बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमारजी आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ जेहाद करते दिखना चाह रहे हैं. वे केन्द्र की सरकार से मांग कर रहे हैं की वह भ्रष्टाचार के मामलों को तीव्र गति से सुनवाई करने के लिए नए फास्ट ट्रैक न्यायालयों के गठन की अनुमति दे.
क्या वास्तव में वे भ्रष्टाचार का खत्म चाहते हैं? लोकसभा चुनाव के समय बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष स्वपन मुखर्जी के खिलाफ निगरानी विभाग ने २१ करोड़ रुपए की हेरा-फेरी का मामला पकड़ा था. लेकिन आज तक कुछ हुआ नहीं और मुखर्जी साहब अब भी बाईज्ज़त अपने पद पर बने हुए हैं. क्या कोई आम आदमी निगरानी के सिकंजे में आता तब भी सरकार का यही रवैय्या होता? क्या निगरानी की तलवार सिर्फ़ छोटे अधिकारीयों और कर्मचारियों के लिए है?
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