शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

गुना का सच


मित्रों, जब भी अपने देश में कोई महत्वपूर्ण चुनाव होनेवाले होते हैं विपक्षी दल जैसे पगला जाते हैं. आपको याद होगा कि जब २०१५ में बिहार विधानसभा के चुनाव होनेवाले थे तब विपक्ष दलों का रवैया क्या था? सारे वामपंथी और छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी एक जुट हो गए थे और देश में असहिष्णुता का कथित वातावरण कायम हो जाने के नाम पर अवार्ड वापसी का जबरदस्त आन्दोलन चलाया गया था. रवीश कुमार जनता से उनकी जाति पूछते चल रहे थे और दावा कर रहे थे कि बिहार में बहार है तो वही अभिसार शर्मा जहानाबाद की स्थिति को कश्मीर से भी ज्यादा भयावह बता रहे थे.

मित्रों, जैसे ही चुनाव समाप्त हुआ अवार्ड वापसी आन्दोलन भी रूक गया. सारे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों ने नीतीश कुमार की जीत पर अपनी-अपनी पीठ थपथपाई लेकिन जैसे ही २०१७ में नीतीश फिर से भाजपा के साथ आ गए बिहार में उनको बहार की जगह कुशासन और बर्बादी दिखने लगी. तात्पर्य यह कि ये लोग ऐसे लोग हैं जो किसी भी तरह मोदी को नीचा दिखाना चाहते हैं. इन लोगों की कोई कार्ययोजना नहीं है बस यही एकसूत्री एजेंडा है.

मित्रों, मैं यह नहीं कहता कि मध्य प्रदेश के गुना में पिछले दिनों एक गरीब अनुसूचित जाति से आनेवाले हिन्दू किसान परिवार के साथ जो हुआ वह उचित था. लेकिन ऐसे हुआ क्यों अगर हम इसकी जड़ में जाएँ तो पता चलता है कि इसके पीछे एक स्थानीय कांग्रेस नेता गब्बू पारदी का हाथ है जिसके धंधा सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करके उस पर एससी जाति के लोगों से बंटाई करवाना है. उसने पिछले कई दशकों से ५० एकड़ से ज्यादा बेशकीमती सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा कर रखा है. आश्चर्य की बात है कि जिस पुलिस का डंडा राजकुमार अहिरवार पर जमकर चलता है उसी पुलिस का डंडा गब्बू पर क्यों नहीं चलता जबकि उसके ऊपर ४७ मुकदमें दर्ज हैं. क्या पुलिस का डंडा सिर्फ गरीब और लाचार लोगों के लिए है.

मित्रों, राजकुमार की बहन ने बताया कि एक साल तक भूमि खाली पड़ी रही, किसी ने काम शुरू नहीं किया। हमें गप्पू पारदी ने जमीन बटाई पर दी थी। उधर सरकारी कागजात बता रहे हैं कि इस भूमि से राजस्व विभाग ने वर्ष 2019 में ही कब्जा हटा दिया था। गप्पू पारदी को बेदखल कर दिया गया था। फिर उसने यह भूमि बंटाई पर कैसे दे दी? राजस्व विभाग का दावा है कि एक साल पहले ही उच्च शिक्षा विभाग को जमीन दी जा चुकी है तो अब तक काम क्यों शुरू नहीं किया गया। वहीं ठेकेदार राधेश्याम अग्रवाल का कहना है कि हमें अब तक काम करने के लिए जमीन ही नहीं मिली तो कैसे निर्माण होता? इसलिए फिर से जमीन खाली कराने के लिए पत्र लिखा था। सवाल यह भी उठता है कि पुलिस या प्रशासन या शिक्षा-विभाग ने तब जमीन पर कब्ज़ा क्यों नहीं करवाया जब मार्च-अप्रैल में खेत खाली था?

मित्रों, हम इससे पहले भी विकास दूबे मामले में पुलिस और अपराधियों का गठजोड़ देख चुके हैं. समस्या यह है कि गलत काम पुलिस करती है और उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है सरकार को. निचले स्तर पर हो क्या रहा है इससे राज्य सरकारें पूरी तरह अनभिज्ञ होती है और जब घटना के घटित हो जाने के बाद उसे पता चलता है तब काफी देर हो चुकी होती है. फिर तबादले, निलंबन वगैरह करके मामले की खानापूर्ति कर दी जाती है जबकि वास्तविकता यह है कि न तो तबादला और न ही निलंबन भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों का सही ईलाज है बल्कि उनको बर्खास्त कर देना ही सही ईलाज है. जब तक सरकारें ऐसा नहीं करतीं कुछ भी नहीं बदलनेवाला. ऐसे ही गब्बू पारदी पैदा होते रहेंगे और ऐसे ही राजकुमार अहिरवार पिटते रहेंगे. और तब तक कांग्रेस जैसे भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके दल जो गब्बू पारदी जैसे लोगों को खुलकर संरक्षण देती है ऐसी घटनाओं से चुनावों में लाभ उठाते रहेंगे.

मित्रों, मैं नहीं समझता कि इस दुखद घटना के लिए किसी भी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दोषी है. उनके संज्ञान में जैसे ही मामला आया उन्होंने तत्काल जरूरी कदम उठाए. वैसे भी वे अपनी संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं. हाँ, इतना जरुर है कि पुलिस सुधार को अब और टाला नहीं जा सकता क्योंकि वर्तमान भारत की पुलिस अंग्रेजों की पुलिस से भी ज्यादा दमनकारी हो गई है. रक्षक से भक्षक तो वो कई दशक पहले ही हो चुकी थी. साथ ही राज्यों की ख़ुफ़िया एजेंसियों को फिर से मजबूत बनाना होगा जिससे राज्य के मुखिया को राजधानी में बैठे-बैठे सबकुछ मालूम होता रहे.साथ ही तत्काल राजकुमार के परिवार को फसल की क्षति के लिए क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिएऔरउसके परिवार पर से मुकदमा वापस लिया जाना चाहिए. हाँ,गब्बू पारदी को जरूर जेल भेजना चाहिए.

मित्रों, इस बीच खबर आ रही है कि उसी मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के ग्राम गढ़ी में रेत माफिया ने असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर (एएसआइ) को धमकाते हुए चांटा मारा और धक्का देकर जमीन पर पटक दिया। घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मामला उजागर हुआ। वीडियो में दिख रहा है कि घटना के वक्त एक कांस्टेबल रेत माफिया के आगे गिड़गिड़ा दिखा रहा है। पिट रहे एएसआइ ने भी किसी तरह का प्रतिकार नहीं किया, बल्कि हाथ बांधकर और सिर झुकाकर रेत माफिया की धमकी व अपशब्द सुनते रहे। इसके बाद रेत माफिया ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को ले गए। कितनी बड़ी विडंबना है कि पुलिस जिनके ऊपर कार्रवाई के लिए बनी है उनके आगे तो बेबस रहतीं हैं और गरीबों पर अत्याचार करती है।

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