बुधवार, 18 नवंबर 2009
ओबामा ने दिखाया भारत को ठेंगा
जब ओबामा को नोबेल पुरस्कार दिया गया था तभी यह आशंका व्यक्त की जा रही थी कि अब ओबामा को दोहरे व्यक्तित्व से लड़ना पड़ेगा.एक तरफ होगा नोबेल-विजेता ओबामा तो दूसरी ओर राष्ट्रपति ओबामा.ओबामा की चीन यात्रा में निस्संदेह नोबेल विजेता ओबामा का पलड़ा भारी रहा. ओबामा की एशिया यात्रा से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि ओबामा यथास्थितिवादी नीतियाँ अपना रहे हैं. वे नहीं चाहते कि चीन से तत्काल तनाव बढे भले ही उनकी यह नीति अमेरिका के लिए दीर्घकालीन रूप से नुकसानदेह हो.जिस तरह उन्होंने तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया है उससे इस समय तो ऐसा लग रहा है कि अमेरिकी विदेश नीति पूरी तरह चीन-केन्द्रित हो गई है. क्लिंटन के समय से ही जो एशिया में भारत को महत्व देकर संतुलन साधने का प्रयास किया जा रहा था लगता है उसे तिलांजली देने का ओबामा प्रशासन ने पूरी तरह से मन बना लिया है.जाहिर है कि इस बदलाव का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत पर पड़ेगा जिसके सम्बन्ध पहले से ही चीन के साथ तनावपूर्ण चल रहे हैं.तो क्या यह मान लिया जाये कि भारत के साथ धोखा हुआ है? हुआ तो है लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब भी एक कमजोर और एक शक्तिशाली के बीच संबंधों का निर्धारण होता है तो निर्णायक हमेशा मजबूत पक्ष ही होता है, कमजोर को तो सिर्फ अमल करना पड़ता है.अब भारतीय कूटनीतिकों को देखना चाहिए कि हमारे पास क्या विकल्प शेष हैं?
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