बुधवार, 4 नवंबर 2009

कबीरा खड़ा बाज़ार में

मध्यकाल के प्रसिद्द निर्गुण भक्त दूरदर्शी संत कबीर शायद उसी समय बाज़ार का महत्व समझ गए थे. तभी तो वे बार-बार बाज़ार में खड़े नज़र आते हैं.उनका एक बाज़ार सम्बन्धी दोहा तो काफी प्रसिद्द है- कबीरा खड़ा बाज़ार में सबकी मांगे खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर. एक और भी दोहा है जिसमें कबीर लुकाठी लेकर बाज़ार में खड़े नज़र आते हैं, पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार है-कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ. इन दोहों से स्पष्ट है कि कबीर फक्कड़ थे इसलिए बार-बार बाज़ार में खड़े होकर किसी को भी चुनौती दे डालते थे.वह दौर ईश्वरीय आस्था का दौर था आज बाजारीकरण का दौर है. प्रेम से लेकर वात्सल्य तक सब कुछ बाज़ार में आकर खड़ा हो गया है और बाज़ार द्वारा, बाज़ार के लिए संचालित हो रहा है.आधुनिक संत/भक्त बाजार नाम परमेश्वरं महामंत्र की महिमा को काफी पहले समझ गए थे. रजनीश ने सबसे पहले इसे समझा लेकिन भारतीय जनता के मन-मिजाज को वे भांप नहीं सके फलस्वरूप अमेरिका भागना पड़ा. बाद में आशाराम बापू ने भी अपनी खूब ब्रांडिंग की लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रप बनकर रह गए. अध्यात्म का राष्ट्रीय नायक कैसे बना जा सकता है इसे पहली बार वास्तविक रूप में समझा बाबा रामदेव ने.जैसा कि सभी जानते हैं कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है. रामदेव ने योग द्वारा कैसे मुफ्त में स्वस्थ रहा जा सकता है लोगों को बताना शुरू किया. देखते-देखते अहले सुबह वे लगभग सभी टीवी चैनलों के परदे पर नज़र आने लगे. जब मामला जमने लगा तब निकल पड़े देशाटन पर. जगह-जगह योग-शिविरों का आयोजन होने लगा.लाभार्थियों से ऊंचीं रकम वसूली जाने लगी.साथ-ही-साथ उनके गुरुभाई बालकृष्ण द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवाओं का भी इन शिविरों में भरपूर प्रचार किया गया और दवाएं बेचीं भी गयीं. देखते-ही-देखते लगभग हरेक शहर में बाबा रामदेव के दिव्य फार्मेसी की दुकानें खुल गईं. इतना धनार्जन हुआ कि रामदेव ने आस्था नामक चैनल को ही खरीद लिया जिससे भक्ति और अध्यात्म के अन्य व्यापारियों को भी अपनी ब्रांडिंग का अवसर प्राप्त हो सके.संन्यासी बनकर उन्होंने जितना धनार्जन किया शायद गृहस्थ बनकर कभी नहीं कर पाते.कम्पनी फिल्म में एक गाना था-गन्दा है पर धंधा है.फ़िर यह धंधा तो सम्मान भी दिला रहा है. जब तक जनता का मोहभंग नहीं होता चलेगा तब तक तो पिछले दरवाजे से दिव्य योग मंदिर में दाखिल हो चुके रामदेव के भाई और बहनोई के वंशजों-उत्तराधिकारियों के कई पुश्तों के बैठकर खाने का इंतजाम हो जायेगा.

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बेबाक,,अति प्रसंशनीय,,बृजकिशोरसिंह के लेखन को मान प्रणाम

बेनामी ने कहा…

gazab ka likha hai