गुरुवार, 5 नवंबर 2009
शाहे बेखबर का शासन
कभी परवर्ती मुग़ल बादशाह शाह आलम को शाहे बेखबर कहा जाता था.क्योंकि रियाया की हालत क्या है और राज्य में क्या हो रहा है उन्हें कुछ पता नहीं होता था. एक शेर भी काफी प्रसिद्द हुआ था-शहंशाहे शाह आलम, दिल्ली से पालम. जिस किसी ने भी कहा है कि इतिहास अपने को दोहराता है बिलकुल सही कहा है. हमारे प्रधानमत्री मनमोहन सिंह की सरकार किसी भी मायने में शाह आलम की सल्तनत से कम नहीं हैं.अभी परसों ही की तो बात है गृह मंत्री चिदंबरम देवबंद में दारुण उलूम के एक कार्यक्रम में भाग लेने गए थे. दारम उलूम द्वारा उसी कार्यक्रम में वन्दे मातरम, महिला आरक्षण और टेलिविज़न पर पारित प्रस्ताव पर जब विवाद उत्पन्न हो गया तो उनके सहायक कहते हैं कि मंत्रीजी को ऐसे किसी प्रस्ताव के बारे में जानकारी ही नहीं थी. क्या भोलापन है मौजूदगी में प्रस्ताव पारित हुआ और मंत्रीजी बेखबर हैं. अपने प्रधानमंत्रीजी तो और भी ज्यादा मासूम हैं उन्हें तो लगता है कभी-कभी यह भी खबर नहीं रहती कि भारतीय गणतंत्र का प्रधानमंत्री कौन है? किसी विपक्षी नेता की तरह खुद ही मांग करते रहते है कि ये होना चाहिए, वो होना चाहिए. होना चाहिए इससे भला कौन इंकार कर सकता है लेकिन करना तो आपको ही है, सत्ता पक्ष ही तो सब कुछ करता है. आप अपने मंत्री को आप जैसा करना चाहते हैं आदेश दें और मुझे माफ़ करें क्योंकि मुझे ऐसा कोई नुस्खा मालूम नहीं है जिससे आप जैसे वयोवृद्ध डबल रिटायर्ड की स्मरण शक्ति मजबूत हो सके.
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1 टिप्पणी:
किशोर कुछ बातें सिर्फ भारत में ही संभव है. मैं तो चाहता हूँ कि नेताओं के रिटायरमेंट की भी आयु निर्धारित की जाये.
तुम्हारा मित्र,
अश्विनी, इंदौर
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