शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

हिंदुस्तान कोचिंग स्कॉलरशिप

मैं हिंदुस्तान अख़बार में कई वर्ष तक काम कर चुका हूँ और घर में भी हिंदुस्तान ही लेता हूँ। आजकल उसमें इस परियोजना में चयनित छात्र- छात्रों की प्रतिक्रियाएं और अनुभव छापे जा रहे हैं। कोई कहता है कि मेरी तो लाइफ बन गयी, तो कोई कह रहा है कि हिंदुस्तान ने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया। खबरें इतने आकर्षक ढंग से छापी जा रही हैं कि लगता है कि जैसे इनका चयन आई आई टी के लिए हो गया है। मैं इस अभियान का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन मैं जानता हूँ कि इस समाचार-पत्र में विज्ञापन नुमा समाचारों के लिए संवाददाताओं की कितनी फजीहत की जाती है। मैं अख़बार के नीति-नियंताओं से यह पूछता हूँ कि फ़िर ये खबरें समाचार हैं या स्वयं हिंदुस्तान और ब्रिल्लिएंत कोचिंग का विज्ञापन। अगर ये समाचार हैं तो फ़िर यही बता दें कि समाचार और विज्ञापन में क्या अन्तर है? दूसरी बात यह कि २०००० रुपए से कम मासिक आय वाले छात्र-छात्राएं भाग ले सकते हैं लेकिन हिंदुस्तान टाईम्स मीडिया लिमिटेड के कर्मियों के बच्चे भाग नहीं ले सकते हैं। मैं पूछता हूँ कि क्या हिंदुस्तान के सभी कर्मचारियों का वेतन २०००० रुपए से ज्यादा है या हिंदुस्तान में काम करना अपराध है? जहाँ तक मैं समझता हूँ हिंदुस्तान, बिहार के संभवतः ९० प्रतिशत कर्मियों का मासिक वेतन ३००० से भी कम है, फ़िर क्यों उन्हें इस योजना से बाहर कर दिया गया?

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