एक बूढा-सा जीर्ण- शीर्ण कायावाला
तथाकथित भिखारी सो रहा है;
खुले आसमान के नीचे
सारी चिंताओं को कदाचित अपने
ईंट रुपी तकिये के नीचे दबाकर,
चेहरे पर लिए परम संतोष का भावः
जो शायद उसकी कंगाली से उपजा है;
वह बीच-बीच में मुस्कुराता भी है,
न जाने कौन- से सपने देखकर;
शायद भरपेट रोटी मिलने के सपने;
आती-जाती सांसों के साथ
गालों के फूलने और पिचकने से,
मालूम हो रहा है की वह जीवित है अब भी;
सीने में बंद यही एक मुट्ठी बंद हवा,
उसकी एकमात्र संपत्ति है;
वह सुख-दुःख, मान-अपमान
से ऊपर उठ चुका है,
और बन चुका है
दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति.
1 टिप्पणी:
aap kavita bhi likhte hain vo bhi itni achchhi. chaliye aapke is roop ka bhi pata laga.
alok, panipat
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