हमारे देश की न्याय व्यवस्था इतनी विलंबकारी, खर्चीली और भ्रष्ट हो गई है कि इसे न्याय की जगह अन्याय व्यवस्था कहना ज्यादा ठीक रहेगा। मैं देखता हूँ कि निचली अदालतों में अधिकतर फैसले पैसे लेकर लिए जा रहे हैं। ऊपरी अदालतों का प्रत्यक्ष अनुभव तो मुझे नहीं है पर वहां भी स्थितियां भिन्न नहीं होगी ऐसा मुझे लगता है। अगर इसी को न्याय प्रणाली कहते हैं तो फिर इसकी जरूरत ही क्या है? निश्चित रूप से इसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता है। भंग सिर्फ़ लोटे में नहीं है बल्कि पूरे कुएं में ही भंग पड़ी हुयी है। इसमें आमूल-चूल परिवर्तन होने चाहिए और शीघ्रातिशीघ्र होने चाहिए। मुकदमों के निपटारे के लिए एक समय सीमा तय होनी चाहिए। यह बात किसी से छिपी हुयी नहीं है की नक्सालियों के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र के पीछे हमारी विलंबकारी न्याय प्रणाली भी है। पहले ही काफी देर हो चुकी है।
जनसेवक होते हुए भी न्यायाधीशों की कोई जिम्मेवारी निश्चित नहीं है। ग़लत फ़ैसला लेने पर उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। सारे न्यायाधीशों की संपत्ति की भी समय-समय पर जाँच की व्यवस्था होनी चाहिए। आख़िर वे भी हाड़-मांस के ही बने हैं।
1 टिप्पणी:
kya haal hai guru. achchha kam kar rahe ho. yah jankar to aur bhi achchha laga ki aap kewal baten karne ke himayati nahin hai, balki jamini star par kuchh karna bhi chahte hain. main ismen aapke sath hun. asha hai aap mera nivedan sweekar karenge.
sabir ali
jahanabad
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