रविवार, 29 नवंबर 2009
गरीब बढाओ परियोजना
नीतीश कुमारजी की आदरणीय सुशासनी सरकार ८०० महादलितों का चयन कर उनके बीच ४००० एकड़ भूमि का वितरण करेगी.इसके लिए सरकार जमीन का अधिग्रहण करने जा रही है.क्या योजना है एक गरीब से जमीन लेकर दूसरे गरीब लोगों में बाँटी जाएगी.१९७० के दशक से ही केंद्र सरकार कथित रूप से गरीबी को मिटाने का प्रयास कर रही है.बिडम्बना तो यह है कि भारत में सबसे ज्यादा गरीबी इसी दौरान बढ़ी जब इंदिराजी जी-जान से इसे मिटाने की कोशिश में लगी थी, भले ही कांग्रेस कुतर्कों के आधार पर इससे इंकार करें.चाहे इंदिराजी की सरकार रही हों या कोई अन्य केंद्र या राज्य की सरकार तब से किसी ने भी गरीबी मिटाने का सही मायने में प्रयास नहीं किया.असलियत तो यह है कि गरीबी घटाने के बदले सरकारें जो लोग ठीक-ठाक स्थिति में हैं उन्हें गरीबी रेखा से नीचे लाने में लगी हुई हैं.यही कारण है कि गरीबी नहीं मिटी गरीबों की तादाद जरूर बढ़ गई.जहाँ आजादी के समय लगभग ५०% आबादी गरीब थी आज ८०% आबादी २० रूपया प्रतिदिन से भी कम में गुजारा कर रही है. स्वयं केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब भारत में ही निवास करते हैं.हालांकि अधिकतर अर्थशास्त्री सरकार के गरीबी मापने के पैमाने को सही नहीं मानते और मानते हैं कि भारत के कम-से-कम आधे लोग गरीब हैं.जहाँ तक सुशासन बाबू का सवाल है तो उनका मानना है कि सीधे पैसा दे देने से गरीबी समाप्त हो जाएगी. लेकिन वह पैसा कितने दिन तक चलेगा?हाँ अगर वे गरीबी मिटाने के बदले सिर्फ चुनाव जीतना चाहते हैं तो हो सकता है कि उन्हें बांकी नेताओं की तरह यह लक्ष्य प्राप्त हो भी जाये.अच्छा हो कि निवेश आमंत्रित कर या सरकारी संसाधन से ही रोजगार के अवसर पैदा किये जाएँ.वैसे भी भारत के गरीब १९५० से ही नगद पाते रहे हैं.इसमें से कुछ रकम प्रशासनिक तंत्र सोख ले रहा है तो कुछ गरीबी मिटाने में सूख जा रही है.
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1 टिप्पणी:
गरीबी मिटाने से पहले सरकार यह तो निश्चित कर ले कि कौन गरीब है और कौन नहीं? हमारे राज्य में तो पैसेवालों के नाम भी बीपीएल सूची में दर्ज हैं.इसे तो गरीबों के साथ भद्दा मजाक ही कहा जा सकता है.
नरेन्द्र, किशनगंज
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