मित्रों,अगर
मैं यह कहूँ कि भारतीय रेल भारत का प्राण और प्रतीक है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत
का कोई ऐसा इंसान नहीं होगा जिसकी यादें रेलवे से जुड़ी हुई नहीं हों। रेलयात्रा का
मतलब लोग आमतौर पर सुखद और आरामदेह यात्रा से लगाते हैं। लेकिन जब यही यात्रा हिटलर
की यातना-शिविर की तरह दुःखद,थकाऊ
और पकाऊ बन जाए तो?
जब ट्रेनें जाने का
समय पर आने लगे और अगले दिन आने के समय पर जाने लगे तो? जब
यात्रियों व यात्रियों के समय का कोई मूल्य ही नहीं रह जाए तो?
मित्रों,इन
दिनों दिल्ली से बिहार आने-जानेवाली
ट्रेनों का कुछ ऐसा ही हाल है। मैं पिछले हफ्ते 28 जुलाई को मगध एक्सप्रेस से दिल्ली गया। डॉ. श्यामा
प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन के राईटर्स मीट @WritersMeet में भाग लेने जो 30-31
जुलाई को दिल्ली में
आयोजित थी। ट्रेन पटना जंक्शन से 18:10 में खुलनेवाली
थी लेकिन खुली 22:30
में। स्टेशन पर बैठे-2 मैंने देखा कि अपनी रफ्तार के लिए जानी जानेवाली संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस
जो सुबह 7 बजे
दिल्ली से पटना जंक्शन आती है रात 8 बजे
आई। यहाँ हम आपको बता दें कि यह वही संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस है जो जिसके पटना से
दिल्ली के बीच में मात्र 3
स्टॉपेज हैं और जो
मात्र 14 घंटे में निर्धारित समय से भी पहले पटना से दिल्ली पहुँचाती
थी। तो ऐसा क्या हो गया कि वही ट्रेन अब 12-12 घंटे की देरी से चल रही है? अभी तो ठंड का
मौसम भी नहीं है इसलिए कुहासा भी नहीं है फिर दिल्ली से बिहार आने-जानेवाली
सारी ट्रेनों की यही दशा क्यूँ है?
मित्रों,फिर
मैं खुद को संपूर्ण क्रांति के यात्रियों के मुकाबले ज्यादा खुशनसीब समझते हुए मगध
से दिल्ली के लिए रवाना हुआ। लेकिन यह क्या,ट्रेन
तो रफ्तार पकड़ ही नहीं रही थी। दस मिनट चलती थी और एक घंटे के लिए रूक जाती थी। अंततः
ट्रेन रात के पौने नौ बजे दिल्ली के शिवाजी ब्रिज स्टेशन पर पहुँची। मेरे पास अब इतना
धैर्य था नहीं कि मैं उस ट्रेन को और झेलता और उसके नई दिल्ली स्टेशन पहुँचने तक इंतजार
करता सो वहीं पर मैंने ट्रेन को छोड़ दिया। यहाँ हम आपको यह बता दें कि ट्रेन को नई
दिल्ली दोपहर के 11:50
में ही पहुँचना था।
यानि ट्रेन अभी नई दिल्ली आई भी नहीं थी और साढ़े नौ घंटे लेट हो चुकी थी।
मित्रों,परंतु
मेरे धैर्य की असली परीक्षा तो अभी बाँकी ही थी। @WritersMeet में भाग लेने के बाद मेरी
हाजीपुर वापसी स्वतंत्रता सेनानी सुपर फास्ट एक्सप्रेस से 2 अगस्त
को निर्धारित थी। शाम में इंटरनेट से सर्च करने पर पता चला कि ट्रेन रात के 8:30 बजे के बदले 10:30 बजे खुलेगी। परंतु स्टेशन आने पर रेलवे के फ्री वाई फाई के सौजन्य से पता चला
कि ट्रेन अब रात के 12:30
जाएगी। कुछ देर के
बाद स्टेशन की उद्घोषणा में बताया गया कि ट्रेन अब रात के 1:30 में रवाना होगी। लेकिन 1:30 बजे उद्घोषणा
में कहा गया कि यात्रीगण धैर्य रखें ट्रेन शीघ्र प्लेटफार्म संख्या 13 पर लाई जाएगी। ट्रेन आई 2 बजे और सवा दो
बजे उसने प्रस्थान किया। एक तो नीम खुद ही कड़वा और ऊपर से करेला। इस ट्रेन ने तो बैलगाड़ी
को भी रफ्तार में मात दे दी भले ही उसके नाम में सुपर फास्ट जुड़ा हुआ था। चलती कम
रूकती ज्यादा थी। दस मिनट चलती थी और 1 घंटा रूकती थी।
यहाँ तक कि उसको रोककर माल गाड़ी और पैसेंजर ट्रेन को भी आगे जाने दिया जा रहा था।
उस पर यात्रियों ने ट्रेन के शौचालय को इतना गंदा कर दिया कि साक्षात रौरव नरक का दृश्य
उत्पन्न हो गया और सीट पर बैठना-लेटना भी मुश्किल हो गया। उससे भी दुःखद स्थिति यह
थी कि हजार किलोमीटर के सफर में एक बार भी शौचालयों को साफ नहीं किया गया। सो रास्ते
भर गैस रिलीज करते हुए मैं ठीक से खा-पी भी नहीं पाया। इस
डर से कि अगर दीर्घशंका लगेगी तो करूंगा क्या? पहली
नजर में मुझे रेलवे की मल-मूत्र शुद्धिकरण की नई व बहुचर्चित प्रणाली भी फेल लगी।
मित्रों,बार-बार
मैं एस-थ्री बोगी की 56 नंबर अपर साईड
सीट पर चढ़ता और उतरता। आखिर कितना सोता या कितना लेटता? मेरा
पूरा शरीर दर्द करने लगा जैसे कि तेज बुखार में होता है। अंतत: ट्रेन 3 तारीख के दोपहर
के 14:15 के बजाए 4 तारीख की सुबह
के 3:30 बजे हाजीपुर स्टेशन पहुँची।
मित्रों,मैं
पहले भी दिल्ली गया हूँ अटल जी और मनमोहन सिंह के राज में लेकिन कभी ट्रेन इतनी लेट
नहीं हुई थी। फिर अभी जाड़े का मौसम भी नहीं है। आजकल हर रेल टिकट पर छपा रहता है कि
रेलवे आपसे सिर्फ 57
प्रतिशत भाड़ा ही ले
रही है। लेकिन हमारे तो बाँकी के 43 प्रतिशत पैसे
भी ट्रेन के अतिशय लेट से चलने के कारण रास्ते में खाने-पीने
में चले गए। मैं आदरणीय रेल मंत्री सुरेश प्रभुजी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी से अनुरोध करता हूँ कि कृपया
रेलवे को यातना-गृह बनने से बचाईए। दिल्ली-यात्रा के बाद मेरी तो हालत यह
है कि अब मैं रेलवे से यात्रा करने से पहले लाख बार सोचूंगा। सिर्फ मेरा देश बदल रहा
है आगे चल रहा है के शीर्षक वाले गीत गाने से न तो देश बदलेगा और न ही आगे-आगे
चलेगा। अगर केंद्र-सरकार को टिकट का बाँकी का 43 प्रतिशत पैसा भी चाहिए तो ले लीजिए लेकिन ट्रेनों का संचालन समय पर करिए। रेलगाड़ी
को सही मायने में रेल गाड़ी बनाईए न कि ठेलगाड़ी। तभी देश बदलेगा और आगे भी चलेगा
क्योंकि मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूँ कि रेलवे भारत का प्राण ही नहीं प्रतीक भी
है।
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