस में जज से थर्मामीटर खरीदवाना है। जनता ने नीतीश कुमार को इसलिए जनमत नहीं दिया था कि वे 9 साल सरकार चलाने के बाद भी उपलब्धियाँ गिनवाने के बदले वादे ही करें। यह तो वही बात हो गई कि परीक्षार्थी परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर देने के बजाए अपनी आगे की पढ़ाई की योजना प्रस्तुत करे कि हम अगली कक्षा में इस तरह से कड़ी मेहनत से पढ़ेंगे और हम यह सब पढ़ेंगे इसलिए हमें उत्तीर्ण घोषित कर दिया जाए।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,इसी तरह से सरकार कह रही है कि वर्ष 2015 तक राज्य के लिए 5000 मेगावाट बिजली उपलब्ध होगी मगर सरकार ने यह नहीं बताया है कि वह बिजली आएगी कहाँ से। सच्चाई तो यह है कि इसमें से ज्यादातर बिजली केंद्र द्वारा बिहार को प्राप्त हो रही है और बिहार में बिजली का उत्पादन आज भी काफी कम है। सरकार ने रिपोर्ट कार्ड में खुलेआम जाति-पाँति का खेल खेला है। सरकार जहाँ एक ओर सवर्ण आयोग को जल्दी रिपोर्ट देने के लिए कह रही है वहीं वह यह भी बता रही है कि फलां-फलां जाति को अनुसूचित जाति और अत्यंत पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया है। मतलब अभी भी आरक्षण को सरकार ने वोट पाने का हथियार बनाया हुआ है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सीएम मांझी अभी कुछ ही दिन पहले सवर्णों को विदेशी बता रहे थे और अब अचानक सवर्णों पर मेहरबान हो रहे हैं। मुझे तो इस बात की आशंका लग रही हैं कि कहीं मुख्यमंत्री इस मामले में भी ऐसा न कह दें कि मैंने तो मजाक किया था। मुख्यमंत्री मजाक बहुत करते हैं। काम कुछ नहीं करते राज्य की जनता के साथ सिर्फ मजाक ही करते हैं। न जाने कब किस मुद्दे पर पलट जाएँ और कह दें कि मैंने तो जनता के साथ मजाक किया था। साथ ही सरकार बता रही है कि राज्य में एक आतंकवाद निरोधी दस्ते का गठन किया गया है मगर यह नहीं बताया है कि इस दस्ते ने अबतक किया क्या है? कितने आतंकियों को पकड़ा है और कितने माड्युलों को ध्वस्त किया है? राज्य में 85 नए थाने भी खोले गए हैं। आश्चर्य है कि नए थानों का खुलना उपलब्धि कैसे हो गई बल्कि यह तो शर्मनाक स्थिति है कि अपराध बढ़े हैं तभी तो नए थाने खोलने की आवश्यकता पड़ी? सरकार कहती है कि उसने इतने आर्सेनिक और लौह-शोधक पेयजल संयंत्र स्थापित किए मगर जहाँ तक हमारी जानकारी है वैशाली जिले में स्थापित किया गया ऐसा कोई भी संयंत्र इस समय काम नहीं कर रहा है और सफेद हाथी बना हुआ है और मैं समझता हूँ कि राज्य के बाँकी जिलों के संयंत्रों का भी यही हाल है।
मित्रों,रिपोर्ट कार्ड में किए गए जिस वादे पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो यह है कि सरकार राज्य की छात्राओं को मुफ्त में उच्च शिक्षा देगी। अच्छा होता कि सरकार उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के उपाय करती बजाए मुफ्त शिक्षा देने के। सच्चाई तो यह है कि राज्य के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में अब पढ़ाई होती ही नहीं है बल्कि डिग्री बाँटी जाती है। राज्य में शोध के नाम पर सिर्फ कट,कॉपी,पेस्ट चल रहा है। मैट्रिक से लेकर एमए तक की परीक्षाओं में कुछेक अपवादों को छोड़कर छात्र-छात्राओं को जमकर नकल की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है जिससे एमए पास विद्यार्थी भी एक आवेदन-पत्र तक लिख पाने में असमर्थ होते हैं।
मित्रों,आश्चर्यजनक तरीके से वादों की लिस्ट से भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नदारद है जबकि 2010 के चुनावों में यह सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर था। तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकार ने भ्रष्टाचार के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है? कहने का तात्पर्य यह है कि राज्य सरकार के पास उपलब्धियों के नाम पर जब कुछ था ही नहीं तो वो बताती क्या? वास्तविकता तो यह है वर्ष 2005 से 2013 की उस अवधि में जब भाजपा भी सरकार में शामिल थी तब सरकार ने जो भी अच्छे काम किए उनमें से ज्यादातर या लगभग सारे भाजपा मंत्रियों द्वारा किये गए थे। वास्तविकता यह भी है कि भाजपा को सरकार से हटाने के बाद से उन मंत्रालयों व विभागों की स्थिति को बिगाड़ा ही गया है जिसमें स्वास्थ्य विभाग सबसे ऊपर है जिसका सर्वोत्तम उदाहरण आईजीआईएमएस में जज से थर्मामीटर खरीदवाना है। जनता ने नीतीश कुमार को इसलिए जनमत नहीं दिया था कि वे 9 साल सरकार चलाने के बाद भी उपलब्धियाँ गिनवाने के बदले वादे ही करें। यह तो वही बात हो गई कि परीक्षार्थी परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर देने के बजाए अपनी आगे की पढ़ाई की योजना प्रस्तुत करे कि हम अगली कक्षा में इस तरह से कड़ी मेहनत से पढ़ेंगे और हम यह सब पढ़ेंगे इसलिए हमें उत्तीर्ण घोषित कर दिया जाए।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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